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अक्षय/आंवला नवमी 31 अक्टूबर: आंवला वृक्ष-पूजन से मिलेगा अक्षय पुण्य और समृद्धि का वरदान

कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाने वाली अक्षय/आंवला नवमी इस वर्ष 31 अक्टूबर को पड़ रही है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा करने और उसके नीचे भोजन बनाने-खाने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु का इस वृक्ष में निवास माना गया है और इस तिथि से ही सतयुग का आरंभ हुआ था। व्रत-पूजा से सुख-समृद्धि, धन-वृद्धि, स्वास्थ्य और संतान-सुख की प्राप्ति होती है। सुबह 10 बजे तक शुभ मुहूर्त में महिलाएं विशेष रूप से लक्ष्मी-विष्णु की आराधना करती हैं और दान-धर्म कर परिवार के मंगल की कामना करती हैं।

  • कार्तिक शुक्ल नवमी: अक्षय/आंवला नवमी पर अक्षय पुण्य और स्वास्थ्य-समृद्धि का संगम
  • 31 अक्टूबर को सुबह 10 बजे तक शुभ मुहूर्त, वृक्ष-पूजा का पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व

कार्तिक माह का शुभ पक्ष देव-उपासना का पर्व माना जाता है। इसी श्रंखला में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है अक्षय नवमी, जिसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन किया गया पुण्य सदैव अक्षय रहता है। गुरुवार 31 अक्टूबर को यह पवित्र तिथि पड़ रही है तथा पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातःकाल से लेकर लगभग 10 बजे तक प्रमुख माना गया है। कार्तिक के देवता भगवान विष्णु तथा स्वास्थ्य का प्रतीक आंवला वृक्ष इस तिथि के केंद्र में रहते हैं। इसलिए इस दिन व्रत, दान और आंवले के वृक्ष की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है।

धर्म-शास्त्रों में अक्षय नवमी का स्थान

हिंदू धर्मग्रंथों में उल्लिखित है कि कार्तिक शुक्ल नवमी का पुण्य कभी क्षीण नहीं होता। यही कारण है कि इसका नाम अक्षय नवमी पड़ा। कहा गया है, “अक्षयम् पुण्यम् लभते, नवमी कार्तिके तु या।” पुराणों में इस दिवस से जुड़ी दो बड़ी मान्यताएँ मिलती हैं।

सतयुग का आरंभ : विश्व-निर्माण के चक्र में सतयुग की शुरुआत इसी नवमी तिथि से मानी गई है। इसलिए इसे सतयुगादि नवमी भी कहते हैं। सतयुग के समान पवित्र पुण्य-फल मिलने की भावना से यह व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।

विष्णु का आंवला-वृक्ष में निवास : वह कथा भी लोकप्रिय है जिसके अनुसार भगवान विष्णु ने इसी दिन कुष्माण्डक असुर का संहार किया। उस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने आंवले के वृक्ष की पूजा की। तब से आंवले में विष्णु का स्थायी निवास बताया गया है।

कई ग्रंथों में यह भी मिलता है कि स्वयं महा-लक्ष्मी ने आंवला-वृक्ष की पूजा कर समृद्धि का वरदान प्राप्त किया था। इसीलिए इस दिन आंवला-पूजन से घर-परिवार में सुख-समृद्धि और धन-धान्य की निरंतर वृद्धि होती है।

क्यों कहा जाता है इसे आंवला नवमी

आयुर्वेद के अनुसार आंवला त्रिदोषनाशक, प्रतिरक्षा-वर्धक और दीर्घायु का वरदान है। इसे अमृतफल भी कहा गया है। धर्म, स्वास्थ्य और पर्यावरण, तीनों का संगम इसे एक विशिष्ट पूजा दिवस बना देता है। “जहाँ वृक्ष-पूजा है, वहाँ जीवन की रक्षा है।” इस सिद्धांत के कारण भारत वर्ष में वृक्षों को देवतुल्य मानकर पूजा-अर्चना की परंपरा कायम रही है।

लाभ: अक्षय पुण्य और जीवन-समृद्धि

इस दिन व्रत और पूजा करने वाले भक्तों को निम्न फल प्राप्त होने की मान्यता है:

• अक्षय पुण्य की प्राप्ति
• धन-वृद्धि तथा लक्ष्मी-कृपा
• रोग-दोषों से मुक्ति
• संतान-सुख व परिवार की प्रगति
• दीर्घायु और आरोग्य
• हर क्षेत्र में उन्नति एवं विजय

ग्रामीण क्षेत्रों में यह मान्यता विशेष रूप से प्रचलित है कि जो इस दिन आंवले की पूजा करता है, उसके घर में अन्न और धन की कभी कमी नहीं रहती।

पूजा-विधि: परंपरा और शास्त्र की संगति

प्रातःकाल का स्नान और संकल्प

सुबह जल्दी उठकर गंगा-स्नान या घर में स्वच्छ स्नान
व्रत का संकल्प लेते हुए श्रीहरि व श्रीलक्ष्मी का ध्यान

पूजा-स्थापना

यदि आंवले का वृक्ष उपलब्ध हो तो उसके नीचे ही पूजा सर्वोत्तम मानी गई है। वृक्ष न हो तो आंवले के फल-पत्तों से पूजा की जा सकती है।

