
दो युग, दो नायक – महेन्द्र कुमार शर्मा और अमोल मुझुमदार ने गढ़ी भारतीय महिला क्रिकेट की विजयगाथा
भारत की महिला क्रिकेट टीम की 2025 की विश्व कप जीत के पीछे दो महान व्यक्तित्वों की प्रेरक कहानी छिपी है -लखनऊ के शिक्षक और खेल प्रशासक महेन्द्र कुमार शर्मा, जिन्होंने 1973 में महिला क्रिकेट संघ (WCAI) की स्थापना कर बेटियों के खेल को जन्म दिया, और कोच अमोल मुझुमदार, जिन्होंने अपने अधूरे खिलाड़ी सपनों को बेटियों की जीत में तब्दील कर दिया। एक ने नींव रखी, दूसरे ने स्वर्ण मुकुट चढ़ाया।इन दोनों ने साबित किया - अवसर मिले तो बेटियाँ सिर्फ़ खेलती नहीं, इतिहास रचती हैं।
- लखनऊ के शिक्षक महेन्द्र कुमार शर्मा ने 1973 में महिला क्रिकेट की नींव रखी, और 2025 में कोच अमोल मजूमदार ने उसी सपने को विश्व कप जीत में बदल दिया – एक ने बेटियों को बल्ला थमाया, दूसरे ने उन्हें विश्वविजेता बनाया।
भारत की सड़कों, सोशल मीडिया और मैदानों में आज एक ही चर्चा है – भारत की बेटियों ने विश्व कप जीत लिया! कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर कोने में गर्व और उत्साह का माहौल है। लेकिन इस शोर-शराबे के बीच दो नाम ऐसे हैं, जिन्हें इतिहास की रौशनी में लाना जरूरी है – महिला क्रिकेट के संस्थापक महेन्द्र कुमार शर्मा और कोच अमोल मजूमदार ।
एक ने 1973 में सपना देखा था, जब किसी ने सोचा भी नहीं था कि भारत में बेटियाँ क्रिकेट खेलेंगी। दूसरे ने उस सपने को 2025 में सच कर दिखाया, जब भारत की बेटियाँ विश्व कप की ट्रॉफी लेकर तिरंगा लहरा रही थीं। दोनों की कहानियाँ भारत के खेल इतिहास की रीढ़ हैं – संघर्ष, समर्पण और संकल्प की वो मिसालें जो आज हर युवा को प्रेरित करती हैं।
महेन्द्र कुमार शर्मा – वो नाम, जिसने बेटियों को बल्ला थमाया
लखनऊ से शुरू हुआ एक क्रांति का बीज : 1970 का दशक – जब भारत में क्रिकेट का नाम सुनते ही सबकी नज़र पुरुष खिलाड़ियों की ओर उठती थी। न महिलाएँ मैदान पर दिखती थीं, न उनके लिए कोई टूर्नामेंट होता था। इसी समय लखनऊ के एक शिक्षक और खेल-प्रेमी महेन्द्र कुमार शर्मा ने समाज की इस सोच को चुनौती दी। 1973 में उन्होंने विमेन्स क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WCAI) की स्थापना की – यह उस दौर का सबसे साहसिक कदम था। कोई सरकारी फंड नहीं, कोई स्पॉन्सर नहीं, फिर भी उन्होंने बेटियों के लिए मैदान तैयार किया। उनकी यह पहल सिर्फ़ खेल नहीं थी, एक सामाजिक क्रांति थी।
पहला संगठन, पहली उम्मीद
अप्रैल 1973 में पुणे में पहला महिला इंटर-स्टेट टूर्नामेंट हुआ। शर्मा जी स्वयं हर चीज़ देखते – बॉल से लेकर बिस्तर तक, यात्रा से लेकर जर्सी तक। वो कहते थे – “खेल किसी लिंग से नहीं, लगन से जन्म लेता है।” साल के अंत में उन्होंने वाराणसी में दूसरा राष्ट्रीय टूर्नामेंट आयोजित कराया। पहली बार भारत के कई राज्यों की महिलाएँ संगठित रूप से क्रिकेट खेलने आईं। यहीं से भारतीय महिला क्रिकेट की यात्रा शुरू हुई।
लखनऊ के शिक्षक, जिनकी सोच सीमाओं से बड़ी थी
महेन्द्र कुमार शर्मा उत्तर प्रदेश के लखनऊ के निवासी थे। पेशे से शिक्षक, पर दिल से खेल-प्रेमी। उन्होंने अपने छात्रों को पढ़ाई के साथ खेल की प्रेरणा दी। उनका मानना था – “महिला खिलाड़ियों को अवसर नहीं मिलता, वरना उनमें जीतने की क्षमता पुरुषों से कहीं अधिक है।” 1973 में उनके नेतृत्व में भारत को इंटरनेशनल विमेन्स क्रिकेट काउंसिल (IWCC) की सदस्यता मिली – इससे भारत की महिला टीम को वैश्विक पहचान मिली। उनकी टीम में बेगम हुमैदा हबीबुल्लाह (पहली अध्यक्ष) और सांसद प्रमीलाबाई चव्हाण जैसी महिलाएँ थीं। उनका उद्देश्य सिर्फ़ क्रिकेट नहीं था – बल्कि महिलाओं को समाज में आत्मविश्वास और सम्मान दिलाना भी था।
गुमनामी में खो गया एक युग
