विष्णु-प्रिय माह की एकादशी:पाप-नाश, पितृमोक्ष और आध्यात्मिक जागृति का पर्व
मोक्षदा एकादशी, मार्गशीर्ष मास की शुक्ल एकादशी, व्रत-परंपरा और आधुनिक विज्ञान के संगम की प्रतीक मानी जाती है। श्रद्धालु इस दिन उपवास, विष्णु-पूजन, तुलसी-अर्पण और रात्रि-जागरण करते हैं ताकि पाप नष्ट हों और पूर्वजों को मोक्ष मिले। शास्त्रों और मास के विशेष नियम के अनुसार दशमी से सात्त्विक आचरण आवश्यक है; द्वादशी में निर्धारित पारण समय का पालन व्रत-फल के लिए अनिवार्य है। साथ ही, उपवास के कारण पाचन-विश्राम, हार्मोन संतुलन और सेल-रिपेयर (autophagy) जैसे वैज्ञानिक लाभ भी माने जाते हैं।
मार्गशीर्ष (अगहन) मास की वह पवित्र तिथि जो पितृमोक्ष, आध्यात्मिक शुद्धि और स्वास्थ्य लाभ देती है
सनातन धर्म की पावन परंपराओं में एकादशी व्रत को ऐसे आध्यात्मिक तत्त्व के रूप में माना गया है, जो शरीर को अनुशासित करने के साथ मन को निर्मल और आत्मा को ऊर्ध्वगामी बनाता है। वर्ष भर आने वाली 24 एकादशियों में से मोक्षदा एकादशी का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया गया है। यह केवल पापकर्मों का नाश करने वाली तिथि ही नहीं मानी गई, बल्कि इसे प्राणियों को मोक्ष मार्ग प्रदान करने वाली तिथि भी कहा गया है।
पौराणिक ग्रंथ ‘विष्णु पुराण’, ‘पद्मपुराण’, ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’, ‘नारद पुराण’ और ‘हरिवंश पुराण’ सभी में इस एकादशी का अत्यधिक महात्म्य वर्णित है। आधुनिक समय में भी धार्मिक आस्थावानों और ज्योतिषाचार्यों का मत है कि जो व्यक्ति इस तिथि का व्रत श्रद्धापूर्वक करता है, वह जीवनभर के पापों से मुक्त होकर भगवान श्रीहरि की कृपा का भागी बनता है।
मोक्षदा एकादशी 2025: तिथि व मुहूर्त (वाराणसी के अनुसार)
एकादशी तिथि प्रारंभ – 30 नवंबर 2025, रात 9:29 बजे
एकादशी तिथि समाप्त – 1 दिसंबर 2025, शाम 7:01 बजे
व्रत रखने का दिन – 1 दिसंबर 2025 (सोमवार)
पारण का समय – 2 दिसंबर 2025, प्रातः 6:27 बजे से 10:01 बजे तक
राहुकाल (1 दिसंबर 2025, सोमवार) – प्रातः 7:30 से 9:00 बजे (अधिकांश नगरों में–स्थानानुसार थोड़ा अंतर संभव)
पूजा का श्रेष्ठ मुहूर्त – ब्राह्म मुहूर्त: 4:58–6:15 । प्रातःकालीन पूजन मुहूर्त: सूर्योदय से 10:30 तक । शास्त्रों के अनुसार एकादशी में दिन का पूजन श्रेष्ठ माना गया है।
मोक्षदा एकादशी व्रत का महात्म्य
मोक्षदा एकादशी का वर्णन पद्मपुराण के उत्तर खण्ड में विस्तार से मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को स्वयं इस व्रत की महिमा बताई है। कथा में उल्लेख है कि इस व्रत का पालन करने मात्र से –
* सात जन्मों तक संचित पाप नष्ट हो जाते हैं,
* पूर्वजों की आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है,
* जन्म-जरा-मृत्यु का भय मिट जाता है,
* ईश्वर कृपा से सद्बुद्धि प्राप्त होती है।
‘हरिवंश पुराण’ में इसे अत्यंत मोक्षदायिनी तिथि बताया गया है, जबकि ‘नारद पुराण’ में कहा गया है: “जो भक्त मोक्षदा एकादशी व्रत रखकर श्रीहरि का पूजन करता है, उसके पूर्वज गोलोक धाम को प्राप्त होते हैं।”
मोक्षदा एकादशी की पुराणों में वर्णित मूल कथा
एक बार द्वारका में अर्जुन ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हुए पूछा – “हे माधव! ऐसी कौन-सी एकादशी है, जिसके व्रत से जीवात्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है?” तब भगवान श्रीकृष्ण ने ‘मोक्षदा एकादशी’ की कथा सुनाई:
