
सीबीसीआइडी की जांच में फंसे जलालपुर के पूर्व थानाध्यक्ष
मामला वर्ष 1999 में हुई हत्या का,पूर्व विधायक समेत तीन को हो चुकी है 7 वर्ष की सजा
जौनपुर। सीबीसीआइडी की विवेचना में जलालपुर के तत्कालीन थानाध्यक्ष और वर्तमान में फतेहपुर में थानाध्यक्ष के तौर पर तैनात उमेश प्रताप सिंह फंस गए हैं। इनके प्रमोशन व नौकरी पर भी खतरा मंडरा रहा है। सोमवार को अदालत में समर्पण व जमानत की तैयारी से आए थे, लेकिन जेल जाने की आशंका के कारण समर्पण नहीं किया। मंगलवार को सीजेएम कोर्ट में अधिवक्ता सत्येंद्र बहादुर सिंह के माध्यम से प्रार्थना पत्र दिया कि सीबीसीआइडी द्वारा की गई विवेचना की केस डायरी तथा स्पष्ट आख्या तलब कर ली जाए, जिससे वह जमानत की कार्रवाई करा सकें।
मामला जलालपुर थाना क्षेत्र में वर्ष 1999 में हुई हत्या का है, जिसमें पूर्व विधायक समेत तीन को सेशन कोर्ट से सजा भी हो चुकी है। थानाध्यक्ष व अन्य पुलिस कर्मियों पर आरोपितों को बचाने के लिए विवेचना में धारा हल्की करने एवं षडयंत्र का प्रथम दृष्टया अपराध सीबीसीआइडी की विवेचना में पाया गया है। संबंधित घटनाक्रम के अनुसार जून 1999 को शाम पांच बजे वादी छेदीलाल (निवासी ग्राम कुसिया, जलालपुर) का भाई मोहनलाल अपने ससुराल मझगवा कलां पत्नी आशा को लेने गया था। आरोप है कि पूर्व विधायक जगन्नाथ चौधरी ने पत्नी आशा व उसकी मां बबना से सांठगांठ करके मोहनलाल की हत्या कर दी। कोर्ट ने दो सितंबर 2014 को तीनों आरोपितों को गैर इरादतन हत्या का दोषी पाते हुए सात वर्ष की सजा सुनाया। इसी मामले में विवेचना के दौरान वादी ने शासन में प्रार्थना पत्र दिया था कि विवेचक थानाध्यक्ष जलालपुर उमेश प्रताप सिंह ने आरोपितों को बचाने के लिए धारा 302 को 306 आईपीसी में परिवर्तित कर दिया है। शासन के निर्देश पर विवेचना सीबीसीआइडी को सौंप दी गई। सीबीसीआइडी ने विवेचना में पाया कि थानाध्यक्ष एवं उप निरीक्षक व अन्य पुलिसकर्मियों ने आरोपितों को बचाने के लिए गलत तथ्यों को अंकित कर साक्ष्यों को छिपाया।