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एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए संविधान संशोधन लोकसभा में पुर्रस्थापित

नयी दिल्ली : लोकसभा और सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों की विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले ऐतिहासिक संविधान (129वां) संशोधन विधेयक 2024 को मंगलवार को लोकसभा में पुर्रस्थापित करने के सरकार के प्रस्ताव को सदन ध्वनिमत से स्वीकार किया।विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा पेश किये गये इस विधेयक पर विपक्ष ने गहरी आपत्ति जतायी। कांग्रेस समेत विभिन्न दलों के सदस्यों ने इसे संविधान एवं संघवाद के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध किया। विधेयक को पेश करने पर सत्ता और विपक्ष के बीच लम्बे वाद-विवाद के बाद इस पर मतविभाजन कराया गया। मतविभाजन में संविधान (129वां) संशोधन विधेयक 2024 और संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक 2024 विधेयकों को पुर्रस्थापित करने के पक्ष में 269 मत और विरोध में 198 वोट पड़े।सदन ने इन विधेयकों को बारीकी से समीक्षा के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजने का प्रस्ताव पारित किया है।

विधेयक को पेश करते हुए श्री मेघवाल ने कहा कि संविधान संशोधन का यह विधेयक संविधान सम्मत है और किसी भी रूप में यह राज्य की शक्तियों कम नहीं करता है। इस विधेयक से संविधान के मूल ढांचे में कोई छेड़छाड़ नहीं होती है। इससे कोई न तो संसद की शक्ति में कमी आ रही है न ही विधानमंडल की शक्ति में कमी आ रही है।उन्होंने कहा, “हम संविधान की किसी सूची में संशोधन नहीं कर रहे हैं तो संघीय ढांचे पर कैसे हमला होगा। संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने भी कहा था कि कोई भी देश के संघीय ढांचे को नहीं बदल सकता है। हम संविधान की किसी अनुसूची में कोई संशोधन नहीं कर रहे हैं। ”उऩ्होंने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का धन्यवाद करते हुये कहा कि बहुत विस्तृत चर्चा के बाद इस विधेयक को लाया गया है। इस संबंध में सर्वदलीय बैठक में भी चर्चा हुई, जिसमें बहुमत संशोधन करने के पक्ष में थे।उन्होंने कहा कि यह विधेयक 41 साल से लंबित था जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने निर्णय लेकर बदलाव करने का संकल्प लिया है। उन्होंने दोनों विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति में भेजने की सिफारिश की।इससे पहले सरकार ने लोकसभा में आज ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ विधेयक पेश किया और विपक्ष ने इसे संघीय ढांचे के खिलाफ बताते हुये विधेयक को वापस लेने की मांग की।

कांग्रेस के मनीष तिवारी ने विधेयकाें का विरोध करते हुये कहा है कि यह हमारे लोकतंत्र और संघीय ढांचे के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि भारत में संघवाद की व्यवस्था है और ये विधेयक पूरी तरह से संविधान की इस व्यवस्था के खिलाफ है।समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने विधेयकों का विरोध किया और इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने इन विधेयकों को तानाशाही का परिणाम बताया और इन्हें वापस लेने की सरकार से मांग की।कांग्रेस के गौरव गोगोई ने इन विधेयक को देश के वोटरों के मतदान करने के अधिकार पर आक्रमण बताया है। उन्होंने विधेयक को संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) को भेजने की मांग की। इन विधेयकों में राष्ट्रपति को राज्यों की विधानसभाओं को भंग करने का इतना अधिकार दिया गया है, जितना पहले नहीं था। चुनाव आयोग को भी राज्य सरकारों को बर्खास्त करने का अधिकार दिया गया है, जो गलत है।तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने विधेयकों को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि राज्यों के चुनाव वहां की सरकार के कार्यकाल की अवधि पर निर्भर करते हैं और केंद्र के चुनाव केंद्र सरकार के कार्यकाल पर तो फिर एक साथ चुनाव कैसे कराये जा सकते हैं। इसमें राज्यों की स्वायत्तता को खत्म किया जा रहा है। ध्यान रहे एक ही पार्टी हमेशा नहीं रहती है और एक दिन सत्ता बदल जायेगी। यह चुनाव सुधार नहीं, सिर्फ एक व्यक्ति की इच्छाओं को पूरा करने वाले विधेयक हैं।द्रमुक के टी आर बालू ने इस विधेयक को जेपीसी को सौंपने की मांग की।

संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि सभी दलों का प्रतिनिधित्व इसमें है और अध्यक्ष ओम बिरला ने खुद कहा है कि वह सभी दलों के नेताओं को इस मुद्दे पर विचार रखने का मौका देंगे।यूआईएमएल के ई. टी बशीर ने विधेयक को संविधान पर हमला बताया। शिवसेना के अनिल यशवंत देसाई ने विधेयकको राष्ट्र की संघीय ढांचे पर हमला करार दिया। उन्होंने कहा कि राज्यों के विधानसभाओं के अधिकारों को कम नहीं किया जाना चाहिये।श्री गोगोई ने कहा कि राष्ट्रपति सिर्फ मंत्रिपरिषद से सलाह लेते हैं, वह चुनाव आयोग से सलाह नहीं ले सकते। इस विधेयक के प्रावधानों के अनुसार अब राष्ट्रपति चुनाव आयोग से भी सलाह ले सकते हैं। वह इसका पुरजोर विरोध करते हैं। इस विधेयक में चुनाव आयोग को अत्यधिक अधिकार दिये गये हैं।श्री गोगोई ने कहा, “भारतीय जनता पार्टी समझती है कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रचार से सारे चुनाव छीन लेगी तो वह गलतफहमी में है। इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति में भेजा जाये, वह इस विधेयक का विरोध करते हैं।”ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि इस विधेयक के लागू हो जाने से राज्यों में राष्ट्रपति शासन की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा, “यह विधेयक एक आदमी के अहम को बढ़ावा देने के लिये लाया गया है। मैं इस विधेयक का विरोध करता हूं।

”राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) की सुप्रिया सुले ने कहा कि यह विधेयक संघवाद और संविधान के विरुद्ध है। सांसद, विधायक पांच वर्ष के लिये चुने जाते हैं, उन्हें बीच में क्यों हटाया जाये। उन्होंने कहा कि वह विधेयक का विरोध करती हैं। विधेयक को वापस लिया जाये या इसे संयुक्त संसदीय समिति में भेजा जाये। ”रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एन के प्रेमचंद्रन ने कहा कि वह विधेयकों का पुरजोर विरोध करते हैं। यह संघवाद की मूल भावना के विरोध में है। इसे लाने से संघवाद के ढांचे का विरोध होगा। इस पर व्यापक चर्चा होनी चाहिये थी।केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक पर चर्चा के दौरान हस्तक्षेप करते हुए कहा जब यह संविधान संशोधन विधेयक कैबिनेट के पास चर्चा में आया था तभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि इसे जेपीसी को देना चाहिए। इसपर सभी स्तर पर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए।उन्होंने कहा कि इस वजह से ही मुझे लगता है कि इसमें सदन का ज्यादा समय खर्च किए बगैर अगर मंत्री जी कहते हैं कि वह इसे जेपीसी को सौंपने को तैयार हैं, तो जेपीसी में सारी चर्चा होगी और जेपीसी की रिपोर्ट के आधार पर कैबिनेट इसे पारित करेगी तब भी फिर से इस पर सारी चर्चा होगी। (वार्ता)

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