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हनुमान जयंती: कार्तिक पूर्णिमा पर विशेष पूजा, जन्म कथा, वैज्ञानिक पहलू और ग्रहदोष से मुक्ति का दिन

19 अक्टूबर 2025 को कार्तिक पूर्णिमा पर हनुमान जयंती मनाई जाएगी। इस दिन हनुमानजी की विशेष पूजा, उपवास, चालीसा पाठ और आरती का विशेष महत्व है। वैज्ञानिक दृष्टि से यह दिन मानसिक ऊर्जा, आत्मबल और मंगल दोष शांति के लिए श्रेष्ठ माना गया है। पवनपुत्र की आराधना से भय, रोग और ग्रहदोष दूर होते हैं। हनुमान भक्ति से मनोबल और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

– हनुमान जयंती 19 अक्टूबर पर विशेष : कार्तिक मास में हनुमान पूजा का महात्म्य, जन्म कथा, पूजा विधि और ज्योतिषीय महत्व

वाराणसी। कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के अवसर पर इस वर्ष 19 अक्टूबर, शनिवार को हनुमान जयंती मनाई जाएगी। यह तिथि विशेष रूप से दक्षिण भारत सहित कई क्षेत्रों में हनुमानजी के जन्म दिवस के रूप में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। हनुमानजी की आराधना से शक्ति, बुद्धि, निर्भयता और ग्रहदोषों की शांति प्राप्त होती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि कार्तिक पूर्णिमा का दिन देवताओं के पूजन का सर्वश्रेष्ठ समय है और इसी दिन हनुमान उपासना करने से असीम फल की प्राप्ति होती है।

हनुमानजी का जन्म कथा और धार्मिक मान्यता

शक्ति, भक्ति और निर्भयता के प्रतीक भगवान हनुमान को हिंदू धर्म में अमर देवता माना गया है। वे ऐसे देव हैं जो त्रेता युग से आज तक जीवित माने जाते हैं। शास्त्रों और पुराणों में उनके जन्म, उद्देश्य और कार्यों का विस्तृत वर्णन मिलता है। उनके जन्म की कथा जितनी अलौकिक है, उतनी ही प्रेरणादायक भी। विशेष बात यह है कि हनुमान जयंती भारत में वर्ष में दो बार मनाई जाती है – एक बार चैत्र पूर्णिमा को और दूसरी बार कार्तिक पूर्णिमा को।

हनुमानजी का जन्म – अंजना और केसरी के पुत्र, पवनदेव के वरदान से

पुराणों के अनुसार, त्रेता युग में अंजना नाम की एक अप्सरा थी जिन्हें एक ऋषि के शाप के कारण वानरी योनि में जन्म लेना पड़ा। उन्होंने पर्वतराज केसरी से विवाह किया और भगवान शिव की उपासना में लीन रहीं। अंजना माता ने पुत्र-प्राप्ति के लिए कड़ी तपस्या की।उसी समय, राजा दशरथ पुत्रेष्टि यज्ञ कर रहे थे और अग्निदेव के माध्यम से प्राप्त दिव्य खीर का एक अंश वायु देव के द्वारा अंजना के हाथों में पहुँचा। अंजना ने उसे ग्रहण किया और पवनदेव की शक्ति से पवनपुत्र हनुमान का जन्म हुआ। इसीलिए हनुमानजी को पवनपुत्र, वायुपुत्र और मारुति नंदन कहा जाता है।

जन्म के समय हनुमान का शरीर सोने की तरह चमक रहा था। बाल्यकाल में ही उन्होंने सूर्यदेव को फल समझकर निगल लिया, जिससे तीनों लोकों में अंधकार छा गया। तब इंद्रदेव ने वज्र से प्रहार किया, जिससे उनके ठोड़ी पर चोट आई और वे मूर्छित हो गए। वायु देव ने क्रोधवश वायु का संचार रोक दिया। तब सभी देवताओं ने आकर उन्हें असीम वरदान दिए — ब्रह्मा ने अजेयता, विष्णु ने तेज, इंद्र ने अमरता और शंकर ने बुद्धि व पराक्रम का वरदान दिया।

