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जागिए… आपकी नींद में छिपा है स्ट्रोक का खतरा

सोते समय खर्राटों को अक्सर एक सामान्य आदत समझकर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकेत हो सकता है। नींद में बार-बार श्वास रुकना यानी स्लीप एपनिया, दिल और दिमाग तक ऑक्सीजन की कमी पहुंचाता है। इससे रातभर रक्तचाप बढ़ा रहता है और धमनियों पर लगातार तनाव पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्लीप एपनिया वाले लोगों में स्ट्रोक और हार्ट अटैक का खतरा दो-से-चार गुना तक बढ़ जाता है। इसलिए यदि खर्राटे लगातार आएं और दिन में अत्यधिक नींद लगे, तो जांच और उपचार को न टालें। यही संदेश विश्व स्ट्रोक दिवस पर सबसे महत्वपूर्ण है।

  • खर्राटे और स्लीप एपनिया हृदयाघात व स्ट्रोक के जोखिम को 4 गुना तक बढ़ा सकते हैं

सोने की शांत रात में अक्सर हम – शायद हल्के-से खर्राटों की उपेक्षा कर देते हैं। लेकिन अब विशेषज्ञों की चेतावनी आ रही है कि यह हल्की-सी आवाज़, एक प्राथमिक संकेत हो सकती है – उस खतरनाक जाल का जिसमें छिपा है “हृदयाघात” और “स्ट्रोक” का जोखिम। राजधानी के एक प्रमुख अस्पताल में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. रजत चोपड़ा ने बताया कि सोते समय आने वाले खर्राटे वास्तव में एक गंभीर नींद-विषयक विकार, स्लीप एपनिया (नींद में श्वास रुकने की समस्या) का प्रतीक हो सकते हैं।

उनका कहना था कि इस समस्या को हल्के में लेना अब सुरक्षित नहीं रहा – बार-बार श्वास रुकने से हृदय एवं मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि स्ट्रोक के मरीजों में करीब आधे से अधिक की संख्या में स्लीप एपनिया का निदान हुआ है। यह रिपोर्ट इस विश्व-स्तर की पहल, World Stroke Day (29 अक्टूबर) के अवसर पर तैयार की गई है, ताकि जनता-जागरूकता बढ़े, नींद-स्वास्थ्य को प्राथमिकता मिले, एवं “खर्राटा-सोते समय” की समस्या को अधिक गंभीरता से देखा जाए।

सोते समय खर्राटे और स्लीप एपनिया – समस्या की पहचान

सोते समय खर्राटा लेना अक्सर मजाक में टल जाता है – “अरे, मैं तो बहुत खर्राटे लेता हूँ” – यह कहते हुए भी हम यह नहीं सोच पाते कि यह सिर्फ एक हल्की-आवाज नहीं। खर्राटे को मेडिकल दृष्टि से तब देखा जाता है जब वह नियमित हो, बेहद तेज हो, नींद को टूटने दे या उसकी गुणवत्ता गिरा दे। कई बार यह संकेत देता है कि वायु मार्ग (Airway) में अवरोध हो रहा है – वह हो सकता है गर्दन के ऊपरी हिस्से में वसा जमा होना, गले की पेशियों का ढीला होना, गले का आकार-संरचना कम favourable होना, या मोटापे­ का प्रभाव।

विशेष रूप से ओब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (Obstructive Sleep Apnea, OSA) जिसमें सोते वक्त गले की मांसपेशियाँ व वायु मार्ग धीरे-धीरे बंद हो जाती हैं, श्वास रुक जाती है (अचानक या कुछ सेकंड के लिए) और फिर तीव्र श्वास के साथ फिर खुलती है। इस चक्र में ऑक्सीजन का स्तर गिरता है, नींद बार-बार टूटती है, और व्यक्ति को ठीक-से नींद नहीं मिलती।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • श्वास रुकने (Apnea) या बहुत धीमी श्वास (Hypopnea) जब प्रति घंटे एक निश्चित संख्या से अधिक हो जाए (उदाहरण के लिए AHI  15) तो इसे मॉडरेट-से-सीवियर OSA माना जाता है।
  • सिर्फ खर्राटा होना OSA का निश्चित प्रमाण नहीं है – लेकिन खर्राटे + दिन में अत्यधिक नींद + बार-बार नींद टूटना आदि लक्षण OSA-संभावना को इंगित करते हैं।
  • OSA के प्रभाव दिन-दिन की थकान, ध्यान-घटने, कार्यक्षमता में कमी से शुरू होते हैं – लेकिन इसके परिणामस्वरूप हृदय-रक्त और मस्तिष्क-रक्त संबंधी गंभीर जोखिम भी जन्म ले सकते हैं।
  • मोटापा (विशेषकर गले और गर्दन का वसा संचय), उच्च रक्तचाप, धूम्रपान, गले की संरचनात्मक असामान्यताएँ, उम्र-बढ़ना- all इससे संबंध रखते हैं।

