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“दशहरा: बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व- रावण के दस सिरों में छिपा है मानव जीवन का पूरा दर्शन”

मर्यादा, धर्म और ज्ञान के संदेश से भरा है विजयादशमी का दिन; जानिए रावण के दस सिरों का रहस्य, दशहरा की कथा, पूजा विधि और पर्व का महत्व

असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म और अहंकार पर विनम्रता की जीत का प्रतीक पर्व दशहरा (विजयदशमी) इस वर्ष 2 अक्टूबर, गुरुवार को मनाया जाएगा। नवरात्र के नौ दिनों की साधना और देवी आराधना के बाद दशमी तिथि के साथ यह पावन पर्व पूरे देश में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। इस दिन देशभर में रामलीलाओं का समापन होगा और शाम में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन कर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाएगा। पंचांगों के अनुसार दशमी तिथि 1 अक्टूबर की शाम 7:01 बजे से प्रारंभ होकर 2 अक्टूबर की शाम 7:10 बजे तक रहेगी। विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 9 मिनट से 2 बजकर 56 मिनट तक रहेगा, जबकि अपराह्न पूजा का काल दोपहर 1 बजकर 21 मिनट से 3 बजकर 44 मिनट तक शुभ माना गया है। इस अवधि में देवी पूजन, शमी पूजा और शस्त्र पूजन करने की परंपरा है।वाराणसी सहित पूरे पूर्वांचल में दशहरा मेले और रावण दहन स्थलों पर तैयारियाँ पूरी कर ली गई हैं। शाम 5 बजे से 7 बजे तक रावण दहन कार्यक्रम होंगे। पुलिस-प्रशासन की ओर से सुरक्षा के विशेष इंतज़ाम किए गए हैं।

दशहरा क्यों मनाया जाता है

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दशहरा दो महान विजयों की स्मृति में मनाया जाता है। पहली – भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध कर धर्म की पुनर्स्थापना की विजय। दूसरी – माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर नामक राक्षस का संहार कर देवताओं को अत्याचार से मुक्त कराने की विजय। त्रेतायुग में जब लंका के राजा रावण ने माता सीता का हरण किया, तब भगवान श्रीराम ने अपने अनुज लक्ष्मण और भक्त हनुमान के सहयोग से लंका पर चढ़ाई की थी। अश्विन शुक्ल दशमी के दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर धर्म और न्याय की स्थापना की। तभी से यह तिथि ‘विजयदशमी’ के रूप में मनाई जाती है। दूसरी ओर, पुराणों के अनुसार माँ दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर नामक असुर से युद्ध कर दसवें दिन, यानी दशमी तिथि को उसका वध किया था। इसलिए इस दिन को देवी दुर्गा की विजय का दिन भी कहा जाता है।

रावण के दस सिर: प्रतीक और अर्थ

रावण के दस सिरों का प्रतीकात्मक महत्व पौराणिक और आध्यात्मिक रूप से कई स्तरों पर व्याख्यायित किया गया है। निम्नलिखित बिंदु प्रमुख हैं:

ज्ञान और विद्वत्ता : कहा जाता है कि रावण वेदों और शास्त्रों में निपुण था — उसने चार वेद और छह शास्त्रों का अधिग्रहण किया था। दस सिर उसकी विशाल बुद्धि एवं बहुआयामी ज्ञान को सूचित करते हैं।

दश दोष / विकार : शास्त्रों और लोक व्याख्याओं में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक सिर किसी एक दोष या विकार का प्रतीक है — जैसे काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, आकर्षण, इर्ष्या, निन्दा, भ्रम, भय आदि। इस दृष्टिकोण में, रावण के दस सिर यह सिखाते हैं कि ज्ञान यदि दोषों से युक्त हो, तो विनाश का कारण बन सकती है। उदाहरण स्वरूप: काम (lust), क्रोध (anger), लोभ (greed), अहंकार (ego), मोह (attachment) आदि।

इंद्रियों और कर्मों की बहुपक्षीयता : कुछ रीति-व्याख्याएँ कहती हैं कि पाँच ज्ञानेंद्रियाँ (श्रवण, दृष्टि, गान, घ्राण, स्पर्श) और पाँच कर्मेंद्रियाँ (वदन, हाथ, पैर, उत्पत्ति, अन्य) – कुल दस — रावण के दस सिरों से संबंधित हैं। इस दृष्टिकोण से, रावण का दस सिरों वाला रूप यह संदेश देता है कि मनुष्य जितनी अधिक इंद्रियों और कर्मों में उलझता है, उतनी ही उसकी चुनौतियाँ बढ़ जाती हैं।