पूजा-सामग्री

* आंवला, जल-दूध
* रोली, कुमकुम, चंदन, अक्षत
* घी या तेल का दीप
* फूल-माला
* प्रसाद, मिठाई, सूखे मेवे
* कच्चा सूत (मौली)
* दान सामग्रियाँ: अन्न, वस्त्र, फल, धन आदि

पूजा-क्रम

1. आंवले के तने को जल-दूध से स्नान कराना
2. कुमकुम-हल्दी से तिलक
3. वृक्ष-तने पर मौली बाँधना
4. दीप-धूप से पूजा
5. वृक्ष की कम से कम 7 या 108 परिक्रमा
6. घर-परिवार की मंगल-कामनाएँ
7. ब्राह्मण-भोजन, दान और प्रसाद वितरण

भोजन-विधान

प्राचीन परंपरा के अनुसार, इस दिन आंवले के नीचे भोजन बनाकर खाने की प्रथा है। ऐसा माना गया है कि वृक्ष के नीचे भोजन करने से स्वास्थ्य-शक्ति दिव्य रूप से प्राप्त होती है।

कथा

आंवला नवमी की कथा प्रचलित है जिसमें लक्ष्मी जी ने विष्णु को प्रसन्न करने और संसार में लोक-कल्याण हेतु आंवले की पूजा की थी। देवी ने कहा कि यह वृक्ष संसार के स्वास्थ्य और संरक्षण का आधार बनेगा। विष्णु जी ने आनंदित होकर इसे “धर्म-वृक्ष” कहा और कहा – “जो भक्त इस वृक्ष की पूजा करेगा, उसके दरवाजे पर धन-धान्य और सुख-शांति सदा निवास करेंगे।” कथा-श्रवण के साथ शांति-पाठ किया जाता है और अंत में आरती सम्पन्न होती है।

मंत्र-जप

पूजा के दौरान निम्न मंत्रों का जप किया जा सकता है:

• “ॐ नमो नारायणाय”
• “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं लक्ष्मभ्यो नमः”
• “ॐ वासुदेवाय नमः”
• “ॐ आमलक्यै नमः”

मंत्र-जप श्रद्धा और भक्ति के साथ हो, यही सर्वोत्तम है।

आरती

आरती में भगवान विष्णु-लक्ष्मी के साथ आंवला वृक्ष को नमन किया जाता है। भक्त दीप-प्रज्ज्वलन कर “जय श्रीहरि-लक्ष्मी” तथा “आंवले की आरती” गाते हैं। प्रसाद रूप में आंवले का मुरब्बा, चूर्ण या फल वितरण किया जाता है।

वैज्ञानिक विश्लेषण: क्यों है यह पूजा आज भी प्रासंगिक

आंवला विज्ञान में सुपरफूड की श्रेणी में आता है। उपयोग के अनेक लाभ:

• अत्यधिक विटामिन-C का स्रोत
• एंटी-ऑक्सीडेंट गुण
• बाल, त्वचा और आँखों के लिए लाभकारी
• प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाने में सहायक
• मधुमेह और हृदय रोग में उपयोगी
• लंबे समय तक यौवन और ऊर्जा बनाए रखने में सहायक

वृक्ष-पूजा पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है। वृक्षों का सम्मान करने से मानव-प्रकृति के बीच संबंध मजबूत होते हैं। पूजा-विधि में परिक्रमा और दान-धर्म मानसिक सुकून, सकारात्मकता और सामाजिक समरसता को बढ़ाते हैं।

समाज और परंपरा का उत्सव

गाँवों और नगरों में इस दिन समूह-पूजा, सत्संग और कथा-कीर्तन की परंपरा जीवित रहती है। महिलाएँ विशेष रूप से इस व्रत का पालन करती हैं। जीवन-साथी की दीर्घायु और परिवार की समृद्धि के लिए वृक्ष-पूजन में पूरा परिवार सम्मिलित होता है।

धर्म, स्वास्थ्य और पर्यावरण की त्रिवेणी

कार्तिक शुक्ल नवमी केवल व्रत-पूजा का पर्व नहीं है। यह धर्म-पथ पर चलने का संदेश देता है। प्रकृति-सेवा का महत्व बताता है। स्वास्थ्य-संरक्षण की भारतीय परंपरा का उद्घोष करता है।

अक्षय नवमी का अर्थ ही है: जो पुण्य और जीवन-लाभ कभी समाप्त न हों। इस दिन आंवले की पूजा के साथ घर-परिवार में सदैव सुख-शांति और समृद्धि बनी रहे, ऐसी जन-भावना हर वर्ष उत्सव को और पवित्र बनाती है।

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Disclaimer:इस लेख में वर्णित धार्मिक मान्यताएँ, पूजा-विधि, कथा और सामाजिक परंपराएँ विभिन्न पौराणिक विश्वासों और भारतीय संस्कृति पर आधारित हैं। इनका उद्देश्य केवल पाठकों को जानकारी प्रदान करना है। पाठकों से निवेदन है कि किसी भी पूजा-पद्धति या धार्मिक आचरण का पालन अपने आस्था-भाव, स्थानीय परंपराओं और विद्वान/पूजारी की सलाह अनुसार करें। इस सामग्री को चिकित्सकीय, कानूनी या वैदिक परामर्श के विकल्प के रूप में न लें। समाचार संस्था लेख में दिए गए किसी भी धार्मिक या स्वास्थ्य संबंधी दावे की पुष्टि नहीं करती। सभी तस्वीरें और ग्राफिक्स प्रतीकात्मक एवं कलात्मक प्रस्तुति मात्र हैं।

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