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धान खरीद के नाम पर लूटे जा रहे किसान

कोलकाता । पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कई बार दावा कर चुकी हैं कि उनके शासन के दौरान राज्य में किसानों की आय तीन गुना बढ़ी है लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है। पश्चिम बंगाल धान उत्पादन के मामले में देश के अव्वल राज्यों में शुमार है। यहां हर सीजन में धान की कटाई के बाद सरकार किसानों से सीधे धान खरीदने के पर्याप्त इंतजाम होने के दावे करती है लेकिन दुर्भाग्य से किसानों को न्यूनमत समर्थन मूल्य से भी कम कीमत पर फसल बेचनी पड़ रही है।मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धान दिन, चेक निन यानी धान दीजिए और हाथो हाथ चेक लीजिए योजना का शुभारंभ कर चुकी है लेकिन किसानों को धान बेचने पर उसकी कीमत हासिल करने के लिये खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। कई बार पैसे मिलने में काफी समय लगता है जो किसानों की तकलीफों को बढ़ाने का सबब बन जाता है।

राजधानी कोलकाता से 139 किलोमीटर दूर खड़गपुर के आसपास के किसानों की जब जमीनी पड़ताल की गई तो यह हकीकत खुली है। खड़गपुर पश्चिम मेदिनीपुर जिले में पड़ता है जो राज्य में चावल उत्पादन में कभी पहले नंबर पर तो कभी दूसरे नंबर पर रहता है। वैसे बर्दवान को पूरे देश का राइस बॉल यानी चावल का कटोरा कहा जाता है लेकिन कभी बर्दवान तो कभी पश्चिम मेदिनीपुर जिला चावल उत्पादन में पहले पायदान पर रहते हैं। राज्य के कृषि सलाहकार प्रदीप मजूमदार हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में कहते हैं कि पश्चिम मेदिनीपुर और बर्दवान चावल उत्पादन के मामले में लगभग बराबरी पर रहते हैं।यहां के एक किसान गोविंद ने बताया, इस बार दो बीघा जमीन पर धान बोया हूं। 20 से 25 हजार रुपये खर्च हो चुके हैं लेकिन आधी कीमत भी नहीं मिली है। कोई मंडी-वंडी नहीं है। पैकार (व्यवसायी) एक हजार 350 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से धान खरीद कर ले गए हैं।

गौर करने वाली बात यह है कि बंगाल में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य एक हजार 868 रुपये है। प्रदेश सरकार 20 रुपये बोनस देती है और नियम है कि राज्य सरकार के कर्मचारी गांव-गांव जाकर किसानों से इसी कीमत पर धान खरीदेंगे। धान का वजन होने के साथ ही किसानों के हाथ में चेक दे दिया जाएगा। पश्चिम बंगाल में धान खरीद के लिए कोई एजेंसी नियुक्त नहीं है। राज्य सरकार ने सेंट्रल परचेसिंग सेंटर (सीपीसी) की स्थापना की है जहां खाद्य विभाग के कर्मी प्रत्येक ब्लॉक में खरीद प्रक्रिया पूरी कराते हैं।क्या सरकार से कोई मदद मिली है, इस पर गोविंद कहते हैं, ममता बनर्जी सरकार ने कृषक बंधु योजना चलाई है। इसके तहत एक हजार रुपये मिले हैं। केंद्र सरकार की किसान सम्मान निधि का लाभ नहीं मिलता।प्रदेश सरकार के आंकड़ों पर नजर डालें तो पश्चिम बंगाल में 73 लाख से थोड़े अधिक किसान हैं। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अनुसार पश्चिम बंगाल खरीफ सीजन वर्ष 2020-21 में धान उत्पादन के मामले में देश में दूसरे नंबर पर था।

एक अन्य किसान सुमंत घोष ने कहा, ना तो ममता बनर्जी कुछ देती हैं ना नरेंद्र मोदी देते हैं। हर एक सीजन में यह सोच कर खेती करते हैं कि इस बार कुछ लाभ होगा लेकिन जब फसल कटती है तो जितना खर्च होता है उतनी धनराशि भी हाथ में नहीं मिलती। बस जैसे-तैसे जी रहे हैं।दो ढाई सौ मीटर और आगे बढ़ने पर सुशान्त बेरा से मुलाकात हुई। करीब 62 साल उम्र के बेरा कहते हैं, दो बीघा जमीन पर छह हजार रुपए लगाकर खेती किए हैं लेकिन उससे जो धान पैदा हुआ है उससे केवल परिवार के चार पांच सदस्यों का भरण पोषण होगा। पास में कोई मंडी नहीं है। अगर कभी धान बेचना हो तो कारोबारी आते हैं और कम कीमत पर खरीद कर ले जाते हैं।

