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“दीपावली पूजन 2025 : लक्ष्मी–गणेश आराधना का शुभ समय, विधि और पूर्ण कथा”

दीपावली 2025 इस वर्ष 20 अक्टूबर, सोमवार को मनाई जाएगी। कार्तिक अमावस्या की इस रात्रि में लक्ष्मी–गणेश पूजन का शुभ मुहूर्त सायं 6:15 बजे से रात 8:10 बजे तक (प्रदोष काल व वृषभ लग्न) रहेगा। इस दिन घर की उत्तर या पूर्व दिशा में कलश, दीप, पुष्प और बहीखाते सहित पूजन करें। देवी लक्ष्मी और गणेश की आरती, दीपदान और बहीखाता पूजन से धन, समृद्धि और स्थिरता प्राप्त होती है। शास्त्रों में कहा गया है - “स्थिरे लग्ने च या पूजा लक्ष्म्याः सायुज्यमाप्नुयात्।” इस रात प्रदोष काल में की गई आराधना जीवन में स्थायी शुभ फल देती है। दीपावली का संदेश है - अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना।

प्रकाश और श्रद्धा का पर्व दीपावली भारतीय संस्कृति का सबसे उज्ज्वल उत्सव है। यह पर्व केवल दीयों की रोशनी नहीं, बल्कि आस्था, समृद्धि और आत्मिक आलोकन का प्रतीक है। अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का यह पर्व हर वर्ष कार्तिक अमावस्या की रात्रि को मनाया जाता है। भारत की परंपरा में दीपावली का अर्थ केवल घर-आंगन सजाने तक सीमित नहीं है। यह उत्सव आत्मा के भीतर के अंधकार को मिटाने की प्रक्रिया भी है। देश के कोने-कोने में दीपों की कतारें केवल प्रकाश नहीं फैलातीं, वे संस्कृति, विश्वास और एकता का संदेश देती हैं।

ऐतिहासिक और पौराणिक आधार

दीपावली का पर्व केवल दीपों की सजावट नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास, पौराणिक आस्था और सांस्कृतिक चेतना का संगम है। इस पर्व की जड़ें अनेक कालखंडों और धर्म परंपराओं से जुड़ी हैं। हर कथा का सार एक ही है – अंधकार पर प्रकाश की विजय, असत्य पर सत्य की जीत और निराशा पर आशा का उदय।

भगवान राम की अयोध्या वापसी – दीपावली का मूल प्रसंग

वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब भगवान श्रीराम चौदह वर्षों के वनवास और रावण-वध के पश्चात अयोध्या लौटे, तब नगरवासियों ने उनके स्वागत में घी के दीपक जलाए। अमावस्या की वह रात दीपों की आभा से जगमगा उठी। जनमानस ने इसे “दीपोत्सव” कहा। यही घटना आगे चलकर “दीपावली” के रूप में प्रसिद्ध हुई। राम की विजय केवल रावण पर नहीं, बल्कि अन्याय, अहंकार और अधर्म पर धर्म की जीत थी। इसलिए दीपावली केवल एक ऐतिहासिक स्मृति नहीं, बल्कि आदर्श शासन, सत्य और मर्यादा के पुनर्स्थापन का प्रतीक है।

भगवान विष्णु और लक्ष्मी विवाह कथा – धन और धर्म का संगम

वैष्णव परंपरा के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश निकला, उसी क्षण देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं। कार्तिक अमावस्या की रात्रि को भगवान विष्णु ने उनका हस्त ग्रहण किया। इस दिव्य विवाह के स्मरण में ही दीप जलाकर लक्ष्मी पूजन की परंपरा प्रारंभ हुई। यह कथा इस तथ्य को स्थापित करती है कि समृद्धि (लक्ष्मी) और नीति (विष्णु) का संगम ही जीवन का संतुलन है। जहाँ धर्म है, वहीं स्थायी धन है।

सम्राट विक्रमादित्य और विक्रम संवत की स्थापना

इतिहास के अनुसार सम्राट विक्रमादित्य ने दीपावली के दिन ही “विक्रम संवत” की स्थापना की थी। यह संवत भारत का प्राचीन कालगणना तंत्र है। विक्रमादित्य की विजय के उपलक्ष्य में प्रजा ने नगर को दीपों से सजाया। इस प्रकार दीपावली राज्य की समृद्धि और न्यायपूर्ण शासन का भी प्रतीक बन गई। राज्य-स्तर पर दीपोत्सव मनाने की यह परंपरा आगे चलकर सामूहिक सांस्कृतिक उत्सव में परिवर्तित हो गई।