अहंकार और प्रलय : कभी-कभी दस सिर अहंकार और भ्रष्ट इच्छाओं की पूँजी को भी दर्शाते हैं – जैसे कि “जब एक सिर मारा जाए, दूसरा सिर तुरंत प्रकट हो जाए” – यह दिखाता है कि मानव जब एक दोष से छुटकारा पाता है, तो अन्य दोष तुरंत सामने आ सकते हैं। इसीलिए रावण दहन का अर्थ है – उन दोषों का संहार करना। इस प्रकार, रावण के दस सिर धार्मिक और नैतिक संदेशों का एक शक्ति-चिन्ह हैं – विद्या और बुद्धि की मात्रा के साथ-साथ उसकी दुष्परिणामों की चेतावनी भी।

रावण के दस सिर: मानव जीवन के दस दोषों का प्रतीक

शास्त्रों और पुराणों में रावण के दस सिरों का उल्लेख केवल उसकी शक्ति या दानवीय सामर्थ्य का प्रतीक नहीं है, बल्कि वह मनुष्य के भीतर के दस प्रमुख दोषों या विकारों का दर्पण भी है।

1. काम (वासना) – जो व्यक्ति को पथभ्रष्ट करता है।
2. क्रोध – जो विवेक को नष्ट करता है।
3. लोभ – जो तृष्णा बढ़ाता है।
4. मोह – जो निर्णय क्षमता को धूमिल करता है।
5. मद (अहंकार) – जो विनाश का मूल है।
6. मत्सर (ईर्ष्या) – जो दूसरों की प्रगति से दुखी करता है।
7. भ्रम (अज्ञान) – जो व्यक्ति को सत्य से दूर रखता है।
8. भय – जो व्यक्ति को धर्म से डिगाता है।
9. द्वेष – जो वैर-भावना को जन्म देता है।
10. असत्य – जो जीवन को असंतुलित बनाता है।

इसीलिए रावण का दहन केवल पुतले का जलना नहीं, बल्कि अपने भीतर के इन दस दोषों को समाप्त करने का आत्म-संकल्प है।

दशहरा क्यों मनाया जाता है? – शास्त्रों एवं पौराणिक दृष्टिकोण

दशहरा पर्व के मूल में रामायण की कथा निहित है। निम्न प्रमुख कारण शास्त्रों और लोक मान्यताओं में उद्धृत हैं:

राम-रावण युद्ध : त्रेता युग में, भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम ने रामायण के अनुसार रावण का वध किया, जिससे रावण द्वारा अपहृत सीता को मुक्त किया गया। रावण ने अपहृत सीता को लंका ले जाया था, और वहाँ से श्रीराम ने वानरसेना (हनुमान, सुग्रीव आदि) की सहायता से युद्ध किया। युद्ध में राम ने रावण के दस सिरों को गिराया, और बुराई पर धर्म की विजय हुई।

धर्म, सत्य, अहिंसा की विजय:यह पर्व यह संदेश देता है कि चाहे कितनी भी बाधाएँ हों, सत्य, धर्म और न्याय की शक्ति अंततः विजयी होती है। रावण का दहन प्रतीकात्मक रूप से बुराइयों, पापों और दोषों के नाश का मार्ग दिखाता है।

मातृशक्ति (दुर्गा / महिषासुर) की विजय : कुछ क्षेत्रों में दशहरा यह भी मान्यता है कि यह दिवस माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध का दिन था — इस दृष्टिकोण में दशहरा एक मातृशक्ति-उत्सव भी बन जाता है। विशेष रूप से बंगाल, ओडिशा आदि प्रदेशों में दशहरा को दुर्गापूजा की समाप्ति के रूप में मनाया जाता है।

समुदायिक एवं सांस्कृतिक एकता:दशहरा के अवसर पर “रामलीला” (राम की कथा का नाटक) प्रस्तुत किया जाता है, जिससे लोक समुदायों द्वारा एक साथ जुड़ाव बना रहता है। रावण की पुतला दहन समारोह समाज में बुराई के प्रतीक को एक सामूहिक रूप से समाप्त करने की क्रिया बन जाती है। इस प्रकार, दशहरा एक धार्मिक, नैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्व है, जिसका मूल उद्देश्य है -बुराई का नाश, धर्म की स्थापना, और आचरण-सुधार को प्रेरणा देना।

दशहरा की कथा 

रामायण के प्रांगण से:त्रेता युग में, अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्र थे – राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न। राम थे मर्यादा पुरुषोत्तम, जिनका जीवन सदैव धर्म पर आधारित था। उनकी पत्नी सीता थीं, और उनके भाई लक्ष्मण ने उन्हें अनेक संकटों में साथ दिया।

