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भगवान राम के जीवन और उनके आदर्शों से सीखने की आवश्यकता : उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली : उप-राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने नई पीढ़ी से अपने जीवन को सफल बनाने के लिए भगवान राम के जीवन और उनके द्वारा स्थापित किए गए आदर्शों से सीखकर आगे बढ़ने का आह्वान किया। पुस्तक थवास्मि: रामायण के संदर्भ से जीवन और कौशल का लोकार्पण करने के अवसर पर श्री नायडू ने कहा कि भगवान राम का जीवन, वचन और कर्म यह दर्शाते हैं कि कैसे किसी का जीवन सत्य और धर्म पर आधारित हो सकता है। उन्होंने कहा कि उनके पिता, माता, भाइयों, पत्नी, मित्रों और शत्रुओं तथा गुरुओं के साथ संबंध यह प्रतिमान स्थापित करते हैं कि कोई आदर्श पुरुष किस प्रकार से जीवन की हर चुनौती का धैर्यपूर्वक सामना करता है तथा और सशक्त होकर उभरता है।

भगवान राम के मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि श्री राम ने आदर्श शासन के प्रतिमान स्थापित किए और सदैव जनता के हृदय में बसते रहे। उन्होंने रामायण को एक अमर महाकाव्य की संज्ञा दी और कहा कि भारत के विविधतापूर्ण सांस्कृतिक ताने-बाने में गूंथा हुआ है यह महाकाव्य सदियों से विभिन्न कवियों और रचनाकारों को विभिन्न भाषाओं में रामायण को रूपांतरित करने के लिए प्रेरित करता रहा है। उप-राष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया में इसके समान कोई भी धर्मग्रंथ नहीं होगा जिसे इतनी अधिक संख्या में रूपांतरित किया गया होगा, गाया गया होगा और प्रचारित किया गया होगा। उन्होंने कहा कि वाल्मीकि रामायण सिर्फ आदि काव्य नहीं है बल्कि यह अनादि काव्य है क्योंकि यह समय से परे है यह अमर है और यह जीवन के किसी भी संदर्भ में अपना महत्व नहीं खोता है।

उप-राष्ट्रपति ने कहा कि यह अध्येताओं, आम लोगों और अशिक्षित लोगों में समान रूप से महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि रामायण युवाओं और वृद्धों सभी को सकारात्मक विचारों के साथ जीवन को पूर्ण ढंग से जीने हेतु प्रेरित करता है। उन्होंने उल्लेख किया कि हम सत्य, धर्म और सौहार्द की बुराई, कटुता, व्यभिचारी हिंसा पर विजय का उत्सव मनाते हैं। श्री नायडू ने रामायण के उस प्रसंग का उल्लेख किया जिसमें लंका विजय के उपरांत लक्ष्मण भगवान राम से लंका में ही रुकने की विनती करते हैं। परंतु भगवान श्री राम कहते हैं जननीजन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात मातृभूमि का महत्व स्वर्ग से भी बढ़कर है। श्री नायडू ने लोगों से इस प्रसंग से प्रेरित होते रहने का आह्वान कि आप देश और दुनिया के किसी भी कोने में रहें और कोई भी रोज़गार या पद प्राप्त कर लें लेकिन मातृ भूमि को कभी भी विस्मृत होने ना दें।

थवास्मि… पुस्तक चार भागों में है और ऊर्जावान 4 युवाओं के एक दल ने वर्षों के लंबे शोध और अध्ययन के उपरांत तैयार प्रकाशित किया गया है। इसमें रामायण की कथा को पिता-पुत्री संवाद के रूप में रोचक ढंग से पिरोया गया है, जो एक अच्छा सीखने का अनुभव है। दादी-नानी की कहानियों की लुप्त होती परंपरा पर चिंता जताते हुए उप-राष्ट्रपति ने कहा कि इसी परंपरा को पुनः जीवित करने का प्रयास है ‘थवास्मि’। उन्होंने कहा कि यह 4 पुस्तकें रात में सोने से पहले पढ़ी और सुनी जाने वाली कहानियों के संदर्भ में भी बेहद उपयोगी होंगी। उन्होंने इन पुस्तकों के लेखक श्री रल्लाबंडी श्रीरामा चक्रधर, सह लेखिका अमारा सारदा दीप्ति सहित थवास्मि जैसी पुस्तक प्रकाशित करने वाली टीम के सभी सदस्यों को शुभकामनाएं दी। ऑनलाइन माध्यम से आयोजित इस कार्यक्रम में पूर्व केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी, पुस्तक के लेखक आर श्रीरामा चक्रधर, सह लेखिका अमारा सारदा दीप्ति, थवास्मि पुस्तक प्रकाशित करने दल के अन्य सदस्य, विभिन्न विद्यालयों के छात्र और शिक्षकों समेत अनेक लोगों ने हिस्सा लिया।

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