2006 में जब बीसीसीआई ने महिला क्रिकेट को अपने अधीन लिया, तो किसी ने इस व्यक्ति का नाम तक नहीं लिया – वही व्यक्ति जिसने इस खेल को जन्म दिया था। न किसी बोर्ड ने सम्मान दिया, न मीडिया ने ज़िक्र किया। 2022 में जब महेन्द्र कुमार शर्मा का पुणे में निधन हुआ, तो क्रिकेट की दुनिया में कोई औपचारिक श्रद्धांजलि नहीं दी गई। लेकिन 2025 की रात, जब भारत की बेटियाँ विश्व कप जीत रहीं थीं – उनकी आत्मा ने जरूर मुस्कराया होगा।
“महेन्द्र कुमार शर्मा स्मृति पुरस्कार” – अब ज़रूरत बन चुका है
आज भारतीय महिला क्रिकेट जिस ऊँचाई पर है, उसकी जड़ें उसी व्यक्ति की मिट्टी में हैं। बीसीसीआई को चाहिए कि वह उनके नाम पर “महेन्द्र कुमार शर्मा स्मृति पुरस्कार” शुरू करे – ताकि आने वाली पीढ़ियाँ जान सकें कि भारत में महिला क्रिकेट का पहला सपना किसने देखा था। “अगर लखनऊ के उस छोटे से कमरे में 1973 में महेन्द्र कुमार शर्मा वह दस्तावेज़ दाखिल न करते – तो शायद 2025 की वह ऐतिहासिक रात न आती, जब भारत की बेटियाँ विश्व कप जीतकर इतिहास लिख रही थीं।”
अमोल मजूमदार- वो कोच, जिसे खिलाड़ी के रूप में मौका नहीं मिला, पर इतिहास में मिला स्थान
प्रतिभा दबाई जा सकती है, मिटाई नहीं जा सकती : अमोल मजूमदार का नाम भारतीय क्रिकेट की उस फेहरिस्त में आता है, जहाँ “अनदेखी गई प्रतिभाओं” की कहानी दर्ज है। मुंबई के रणजी स्टार, 11,000 से अधिक प्रथम श्रेणी रन, पर भारतीय टीम में जगह नहीं मिली। उनकी बल्लेबाज़ी का रिकॉर्ड सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और लक्ष्मण जैसे दिग्गजों के बराबर था,लेकिन चयनकर्ताओं ने उन्हें कभी ‘इंडिया कैप’ नहीं दी। उन्होंने कभी शिकायत नहीं की, बस मुस्कराकर कहा था – “शायद भगवान ने मुझे किसी और बड़ी भूमिका के लिए बचा कर रखा है।”
दर्द से जन्मी कोचिंग की दृष्टि
2023 में बीसीसीआई ने उन्हें महिला क्रिकेट टीम का मुख्य कोच नियुक्त किया। उन्होंने कहा – “मैं अब उन बेटियों के लिए काम करूँगा, जो मेरे जैसे किसी मौके से वंचित न रहें।” उन्होंने टीम को सिर्फ़ तकनीक नहीं सिखाई, सोच सिखाई। फिटनेस, रणनीति और मानसिक मजबूती – तीनों को एक साथ जोड़ा। खिलाड़ियों को डर से नहीं, आत्मविश्वास से खेलने की आदत डाली। उन्होंने कहा था – “जीतने के लिए केवल बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी नहीं, एक स्पष्ट सोच चाहिए। हर खिलाड़ी को अपने अंदर की शक्ति पहचाननी होगी।”
2025 – जब कोच का सपना पूरा हुआ
अमोल मजूमदारके नेतृत्व में भारतीय महिला टीम ने इतिहास रचा। शेफाली वर्मा, दीप्ति शर्मा, हरमनप्रीत कौर – हर खिलाड़ी में उन्होंने वो आत्मविश्वास जगाया जो जीत का असली कारण बना। 2 नवम्बर 2025 की रात जब भारत विश्व चैंपियन बना, तो मुझुमदार ड्रेसिंग रूम में चुपचाप बैठे थे। किसी ने पूछा – “सर, आप भावुक क्यों हैं?” उन्होंने मुस्कराते हुए कहा – “क्योंकि मुझे आज भारतीय जर्सी नहीं, भारत की बेटियों की आँखों में जीत दिखी है।”
अमोल मजूमदार – वो कोच, जिसने हार को हौसले में बदला
उनकी कोचिंग में भारतीय महिला क्रिकेट ने सिर्फ़ मैच नहीं, बल्कि मानसिकता जीती। उन्होंने साबित किया – “खेल में सबसे बड़ी ताकत बल्ला या गेंद नहीं, आत्मविश्वास होता है।”
दो पीढ़ियाँ, एक विचार – ‘बेटियों को मौका दो’
एक ने 1973 में नींव रखी, दूसरे ने 2025 में उस नींव पर ताज सजाया। महेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा था – “बेटियाँ खेलेंगी, तो समाज मुस्कराएगा।” अमोल मजूमदार ने इसे साबित किया – “बेटियाँ जीतेंगी, तो देश झूम उठेगा।”
“महेन्द्र कुमार शर्मा ने शुरुआत की, अमोल मजूमदारने उसे मुकाम दिया। एक ने सपना बोया, दूसरे ने उसे फसल बना दिया। यह कहानी सिर्फ़ क्रिकेट की नहीं, भारत के विश्वास की कहानी है – कि जब बेटियों को मौका मिलता है, तो वे इतिहास लिखती हैं।”
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