रावण का राज्य और अपहरण: लंकापुर के रावण – एक दानव-राजा – अद्वितीय शक्ति, विद्या और अभिमान का समागम था। उसने कई तप, तपस्या कर महत्वपूर्ण वरदान प्राप्त किए। रावण ने अपनी शक्ति के बल पर सीता का अपहरण किया, और उन्हें लंका ले गया – इस कृत्य ने संसार में अशांति और अत्याचार फैला दिया।

राम का अभियान एवं युद्ध:राम ने वानरसेना और हनुमान की सहायता से लंका पर आक्रमण किया। उनसे कई लड़ाइयाँ हुर्इं – वानर-शक्तियों का समन्वय, पुल निर्माण (राम सेतु), सेना-तैनाती, रणनैतिक युद्ध आदि। अंततः राम और रावण का महासंघर्ष हुआ। युद्ध की तीव्रता और नैतिक संघर्ष, मानवीय मूल्य, धर्म और बलिदान की कहानियाँ इस युद्ध में छपी रहीं। राम ने ब्रह्मास्त्र या उपयुक्त अस्त्र द्वारा रावण के दस सिरों का नाश किया और उसे वध किया। इस तरीके से बुराई का अंत हुआ।

लाभ और विजय:रावण वध के बाद, सीता को मुक्त किया गया। राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे, जहाँ रामराज्य की स्थापना हुई -वर्षों का विरोध और कठिन संघर्ष समाप्त हुआ। यह दिन धर्म की विजय, सत्य की जीत और कल्याण की ओर निर्देशित कदम बन गया। दशहरा (विजयादशमी) के रूप में यह स्मृति आज भी जीवंत है।

पूजा विधि और सामग्री

नीचे दशहरा के दिन या उससे पूर्व दिन की पूजा-विधि और आवश्यक सामग्री का विवरण दिया गया है:

पूजा सामग्री (संभवत् परंपरागत सूची)

  • रूद्राक्ष, तुलसी, पुष्प (गुलाब, चंद्रकांता, कमल आदि)
  • धूप, दीप, अगरबत्ती
  • अक्षत (अक्षत चावल)
  • हल्दी, कुमकुम, नागद्रव्‍य
  • रोली, चावल, भोग (फलों से लेकर मिठाइयाँ)
  • नारियल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
  • पंचोपचार सामग्री: जल, मिट्टी (पुत्र), पान, फल आदि
  • दीपक, कलश, चौकी, कपड़ा आचमन के लिए
  • बिना दोषों वाला शुद्ध पौष्टिक भोजन (प्रसाद)

पूजा विधि

नीचे एक सामान्य 16-चरणीय पूजा-प्रक्रिया की रूपरेखा दी जा रही है (हर मंदिर या परंपरा में भिन्न हो सकती है–

1. आचमन एवं शुद्धि – स्नान अथवा हाथ-पैर धोना, मन-मन से शुद्धि
2. संस्कार (संकल्प) – पूजा का संकल्प लेना, मंत्रोच्चारण
3. धूप-प्रदीप -देवी/देवताओं को धूप, दीप अर्पित करना
4. मौलिक सामग्री प्रस्तुति – पुष्प, अक्षत, फल आदि अर्पित करना
5. जल अर्पण (अचमनीया जल) – जल अर्पित करना
6. नैवेद्य (भोजन अर्पण) – भोजन या मिठाई अर्पण
7. तिलक एवं अक्षत – तिलक लगाना और अक्षत अर्पण
8. नमन / प्रणाम – दिव्य नमन, प्रणाम
9. आरती – दीप द्वारा आरती करना
10. प्रसाद वितरण -भक्तों को प्रसाद देना
11. मंत्र पाठ / स्तुति – देवी-देवताओं का स्तुति पाठ करना
12. हवन / यज्ञ (यदि हो) – अग्नि में हवन करना
13. दान – संभव हो तो दान देना
14. अभिमंत्रित मूर्ति पूजन – यदि मूर्ति स्थापित हो
15. विधि समाप्ति (मांगलिक शेष)
16. संक्षिप्त चर्चा एवं स्मरण

नोट: ये चरण केवल सामान्य मार्गदर्शिका हैं – किसी विशेष मंतव्य या स्थानीय परंपरा के अनुसार चरणों में अंतर हो सकता है।

