
बिहार चुनाव 2025: दिग्गज नेताओं के रिश्तेदारों में कई चमके, कई के अरमान टूटे
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कई दिग्गज नेताओं के रिश्तेदार पहली बार चुनाव जीतकर सत्ता के नए सितारे बने, जबकि कुछ के सपने अधूरे रह गए। भाजपा, जदयू, राजद और अन्य दलों के कई राजनीतिक परिवारों से जुड़े उम्मीदवार चुनावी अखाड़े में उतरे। त्रिविक्रम सिंह, सुजीत कुमार सिंह, राहुल रंजन, अतिरेक कुमार, कई महिला उम्मीदवारों समेत दर्जनों चेहरे पहली बार विधानसभा पहुंचे। वहीं सीमांत मृणाल, यशराज पासवान, लता सिंह, शिवानी शुक्ला जैसे कई वारिसों को हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव ने साफ किया कि जनता अब केवल विरासत नहीं, प्रदर्शन को महत्व दे रही है।
- राजनीतिक विरासत की लंबी परंपरा में कुछ नए ‘सिकंदर’ उभरे, जबकि कई दिग्गजों के वारिस रहे नाकाम
पटना : बिहार में इस बार विधानसभा के चुनाव में कई दिग्गज नेताओं के रिश्तेदार चुनावी समर के अभेद दुर्ग तोड़कर पहली बार सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हुये, लेकिन कुछ के सपने चूर हो गये।बिहार विधानसभा चुनाव में कई वरिष्ठ नेताओं ने अपनी विरासत उत्तराधिकारी को सौंपने के लिए दांव-पेच आजमाया। इस बार के चुनाव में कई उम्मीदवार थे, जिनके पिता,माता या रिश्तेदार की बिहार की राजनीति में मजबूत दखल है। कई दिग्गज नेताओं के रिश्तेदार अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए सियासी जमीं पर अपना खुद का ‘आशियाना’ बनाने के लिए चुनावी समर में उतरे। इनमें कई दिग्गज नेताओं के रिश्तेदरों का सितारा चमका और वह सत्ता के नये सिकंदर बने, जबकि कुछ के तारे गर्दिश में रह गये।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गोपाल नारायण सिंह के पुत्र त्रिविक्रम सिंह ने औरंगाबाद से, गौराबौराम से निवर्तमान विधायक श्रवर्णा सिंह के पति और भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के पूर्व अधिकारी सुजीत कुमार सिंह ने इसी सीट से चुनाव जीता और पहली बार विधानसभा पहुंचे। पूर्व विधायक राजीव रंजन सिंह के पुत्र राहुल रंजन इस्लामपुर से, पूर्व मंत्री अशोक राम के पुत्र अतिरेक कुमार कुशेश्वरस्थान (सुरक्षित) से, पूर्व मंत्री मंजू वर्मा के पुत्र अभिषेक आनंद चेरियाबरियारपुर ,पूर्व मंत्री दिनेश कुशवाहा के पुत्र अजय कुमार मीनापुर सीट से चुनाव जीत कर पहली बार विधानसभा पहुंचे।
इसी तरह सकरा (सुरक्षित) से निवर्तमान विधायक अशोक कुमार चौधरी के पुत्र आदित्य कुमार इसी सीट से,वारिसनगर से निवर्तमान विधायक अशोक कुमार के पुत्र मांजरीक मृणाल इसी सीट से ,पूर्व विधायक स्व. प्रो. आरपी शर्मा के पुत्र कुमार पुष्पंजय बरबीघा से, दिग्गज कांग्रेसी नेता स्वर्गीय सदानंद सिंह के पुत्र शुभानंद मुकेश कहलगांव से, पूर्व विधायक दिलीप वर्मा के पुत्र समृद्ध वर्मा सिकटा से, पूर्व सांसद दिवंगत ब्रह्मानंद मंडल के पुत्र नचिकेता मंडल जमालपुर से,पूर्व सांसद अरूण कुमार के पुत्र ऋतुराज कुमार घोसी से, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार के भतीजा रोमित कुमार अतरी से ,बिहार सरकार में मंत्री संतोष सिंह के भाई आलोक कुमार सिंह दिनारा से और पूर्व सांसद मोहम्मद शाहबुद्दीन के पुत्र ओसामा शाहाब रघुनाथपुर से चुनाव जीत कर सत्ता के नये सिकंदर बने।