जैन धर्म में महावीर निर्वाण दिवस – आत्मप्रकाश का प्रतीक

जैन धर्म में दीपावली का दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है। जैन ग्रंथ “कल्याण मण्डल सूत्र” में वर्णन है कि इसी दिन भगवान महावीर ने पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया था। जब उनकी आत्मा सिद्धलोक में गई, तो आकाश में प्रकाश फैल गया। उनके शिष्यों ने इस घटना की स्मृति में दीप जलाए और कहा – “बाहरी दीप बुझ सकता है, पर आत्मा का प्रकाश अमर है।” इसलिए जैन समुदाय दीपावली को आत्मज्योति के प्रतीक रूप में मनाता है।

 सिख परंपरा में ‘बंदी छोड़ दिवस’ का ऐतिहासिक प्रसंग

सिख धर्म में दीपावली का दिन “बंदी छोड़ दिवस” के रूप में मनाया जाता है। इतिहास में वर्णन है कि गुरु हरगोविंद साहिब जी को मुग़ल सम्राट जहाँगीर ने ग्वालियर के किले में कैद कर रखा था। जब उनकी रिहाई का आदेश हुआ, तो उन्होंने उन 52 राजाओं को भी साथ मुक्त कराया जो उनके साथ कैद थे। गुरु साहिब की वापसी पर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में दीपों से उत्सव मनाया गया। तभी से सिख समुदाय इस दिन को प्रकाश और स्वतंत्रता के पर्व के रूप में मनाता है।

इन सभी कथाओं का सामान्य संदेश – अंधकार पर प्रकाश की विजय

भले ही प्रत्येक कथा अलग धर्म और कालखंड से जुड़ी हो, परंतु इन सभी का भाव एक ही है – सत्य, सेवा, प्रेम और त्याग का प्रकाश ही जीवन का सच्चा दीप है। भगवान राम की विजय में मर्यादा का उजियारा है, विष्णु–लक्ष्मी विवाह में धर्म और अर्थ का संतुलन है, विक्रम संवत की स्थापना में न्याय का प्रकाश है, महावीर निर्वाण में आत्मा का तेज है और गुरु हरगोविंद की रिहाई में स्वतंत्रता की लौ है। दीपावली इसलिए केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि युगों से भारतीय चेतना में अंकित एक संदेश है -जब-जब अंधकार बढ़ता है, तब-तब दीप का जन्म होता है।

इतिहासकारों के अनुसार दीपावली प्राचीन भारत के कृषि-आर्थिक चक्र से भी जुड़ी रही है। फसल कटाई के बाद यह उत्सव नई समृद्धि और व्यापारिक वर्ष की शुरुआत का प्रतीक बन गया। व्यापारी वर्ग ने इसे अपने नए बहीखातों के उद्घाटन के साथ जोड़ा – यही परंपरा आज “बहीखाता पूजन” के रूप में प्रचलित है।

लक्ष्मी- गणेश पूजन : समृद्धि और सदाचार का संगम

दीपावली की रात्रि में लक्ष्मी और गणेश की पूजा का विधान शास्त्रों में अत्यंत प्राचीन है। देवी लक्ष्मी को धन, सौभाग्य और संपन्नता की अधिष्ठात्री माना गया है, वहीं गणेश जी को बुद्धि और विवेक का प्रतीक। शास्त्र कहते हैं कि जहाँ बुद्धि और विवेक का मार्गदर्शन होता है, वहीं धन स्थायी रूप से टिकता है।लक्ष्मी पूजन केवल धन-संपत्ति के लिए नहीं, बल्कि सदाचार से अर्जित धन के लिए किया जाता है। इसका उद्देश्य यह है कि धन केवल संग्रह न हो, बल्कि समाज के हित में प्रयुक्त हो। पूजन से पहले घर की संपूर्ण सफाई और शुद्धि की जाती है। दीवारों और द्वारों पर रंगोली या अल्पना बनाना शुभ माना गया है। पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर पूजा करने की परंपरा है, क्योंकि इन दिशाओं में ऊर्जा का प्रवाह शुभ माना गया है।

दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त (प्रदोष काल व लग्न अनुसार)