उनसे करीब डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर तपन कुमार दास के धान का खेत है। इन्होंने कृषक बंधु योजना के तहत राज्य सरकार से दो हजार रुपये प्राप्त किए हैं। तपन ने बताया, धान की खेती में जो खर्च उन्होंने किया था वह भी इस बार नहीं निकला है। थोड़े बहुत फसल बेचे हैं लेकिन बिचौलियों के हाथ में बेचना पड़ा और केवल 1200-1300 प्रति क्विंटल मिला है।पास ही में 22 वर्षीय चंडी घोष की जमीन है। डेढ़ बीघा जमीन पर उन्होंने धान बोया था लेकिन फसल की कटाई के बाद उसकी बिक्री से लागत की रकम भी नहीं निकल पाई। पिछले साल इन्हें राज्य सरकार से दो हजार रुपए की मदद मिली थी लेकिन इस बार नहीं मिली।इस सबसे इतर ममता बनर्जी की सरकार दावा करती है कि पिछले 10 वर्षों के दौरान किसानों की सालाना आमदनी 91 हजार से बढ़कर तीन लाख रुपए से अधिक हो गई है।

विपक्ष ने उठाए सवाल

किसानों की बजहाल स्थिति की वजह पूछे जाने पर भाजपा किसान मोर्चा की प्रदेश उपाध्यक्ष श्रीरूपामित्रा चौधरी कहती हैं, किसानों के खिलाफ अगर किसी ने सबसे अधिक राजनीति की है तो वह ममता हैं। उन्होंने केंद्रीय कृषि कानूनों का विरोध किया। बंगाल के किसानों को पीएम सम्मान निधि का लाभ नहीं लेने दिया।ऑल इंडिया किसान सभा के राज्य सचिव अमल हालदार कहते हैं, 11 वर्षों के ममता शासन में किसानों की बदहाली और बढ़ी है। राज्य में 244 किसानों ने आत्महत्या की है। केंद्र की पीएम किसान सम्मान निधि भी बहुत अधिक मददगार नहीं है।

पश्चिम बंगाल किसान कांग्रेस के अध्यक्ष तपन दास मामता बनर्जी सरकार पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार और राज्य की ममता बनर्जी सरकार दोनों ही किसान विरोधी हैं। केंद्र की नीतियों की वजह से देश भर के किसान आत्महत्या कर रहे हैं और ममता के अत्याचार के कारण किसान लगातार दम तोड़ रहे हैं। बंगाल में किसानों की बदहाली का बड़ा कारण सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल के संरक्षण में बिचौलियों का पालन पोषण है।

एक रिपोर्ट के अनुसार इस साल पश्चिम बंगाल के आठ लाख पांच हजार 186 किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीद हुई, जबकि इससे पहले वर्ष खरीफ सीजन 2018-19 में सात लाख 33 हजार 357 किसानों से सरकार निर्धारित दर पर धान की खरीद हुई थी। बीच में कोरोना का संक्रमण था। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की रिपोर्ट देखें तो पश्चिम बंगाल में पैदा होने वाले महज तीन फीसदी धान की ही खरीद 2019-20 खरीफ सीजन में सरकारी दर पर हुई थी।

ममता सरकार की सफाई

इस बारे में पूछने पर पश्चिम बंगाल सरकार के कृषि सलाहकार प्रदीप मजूमदार ने कहा , फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया (एफसीआई) ने अपने आधिकारिक वेबसाइट पर स्वीकार किया है कि पश्चिम बंगाल चावल उत्पादन के सबसे बड़े राज्यों में से एक है। यहां से करीब ढाई करोड़ टन चावल की खरीद केंद्र सरकार ने की है। महामारी के समय भी राज्य सरकार ने किसानों से धान खरीदने के साथ-साथ 72 घंटे के भीतर उन्हें चेक से पेमेंट किया।(हि.स.)

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