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विधायिका में महिला अरक्षण लैंगिक न्याय के क्षेत्र में सबसे बड़ी क्रांति ला सकता है:मुर्मु

नयी दिल्ली : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने बुधवार को कहा कि लोक सभा और राज्य विधान सभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण का कानून ‘लैंगिक न्याय’ (महिलाओं को सशक्त करने) की दिशा में हमारे समय का सबसे बड़ा परिवर्तनकारी क्रांति होगा।श्रीमती मुर्मु ने यहां मानवाधिकारों पर एशिया प्रशांत फोरम की वार्षिक आम बैठक और द्विवार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा, “हमने स्थानीय निकायों के चुनावों में महिलाओं के लिए न्यूनतम 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित किया है और एक सुखद संयोग में, राज्य विधानसभाओं, संसद में महिलाओं के लिए इसी प्रकार का आरक्षण देने का प्रस्ताव अब आकार ले रहा हैं।

”राष्ट्रपति ने इस विधेयक के बारे में कहा,“यह हमारे समय में लैंगिक न्याय के लिए सबसे बड़ी परिवर्तनकारी क्रांति होगी।”उल्लेखनीय है कि सरकार ने विधायिका में महिला आरक्षण के प्रावधान के लिए नारी शक्ति वंदन विधेयक, 2023 के नाम से भारतीय संविधान में 128वें संशोधन विधेयक को लोक सभा में मंगलवार को प्रस्तुत किया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने सभी से आग्रह किया कि वे मानवाधिकारों के मुद्दे को अलग-थलग न करें, बल्कि मानव के अविवेक से बुरी तरह आहत मातृ प्रकृति की देखभाल के बारे में भी उतना ही ध्यान दें। उन्होंने कहा,“ भारत में हम यह मानते हैं कि ब्रह्मांड का प्रत्येक कण दिव्यता की अभिव्यक्ति है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए अपने प्रेम को फिर से जगाना चाहिए।

”राष्ट्रपति ने कहा कि भारत मानवाधिकारों में सुधार के लिए दुनिया के अन्य भागों की सर्वोत्तम प्रथाओं से सीख लेने के लिए तैयार है, जो एक मौजूदा परियोजना है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया भर के मानवाधिकार संस्थानों और हितधारकों के साथ विचार-विमर्श और परामर्श के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय सहमति विकसित करने में एशिया प्रशांत क्षेत्र फोरम को बड़ी भूमिका निभानी है।राष्ट्रपति ने मानवाधिकारों पर एशिया प्रशांत फोरम की बैठक में यह भी कहा,“ हमारे संविधान ने गणतंत्र की स्थापना से ही सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया और हमें लैंगिक न्याय, जीवन और सम्मान की सुरक्षा के क्षेत्र में अनेक मूक क्रांतियों को शुरू करने में भी सक्षम बनाया है।

”श्रीमती मुर्मु ने कहा कि मानव जितना अच्छा निर्माता है उतना ही विध्वंसक भी है। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, यह ग्रह विलुप्त होने के छठे चरण में प्रवेश कर चुका है, इसलिए मानव निर्मित विनाश को अगर रोका नहीं गया, तो न केवल मानव जाति, बल्कि इस पृथ्वी पर अन्य जीवन भी नष्ट हो जाएंगे। संहिताबद्ध कानून से अधिक मानवाधिकारों को प्रत्येक अर्थ में सुनिश्चित करना अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का नैतिक दायित्व है।राष्ट्रपति ने यह जानकर प्रसन्नता जाहिर की कि इस सम्मेलन में एक सत्र विशेष रूप से पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विषय के लिए समर्पित है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह सम्मेलन एक व्यापक घोषणापत्र लेकर आएगा जो मानवता और ग्रह की बेहतरी का मार्ग प्रशस्त करेगा।(वार्ता)

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