  • प्रदोष काल: 17:55 बजे से 20:15 बजे तक (सूर्यास्तानुसार)
  • स्थिर लग्न (वृषभ लग्न): 18:15 बजे से 20:10 बजे तक
  • पूजन हेतु सर्वोत्तम समय: सायं 6:15 से रात्रि 8:10 बजे तक
  • दीपदान और आरती का समय: रात्रि 8:30 बजे से 9:15 बजे तक

(समय वाराणसी पंचांगानुसार; अन्य स्थानों में स्थानीय सूर्यास्त के अनुसार परिवर्तित करें)

लक्ष्मी- गणेश पूजन की विधि

दीपावली के दिन घर को पूर्ण रूप से स्वच्छ करें। मुख्य द्वार पर रंगोली और तोरण लगाएँ। पूजा कक्ष या उत्तर–पूर्व दिशा में एक चौकी या पीठिका रखें। उस पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएँ। देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश और सरस्वती जी की प्रतिमा स्थापित करें। कलश में गंगाजल, सुपारी, सिक्का, और आम के पत्ते रखें तथा उस पर नारियल स्थापित करें।

पूजा में प्रयुक्त सामग्री 

1. माँ लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति या चित्र
2. कलश (जल, सुपारी, आम पत्र, नारियल सहित)
3. अक्षत (चावल), रोली, कुमकुम, हल्दी
4. दूर्वा और बिल्व पत्र
5. दीपक (घी और तेल दोनों)
6. धूप, अगरबत्ती, कपूर
7. पुष्प (कमल, गुलाब, गेंदा)
8. पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
9. मिठाई, फल और नैवेद्य
10. सिक्के और बहीखाते (व्यापारियों के लिए)
11. स्वच्छ वस्त्र, आसन, थाली और घंटा

पूजन की विधि (क्रमवार)

1. आसन ग्रहण करें – उत्तर या पूर्वमुख होकर बैठें।
2. संकल्प करें – दाहिने हाथ में जल लेकर यह कहें -“मम कुल कुटुम्बस्य धन-धान्य-समृद्ध्यर्थं श्रीलक्ष्मीगणेशपूजनं करिष्ये।”
3. गणेश पूजन करें –  गणेश जी पर जल, अक्षत, पुष्प, और दूर्वा अर्पित करें। मंत्र: *“ॐ गं गणपतये नमः”*
4. कलश पूजन करें – कलश पर जल, पुष्प, रोली, और चावल अर्पित करें।
5. लक्ष्मी पूजन करें -देवी लक्ष्मी को स्नान, वस्त्र, पुष्प, और चंदन अर्पित करें। मंत्र: “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः”
6. सिक्के और बहीखाता पूजन – बहीखातों पर रोली और अक्षत से “श्री गणेशाय नमः” लिखें।
7. आरती करें – पहले गणेश जी की, फिर लक्ष्मी जी की आरती करें।
8. दीपदान करें – घर के प्रत्येक कोने में दीप जलाएँ, विशेष रूप से दक्षिण दिशा में “यम दीप” अवश्य जलाएँ।

लक्ष्मी पूजन कथा 

पुराणों में वर्णन है कि एक बार महर्षि नारद देवलोक में देवी लक्ष्मी से मिलने पहुँचे। उन्होंने देखा कि लक्ष्मी जी विष्णु जी के चरणों की सेवा कर रही हैं। नारद जी ने पूछा, “हे माँ! आप तो समृद्धि की देवी हैं, फिर आप सेवा क्यों करती हैं?” माँ लक्ष्मी ने कहा, “सेवा ही स्थिरता देती है। जहाँ प्रेम, सेवा और श्रम है, वहीं मैं स्थायी रूप से निवास करती हूँ।” नारद जी ने पूछा, “हे देवी! पृथ्वी लोक में लोग आपका वास कैसे प्राप्त करें?” लक्ष्मी जी ने कहा, “कार्तिक अमावस्या की रात्रि मेरे आगमन की रात्रि है। जो व्यक्ति उस दिन प्रदोष काल में शुद्ध मन, पवित्र भाव से मेरा और गणेश जी का पूजन करता है, वहाँ मैं स्थायी रूप से निवास करती हूँ।”इसी कारण इस रात्रि को “लक्ष्मी आगमन रात्रि” कहा जाता है।

लक्ष्मी – गणेश आरती 

श्री गणेश आरती

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा,
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
एकदंत दयावंत, चार भुजाधारी,
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी।
लड्डू खाते सुंदर, भक्ति बढ़ाते,
जो कोई तेरा नाम ले, फल पावे भारी।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा,
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।

