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पिनराई विजयन प्रधानमंत्री मटेरियल क्यों नहीं !

  • विजय शंकर पांडेय

पांच राज्यों के चुनावी नतीजे आ चुके हैं. पश्चिम बंगाल में तो ममता बनर्जी ने बतौर मुख्यमंत्री तीसरी बार शपथ भी ले लिया है. उधर, केरल समेत बाकी राज्यों में भी इसी हफ्ते सरकार के गठन की प्रक्रिया पूरी हो जाने के आसार हैं. बंगाल में टीएमसी की ऐतिहासिक जीत के बाद ममता बनर्जी में कुछ लोगों को राष्ट्रीय नेतृत्व का अक्स दिखने लगा है, मगर हैरत की बात तो यह है कि जबरदस्त कामयाबी के बाद भी पिनराई विजयन की इस स्तर पर कोई चर्चा तक नहीं हो रही है. क्या इसकी वजह उत्तर भारत का दक्षिण भारत पर वर्चस्व कायम रखने की मानसिकता है? क्या आपको नहीं लगता पिनराई विजयन को अंडरस्टीमेट कर आंकना दूसरा हिस्टॉरिकल ब्लंडर साबित हो सकता है?

ममता की जीत के निहितार्थ

पश्चिम बंगाल के चुनावी नतीजों पर गौर करें तो उसके कई निहितार्थ है. मसलन बीते दस साल में ममता की वह कौन सी उपलब्धियां हैं, जो तीसरी बार उन्हें सत्ता में लौटने का मार्ग प्रशस्त कर सकती थी? बंगाल चुनाव में जनहित के मुद्दे सुर्खियां नहीं बटोर सकी. कारण, प्रचारजीवी भाजपा को यह सब सूट नहीं करता. इंटरनेशल मीडिया में जो मैसेज है, वह यह कि यह लड़ाई सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ी गई. खुद ममता ने नतीजों के बाद कहा कि बंगाल के वोटरों ने भारत को बचाया है. जब भाजापाई लॉलीपॉप थमा रहे थे तो देश भर में राहुल सांप्रदायिकता के खिलाफ अलख जगा जमीन तैयार कर रहे थे. खुद ममता बार बार बंगाली जनमानस को इस लिहाज से सचेत कर रही थी और यह नुस्खा काम कर गया. ध्रुवीकरण की आस में भाजपा का आक्रामक चुनावी प्रचार आग में घी का काम किया. बांग्लादेश में दंगा भी बंगाल में अपना प्रभाव छेड़ा. सांप्रदायिकता के खिलाफ पूरा वोट ममता की झोली में गिरा. मगर राष्ट्रीय स्तर पर वैचारिक स्तर सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ कौन रहा है? राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस. बंगाल में ममता बनर्जी उसी कांग्रेस की स्कूली छात्रा हैं. इसलिए जो विद्वान इस मुगालते में हैं कि बंगाल कांग्रेस और वाममोर्चा मुक्त हो गया, वे दिवास्वप्न देख रहे हैं, ममता की यह जीत प्रकारांतर में कांग्रेस व वाममोर्चा की ही वैचारिक जीत है. क्योंकि बंगाल में तृणमूल ही भाजपा के खिलाफ सबसे सशक्त वैचारिक दावेदार थी.

नतीजों ने सारे एग्जिट को झुठला दिया

असल में नेशनल मीडिया को एक विपक्ष के चेहरे की जल्दी है. वे कभी केजरीवाल में तो कभी नीतीश कुमार में पीएम मटेरियल देखने लगते हैं. कारण, राहुल गांधी उनके आका को सूट नहीं करते. नतीजों ने सारे एग्जिट को झुठला दिया है. सो अब फोकस ममता पर है. इतिहास पर गौर कीजिए तो बंगाली जनमानस ज्योति बसु के संन्यास और ममता की बढ़ती लोकप्रियता के बाद भी वाममोर्चा को पर्याप्त मौका दिया था. क्योंकि भद्रोलोगों की नजर में ममता एक उम्दा नेता प्रतिपक्ष भले हो, उनकी छवि एक अराजक राजनेता की थी.