राजा वैखानस और स्वर्ग से आती आवाज़
प्राचीन काल में ‘चित्रनगरी’ नामक राज्य का शासन *राजा वैखानस* करते थे। वे धर्मपरायण, दयालु और प्रजावत्सल थे। एक रात राजा ने स्वप्न में देखा कि उनके दिवंगत पिता नरक में अत्यंत कष्ट भोग रहे हैं। वे हाथ जोड़कर कह रहे थे -“पुत्र! तूने अनेक दान, यज्ञ और पुण्य किए, परंतु मेरे पापों के कारण मैं नरक में हूँ। मुझे मुक्ति दिला।”
स्वप्न देखते ही राजा व्याकुल हो उठे। उन्होंने ऋषियों की शरण लेकर इसका निराकरण पूछा। ऋषियों ने बताया – “हे राजन! निकट ही स्थित पर्वत पर ‘परम तेजस्वी परम तपस्वी परमसत्य’ पार्वत्य ऋषि निवास करते हैं। वे तुम्हें मार्ग बताएँगे।” राजा तुरंत उस पर्वत पर गए और ऋषि को दंडवत कर पूरा प्रसंग सुनाया।
ऋषि का समाधान
ऋषि ने दिव्य दृष्टि लगाकर कहा: “राजन! तुम्हारे पिता ने पूर्व जन्म में कुछ पापकर्म किए थे, इसी कारण वे नरक भोग रहे हैं। लेकिन चिंता मत करो – आने वाली ‘मोक्षदा एकादशी’ उनके लिए विशेष रूप से कल्याणकारी है। तुम स्वयं व्रत करो और इस व्रत का पुण्य अपने पिता को समर्पित करो। वे अवश्य मुक्त होंगे।”
व्रत का फल और आत्मा की मुक्ति
राजा ने पूर्ण विधि से एकादशी का व्रत किया, रात्रि जागरण किया और द्वादशी तिथि में ब्राह्मणों को भोजन करवाकर व्रत पूरा किया। उसी क्षण एक दिव्य प्रकाश आकाश से उतरा और राजा के पिता की आत्मा ने प्रकट होकर कहा – “पुत्र! तेरे व्रत के प्रभाव से मुझे नरक से मुक्ति मिली और मैं विष्णुधाम को जा रहा हूँ।” राजा भावविह्वल हो उठे। इस प्रकार यह एकादशी “मोक्ष प्रदान करने वाली” कही जाती है।
मोक्षदा एकादशी की पूजा विधि
1. व्रत के एक दिन पूर्व (दशमी नियम)
* रात्रि में सात्त्विक भोजन करें।
* मसूर दाल, चना, मांस, मदिरा, प्याज-लहसुन, तामसिक भोजन- वर्जित।
* ब्रह्मचर्य का पालन करें।
2. एकादशी के दिन सुबह (1 दिसंबर 2025)
शुद्धिकरण
* रात में जल्दी सोकर ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
* स्नान के बाद पीले या सफेद वस्त्र पहनें।
* घर में गंगाजल छिड़कें।
संकल्प
पूर्व दिशा की ओर मुख कर संकल्प लें: “मैं आज मोक्षदा एकादशी व्रत कर रहा/रही हूँ। श्रीहरि की कृपा से मेरे और मेरे कुल-परिवार का कल्याण हो।”
भगवान विष्णु का पूजन
* श्वेत या पीले वस्त्रों से सुसज्जित विष्णु प्रतिमा स्थापित करें।
* दीप प्रज्ज्वलित करें।
* पीली कनेर, तुलसी, चंदन, अक्षत चढ़ाएँ।
* पीली मिठाई— लड्डू, मोहनथाल, खीर— अर्पित करें।
* तुलसी अवश्य अर्पित करें (बिना तुलसी पूजा अधूरी मानी गई है)।
मंत्र जाप
* ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
* ॐ विष्णवे नमः
* विष्णु सहस्रनाम या विष्णु चालीसा का पाठ अत्यंत श्रेयस्कर।
रात्रि जागरण : शास्त्र कहते हैं- “एकादशी की रात जागरण करने से सहस्त्र यज्ञ का फल मिलता है।”
आवश्यक पूजा सामग्री की सूची
* तुलसी पत्ते
* चंदन, रोली, अक्षत
* धूप, दीपक, कपूर
* पीला वस्त्र
* पंचामृत
* मधु, घृत, दही, दूध
* गंगाजल
* पीले पुष्प
* नारियल
* खीर/लड्डू नैवेद्य
* शुद्ध जल
* नयी थाली व आसन
* शंख
* भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र
एकादशी व्रत के नियम (शास्त्रीय एवं पारंपरिक)
1. दशमी से ही सात्त्विक भोजन लें।
2. एकादशी को प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प।
3. अन्न, दाल, चावल, गेहूँ, मांसाहार- पूर्णतः निषिद्ध।
