राजीव गांधी के प्रस्ताव पर सीएम बीर बहादुर को महंत अवेद्यनाथ ने क्या दिया था जवाब
राम मंदिर के भूमि पूजन की पांचवी सालगिरह पर विशेष
बात उन दिनों की है, जब राम मंदिर आंदोलन शुमार पर था। कांग्रेस दोहरी रणनीति पर काम करना चाहती थी। एक ओर वह चाहती थी कि नाराज हो रहे बहुसंख्यक हिंदू समाज को खुश करने के लिए राम मंदिर बन जाय। दूसरी ओर वह अल्पसंख्यकों को नाराज भी नहीं करना चाहती थी। ऐसे में उसे ही सारा श्रेय मिल जाता। आंदोलन से सदियों से जुड़े और मंदिर आंदोलन को निर्णायक ऊंचाई तक ले जाने वालों के हिस्से में शायद कुछ भी नहीं आता।इसके लिए वही फूट डालो की रणनीति अपनाई गई। उस समय स्वर्गीय राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री, वीरबहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ मंदिर आंदोलन के शीर्षस्थ और सर्वस्वीकार्य नेताओं में से एक थे।
संयोग से बीर बहादुर सिंह और अवेद्यनाथ गोरखपुर के थे। दोनों के रिश्ते भी अच्छे थे। ऐसे में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कहने पर वीरबहादुर ने अवेद्यनाथ से मिलने की इच्छा जताई। दोनों की लखनऊ में ही मुलाकात मुकर्रर हुई। वीरबहादुर सिंह सारा प्रोटोकॉल तोड़कर अपने सुरक्षा अधिकारी देवेंद्र बहादुर राय को लेकर उनकी ही कार से महानगर स्थित पूर्व आयकर अधिकारी मोहन सिंह के घर पहुंचे। वहां अवेद्यनाथ जी पहले से मौजूद थे।
वीरबहादुर ने बताया कि राजीव गांधी चाहते हैं कि बिना विवादित ढांचे को क्षजीति पहुंचाएं सोमनाथ की तर्ज पर केंद्र सरकार अयोध्या में मंदिर बनाए। इस निर्माण से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) से कोई मतलब नहीं होगा। इस प्रस्ताव पर अवेद्यनाथ जी हंसे। पूछा कि इसका सारा श्रेय तो कांग्रेस को जाएगा। वीएचपी और भाजपा को क्या मिलेगा? तय हुआ कि अवेद्यनाथ इस बावत विहिप के नेताओं से बात करेंगे, पर इसकी उन्होंने किसी से चर्चा तक नहीं को। बाद में देवेंद्र राय ने अपने कुछ पत्रकार साथियों को यह बात बताई।
मालूम हो कि छह दिसंबर 1992 में जब विवादित ढांचा ढहाया गया तो राय ही फैजाबाद के एसएसपी थे। उल्लेखनीय है कि देवेंद्र बहादुर राय प्रांतीय पुलिस सेवा (पीपीएस) के अधिकारी थे। विवादित बाबरी ढांचा के ध्वंस के बाद उनको सस्पेंड कर दिया गया था। बाद में त्याग पत्र देकर वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। उन्होंने 1996 से 1998 तक सुल्तानपुर संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व भी किया।
मंदिर आंदोलन: गोरक्षपीठ के साथ गोरखपुर के कई लोगों की भी रही अहम भूमिका