और छलक पड़ा ममता का वामपंथ ‘प्रेम’

लोकतंत्र में विपक्ष की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इस बात को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बड़ी शिद्दत से महसूस करती हैं. शपथ ग्रहण के तत्काल बाद प्रेस से मुखातिब मुख्यमंत्री ने पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा की स्थिति पर खेद जताया. बल्कि उन्होंने कहा कि इनसे (उनका इशारा भाजपा की तरफ था) बेहतर तो वामपंथी हैं ही. गौरतलब है कि ममता की राजनीतिक पूंजी है तीन दशक के वाममोर्चा शासन को उखाड़ फेंकना. बल्कि माना यह जाता है कि ज्योति बसु की भांति लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी ममता बनर्जी की बरकरार लोकप्रियता की मूल वजह है, कम्युनिस्टों सरीखी लाइफ स्टाइल. सूती साड़ी और हवाई चप्पल की ब्रांडिंग इस बात की तस्दीक करती है. वह आज भी कालीघाट (कोलकाता) स्थित अपने सामान्य से घर में रहती हैं. बल्कि सिंगुर-नंदीग्राम में जो आंदोलन हुआ, जिसके सहारे ममता बनर्जी ने लाल दुर्ग ढहा दिया, वह काम वामपंथियों के कैरेक्टर से मेल खाता है.

हैंडलूम वर्कर ने आखिरकार रचा इतिहास

बहरहाल वाममोर्चा ने इस बार इतिहास रचा है केरल में. चार दशक बाद किसी सत्तारूढ़ दल की सत्ता में वहां पुनर्वापसी हुई है. यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है. इसका सारा श्रेय जाता है वहां के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को और इसके अपने राजनीतिक निहितार्थ हैं. पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्टों को उबरना है तो मुंडू अर्थात धोती पहनने वाले पिनराई विजयन जैसा नेतृत्व तलाशना होगा. नेतृत्व के मामले में उनकी तुलना नरेंद्र मोदी या फिर जोसेफ़ स्टालिन से की जाती है. कन्नूर जिले के गरीब परिवार में 21 मार्च 1944 में जन्मे विजयन की स्कूली पढ़ाई पेरलास्सेरी हाई स्कूल में संपन्न हुई. इसके बाद ब्रेनन कॉलेज से बारहवीं की पढ़ाई की. स्कूल की पढ़ाई खत्म करते ही उन्होंने हैंडलूम वर्कर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था. वहां मजदूरों पर हो रहे अत्याचार व शोषण को बर्दाश्त नहीं कर पाए और तभी उनके लिए कुछ करने का मन में ठान लिया था. पिनराई विजयन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो के सदस्य हैं. आज नतीजा आपके सामने है.

पार्टी और प्रशासन में बड़ी चतुराई से व्यापक फेरबदल

केरल की जीत वाममोर्चा (एलडीएफ) से कहीं ज्यादा, पिनराई विजयन की मानी जा रही है. विजयन ने पार्टी और प्रशासन में बड़ी चतुराई से व्यापक फेरबदल और सुधार किया. राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि अब सीपीएम पुराने नेताओं की पार्टी नहीं रह गई है. उन्होंने पार्टी के विस्तार को लेकर अलग रणनीति अपनाई, जिसमें वह काफी हद तक सफल रहे हैं. विजयन की सख्त सीएम की छवि के चलते अधिकारी और राजनेता उनके सामने मुंह खोलने से भी कतराते हैं. इस लिहाज से आप चाहे तो उनकी तुलना सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कर सकते हैं.

600 वादों में 570 को पूरा किया

विजयन सरकार ने अपनी लोक कल्याण की नीतियों और विशेष तौर पर आपदा प्रबंधन की कुशलता से लोगों का दिल जीत लिया. इसमें महत्वपूर्ण है हर साल प्रगति रिपोर्ट जारी करने की पहल. 2016 वोटरों से किए गए 600 वादों में 570 को पूरा किया. डंके की चोट चुनाव के दौरान वोटरों को इसकी जानकारी दी. विजयन ने चार मिशन लाइफ, अराद्रम, हरिता केरलम और एजुकेशन मिशन चलाए. लाइफ के तहत दो लाख से ज्यादा बेघरों के घर बनवाए. हरिता के तहत तालाब, झीलों और नदियों की सफाई का अभियान चला. एजुकेशन मिशन में एक हजार स्कूलों को अंतराष्ट्रीय स्तर का बनाया गया. देश में केरल पहला राज्य है जहां ट्रांसजेंडर को आरक्षण मिला है. इसी तरह देश में पहली बार केरल में बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए पूरे महिला पुलिस दल वाले पिंक पेट्रोल का गठन किया गया. साल 2020 तक केरल पूरी तरह से विद्युतीकरण और पूर्णतया खुले में शौच से मुक्त राज्य बना.

