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“इमरान को हटाने में अमेरिका का हाथ”64 प्रतिशत पाकिस्तानी नहीं मानते सही

पाकिस्तान में हुए एक सर्वेक्षण में यह साफ हुआ है कि 64 प्रतिशत पाकिस्तानी इस बात को सही नहीं मानते हैं कि इमरान सरकार को हटाने में अमेरिका का हाथ है।इमरान उनकी सरकार के खिलाफ नेशनल एसेंबली में अविश्वास प्रस्ताव लाये जाने के बाद से लगातार इसके पीछे अमेरिकी साजिश होने का आरोप लगा रहे हैं लेकिन इस सर्वेक्षण में लोगों ने सरकार की इस कहानी को खारिज कर दिया है और इमरान सरकार की पतन के लिए मुद्रास्फीति को मुख्य वजह बताया है।पाकिस्तानी अखबार डॉन ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट में बताया कि गैलप पाकिस्तान सर्वे में हालांकि मात्र 36 प्रतिशत लोगों ने माना है कि सरकार को गिराने के विपक्ष के प्रयास के पीछे अमेरिकी साजिश है।

इस टेलीफोनिक सर्वेक्षण ने 03 से 04 अप्रैल तक 800 परिवारों की राय ली गयी। सर्वे में जिन लोगों ने यह माना कि महंगाई सरकार को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए विपक्ष की प्रेरणा स्रोत है, उनमें से 74 प्रतिशत सिंध से, 62 प्रतिशत पंजाब से और 59 प्रतिशत पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर के लोग शामिल हैं।एक अन्य सर्वेक्षण के लगभग 54 प्रतिशत लोगों ने पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (पीटीआई) सरकार के साढ़े तीन साल के प्रदर्शन पर निराशा व्यक्त की, जबकि 46 प्रतिशत लोगों ने संतोष जाहिर किया।

सर्वे के मुताबिक 68 प्रतिशत लोगों ने नए चुनावों के लिए इमरान खान की कार्रवाई की सराहना की। सर्वे में 72 फीसदी लोगों ने अमेरिका को पाकिस्तान का दुश्मन और 28 फीसदी लोगों ने दोस्त बताया। वहीं, साढ़े तीन साल की अवधि के दौरान पीटीआई सरकार के कामकाज के सवाल पर 54 प्रतिशत लोगों ने इमरान खान के शासन के प्रति निराशा व्यक्त की, जबकि 46 प्रतिशत ने कुछ हद तक संतोष व्यक्त किया।इमरान सरकार के प्रदर्शन से उच्च स्तर की संतुष्टि व्यक्त करने वालों में से 60 प्रतिशत पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर के लोग शामिल है, जबकि उसी प्रांत के 40 प्रतिशत लोगों ने इमरान सरकार के प्रदर्शन पर निराशा व्यक्त की।

वहीं, सिंध में 43 प्रतिशत लोगों ने इमरान खान के प्रदर्शन पर संतोष व्यक्त किया, लेकिन 57 प्रतिशत लोगों ने निराशा व्यक्त की।पंजाब के मामले में इमरान सरकार के कामकाज को 45 प्रतिशत लोगें ने सही माना, लेकिन 55 प्रतिशत लोगों ने उनके प्रदर्शन पर निराशा व्यक्त की। सरकार के पतन और राष्ट्रीय चुनावों के आह्वान पर 68 प्रतिशत लोगों ने सहमति व्यक्त की, जबकि 32 प्रतिशत ने इसे खारिज कर दिया।

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