4. फलाहार/निराहार- अपनी क्षमता अनुसार।
5. क्रोध, चुगली, असत्य, व्यसनों से दूर रहें।
6. रात्रि जागरण करें।
7. द्वादशी को पारण यदि समय पर न किया जाए तो व्रत का फल आधा रह जाता है।
8. पारण से पहले गोरू, ब्राह्मण या गाय को भोजन/जल दान देना अत्युत्तम।
व्रत पारण विधि (2 दिसंबर 2025)
* पारण का समय: सुबह 6:27–10:01
* गंगाजल लेकर व्रत का विसर्जन संकल्प करें।
* तुलसी जल ग्रहण करें।
* फल, खीर, हल्का भोजन लेकर व्रत तोड़ें।
अन्नदान का महत्व
पौराणिक ग्रंथों में एकादशी पर अन्न त्याग और द्वादशी पर अन्नदान को अत्यंत पुण्यदायी बताया गया है। श्रीकृष्ण कहते हैं – “एकादशी पर अन्न छोड़ने वाला और द्वादशी पर अन्नदान करने वाला मनुष्य स्वयं मोक्ष पाता है और उसके कुल का कल्याण होता है।”
मोक्षदा एकादशी की आरती
(विष्णु भगवान की पारंपरिक आरती)
आरती कुंजबिहारी की, कीजै श्री गिरधारी की।
गले में वैजयंती माला, बजते मुरली मधुर बाला…
जय-जय श्री हरि, भक्त विघ्न हारी…
एकादशी माता की आरती
श्री एकादशी माता की आरती।
जो कोई नर-नारी गावे।
दरिद्रता दूर होय भवानी, सुख संपत्ति घर आवे।
(यह स्थानीय परंपरा पर आधारित है; वैष्णव संप्रदायों में प्रचलित।)
विशेष मंत्र – मोक्षदा एकादशी के लिए
मोक्ष प्रार्थना मंत्र
“ॐ श्रीहरये नमः। पापानां मोचकाय स्वाहा।”
तुलसी मंत्र
“त्वमेव पूज्ये देवी, सर्वपापप्रणाशिनी।”
धर्मशास्त्रीय विश्लेषण: क्यों कहलाती है ‘मोक्षदा’?
धर्मशास्त्रों के अनुसार ‘मोक्ष’ का अर्थ है – पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति। एकादशी का संबंध मानव शरीर की नाड़ी–चक्र प्रणाली से भी बताया गया है। आयुर्वेद व योग ग्रंथ कहते हैं कि –
* शरीर में 11 इंद्रियों के संयम से 11वीं तिथि सबसे प्रभावी होती है।
* भोजन से विरति कर मनुष्य उपवास की अवस्था में प्राणशक्ति बढ़ाता है।
* मन शांत होता है, और ध्यान में स्थित होकर आत्मा शुद्ध होती है।
* यही अवस्था ‘मोक्ष मार्ग’ का द्वार खोलती है।
शास्त्रों में एकादशी तिथि को “हरि का दिन” कहा गया है – “एकादशी हरिवासरः” अर्थात- यह तिथि भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ है।
मोक्ष का मार्ग कठिन अवश्य है, परंतु शास्त्र कहते हैं – “जहाँ धर्म है, वहाँ हरि हैं और जहाँ हरि हैं, वहाँ मोक्ष।” मोक्षदा एकादशी ऐसी तिथि है जो न केवल व्यक्तिगत जीवन को पवित्र बनाती है, बल्कि व्यक्ति के पूर्वजों की आत्मा का भी उद्धार करती है। धर्मग्रंथों में इसे आत्मा की मुक्ति का द्वार बताया गया है। आधुनिक समाज में जहाँ तनाव, भय और असुरक्षा बढ़ रही है, वहां इस एकादशी का व्रत व्यक्ति को मानसिक शांति, आध्यात्मिक बल और पवित्रता प्रदान करता है। व्रत का पालन करने वाले श्रद्धालु 1 दिसंबर 2025 को पूरे विधि-विधान के साथ श्रीहरि का स्मरण करें, और 2 दिसंबर को पारण समय का विशेष ध्यान रखें।
अगहन मास की एकादशी: विष्णु-प्रिय माह में व्रत का अद्भुत प्रभाव, धर्मशास्त्रों में विशेष फल का उल्लेख
अगहन या मार्गशीर्ष मास सनातन परंपरा में अत्यंत शुभ और सात्त्विक माना जाता है। वेद और पुराणों में इस पूरे महीने को विष्णु-समर्पित काल कहा गया है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा- “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्”, अर्थात महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इसी विशेषता के कारण इस माह में आने वाली एकादशी व्रत का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। धर्माचार्यों का स्पष्ट मत है कि अगहन की एकादशी न केवल पापों का शमन करती है बल्कि पितृमोक्ष, गृह-शांति और आध्यात्मिक उन्नति का विशेष अवसर भी प्रदान करती है।
