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योगी सरकार और हिंदुजा की पहल से मोटर सिटी भी हो सकता है नवाबों का शहर

डेट्रायट बनने की रेस में लखनऊ

किसी जमाने में फोर्ड और मोटर कार एक दूसरे के पर्याय थे। हेनरी फोर्ड नामक एक अमेरिकी उद्यमी ने वहां के डेट्रायट शहर में वाहन बनाने की एक इकाई लगाई। दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह शहर न सिर्फ मोटर कारों का बल्कि अन्य कामर्शियल वाहनों के उत्पादन का प्रमुख केंद्र बन गया। बड़ी संख्या में मुख्य इकाइयों और अनुषांगिक इकाइयों में निवेश हुए। बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिला।

आटो इंडस्ट्री के जरिये यही प्रयास हिंदुजा समूह से मिलकर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार भी करने जा रही है। पिछले दिनों इसी बाबत मुख्यमंत्री की मौजूदगी में धीरज हिंदुजा समूह के स्वामित्व वाली लीलैंड कंपनी से 1500 करोड़ रुपये का मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमोयू) हुआ। यह एमओयू इलेक्ट्रिकल कमर्शियल वाहनों के लिए हुआ। खास बात यह है कि प्रदेश सरकार ने इलेक्ट्रिकल कमर्शियल वाहनों के उत्पादन के लिए पहली बार किसी औद्योगिक घराने से ऐसा (एमओयू) किया है। फिलहाल कंपनी और सरकार का संबंधित विभाग, इसके लिए जमीन तलाश रहे हैं। अधिक संभावना यह है कि प्रस्तावित इकाई लखनऊ के बंद पड़ी स्कूटर्स इंडिया की खाली जमीन पर लगेगी। हालांकि प्रयागराज में भी जमीन देखी गई है।

यूपी में किसी दिग्गज ऑटो कंपनी का यह पहला निवेश होगा

अगर लखनऊ में हिंदुजा का यह प्लांट लगा तो भविष्य में नवाबों का यह शहर डेट्रायट की तरह मोटरसिटी के रूप में भी जाना जाएगा। यही नहीं हाल के वर्षों गुजरात और दक्षिण भारत को छोड़ दें तो उत्तर प्रदेश में किसी दिग्गज आटो कंपनी का यह पहला और बड़ा निवेश होगा। इसके पहले पश्चिम बंगाल के कोलकाता में अंबेसडर और हरियाणा के मानेसर में मारुति सुजुकी ने इस सेक्टर में बड़ा निवेश किया था।

बड़े पैमाने पर मिलेंगे रोजगार

उल्लेखनीय है की इस तरह का महत्वाकांक्षी निवेश निवेशक के लिए तो लाभप्रद होता ही है इसमें बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार भी मिलता है। मुख्य इकाई के साथ कल पुर्जे बनाने वाली स्थानीय इकाइयों और तैयार वाहनों के ले जाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन के भी क्षेत्र में। हिंदुजा की इकाई लगने से ये सारे लाभ उत्तर प्रदेश खासकर जहां यह इकाई लगेगी वहां के लोगों को होंगे। प्रस्तावित इकाई में कमर्शियल इलेक्ट्रिकल वाहन ही बनेंगे। भविष्य में प्रदूषण के मद्देनजर सरकार का पूरा फोकस ऐसी ही वाहनों की ओर है क्योंकि सरकार भविष्य में ऐसे ही वाहनों के संचलन के पक्ष में है। इस इकाई से स्थानीय जरूरत के बाद अन्य प्रदेशों एव देशों में भी इनका निर्यात हो सकेगा।

एक ट्रिलियन अर्थवयस्था के लक्ष्य में भी मिलेगी मदद

वैश्विक महामारी कोरोना के कहर के बाद से सर्वाधिक तेजी से उभरे सेक्टर्स में ऑटो इंडस्ट्री ही है। आंकड़ों के मुताबिक जीडीपी की वृद्धि में ऑटोमोबाइल उद्योग का बहुत बड़ा योगदान होता है। देश की कुल जीडीपी में इस सेक्टर का योगदान करीब 21 फीसद है। करीब दो करोड़ लोगों को इस सेक्टर में रोजगार मिला हुआ है। सेक्टर के प्रगति की दर यही रही तो 2030 तक इस क्षेत्र में करीब पांच करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा। तब इसमें उत्तर प्रदेश का का भी एक बड़ा योगदान होगा। यह एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थवयस्था का लक्ष्य हासिल करने में भी मददगार होगा।

एक नजर में देश की ऑटो इंडस्ट्री

भारत इस समय दुनिया में ट्रैक्टर उत्पाद में नंबर एक, बस उत्पादन में नंबर दो और भारी ट्रक उत्पादन करने में तीसरे नंबर पर है। अनुमान है कि अगले कुछ वर्षों में भारत ई-कारें उत्पादित करने के मामले में तीसरे नंबर पर होगा। इन कारों की बिक्री बढ़ने का बड़ा कारण इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन में वृद्धि के साथ घटती कीमतें होंगी। यह इस सेक्टर में क्रांति जैसी होगी। और इस क्रांति में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल और दूरदर्शिता से उत्तर प्रदेश एक अहम किरदार होगा।

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