इस बार के चुनाव में राजनीतिक दलों के दिग्गजों की रिश्तेदार कई महिला उम्मीदवरों ने भी पहली बार जीत का परचम लहराया। इनमें पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी रमा निषाद औराई सीट से,सांसद वीणा देवी और विधान पार्षद दिनेश सिंह की पुत्री कोमल सिंह गायघाट सीट से, राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा की पत्नी स्नेह लता सासाराम सीट से और पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय की पौत्री करिश्मा राय ने परसा सीट पर अपना ‘करिश्मा’ दिखाया और पहली बार विधानसभा पहुंची।यह तो थी वैसे उम्मीदवारों की बात जो राजनीतिक परिवार से आये और जीत का परचम लहराया वहीं कई ऐसे भी उम्मीदवार भी रहे जिनके सत्ता के नये सिकंदर बनने के सपने चूर हो गये।
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के भांजा सीमांत मृणाल गरखा (सुरक्षित) से चुनाव हार गये। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस के पुत्र यशराज पासवान ने अलौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन अपना यश नहीं दिखा सके। पूर्व सासंद छेदी पासवान के पुत्र रवि शंकर पासवान मोहनिया (सुरक्षित) सीट से चुनाव हार गये। पूर्व केन्द्रीय मंत्री रघुनाथ झा के पौत्र नवनीत झा ने शिवहर विधानसभा सीट के किस्मत आजमायी लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
इसी तरह बक्सर सीट से पूर्व केन्द्रीय मंत्री के.के तिवारी के पुत्र तथागत हर्षवर्धन, धौरैया सुरक्षित सीट से पूर्व विधायक स्व.नरेश दास के पुत्र त्रिभुवन दास, करहगर सीट से पूर्व मंत्री रामधनी सिंह के पुत्र उदय प्रताप सिंह,चैनपुर सीट से पूर्व सासंद स्व.लालमुनि चौबे के पुत्र हेमंत चौबे,कहलगांव सीट से झारखंड सरकार में मंत्री संजय यादव के पु्त्र रजनीश भारती, संदेश की निवर्तमान विधायक किरण देवी और पूर्व विधायक अरूण यादव के पुत्र दीपू सिंह को इसी सीट पर हार का सामना करना पड़ा।पूर्व मुख्यमंत्रियों के कई परिजन भी चुनावी समर में सत्ता के नये सिकंदर बनने की आस में थे लेकिन उनके अरमानो पर जनता ने पानी फेर दिया।मोरवा विधानसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पोती जागृति ठाकुर को शिकस्त का सामना करना पड़ा।
पूर्व मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह के पुत्र सुशील कुमार को चेरियबरियारपुर सीट पर हार का सामना करना पड़ा।नरकटियागंज सीट से पूर्व मुख्यमंत्री केदार पांडेय के पुत्र शाश्वत केदार को भी चुनावी अखाड़े में मात मिली।इस बार के चुनाव में दिग्गज राजनेताओं की कई महिला उम्मीदवार पहली बार सत्ता पाने के इरादे से समर में उतरी लेकिन उन्हें मायूसी हाथ लगी।पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की बेटी लता सिंह को अस्थावां विधानसभा सीट पर हुये चुनाव में शिकस्त मिली।पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला और पूर्व विधायक अन्नू शुक्ला की पुत्री शिवानी शुक्ला लालगंज सीट पर चुनाव हार गयी।परिहार विधानसभा सीट से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे की बहू स्मिता पूर्वे गुप्ता को हार सामना करना पड़ा।