अगहन की एकादशी: दशमी से ही शुरू होती है पवित्रता की साधना
पद्मपुराण और हरिभक्ति-विलास में अगहन मास की एकादशी को सर्वश्रेष्ठ फलदायी बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत का प्रभाव तभी पूर्ण होता है जब व्रतकर्ता दशमी तिथि से ही सात्त्विकता और संयम अपनाए। इस दिन भारी भोजन, मसूर, चना, तामसिक पदार्थ, मद्य-पान, क्रोध और कटुता से दूर रहने का निर्देश है। व्रत की सिद्धि के लिए वाणी पर संयम और मानसिक पवित्रता अनिवार्य मानी गई है। धर्माचार्य बताते हैं- “अगहन मास सात्त्विक ऊर्जा का काल है, इसलिए इस महीने की एकादशी में दशमी से ही व्रत का प्रभाव शुभ मार्ग पर पहुँच जाता है।”
विष्णु-पूजन, तुलसी और शंख-अगहन में बढ़ जाता है पारंपरिक महत्व
अगहन मास को श्रीविष्णु का प्रिय मास कहा गया है। इस दौरान एकादशी के दिन विष्णु-पूजन विशेष रूप से फलदायी माना गया है। पूजा-विधि में तुलसी-दल, पीला चंदन, शंकाधारित जल, घी का दीप और पीले पुष्पों का उपयोग श्रेष्ठ बताया गया है। तुलसी इस महीने अत्यंत पुण्यकारक होती है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि अगहन की एकादशी पर भगवान को तुलसी-दल अर्पित करने से व्रतकर्ता के सात जन्मों तक पितरों का उद्धार होता है।
इसी प्रकार शंख-पूजन के लिए भी यह महीना सबसे पवित्र बताया गया है। एकादशी के दिन शंख में गंगाजल, चंदन और तुलसी मिलाकर अभिषेक करना शास्त्रीय नियम है। कहा गया है कि शंख-ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है और घर में सात्त्विक वातावरण बनता है।
रात्रि-जागरण का सर्वोच्च फल: अनेक अश्वमेध यज्ञ के बराबर
धार्मिक ग्रंथों में अगहन की एकादशी पर रात्रि-जागरण को असाधारण फलदायी बताया गया है। मान्यता है कि इस रात श्रीविष्णु नाम-स्मरण, भजन-कीर्तन और ध्यान करने से व्रत का फल कई गुणा बढ़ जाता है। कुछ वैष्णव संहिताओं में उल्लेख है कि अगहन की एकादशी पर रात्रि-जागरण अनेक अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल देने वाला होता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि मार्गशीर्ष माह में सूर्य और चंद्रमा की ऊर्जा स्थिर रहती है, जिससे ध्यान, उपासना और नाम-स्मरण अधिक प्रभावी होते हैं।
द्वादशी पारण-व्रत का सबसे महत्वपूर्ण चरण, देरी से घट जाता है फल
धर्मशास्त्रों में अगहन मास की द्वादशी को अत्यंत संवेदनशील बताया गया है। कहा गया है कि यदि पारण सूर्योदय के पश्चात निर्धारित समय में न किया जाए तो व्रत का फल आधा रह जाता है। पारण के लिए सबसे पहले तुलसी-जल ग्रहण करना और उसके बाद फल या खीर का सेवन करना श्रेष्ठ माना गया है। ब्राह्मण-भोजन और गौ-सेवा को इस महीने अक्षय पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है।
दान का विशेष महत्व-मार्गशीर्ष में पुण्य दस गुना बढ़ जाता है
पौराणिक ग्रंथों में अगहन माह में निम्न दान सर्वाधिक फलकारी बताए गए हैं –
* वस्त्रदान
* दीपदान
* तिल-दान
* गौ-सेवा
* फल-दुग्ध-दान
* ऊनी वस्त्र व कंबल दान
मार्गशीर्ष मास में किया गया दान आने वाले वर्ष में धन, आरोग्य और समृद्धि लाने वाला माना जाता है। इस महीने की एकादशी पर दान करने से व्रत का फल दस गुना तक बढ़ जाता है।