महालक्ष्मी आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जगमाता,
सूर्यचंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
दूध और केसर खीर, भोग लगाता,
सेवक जन मनवांछित फल पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

पूजन में बोले जाने वाले प्रमुख मंत्र

लक्ष्मी आवाहन मंत्र: “ॐ महालक्ष्मि च विद्महे, विष्णुपत्नी च धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।”

लक्ष्मी स्तोत्र (संक्षिप्त): “नमस्तेस्तु महामाये, श्रीपीठे सुरपूजिते। शङ्खचक्रगदाहस्ते, महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥”

कुबेर पूजन मंत्र: “ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये नमः।”

दीपदान मंत्र: “दीपो ज्योति परं ब्रह्म, दीपो सर्वतमोऽपहा। दीपेन साध्यते सर्वं, सन्ध्या दीपं नमोऽस्तुते॥”

दीपावली पूजन के शास्त्रीय नियम

1. प्रदोष काल में पूजन करें, रात्रि 8 बजे के बाद नहीं।
2. पूजा में काले या गहरे कपड़े न पहनें।
3. अमावस्या की रात्रि में क्रोध, झूठ और वाद-विवाद से बचें।
4. दीपदान करते समय मौन रहें और मन में माँ लक्ष्मी का नाम जपें।
5. पूजा के बाद घर की उत्तर दिशा में जलती हुई दीप ज्योति को कुछ देर निहारें।

पूजन के बाद का संदेश

लक्ष्मी पूजन केवल धन का नहीं, सदाचार और संतुलन का प्रतीक है। पूजा के बाद परिवार में मिठाई बाँटें, बच्चों और बुजुर्गों के चरण स्पर्श करें। इस दिन किसी के घर अंधकार न रहने दें। दीपावली की रात्रि लक्ष्मी, गणेश और ऊर्जा के संगम की रात्रि है। शुद्ध मन, श्रद्धा और समर्पण से किया गया पूजन जीवन में स्थिरता और समृद्धि देता है। दीपों की यह श्रृंखला केवल घरों को नहीं, आत्मा को भी प्रकाशित करती है। यही दीपावली का शाश्वत संदेश है – अंधकार चाहे जितना गहरा क्यों न हो, एक दीप ही उसे मिटा सकता है।

बहीखाता पूजन की परंपरा

व्यापारी वर्ग के लिए दीपावली का विशेष महत्व है। इस दिन बहीखातों का पूजन किया जाता है। इसे “चोपड़ा पूजन” भी कहा जाता है। लक्ष्मी पूजन के साथ नया आर्थिक वर्ष आरंभ होता है। व्यापारी नए बहीखाते रखकर “श्री गणेशाय नमः” और “श्री लक्ष्म्यै नमः” लिखते हैं।यह पूजन केवल व्यापारिक रस्म नहीं, बल्कि सदाचारी और ईमानदार लेन-देन की कामना का प्रतीक है।

प्रदोष काल और स्थिर लग्न का महत्व

शास्त्रों के अनुसार दीपावली की पूजा प्रदोष काल में करनी चाहिए। यह समय सूर्यास्त के लगभग 24 मिनट बाद से लेकर दो घंटे 24 मिनट तक का होता है। प्रदोष काल को दिन और रात का संगम माना गया है, जब प्रकृति में ऊर्जा संतुलन चरम पर होता है।इस अवधि में जब स्थिर लग्न का योग बनता है, तब पूजन को पूर्ण फल देने वाला बताया गया है। वृषभ लग्न को सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि यह स्थिर लग्न है।

धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है -“स्थिरे लग्ने च या पूजा लक्ष्म्याः सायुज्यमाप्नुयात्।” अर्थात, स्थिर लग्न में की गई पूजा से लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है। काशी और उज्जैन पंचांगों के अनुसार यह मुहूर्त स्थानीय सूर्यास्त के अनुसार भिन्न होता है।

दिशाओं में दीपदान का रहस्य

  • दीपावली की रात्रि में दीये केवल सजावट नहीं हैं। प्रत्येक दीप की दिशा और स्थिति का अर्थ है।
  • उत्तर दिशा का दीप कुबेर को समर्पित है, जो धन के अधिपति हैं।
  • पूर्व दिशा का दीप इन्द्र को अर्पित किया जाता है, जो शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक हैं।
  • दक्षिण दिशा का दीप यमराज को अर्पित होता है, जो आयु और सुरक्षा के रक्षक हैं।
  • पश्चिम दिशा का दीप वरुण को समर्पित होता है, जो शुद्धता और जल तत्व के प्रतीक हैं।