एंटी कम्बेसी जैसा कुछ नजर नहीं आया

गौरतलब यह भी है कि विजयन ने भ्रष्टाचार के आरोपों को नजरअंदाज कर कोरोना आपदा के दौरान सामाजिक सुरक्षा पेंशन और राशन किट जैसे लोककल्याणकारी फैसले किए. विजयन का नाम 2020 के गोल्ड स्मगलिंग केस में भी उछला. उनके प्रधान सचिव को गिरफ्तार किया गया. मगर विजयन ने केंद्रीय एजेंसियों को आरोप सिद्ध करने की सीधी चुनौती दी. इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा वोटरों पर. विजयन की अगुवाई में लेफ्ट ने इस बार दो बार से विधायक रहे सभी पार्टी नेताओं के टिकट बदल दिए. नतीजों पर गौर करें तो आपको एंटी कम्बेसी जैसा कुछ नजर नहीं आएगा. 2016 के विधानसभा चुनावों में एलडीएफ़ ने 140 सदस्यों वाले सदन में 91 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी, इस बार उसने 93 सीटों पर जीत हासिल की है.

विजयन की क्राइसिस मैनेजर की भूमिका को जमकर सराहा गया

विजयन ने पिछले कुछ वर्षों में जब भी जरूरत पड़ी, मजबूती से राज्य का नेतृत्व किया. 2017 के साइक्लोन ओक्ची, 2018 में निपाह वायरस, 2018-19 की भयंकर बाढ़ और 2020 में कोरोना वायरस के नियंत्रण में उनकी क्राइसिस मैनेजर की भूमिका को जमकर सराहा गया. चुनावी रणनीति के मामले में एलडीएफ के पास न तो राज्य स्तर पर, ना ही केंद्रीय नेतृत्व के स्तर पिनराई विजयन से मुकाबला करता कोई दूसरा चेहरा था. बल्कि विजयन ही सीधे अपने वोटरों से बतौर स्टार प्रचारक संवाद करते और अपनी उपलब्धियां बताते मिले.

कांग्रेस के वोट बैंक में सीधे सेंधमारी

राज्य के अल्पसंख्यकों के बीच भी उन्होंने गजब का सामंजस्य बैठाया और सीपीएम के हिंदू पार्टी की छवि को तोड़ उनके बीच जबरदस्त पकड़ बनाई. माना जा रहा है कि राज्य के 27 फीसदी मुसलमानों और 17 फीसदी इसाइयों के बीच उनकी छवि बेहतर है. यह कांग्रेस के वोट बैंक में सीधे सेंधमारी सरीखा कदम है. इस मामले में विपक्ष के पास विजयन को चुनौती देता कोई चेहरा नहीं था, इसकी तुलना आप चाहे तो मोदी के सोशल इंजीनियरिंग और नेतृत्व कौशल से कर सकते हैं.

कामयाबी का राज है समाजवादी बाज़ारवादी रवैया

पार्टी के लिए फ़ंड जुटाने की उनकी जुगत की भी तारीफ करनी पड़ेगी. उन्होंने बड़ी फ़ुर्ती से ‘चीन वाली लाइन’ पकड़ी. उनकी कामयाबी का राज है समाजवादी बाज़ारवादी रवैया. उन्होंने बाजार अर्थव्यवस्था के साथ केरल के संबंध मजबूत करने की भरसक कोशिश की. उन्होंने प्रदेश में लोक कल्याणकारी फैसलों के साथ-साथ बाजारवाद का मॉडल अपनाकर वामपंथी परंपराओं से परे एक नई शासन व्यवस्था गढ़ने की कोशिश की है, जिसकी आप चाहे तो तारीफ करें या आलोचना, मगर विजयन के वोटरों ने उन्हें हाथोंहाथ लिया.

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