पितृमोक्ष का अद्वितीय अवसर-पद्मपुराण का विशेष उल्लेख
पद्मपुराण में अगहन शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा कहा गया है। वर्णन में बताया गया है कि इस दिन व्रत कर के उसके फल को पितरों को समर्पित करने से वे नरक-यातनाओं से मुक्त होकर विष्णुधाम को प्राप्त होते हैं। कई धर्माचार्य मानते हैं कि अगहन की एकादशी पितृदोष शांति के लिए सर्वश्रेष्ठ तिथियों में से एक है।
विज्ञान भी मानता है: अगहन मास की ऊर्जा व उपवास अधिक प्रभावी
विशेषज्ञ बताते हैं कि मार्गशीर्ष माह ठंड का प्रारंभिक काल होता है। इस समय शरीर की चयापचय गति (मेटाबॉलिज्म) स्थिर होती है और उपवास शरीर को प्राकृतिक रूप से डिटॉक्स करता है। चंद्रमा की ऊर्जा इस महीने अधिक संतुलित रहती है, जिससे मानसिक एकाग्रता बढ़ती है और रात्रि-जागरण व साधना का प्रभाव सामान्य महीनों की तुलना में श्रेष्ठ होता है।
धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टियों से अगहन मास की एकादशी अत्यंत कल्याणकारी है। इस तिथि का व्रत न केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास में सहायक है, बल्कि पितरों की मुक्ति, गृह-शांति, रोग-निवारण और मानसिक संतुलन का भी अद्वितीय अवसर प्रदान करता है। धर्माचार्यों के अनुसार- “अगहन की एकादशी वह तिथि है जो सामान्य व्रत को भी महाव्रत का फल प्रदान कर देती है।”
हाँ, मोक्षदा एकादशी पर लड्डू गोपाल (बाल-गोविंद) का विशेष स्नान व पूजन करना शास्त्रों में अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। यद्यपि कोई अलग “मोक्षदा-विशेष” नियम अलग से नहीं है, परन्तु वैष्णव आगम, श्रीवैकुण्ठ भक्ति-संहिताएँ, हरिभक्ति-विलास, तथा पद्मपुराण में वर्णित एकादशी पूजन-विधि के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु/कृष्ण का अभिषेक करना, तुलसी अर्पित करना और धूप-दीप के साथ सेवा करना अत्यंत फलदायी बताया गया है।
मोक्षदा एकादशी पर लड्डू गोपाल स्नान का महत्व
1. पापों का शमन : एकादशी को अन्न-त्याग और उपवास जिस प्रकार पापों का नाश करता है, उसी प्रकार भगवान का अभिषेक (स्नान) करने से भी मानसिक व कर्मजन्य दोष दूर होते हैं। हरिभक्ति-विलास (11/274) में कहा है- “अभिषेकं करोति यः, पापानि दह्यन्ति तत्क्षणम्।” अर्थात- भगवान का अभिषेक करने से उसी क्षण पाप नष्ट होते हैं।
2. विष्णु तत्त्व की विशेष कृपा : मोक्षदा एकादशी स्वयं विष्णुधाम की तिथि है। लड्डू गोपाल श्रीकृष्ण का बालस्वरूप हैं- और श्रीकृष्ण स्वयं मोक्षदाता विष्णु के अवतार हैं। इसलिए इस दिन उनका स्नान कराने से-
* दिव्य कृपा मिलती है
* घर में शांति, सौभाग्य बढ़ता है
* संतान-सुख, व्यापार-सफलता और कुल कल्याण का आशीर्वाद मिलता है
3. पूर्वजों का उद्धार : पद्मपुराण में वर्णित कथा के अनुसार- मोक्षदा एकादशी पितृमोक्ष के लिए विशेष है। इस दिन गोपाल की सेवा कर अभिषेक का पुण्य पूर्वजों को समर्पित किया जाए तो पितृदोष भी शांत होता है।
4. बाल-स्वरूप की सेवा में हृदय निर्मल होता है : बालगोपाल की सेवा में ममता, वात्सल्य और प्रेम का भाव होता है। एकादशी को मन स्थिर होता है, इसलिए बालस्वरूप की सेवा व्यक्ति के चित्त को निर्मल करती है-
और यह अवस्था मोक्षमार्ग के लिए आवश्यक मानी गई है।
मोक्षदा एकादशी पर लड्डू गोपाल स्नान की विधि