नींद-विच्छेद (sleep fragmentation), ऑक्सीजन सैचुरेशन में बार-बार उतार-चढ़ाव, और वायु मार्ग में अवरोध- and कुछ शोधों अनुसार—इनके कारण रक्तचाप का तेजी से बढ़ना, धमनियों का क्षय (atherosclerosis) और हृदय तथा मस्तिष्क तक अस्थिर रक्त-प्रवाह की संभावना बढ़ जाती है। इन तंत्रों की वजह से स्ट्रोक और हृदयाघात का जोखिम तुलनात्मक रूप से अधिक मिलता है।

हृदयाघात एवं स्ट्रोक-रेखीय जोखिम: शोध-प्रतिपादन

हृदयाघात (मायोकार्डियल इन्फार्क्शन)

नींद में श्वास रुकने की समस्या (OSA) से हृदयाघात का जोखिम बढ़ने की बात कई अध्ययनों ने कही है। जब श्वास रुकती है, ऑक्सीजन स्तर गिरता है, हृदय को अधिक काम करना पड़ता है, रक्तचाप बढ़ता है, नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO) जैसी संवहनी द्रवाओं में कमी आती है—जिससे धमनियों में क्षय और सिकुड़न का खतरा बढ़ जाता है। ओएसए वाले व्यक्तियों में “नॉन-डिपिंग” (रात में रक्तचाप सामान्य रूप से नहीं कम होना) जैसी स्थितियाँ पाई गई हैं, जो हृदय-रक्त संबंधी घटनाओं (cardiovascular events) के लिए असाधारण जोखिम कारक होती हैं।

स्ट्रोक (मस्तिष्क घटक)

स्ट्रोक-रिस्क और OSA के बीच संबंध पिछले दशक में अधिक स्पष्ट हुआ है। स्ट्रोक-मामलों में OSA की प्रचलनता काफी अधिक पाई गई है- उदाहरण स्वरूप तीव्र इस्कीमिक स्ट्रोक रोगियों की जांच में स्लीप-रक्त-सफ़र (sleep breathing disturbance) 40-90% तक पाई गई है। यह आंकड़ा यह सुझाव देता है कि नींद-स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना उचित है। कुछ बड़े-आकार के मेटा-विश्लेषिस में यह निष्कर्ष आया है कि मॉडरेट-से-सीवियर OSA वाले व्यक्तियों में स्ट्रोक, हृदय रोग तथा समग्र मृत्यु का जोखिम उल्लेखनीय रूप से अधिक था। एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि सोते समय खर्राटे वाले व्यक्तियों में स्ट्रोक-का संभावना लगभग 4 गुना तक हो सकती है (विशेष रूप से जब अन्य जोखिम-कारक मौजूद हों)।

भारत-विशेष प्रमाण

भारत में, हाल-ही की समीक्षा-स्टडी में यह देखना दिलचस्प था कि लगभग 50-60 प्रतिशत स्ट्रोक रोगियों में स्लीप एपनिया पाया गया है। यह संकेत देता है कि भारत-प्रसंग में OSA तथा स्ट्रोक का संबंध बहुत वास्तविक है। इसके अतिरिक्त, भारत में OSA की प्रवृत्ति बढ़ रही है, मोटापा, शहरीकरण, जीवनशैली परिवर्तन और निदान की कमी के कारण यह समस्या व्यापक रूप ले रही है।