कार्तिक मास में हनुमान पूजा का महात्म्य

कार्तिक मास का पूरा काल भगवान विष्णु और शिव की उपासना के लिए उत्तम माना गया है। इसी मास में हनुमानजी की आराधना करने से भक्त को शक्ति, साहस और मनोबल प्राप्त होता है। हनुमान भक्तों के सभी कष्टों को दूर कर देते हैं। यह समय साधना और संयम का होता है, इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन हनुमानजी की विशेष पूजा करने का विधान है।

हनुमान जन्मोत्सव का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व

हनुमानजी को शनि और मंगल ग्रह का कारक देवता माना गया है। उनकी पूजा से क्रोध, भय, रक्तचाप, और शनि-दोष से मुक्ति मिलती है। चैत्र मास में पूजा मानसिक स्फूर्ति देती है, जबकि कार्तिक मास में की जाने वाली पूजा आध्यात्मिक ऊर्जा को प्रबल करती है। हनुमान चालीसा, सुंदरकांड और बजरंग बाण का पाठ इस दिन विशेष रूप से लाभकारी माना गया है।

पूजा का शुभ मुहूर्त

  • पंचांग के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा तिथि 18 अक्टूबर की शाम 5:36 बजे से आरंभ होकर 19 अक्टूबर की शाम 6:14 बजे तक रहेगी। हनुमान पूजन के लिए 19 अक्टूबर, शनिवार का दिन सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
  • शुभ मुहूर्त: प्रातः 6:15 से दोपहर 12:00 बजे तक और संध्या पूजा के लिए शाम 5:00 से 7:00 बजे तक का समय श्रेष्ठ माना गया है।

पूजन सामग्री

हनुमानजी के पूजन में सिंदूर, चमेली का तेल, तुलसी पत्र, लाल पुष्प, गुड़-चना, पंचमेवा, गंगाजल, लाल वस्त्र, दीपक और नैवेद्य का विशेष स्थान होता है। मंगलवार या शनिवार को हनुमानजी को 11 या 21 बार ‘जय हनुमान’ का उच्चारण कर प्रसाद चढ़ाने का विधान है।

पूजन विधि

प्रातः स्नान के बाद लाल वस्त्र पहनकर पूर्व या दक्षिणमुखी होकर हनुमानजी की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं। सबसे पहले गणेश वंदना करें, फिर श्रीराम का स्मरण कर हनुमानजी को सिंदूर, तेल और पुष्प अर्पित करें। गुड़-चना का नैवेद्य चढ़ाएं। इसके बाद हनुमान चालीसा, सुंदरकांड या बजरंग बाण का पाठ करें। पूजा के अंत में आरती और शांति मंत्र का जाप करें।

उपवास और व्रत का महात्म्य

हनुमान जयंती के अवसर पर उपवास रखने का विशेष महत्व बताया गया है। उपवास से मन, वाणी और कर्म की पवित्रता बनी रहती है। भक्त केवल फल, दूध या प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस दिन संयम और सत्य आचरण का पालन करने से हनुमानजी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। जो भक्त निर्जला व्रत करते हैं, उन्हें विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

हनुमान चालीसा : भक्त इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ कर अपने जीवन से भय, रोग और शत्रु बाधाओं का नाश करते हैं। ‘जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर’ से आरंभ होकर ‘सीयावर रामचंद्र की जय, पवनसुत हनुमान की जय’ तक का पाठ शुद्ध भावना से करने पर असीम फल प्राप्त होता है।

॥ श्री हनुमान चालीसा ॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस बिकार॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥

संकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सवाँरे॥

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

जुग सहस्त्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना॥

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरे सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोई चाहै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन नाम तुम्हारे॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥

और मनोरथ जो कोई बकावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

हनुमान आरती : आरती ‘आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की’ भावपूर्वक की जाती है। इसमें हनुमानजी के पराक्रम, सेवा और भक्ति की भावना व्यक्त होती है।

॥ श्री हनुमानजी की आरती ॥

आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

जाके बल से गिरिवर कांपे।
रोग-दोष जाके निकट न झांके॥

अंजनि पुत्र महा बलदाई।
संतन के प्रभु सदा सहाई॥

दे बीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारि सिया सुधि लाए॥

लंका सो कोट समुद्र-सी खाई।
जात पवनसुत बार न पाई॥

लंका जारि असुर संहारे।
सियारामजी के काज सवारे॥

लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे।
लाये संजीवन प्राण उबारे॥

