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अनन्त चतुर्दशी 2025 : पौराणिक महत्व, कथा, पूजा विधि और समय

अनन्त चतुर्दशी के दिन गणेशोत्सव का समापन भी होता है। 10 दिनों तक गणपति की स्थापना और पूजा-अर्चना करने के बाद इस दिन बप्पा का विसर्जन किया जाता है।

अनन्त चतुर्दशी हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत और पर्व है। यह भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनन्त रूप की उपासना की जाती है। इस दिन विशेषकर अनन्त सूत्र (एक विशेष डोरी) बाँधकर भगवान विष्णु से परिवार, धन, स्वास्थ्य और समस्त प्रकार की समृद्धि की कामना की जाती है। यही दिन गणेश विसर्जन का भी होता है, इसलिए इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व और भी बढ़ जाता है।

आइए विस्तार से जानते हैं—

1. पौराणिक महत्व

अनन्त चतुर्दशी व्रत का महत्व *अनन्त भगवान* से जुड़ा हुआ है। ‘अनन्त’ का अर्थ है – जिसका कभी अंत न हो, जो शाश्वत हो। भगवान विष्णु के इस रूप को अनन्त कहा जाता है। पुराणों के अनुसार अनन्त चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैया पर अनन्त रूप में विराजमान होते हैं। इस दिन किया गया व्रत जीवन के सभी संकटों को दूर करता है, पापों का नाश करता है और भक्त को मोक्ष की प्राप्ति कराता है। धर्मशास्त्रों में यह व्रत अनन्त व्रत के नाम से वर्णित है। जो भक्त पूरे श्रद्धा भाव से यह व्रत करता है, उसके जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और उसके सभी कार्य सफल होते हैं।

2. अनन्त चतुर्दशी की कथा

अनन्त चतुर्दशी से जुड़ी कई कथाएँ प्रचलित हैं। उनमें से प्रमुख कथा इस प्रकार है—

कथा – पाण्डव और अनन्त भगवान

महाभारत काल में जुए में सब कुछ हार जाने के बाद जब पाण्डव वनवास भोग रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी व्रत करने की सलाह दी।

कृष्ण ने कहा— “हे धर्मराज! यह अनन्त व्रत बड़ा ही पवित्र और कल्याणकारी है। इस व्रत के प्रभाव से समस्त दुखों का नाश होता है।” युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के बताए नियमों से व्रत किया। उन्होंने अनन्त सूत्र बाँधा और भगवान विष्णु के अनन्त रूप की पूजा की। व्रत के प्रभाव से पाण्डवों के सभी कष्ट दूर हुए और उन्हें पुनः राजपाट की प्राप्ति हुई।

कथा – सुतजी द्वारा व्रत का महात्म्य

भागवत पुराण और महाभारत में भी यह व्रत वर्णित है। कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण परिवार था जो निरंतर कष्टों से घिरा रहता था। जब उसने अनन्त व्रत किया तो उसके सारे दुख समाप्त हो गए। इस प्रकार यह व्रत मानव जीवन के संकटों को समाप्त कर सुख-समृद्धि देने वाला माना जाता है।

3. पूजा का समय (मुहूर्त 2025)

तिथि प्रारम्भ: 5 सितंबर 2025, शुक्रवार – प्रातः 09:17 बजे
तिथि समाप्त: 6 सितंबर 2025, शनिवार – प्रातः 06:31 बजे
अनन्त चतुर्दशी व्रत पूजा मुहूर्त: 6 सितंबर को सूर्योदय से दिनभर, विशेषकर प्रातः 06:00 से 08:30 बजे तक का समय शुभ माना गया है।

गणेश विसर्जन मुहूर्त: 6 सितंबर को दिनभर शुभ है, किन्तु प्रातः 09:00 से दोपहर 12:00 बजे तक सर्वश्रेष्ठ समय है।

4. पूजा सामग्री

अनन्त चतुर्दशी व्रत में विशेष सामग्री का उपयोग होता है—

1. कलश (जल, आम्रपल्लव और नारियल सहित)
2. भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र
3. शेषनाग की प्रतिमा या प्रतीक
4. अनन्त सूत्र (14 गांठों वाली डोरी, कुमकुम से रंगी हुई)
5. रोली, चंदन, हल्दी, कुंकुम
6. फूल, अक्षत (चावल), तुलसीदल
7. पंचमेवा, फल, मिठाई
8. दीपक, धूप, अगरबत्ती
9. पान, सुपारी, नारियल
10. प्रसाद के लिए खीर, पूड़ी, सब्जी आदि

5. पूजा विधि

1. व्रत संकल्प
प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। व्रत का संकल्प लें – “मैं भगवान अनन्त की पूजा और व्रत कर रहा हूँ।”

2. कलश स्थापना
पूजा स्थल पर कलश स्थापित करें और उसके ऊपर नारियल रखें।

3. भगवान विष्णु की पूजा
भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीपक और धूप जलाएँ। चंदन, फूल, अक्षत, तुलसीदल अर्पित करें।

4. अनन्त सूत्र की पूजा
अनन्त सूत्र (लाल या पीली डोरी, जिस पर 14 गांठें हों) को पूजा के स्थान पर रखकर भगवान विष्णु के मंत्रों से पूजें।

5. व्रत कथा श्रवण
अनन्त चतुर्दशी की कथा का श्रवण करें।

6. सूत्र धारण
पूजा के बाद पुरुष दाहिने हाथ में और महिलाएँ बाएँ हाथ में अनन्त सूत्र बाँधें। यह सूत्र जीवनभर की रक्षा और समृद्धि का प्रतीक है।

7. भोजन और दान
पूजा उपरान्त व्रती केवल सात्विक भोजन ग्रहण करें। ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।

6. व्रत का विशेष महत्व

  • यह व्रत व्यक्ति के जीवन में धन, ऐश्वर्य, दीर्घायु और समृद्धि लाता है।
  • परिवार में सौहार्द और सुख-शांति बनी रहती है।
  • सभी प्रकार के संकट और रोग दूर होते हैं।
  • व्यापार या नौकरी में आने वाली बाधाएँ समाप्त होती हैं।
  • यह व्रत पुण्य और मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है।

7. गणेश विसर्जन का महत्व

अनन्त चतुर्दशी के दिन गणेशोत्सव का समापन भी होता है। 10 दिनों तक गणपति की स्थापना और पूजा-अर्चना करने के बाद इस दिन बप्पा का विसर्जन किया जाता है। गणेश विसर्जन का अर्थ है—गणपति बप्पा को विदाई देना और अगले वर्ष पुनः आने का निमंत्रण देना। इस दिन पूरे भारत में विशेषकर महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक और उत्तर भारत के कई हिस्सों में भव्य शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं।

अनन्त चतुर्दशी 2025 का दिन भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह केवल भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप की उपासना का पर्व ही नहीं है, बल्कि गणेशोत्सव के समापन का भी प्रतीक है। इस दिन किया गया व्रत जीवन के दुखों को दूर करता है और सुख-समृद्धि प्रदान करता है। 6 सितंबर 2025, शनिवार को अनन्त चतुर्दशी का पर्व भक्तों के लिए आध्यात्मिक उन्नति, सांस्कृतिक उत्सव और धार्मिक आस्था का अद्भुत संगम लेकर आएगा।

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