गणेश चतुर्थी : गणेश व्रत से दूर होंगे विघ्न, प्राप्त होगी समृद्धि और सौभाग्य
इस व्रत का उल्लेख गणेश पुराण और स्कंद पुराण में किया गया है, जिसमें कहा गया है कि गणेश चतुर्थी का उपवास करने से सभी बाधाएँ दूर होती हैं और जीवन में शुभता, सौभाग्य और सफलता आती है।
25 अक्टूबर 2025, शनिवार को शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे उत्तर भारत में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा। काशी नगरी में यह दिन भगवान गणेश की उपासना का अत्यंत शुभ अवसर होगा। इस दिन श्रद्धालु विघ्नहर्ता गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए उपवास, पूजन और विशेष अनुष्ठान करेंगे।
पौराणिक ग्रंथों में इस व्रत का बड़ा महात्म्य बताया गया है। ‘गणेश पुराण’, ‘स्कंद पुराण’ और ‘नारद पुराण’ में वर्णित है कि जो व्यक्ति शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विधिवत व्रत कर भगवान गणेश की आराधना करता है, उसके सभी विघ्न दूर हो जाते हैं। यह व्रत बुद्धि, विवेक, धन और सौभाग्य प्रदान करता है।
पूजा की शुरुआत प्रातः स्नान के बाद संकल्प से होती है। व्रती स्वच्छ वस्त्र धारण कर लाल या पीले आसन पर बैठता है और भगवान गणेश के समक्ष संकल्प लेता है कि वह इस चतुर्थी को श्रद्धा और नियमपूर्वक उपवास करेगा। घर के मंदिर या पूजा-स्थान पर गणेश जी की मूर्ति या चित्र को लाल कपड़े पर विराजमान किया जाता है। दाहिनी ओर दीपक और बाईं ओर जल से भरा कलश रखा जाता है।
पूजा में दूर्वा, लाल पुष्प, मोदक या लड्डू, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य और पंचामृत का प्रयोग किया जाता है। भक्त गणपति गायत्री मंत्र का जप करते हैं – “ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।”
इसके बाद गणेश चालीसा और आरती का पाठ किया जाता है।
गणेश चालीसा में कहा गया है – “जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल। विघ्न विनाशक मंगलमय, संतन के हितपाल॥”
व्रत दिनभर रखा जाता है। कुछ भक्त निर्जला उपवास रखते हैं, जबकि कुछ केवल फलाहार करते हैं। सायंकाल चतुर्थी तिथि में दीप प्रज्वलन के साथ पूजा की जाती है। पूजा के बाद मोदक और लड्डू का भोग लगाकर आरती होती है – “जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।”
गणेश चतुर्थी की कथा में बताया गया है कि माता पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से एक बालक की रचना की और उसे द्वारपाल बनाया। भगवान शिव के आने पर उस बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। क्रोधित होकर शिव ने उसका सिर काट दिया। जब पार्वती ने यह देखा तो वे व्याकुल हो उठीं। तब शिव ने हाथी का सिर उस बालक पर स्थापित कर दिया और उसे जीवनदान दिया। वही बालक गणेश कहलाया और शिव ने उन्हें सर्वप्रथम पूज्य होने का वरदान दिया।
वाराणसी में इस दिन चौथ माता की पूजा का भी विशेष महत्व है। लोकमान्यता है कि जो महिलाएँ चौथ माता का व्रत करती हैं, उनके परिवार में संतान-सुख और समृद्धि बनी रहती है। चौथ माता की आरती इस प्रकार गाई जाती है – “जय चौथ माता जय जय जय चौथ माता, संतान सुख प्रदायिनी जय जय जग विख्याता।”
व्रत के दौरान भक्त ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का जाप करते हैं। कुछ श्रद्धालु गणेश अथर्वशीर्ष या गणेश उपनिषद का पाठ भी करते हैं। पूजा के बाद दीपदान, अन्नदान और ब्राह्मण-भोजन का विशेष महत्व माना गया है।
वाराणसी के प्रमुख गणेश मंदिरों – जैसे बड़ा गणेश मंदिर , चिन्तामणि गणेश मंदिर, ढ़ुढ़ीराज विनायक और सिद्धिविनायक गणेश मंदिर – में इस दिन सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ने की संभावना है। सायंकाल आरती के समय मंदिरों में मोदक और लड्डू के भोग लगाए जाएंगे। घरों में महिलाएँ विशेष रूप से गौरी-गणेश पूजा करती हैं और परिवार के मंगल, संतान-सुख तथा गृह-शांति की कामना करती हैं।
पंडितों का कहना है कि इस दिन जो व्यक्ति श्रद्धा और शुद्ध मन से गणेश व्रत करता है, उसके सभी कार्यों में सफलता मिलती है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। 25 अक्टूबर की यह शुक्ल पक्ष गणेश चतुर्थी श्रद्धा, भक्ति और शुभ संकल्पों से भरा वह पर्व है, जो काशी की धार्मिक परंपराओं को एक बार फिर आस्था के उजाले से आलोकित करेगा।
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