मध्य में रखा गया दीप भगवान विष्णु को अर्पित किया जाता है, जो संतुलन और पालन के प्रतीक हैं।

शास्त्रीय प्रमाण और ग्रंथों के उल्लेख

स्कंद पुराण में कहा गया है -“अमावास्यायां दीपैः पूजिता लक्ष्मीः स्थिरं सुखं ददाति।” अर्थात, अमावस्या की रात्रि में दीपों के साथ लक्ष्मी की पूजा करने से स्थायी सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि इस दिन दीपदान पितृ तृप्ति का साधन है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन का हर शुभ कर्म दस गुना फल देता है। लक्ष्मी तंत्र में इसे “श्री सिद्धि रात्रि” कहा गया है। इस रात ध्यान, जप और साधना से साधक को विशेष सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

रात्रि पूजा का रहस्य और महत्व

अमावस्या की रात्रि अंधकारमयी होती है। यह समय मन के भीतर झाँकने और आत्मा के प्रकाश को प्रकट करने का अवसर देता है। सूर्य, चंद्र और ग्रहों की स्थिति इस समय साधना के लिए विशेष रूप से अनुकूल होती है।शास्त्र कहते हैं – “रात्रौ तु दीपदानं च, पूजनं च महाफलम्।” रात्रि में दीपदान और पूजन से महाफल प्राप्त होता है।

रात्रि साधना और ऊर्जा विज्ञान

तांत्रिक ग्रंथों में दीपावली की रात को “सर्वसिद्धि रात्रि” कहा गया है। लक्ष्मी तंत्र, रुद्रयामल और अन्य तांत्रिक ग्रंथों में बताया गया है कि इस समय प्रकृति की सूक्ष्म ऊर्जा अत्यंत सक्रिय होती है। साधक इस रात जप, ध्यान और लक्ष्मी साधना करते हैं। योगशास्त्र के अनुसार यह समय मूलाधार चक्र की ऊर्जा को जागृत करने का अवसर है। दीपक की लौ के कंपन से साधक के भीतर की ऊर्जा संतुलित होती है। काशी, उज्जैन, पुष्कर और प्रयाग जैसे तीर्थों में इस रात्रि की साधना अत्यंत पवित्र मानी जाती है।

लक्ष्मी और आलस्य का विरोध

धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि देवी लक्ष्मी आलस्य और अव्यवस्था की विरोधी हैं। जहाँ गंदगी या असत्य होता है, वहाँ लक्ष्मी स्थायी रूप से नहीं रहतीं। इसीलिए दीपावली से पहले सफाई, नवीनीकरण और सुगंधित वातावरण की परंपरा है। लक्ष्मी पूजन का भाव केवल धन प्राप्ति नहीं, बल्कि शुद्ध आचरण और सद्कर्म की कामना है।

दीप का दार्शनिक अर्थ

दीपक की लौ ऊपर की ओर जलती है। यह मानव की उन्नति और ज्ञान की आकांक्षा का प्रतीक है। मिट्टी का दीप शरीर, तेल कर्म और बाती आत्मा का प्रतीक है। जब तेल जलता है, तो प्रकाश प्रकट होता है – यही जीवन का संदेश है कि त्याग से ही प्रकाश जन्म लेता है। “दीपो भासयते लोकं” – दीप संसार में प्रकाश फैलाता है। जब घर में दीप जलता है, तो अंधकार अपने आप मिटता है।

सामाजिक और आध्यात्मिक अर्थ

दीपदान केवल पूजा नहीं, समाज में प्रकाश फैलाने की भावना है। जो व्यक्ति दूसरों के घर में दीप जलाता है, वह अपने भीतर भी उजियारा फैलाता है। यही भावना “सर्वे भवन्तु सुखिनः” के मंत्र का व्यावहारिक रूप है।गरीबों को वस्त्र, मिठाई और दीप दान करने की परंपरा समाज में समानता और दया का प्रतीक है। वाराणसी के घाटों पर जब हजारों दीप जलते हैं, तो वह केवल दृश्य नहीं, बल्कि आस्था का अनुभव होता है।