हसनुपर सीट से पूर्व विधायक सुनील कुमार पुष्पम की पत्नी माला पुष्पम, विभूतीपुर से पूर्व विधायक राम बालक सिंह की पत्नी रवीना कुशवाहा, दरभंगा से पूर्व विधान पार्षद स्व.विनोद कुमार चौधरी की पुत्री और प्लूरल्स पार्टी प्रमुख पुष्पम प्रिया, पूर्व मंत्री इलयास हुसैन की पुत्री और पेशे से चिकित्सक आसमा प्रवीण, महुआ से, गोपालगंज सीट से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के साला पूर्व सांसद अनिरूद्ध प्रसाद यादव उर्फ साधु यादव की पत्नी इंदिरा देवी चुनाव हार गयी।
चुनावी समर में उतरे सात पूर्व सांसद बने विधायक
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने इस बार एक दिलचस्प राजनीतिक परिदृश्य प्रस्तुत किया, जिसमें केंद्रीय राजनीति का अनुभव रखने वाले कई दिग्गज नेता विधानसभा चुनावी समर में उतरे। संसद की राजनीति में सक्रिय रहे ये पूर्व सांसद अपने प्रभाव क्षेत्र, जनसंपर्क और राजनीतिक पहचान के बल पर विधानसभा में प्रवेश की कोशिश कर रहे थे। हालांकि, ऐसे नेताओं में जहाँ सात पूर्व सांसदों ने जीत का परचम लहराया, वहीं कई को हार का सामना करना पड़ा।
किस पार्टी ने कितने पूर्व सांसदों पर लगाया दांव?
1. जनता दल यूनाइटेड (JDU)
जदयू ने सबसे अधिक छह पूर्व सांसदों को मैदान में उतारकर यह साफ किया कि पार्टी अनुभवी चेहरों को तरजीह दे रही है। इन नेताओं के जीतने की संभावनाएँ उनके पुराने जनसंपर्क और संगठनात्मक पकड़ पर आधारित थीं।
2. राष्ट्रीय जनता दल (RJD)
राजद ने भी पांच पूर्व सांसदो को टिकट देकर मुकाबले को और रोचक बना दिया। पार्टी को उम्मीद थी कि इन दिग्गजों के अनुभव और जनआधार से सीटें मजबूत होंगी।
3. भारतीय जनता पार्टी (BJP)
भाजपा ने दो पूर्व सांसदों को चुनावी मैदान में उतारा। केंद्र और राज्य की राजनीति के अनुभव का लाभ उठाने की रणनीति साफ तौर पर दिखाई दी।
4. जनसुराज पार्टी (Prashant Kishor)
प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने भी तीन पूर्व सांसदों को टिकट देकर यह संदेश दिया कि पार्टी नए और पुराने अनुभव का मेल कर चुनाव लड़ रही है।
5. AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन)
एआईएमआईएम के टिकट पर एक पूर्व सांसद ने अपनी किस्मत आजमाई।
कितने पूर्व सांसद बने विधायक?
हालांकि मैदान में उतरे दिग्गजों की संख्या अधिक थी, लेकिन अंततः सिर्फ सात पूर्व सांसद ही जनता की कसौटी पर खरे उतरते हुए जीत सकने में सफल रहे।
बाकी पूर्व सांसदों को जनता ने नकार दिया और वे पराजित हो गए।
चुनाव में पूर्व सांसदों की भूमिका क्यों रही महत्वपूर्ण?
पूर्व सांसदों का प्रभाव क्षेत्र विस्तृत होता है, जिससे पार्टी को उम्मीद रहती है कि उनकी लोकप्रियता वोटों में परिवर्तित होगी। ऐसे नेताओं के पास संसदीय अनुभव और संगठनात्मक समझ होने के कारण चुनावी रणनीति मजबूत हो जाती है। पार्टियों ने इन्हें चुनावी मैदान में उतारकर नए युवाओं और स्थानीय नेताओं के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश की। (वार्ता)
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