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ज्ञानवापी मामला: पुरातात्त्विक सर्वेक्षण कराने की अपील पर बहस जारी, अगली सुनवाई दो अप्रैल को

सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजूमन इंतजामिया मसाजिद की निगरानी याचिका पर सुनवाई 12 अप्रैल को

वाराणसी। ज्ञानवापी मामले में वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी की परिसर का पुरातात्त्विक सर्वेक्षण कराने की अपील पर गुरुवार को पक्षकारों की बहस हुई। सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक)आशुतोष तिवारी ने इसे जारी रखते हुए दो अप्रैल की तिथि मुकर्रर कर दी।अंजुमन इंतजामिया मसाजिद और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने इस आशय का प्रार्थना पत्र दिया कि इस मुकदमे की पोषणीयता को लेकर हाईकोर्ट में 15 मार्च पक्षकारों की बहस पूरी हो चुकी है। हाईकोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित रखा है। ऐसे में उक्त निर्णय के बाद मुकदमे में अग्रिम कार्रवाई की जाए। अदालत ने बहस को जारी रखते हुए अग्रिम सुनवाई के लिए दो अप्रैल की तिथि मुकर्रर कर दी।

पुरातात्त्विक सर्वेक्षण कराने की प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के दौरान वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने 23 सितंबर 1998 को अपर जिला जज (प्रथम) के निर्णय का हवाला देते हुए दलील दी कि वर्तमान वाद में विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मंदिर की थी अथवा मस्जिद की,इसके निर्धारण के लिए मौके के साक्ष्य की आवश्यकता है। चूंकि कथित विवादित स्थल विश्वनाथ मंदिर का एक अंश है इसलिए एक अंश की धार्मिक स्थिति का निर्धारण नहीं किया जा सकता है। बल्कि ज्ञानवापी के पूरे परिसर का भौतिक साक्ष्य लिया जाना जरूरी है ताकि 15 अगस्त 1947 को विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति क्या थी इसका निर्धारण किया जा सके। विजय शंकर रस्तोगी ने बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा.ए एस ऑल्टेकर की लिखित ‘हिस्ट्री ऑफ बनारस’ पुस्तक प्रस्तुत किया।

पुस्तक में ह्वेनसांग द्वारा विश्वनाथ मंदिर के लिंग की सौ फीट उंचाई और उस पर निरंतर गिरती गंगा की धारा के संबंध में किए गए उल्लेख किया है। इन ऐतिहासिक तथ्यों का जिक्र करते हुए कहा कि प्राचीन विश्वनाथ मंदिर के ध्वस्त अवशेष प्राचीन ढांचा के दीवारों में अंदरुनी और बाहरी विद्यमान हैं। पुरानी मंदिर के दीवारों और दरवाजों को चूनकर वर्तमान ढांचा का रुप दिया गया है। पुराने विश्वनाथ मंदिर के अलावा पूरे परिसर में अनेक देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर थे जिनमें से कुछ आज भी विद्यमान हैं। खुदाई करके उनके चिन्ह देखे जा सकते हैं। मौके के 35 फोटोग्रॉफ्स भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये जा चुके हैं। इस संबंध में केंद्र और राज्य सरकार के पुरातात्त्विक विभाग से उनके साक्ष्य प्राप्त करने की मांग की।

सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने पुरातात्त्विक सर्वेक्षण कराने की इस अपील पर आपत्ति जताया। दलील दी कि आराजी संख्या 9130,9131 व 9132 पर विश्वेश्वरनाथ (विश्वनाथ जी) का एवं अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। लेकिन मुकदमे में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ के अलावा कोई अन्य पक्षकार नहीं है। पूरे दावा में उक्त तीनों जमीनों का मालिक कौन था और किसने इन जमीनों का भू- स्वामित्व मंदिर को अर्पित किया, इसका उल्लेख नहीं है। देवता अपने आप में कानूनी रुप से एक विधिक व्यक्ति हैं और देवता स्वयं किसी अचल संपत्ति के मालिक तबतक नहीं हो सकते जबतक असल भू-स्वामी अपनी संपत्ति देवता को अर्पित अथवा हस्तांतरण न करें। उधर जिला जज ओमप्रकाश त्रिपाठी ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजूमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से दाखिल निगरानी याचिका पर सुनवाई के लिए 12 अप्रैल को तिथि मुकर्रर कर दी।

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