(शास्त्रीय और वैष्णव परंपरा के अनुसार)
1. पंचामृत स्नान
श्रीगोपाल को निम्न क्रम से स्नान कराएँ-
1. गंगाजल
2. दूध
3. दही
4. घृत (हल्का स्पर्श मात्र)
5. शहद
6. शुद्ध जल
(अगर प्रतिमा शिलामयी है, तो पंचामृत पूर्ण रूप से कर सकते हैं। अगर धातु/अष्टधातु मूर्ति है- तो दूध-दही हल्का स्पर्श कराएँ। अगर सजावटी बालगोपाल है- तो केवल गंगाजल या खुशबूदार जल से स्नान कराना उत्तम है।)
2. चंदन-तिलक
* पीला चंदन
* तिलक के साथ तुलसी-दल अर्पित करें
मोक्षदा पर तुलसी अर्पण विशेष फलदायी है- “तुलसी-दल-विनिर्मुक्तं सर्वं निष्फलतां व्रजेत्।”
3. वस्त्र-आभूषण
* पीले वस्त्र
* मोरपंख मुकुट
* छोटी झालर या फूलों की माला
* हल्का इत्र (अगर मंदिर परंपरा में मान्य है)
4. नैवेद्य : सात्त्विक* पदार्थ – खासकर माखन-मिश्री, खीर, पंचामृत, मालपुआ, लड्डू । मोक्षदा एकादशी पर अन्न (अनाज) का नैवेद्य नहीं चढ़ता।
5. आरती व मंत्र
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
“गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि”
“कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।”
मोक्षदा एकादशी पर लड्डू गोपाल स्नान का आध्यात्मिक लाभ
लाभ————————–विवरण
मोक्ष मार्ग में सहायक——-| मन में शुद्धि व आत्मिक शांति
कुल मोक्ष—————-| पितृदोष का निवारण
सौभाग्य वृद्धि————-| ग्रह-पीड़ा का शमन
मानसिक शांति————| तनाव, क्रोध, चिंता दूर
संतान-सुख—————| बालस्वरूप पूजा से संतोष व संतानकल्याण
मोक्षदा एकादशी पर शंख-पूजन क्यों?
1. शंख स्वयं पवित्र देवी-पुरुष का प्रतीक
पद्मपुराण में कहा गया है-“शंखो विष्णोर्योनिः प्रोक्तः” अर्थात- शंख भगवान विष्णु का दिव्य आयुध है और उनसे उत्पन्न माना गया है।
2. शंख-ध्वनि पापों का नाश करती है
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में उल्लेख है- “शंखध्वनिः पापहारिणी।” अर्थात- शंख की ध्वनि पाप और नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर कर देती है।
3. मोक्षप्रद तिथि पर शंख-पूजन विशेष फलदायी
मोक्षदा एकादशी पर हरि-पूजन में शंख से जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है। इससे भावात्मक पवित्रता एवं सौभाग्य में वृद्धि होती है।
मोक्षदा एकादशी पर शंख-पूजा की विधि
1. शंख का शुद्धिकरण
* पहले शंख को गंगाजल, पंचगव्य या जल-सुगंधि से पवित्र करें।
* ध्यान रखें: दक्षिणावर्ती शंख पूजा में बहुत शुभ माना गया है।
2. शंख को आसन देना
* लाल/पीले वस्त्र पर शंख स्थापित करें।
* शंख का मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर रखें।
3. शंख पर तिलक
* चंदन या हल्दी-कुमकुम से तिलक करें।
4. पुष्प व तुलसी अर्पित करें
* शंख पर तुलसी-दल रखना सबसे शुभ माना गया है।
* क्योंकि तुलसी और शंख दोनों विष्णु-प्रिय हैं।
5. शंख में जल भरकर अभिषेक
एकादशी के दिन भगवान विष्णु, लड्डू गोपाल या शालिग्राम का अभिषेक शंख से जल चढ़ाकर किया जाता है।
जल का विशेष मिश्रण:
* गंगाजल
* थोड़ा चंदन
* तुलसी
* केसर (वैकल्पिक)
शास्त्र कहते हैं- “शंखोदकं हरिं स्नापयेत।” अर्थात— हरि-पूजन में शंख-जल का अभिषेक सर्वोत्तम।
6. शंख-ध्वनि करें , पूजन के बाद तीन बार शंख की ध्वनि करें। यह ध्वनि-
* वातावरण की नकारात्मक शक्तियाँ हटाती है
* दैवीय कंपन उत्पन्न करती है
* मन को पवित्र कर देती है
7. अंत में आरती
आरती करते समय शंख पास में रखा जाता है।
शंख-पूजन में क्या वर्जित है?