पैठि पाताल तोरि जमकारे।
अहिरावन की भुजा उखारे॥

बाईं भुजा असुर दल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे॥

सुर नर मुनि जन आरती उतरें।
जय जय जय हनुमान उचारे॥

कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई॥

जो हनुमानजी की आरती गावे।
बसि बैकुण्ठ परमपद पावे॥

लंकाविध्वंस किए रघुराई।
तुलसीदास प्रभु कीरति गाई॥

जो सुमिरै हनुमान बलबीरा।
संकट कटे मिटे सब पीरा॥

॥ दोहा ॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥

ज्योतिष की दृष्टि से हनुमान पूजा का प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र में हनुमानजी को शनि और मंगल ग्रह से संबंधित माना गया है। जिन जातकों की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती, ढैया या मंगलदोष होता है, उन्हें हनुमानजी की उपासना से अत्यधिक लाभ होता है। शनिवार को हनुमान मंदिर जाकर तेल चढ़ाने, हनुमान चालीसा के पाठ और वट वृक्ष की परिक्रमा करने से शनि दोष का शमन होता है। वहीं मंगल दोष या क्रोध की प्रवृत्ति को शांत करने में भी हनुमान पूजा अत्यंत प्रभावी मानी गई है।

आस्था और ऊर्जा का प्रतीक

हनुमानजी को भक्ति, बल और विनम्रता का प्रतीक माना गया है। उनकी आराधना व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा भर देती है। कार्तिक मास की हनुमान जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मबल और विश्वास का उत्सव है, जो भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

वैज्ञानिक पहलू : हनुमान भक्ति और ऊर्जा विज्ञान

आस्था के साथ-साथ हनुमानजी की उपासना में वैज्ञानिक तत्व भी निहित हैं। हनुमानजी को शक्ति, साहस और मनोबल के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। यह भाव मनोविज्ञान और ऊर्जा संतुलन से गहराई से जुड़ा है।

1. मंगल ग्रह और ऊर्जा नियंत्रण – ज्योतिष के अनुसार हनुमानजी का संबंध मंगल ग्रह से है, जो रक्तचाप, जोश और क्रोध का प्रतिनिधित्व करता है। हनुमान चालीसा का नियमित पाठ मस्तिष्क में अल्फ़ा वेव्स उत्पन्न करता है, जो मानसिक शांति और आत्म-नियंत्रण बढ़ाता है।

2. ‘राम’ नाम का स्पंदन – वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि “राम” शब्द के उच्चारण से थिटा फ्रिक्वेंसी वेव्स सक्रिय होती हैं, जो एकाग्रता, स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाती हैं।

3. सिंदूर और तेल का प्रयोग – हनुमान पूजा में सिंदूर और चमेली तेल का प्रयोग शरीर की अरोमाथेरेपी की तरह कार्य करता है, जिससे नर्वस सिस्टम शांत होता है और तनाव घटता है।

4. भक्ति से मनोवैज्ञानिक शक्ति – हनुमानजी की उपासना आत्मविश्वास, भय-निवारण और निर्णय क्षमता को सुदृढ़ करती है। यह वैज्ञानिक रूप से माइंड-रीप्रोग्रामिंग का प्रभाव देती है।

5. ध्यान और कंपन ऊर्जा – हनुमान चालीसा के 40 छंदों का नियमित जप शरीर में सकारात्मक कंपन उत्पन्न करता है, जिससे हृदयगति संतुलन और मानसिक स्थिरता में सुधार होता है।

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डिस्क्लेमर : इस लेख में प्रस्तुत धार्मिक, ज्योतिषीय और पौराणिक जानकारी प्राचीन शास्त्रों, पुराणों, धार्मिक परंपराओं और लोक मान्यताओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जनजागरण और सांस्कृतिक जानकारी प्रदान करना है। CMG TIMES किसी भी धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पद्धति या ज्योतिषीय उपाय की प्रभावशीलता का दावा नहीं करता। पाठक अपनी आस्था और विवेक के अनुसार निर्णय लें।

 

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