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गंगा के जल में रोगाणु नाशक एवं स्वयं को शुद्ध करने के अद्भुत गुण: डाॅ़ सोनकर

प्रयागराज : पतित पावनी गंगा के जल में माइकोबैक्टीरियम, स्ट्रेप्टोकोकस, स्यूडोमोनास जैसे अनेकों बैक्टीरिया जब अपने चरम पर पहुंचते हैं तब उसमें बैक्टीरियोफेज नामक वायरस स्वत: उत्पन्न होकर उनको नष्ट कर देता है।भारत के नामचीन वैज्ञानिक डा़ अजय सोनकर ने रविवार को बताया कि बैक्टीरियोफेज नामक वायरस माइकोबैक्टीरियम, स्ट्रेप्टोकोकस, स्यूडोमोनास जैसे रोगाणुओं को नष्ट कर स्वयं विलुप्त हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि ये बैक्टीरियोफेज सामान्यत: समुद्र में पाए जाते हैं।

उन्होंने बताया कि मीठे जल के स्रोतों में सिर्फ गंगा नदी में प्रमुखता से पाये जाते हैं।उन्होंने बताया कि गंगा नदी में बैक्टीरियोफेज नदी के स्व सफाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गंगा नदी के जल में अन्य नदियों की तुलना में बैक्टीरियोफेज की संख्या सबसे अधिक है। गंगा के जल में लगभग 1100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं जबकि यमुना और नर्मदा के पानी में 200 से कम प्रजातियां पाई जाती हैं।उन्होंने बताया कि बैक्टीरियोफेज मुख्य वायरस हैं जो प्रदूषित स्थानों पर आम तौर पर मौजूद हजारों हानिकारक सूक्ष्मजीवों को मार सकते हैं। ऐसे बैक्टीरियोफेज गंगा नदी में प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं।

डाॅ़ सोनकर ने बताया कि कई बार गंगा के जल को बोतल में भरकर ले जाने पर मटमैले रंग का दिखता है लेकिन उसमें वैक्टीरिया नहीं पनपते। लंबे समय बाद भी उसमें से दुर्गंध नहीं निकलती।गौरतलब है वैज्ञानिक डाॅ० अजय कुमार सोनकर ने देश में “दुर्लभ काले मोती” की संरचना कर मोती बनाने वाले देश जापान को चुनौती दी। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ़ एपीजे अब्दुल कलाम उनकी आश्चर्यजनक उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा था उन्हें ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे उनकी वैज्ञानिक खोज का फायदा लोगों को रोजगार देने में लिया जा सके। (वार्ता)

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