* रात्रि में शंख नहीं बजाना चाहिए।
* शंख में कभी चंदन, दूध, दही नहीं भरते।
(शंख क्षीर धारण नहीं करता- केवल जल ग्रहण करता है।)
* एक ही शंख का अभिषेक और पूजन दोनों कार्यों में उपयोग न करें।
* रसोई या शयनकक्ष में शंख नहीं रखा जाता।
मोक्षदा एकादशी पर शंख-पूजन के लाभ
लाभ——————————-| विवरण
मोक्ष मार्ग में सहायक——————| मन निर्मल और पवित्र होता है
विष्णु कृपा प्राप्त होती है—————-| हरिबक्ति-विलास में उल्लिखित
घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर————-| शंख की ध्वनि से सात्विकता बढ़ती है
आरोग्य लाभ————————-| आयुर्वेद में शंखनाद को प्राणवर्धक कहा गया है
पितृदोष शांति————————-| शंख-जल पितरों को समर्पित किया जा सकता है
मोक्षदा एकादशी पर शंख पूजन का विशेष मंत्र
“ॐ शङ्खाय नमः
सर्वतीर्थस्वरूपाय जनार्दनप्रियाय ते नमः।” अभिषेक के समय कहें- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।”
एकादशी व्रत का वैज्ञानिक विश्लेषण – आधुनिक विज्ञान भी मान गया ऋषि-परंपरा का चमत्कार
व्रत, उपवास और तिथियों का पालन भारतीय संस्कृति में सदियों से होता आया है। लेकिन आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान, न्यूरोलॉजी और पोषण विज्ञान अब उन सिद्धांतों की पुष्टि कर रहे हैं, जिन्हें ऋषि-मुनियों ने वैदिक काल से ही जीवन में अपनाया। इन परंपराओं में *एकादशी व्रत* सबसे अधिक वैज्ञानिक और स्वास्थ्य-सम्मत माना जाता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार एक माह में दो बार आने वाली एकादशी तिथि विशेष ऊर्जा-स्थिति वाली मानी जाती है। और आश्चर्य की बात यह है कि आधुनिक विज्ञान भी हर 15 दिन में हल्का उपवास शरीर के लिए सर्वश्रेष्ठ मान रहा है। इसी कारण आज डॉक्टर भी कहते हैं कि “हर पखवाड़े में शरीर को विश्राम देना डिटॉक्स और रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का सबसे सरल उपाय है।”
पाचन तंत्र को प्राकृतिक विश्राम
वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि सामान्य दिनों में भोजन को पचाने में शरीर की लगभग 80 प्रतिशत ऊर्जा खर्च होती है। लगातार भोजन और तीनों समय भारी खानपान से पाचन-तंत्र लगातार सक्रिय रहता है और उसे विश्राम का अवसर नहीं मिलता। एकादशी व्रत ठीक इसी समस्या का वैज्ञानिक समाधान है। उपवास के दिन जब व्यक्ति सिर्फ फलाहार या हल्का जल-सेवन करता है तो पाचन-तंत्र को 20–24 घंटे का विश्राम मिलता है। गैस्ट्रो-डॉक्टर इसे “डाइजेस्टिव रेस्ट” कहते हैं, जो पेट की सूजन, एसिडिटी और लीवर की अशुद्धता को कम करता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे “डिटॉक्सिफिकेशन विंडो” कहा गया है।
चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण और मानव शरीर: लूनर साइकल की स्वीकृत सच्चाई
एकादशी चंद्रमा के बढ़ते और घटते चरण का 11वां दिन है। चंद्रमा का प्रभाव समुद्र की लहरों पर जितना होता है, उतना ही शरीर के तरल-तत्वों पर भी पड़ता है। मानव शरीर लगभग 70 प्रतिशत द्रव से बना है, इसलिए चंद्र-गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव सीधे शरीर के द्रव-संतुलन पर पड़ता है। यही कारण है कि एकादशी के दिन भारी भोजन शरीर में सूजन, थकान और मानसिक बोझ पैदा कर सकता है। वैज्ञानिक शोध भी मानते हैं कि चंद्र-चक्र के 11वें दिन शरीर अत्यधिक संवेदनशील होता है और उस दिन हल्का भोजन दिमाग और पाचन-तंत्र को राहत देता है।
मस्तिष्क पर अद्भुत प्रभाव: वैज्ञानिक रूप से शांत और स्थिर मन
यूरोपियन न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार चंद्रमा की कुछ अवस्थाओं में मस्तिष्क की डेल्टा वेव्स अधिक सक्रिय हो जाती हैं, जिससे मन शांत, संतुलित और ध्यानयोग्य होता है। यह वैज्ञानिक तथ्य वैदिक ग्रंथों के उस कथन की पुष्टि करता है जिसमें कहा गया है-“एकादशी हरिवासर है”, अर्थात यह मन को ईश्वर-स्मरण के लिए उपयुक्त बनाती है। उपवास के दौरान जब शरीर हल्का होता है तो मस्तिष्क अधिक स्थिर होता है और यही स्थिरता ध्यान, प्रार्थना और भक्ति को सरल बनाती है।