शास्त्रों में उजियारे का अर्थ

“तमसो मा ज्योतिर्गमय” – अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल। यह दीपावली का सार है। अंधकार का अर्थ अज्ञान और लोभ है; प्रकाश का अर्थ ज्ञान और विवेक है। दीपावली हमें यह सिखाती है कि संसार में सबसे बड़ा दीप स्वयं का मन है। जब वह सत्य और श्रद्धा से प्रकाशित होता है, तब पूरा जीवन उजला हो जाता है।

वाराणसी के ज्योर्तिविद पं. रमन जी कहते हैं कि दीपावली केवल धार्मिक नहीं, बल्कि ऊर्जा विज्ञान का पर्व है। अमावस्या की रात पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति बदलती है और दीपक की लौ इस ऊर्जा को संतुलित करती है। प्रदोष काल का चयन इसलिए किया गया क्योंकि उस समय मन की एकाग्रता सर्वोच्च होती है। पंडित रमन जी के अनुसार लक्ष्मी पूजन में ‘स्थिर लग्न’ का अर्थ यह भी है कि पूजन करने वाला व्यक्ति अपने विचारों में स्थिर हो। तभी पूजा का फल दीर्घकालिक होता है।

ग्रामीण परंपरा

गाँवों में दीपावली की सादगी ही उसकी सबसे बड़ी सुंदरता है। लोग मिट्टी के दीये स्वयं बनाते हैं, घरों की दीवारें गोबर और मिट्टी से लीपते हैं और सादे उत्सव में भी आनंद पाते हैं। कई जगहों पर पशुओं की पूजा की जाती है। यह परंपरा मनुष्य और प्रकृति के सहअस्तित्व का प्रतीक है।

आधुनिक युग की दृष्टि

डिजिटल युग में दीपावली का स्वरूप बदल गया है, परंतु भाव वही है। आज संदेश और उपहार डिजिटल हो गए हैं, परंतु घर के दीयों की आभा आज भी वही आत्मिक शांति देती है। पर्यावरण के प्रति जागरूक समाज “ग्रीन दीपावली” की दिशा में आगे बढ़ रहा है। मिट्टी के दीये, प्राकृतिक सजावट और बिना धुएँ वाले उत्सव का चलन बढ़ा है।

दीपावली केवल धर्म नहीं, दर्शन है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि हर मनुष्य के भीतर एक दीप है। जब वह श्रद्धा, सत्य और परिश्रम से जलता है, तो जीवन प्रकाशित हो उठता है। प्रदोष काल में स्थिर लग्न में लक्ष्मी गणेश की पूजा करने से स्थायी समृद्धि, शांति और संतुलन प्राप्त होता है। यह केवल विश्वास नहीं, बल्कि शास्त्रसम्मत सिद्धांत है। जब दीप जलते हैं, तो यह केवल उत्सव नहीं, बल्कि संदेश होता है – प्रकाश फैलाओ, भीतर और बाहर दोनों में। अंधकार पर प्रकाश की यह विजय कथा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी त्रेता युग में थी। हर दीप मनुष्य के भीतर के प्रकाश का प्रतीक है, जो कहता है – जब तक भीतर दीप जलता है, तब तक संसार में उजियारा बना रहेगा।

धनतेरस : वाराणसी में शाम 7:15 से 8:19 बजे तक पूजन मुहूर्त, धन्वंतरि पूजा और खरीदारी का शुभ समय

दीपावली की रात कर्ज मुक्ति और धन लाभ के उपाय: लक्ष्मी कृपा से बदलें आर्थिक हालात

डिस्क्लेमर: इस लेख में प्रस्तुत विचार, विश्लेषण और जानकारी ज्योतिषीय एवं पारंपरिक अध्ययन पर आधारित हैं। लेख का उद्देश्य भारतीय संस्कृति, धर्म और लोकपरंपराओं के ऐतिहासिक व आध्यात्मिक पहलुओं को पाठकों तक पहुँचाना है।इसका मकसद किसी धर्म, संप्रदाय, मत या व्यक्ति की भावना को आहत करना नहीं है।दी गई जानकारी केवल सामान्य सांस्कृतिक संदर्भ के लिए है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान, तंत्र साधना या हवन-विधि का पालन करने से पहले योग्य पंडित या आचार्य से सलाह अवश्य लें।CMG TIMES लेख में उल्लिखित किसी भी धार्मिक क्रिया या परिणाम के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।

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