ध्यान देने योग्य बातें

  •  पूजा करते समय उचित मुहूर्त का ध्यान रखना चाहिए – कई क्षेत्रीय पंचांगों में दशमी तिथि के अपराह्न या रोड्र समय विशेष शुभ माने जाते हैं।
  • कूप (कलश) प्रयोग या कलश स्थापना पर यदि हो, तो उसका पूजन प्रारंभ एवं अंत विधिपूर्वक करना चाहिए।
  • यदि हवन हो रहा हो तो उसके लिए उपयुक्त लकड़ी, गौमुखी हवन सामग्री (गाय का गोबर, कुटा अक्षत इत्यादि), समिदा आदि आवश्यक होंगी।
  • पूजा करते समय मन को शांत, केंद्रित रखना – यह एक ध्यान-क्रिया भी होती है।

दशहरा दिवस विशेष पूजाएँ एवं अनुष्ठान

दशहरा के दिन (दशमी तिथि) कुछ अतिरिक्त पूजा एवं अनुष्ठान किये जाते हैं, जो इस पर्व को और अधिक पवित्र बनाते हैं:

प्रमुख विशेष पूजा / अनुष्ठान

1. रावण दहन (पुतला दहन)

शाम को रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ की पुतलियों (पुतले) का दहन किया जाता है। यह बुराई के अंत और धर्म की जीत का प्रतीक है।
यह समारोह सामूहिक रूप से किया जाता है – समुदायों, मंदिरों और मैदानों में। पुतला दहन की क्रिया यह संदेश देती है कि व्यक्ति को अपने अंदर के दोषों और बुराइयों को जलाकर समाप्त करना चाहिए।

2. रथ-यात्रा / शोभायात्रा

कई स्थानों पर बड़ी शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं, जिसमें राम, सीता, लक्ष्मण और अन्य पात्रों को सजावट के साथ ले जाया जाता है।
रामलीला प्रस्तुतियों के मंचन के पश्चात् अंतिम दृश्य (रावण वध) प्रमुख आकर्षण होता है।

3. शस्त्र पूजा (आयुध पूजा)

कुछ क्षेत्रों में दशहरा दिन हथियारों (आयुधों) की पूजा की जाती है – यह प्रतीक है कि धर्म की रक्षा के लिए अस्त्र-शस्त्र का सम्मान।
विशेषतः उन परिवारों या समुदायों द्वारा जिनके जीवन से युद्ध या शस्त्र रक्षा संबंधी कार्य जुड़े हों।

4. नवयज्ञ / दिव्य हवन

कुछ स्थानों पर विशेष यज्ञ या हवन कार्य किया जाता है, जिसमें अग्नि में मंत्रों के साथ विशेष विलेप, घृत, समिधा आदि अर्पित की जाती हैं।इस यज्ञ का उद्देश्य लोक-कल्याण और बुराइयों का नाश करना होता है।

5. विजय मंत्र पाठ / स्तुति

राम नाम, श्रीराम स्तुति, हनुमान चालीसा आदि पाठ विशेष रूप से किए जाते हैं। “जय श्रीराम” का उच्चारण प्रातः, मध्याह्न और संध्याकाल में किया जाता है।

6. दान एवं सेवा

कुछ दर्शन-साधु, ब्राह्मणों, मंदिरों में दान दिया जाता है – भोजन, वस्त्र, धान आदि। सामाजिक कार्यक्रम, गरीब-जरूरतमंदों की सेवा आदि की जाती है – यह पर्व धार्मिकता के साथ-साथ मानवता का संदेश देता है।

विजयादशमी (दशहरा) केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि एक दार्शनिक संदेश है – कि ज्ञान, धर्म, सत्य और नैतिक अधिष्ठान की विजय बुराई, पाप, अशांति और अहंकार पर होती है। रावण के दस सिर हमें यह याद दिलाते हैं कि मनुष्य की बुद्धि जितनी अधिक हो, उसी अनुपात में उसके दोष और चुनौतियाँ भी हो सकती हैं – और यदि वह संयम, सद्गुण और भक्ति न रखे, तो वह ही विनाश का कारण बन सकती है। पूजा विधि, पूजा सामग्री एवं विशेष अनुष्ठानों के माध्यम से समाज और व्यक्तियों को यह प्रेरणा मिलती है कि वे आत्म-शुद्धि, आचरण-उत्कर्ष और परोपकार की ओर अग्रसर हों।

डिस्क्लेमर : इस समाचार में उल्लिखित धार्मिक, पौराणिक व सांस्कृतिक तथ्य पारंपरिक मान्यताओं, पंचांग गणना और उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित हैं। किसी भी प्रकार की त्रुटि, चूक या असंगति पाए जाने पर कृपया सूचित करें – आवश्यक संशोधन किया जाएगा। समाचार का उद्देश्य केवल पाठकों को दशहरा पर्व से जुड़ी जानकारी और परंपराओं से अवगत कराना है।

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