हृदय के लिए लाभकारी: कार्डियोलॉजी भी मानती है उपवास का महत्व
अमेरिकन कार्डियोलॉजी एसोसिएशन की एक रिपोर्ट बताती है कि ठहर-ठहर कर किए जाने वाले उपवास से कोलेस्ट्रॉल का स्तर घटता है, रक्तचाप नियंत्रित रहता है और हृदय की धमनियों में जमा वसा कम होने लगता है। एकादशी व्रत इसी सिद्धांत पर आधारित है-हर पंद्रह दिन शरीर को हल्का करना, अत्यधिक वसा से छुटकारा दिलाना और रक्त को शुद्ध करना।
सेल रिपेयर यानी Autophagy: नोबेल पुरस्कार द्वारा प्रमाणित अवधारणा
2016 में जापानी वैज्ञानिक यशिनोरी ओसुमी को नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनकी खोज थी कि उपवास के दौरान शरीर की कोशिकाएँ “ऑटोफैजी” नामक प्रक्रिया द्वारा स्वयं की मरम्मत करती हैं। यही वह क्षमता है जो बीमारियों से लड़ने की शक्ति बढ़ाती है, उम्र बढ़ने की गति धीमी करती है और शरीर को भीतर से साफ करती है। हमारे ऋषि इसे “पापों का नाश” कहते थे- आधुनिक विज्ञान इसे “टॉक्सिन क्लीनिंग और सेल रिपेयर” कहता है।
हार्मोन संतुलन और मानसिक स्वास्थ्य
उपवास के दौरान इंसुलिन स्तर कम होता है और शरीर की ऊर्जा प्रणाली “फैट बर्न मोड” में आती है। यह प्रक्रिया मधुमेह, मोटापा और थायराइड जैसी समस्याओं में लाभकारी मानी जाती है। उसी दौरान स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल घटता है और सेरोटोनिन जैसे “हैप्पी हार्मोन” स्वाभाविक रूप से बढ़ जाते हैं। इसीलिए एकादशी के बाद व्यक्ति मानसिक रूप से हल्का, प्रसन्न और सकारात्मक महसूस करता है।
नाड़ी-शास्त्र और योग विज्ञान का अप्रत्यक्ष वैज्ञानिक आधार
योग-ग्रंथों के अनुसार एकादशी के दिन शरीर की इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों में विशेष संतुलन बनता है। आधुनिक भाषा में यह कहा जा सकता है कि इस दिन शरीर की ऊर्जा प्रणाली हार्मोनल और न्यूरल स्तर पर अधिक स्थिर होती है। इसी कारण एकादशी पर ध्यान, मंत्र-जप या आध्यात्मिक साधना का प्रभाव सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक गहरा माना गया है।
अन्न, विशेषकर चावल क्यों वर्जित है? विज्ञान भी बताता है कारण
परंपरा कहती है कि एकादशी पर चावल नहीं खाना चाहिए। आधुनिक पोषण विज्ञान के अनुसार चावल में जल-धारण क्षमता अधिक होती है और यह शरीर में सूजन, गैस और सुस्ती बढ़ाता है। चंद्र-गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव वाले दिन यह समस्या दोगुनी हो सकती है। यही कारण है कि ऋषियों ने एकादशी के दिन अन्न के सेवन को वर्जित किया था।
धार्मिक परंपरा और वैज्ञानिक सत्य का अनूठा संगम
यदि धार्मिक भाषा में कहा जाए तो एकादशी पाप नाशक, मन-शुद्धिकारक और मोक्षदायी है। यदि वैज्ञानिक भाषा में कहा जाए तो यह मनोवैज्ञानिक शांति, पाचन सुधार, हार्मोन संतुलन, सेल रिपेयर और ऊर्जा-शोधन का अद्भुत संयोजन है। दोनों दृष्टियों से देखा जाए तो यह व्रत केवल आध्यात्मिक क्रिया नहीं, बल्कि शरीर, मन और आत्मा के संपूर्ण स्वास्थ्य का एक वैज्ञानिक अनुशासन है— जिसे हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों वर्ष पहले ही जीवन में समाहित कर लिया था।
डिस्क्लेमर : यह लेख धार्मिक ग्रंथों, पारंपरिक वैष्णव परंपराओं और सामान्य वैज्ञानिक सिद्धांतों के संदर्भ में तैयार किया गया है। तिथियाँ और मुहूर्त स्थानानुसार भिन्न हो सकते हैं – अंतिम निर्णय के लिए अपने स्थानीय पंचांग, मंदिर अथवा पंडित से सत्यापन कर लें। स्वास्थ्य स्थितियों (जैसे गर्भावस्था, मधुमेह, हृदय रोग आदि) में उपवास रखने से पहले अपने डॉक्टर से अवश्य परामर्श करें। यह सामग्री किसी भी तरह का वैधानिक, चिकित्सीय या वित्तीय परामर्श नहीं देती।
आदिकेशव मंदिर : गंगा-वरुणा संगम पर भगवान विष्णु का हरिहरात्मक तीर्थ