भारत में स्थिति – बोझ, चुनौतियाँ और जागरूकता

देश-व्यापी बोझ

भारत में प्रति वर्ष नवीन स्ट्रोक मामलों की संख्या लाखों में है। विभिन्न अध्ययनों ने अनुमान लगाया है कि भारत में हर वर्ष लगभग 1.5-2 मिलियन (15-20 लाख) नए स्ट्रोक मामले हो सकते हैं। साथ ही, स्ट्रोक के कारण होने वाला विकलांगता-बोझ और मृत्यु दर भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य-व्यवस्था पर एक भारी भार बनता जा रहा है। स्लीप एपनिया की प्रचलनता भारतीय परिवेश में कम-से-कम 10% से अधिक पाई गई है; कुछ समुदाय-आधारित अध्ययन में मॉडरेट-टू-सीवियर श्रेणियाँ 20-30% तक दर्ज हुई हैं। निदान की कमी और जागरूकता-घाट की वजह से यह समस्या अनदेखी रह जाती है।

चुनौतियाँ

  • निदान की कमी: भारत में अधिकांश लोग खर्राटे या नींद में श्वास-रुकने के लक्षणों को सामान्य कहते हैं। OSA को पहचानना और उसे चिकित्सकीय रूप से जाँचना अभी व्यापक नहीं हुआ है।
  • संसाधन-सीमाएँ: नींद-अध्ययन (पोलीसोम्नोग्राफी) और OSA-उपचार उपकरण की पहुँच सीमित है, विशेष रूप से ग्रामीण व दूरदराज़ क्षेत्रों में।
  • जीवनशैली-परिवर्तन: मोटापा, उच्च रक्तचाप, धूम्रपान, शराब – इन कारकों में वृद्धि ने OSA और स्ट्रोक-दोनों के जोखिम को बढ़ाया है।
  • नीति-अंतराल: जबकि स्ट्रोक-रोकथाम पर नीति तथा कार्यक्रम मौजूद हैं, नींद-स्वास्थ्य को प्राथमिकता के रूप में पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया है।

 जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन

ओरिजनल समस्या की तरफ ध्यान देने हेतु कुछ व्यवहार-स्तर के सुझाव महत्वपूर्ण हैं:

  • खर्राटों को हल्के-में न लें – यदि लगातार हैं, तो चिकित्सकीय सलाह लें।
  • अतिरिक्त लक्षण जैसे दिन में अधिक नींद आना, सुबह उठने पर घुटन या साँस लेने में कठिनाई, नींद के दौरान सांस रुकने का स्वयं अथवा साथी-द्वारा अनुभव होना – इन पर विशेष ध्यान दें।
  • स्वस्थ जीवनशैली अपनाएँ: नियमित व्यायाम, छोटा-वजन बनाए रखना, शराब और धूम्रपान से परहेज।
  • यदि निदान हुआ हो – OSA की जाँच एवं उपचार (जैसे CPAP) को चिकित्सा-प्रक्रिया का हिस्सा बनाएं।
  • स्वास्थ्य-प्रदाता एवं चिकित्सा-संस्थाएँ नींद-स्वास्थ्य को स्ट्रोक- व हृदय-रोकथाम कार्यक्रमों में शामिल करें।

समाधान-मॉडल, नीति-दृष्टिकोण व उपचार

निदान एवं उपचार

निदान: निदान के संदर्भ में पोलीसोम्नोग्राफी (PSG) अब सोने की मुख्य जाँच है जिसमें नींद के दौरान श्वास-रुकने, ऑक्सीजन सैचुरेशन, और नींद-चक्र का मूल्यांकन होता है। यदि यह सुविधा उपलब्ध न हो तो पोर्टेबल अनुकूल उपकरणों द्वारा प्रारंभिक स्क्रिनिंग संभव है। उपचार: OSA के उपचार में मुख्य रूप से शामिल हैं:

  • जीवनशैली में सुधार (वजन-घटाना, गले की मांसपेशियों को टोन में लाना, साइड-स्लीपिंग)
  • CPAP (Continuous Positive Airway Pressure) मशीन, जो सोते समय वायु मार्ग को खुला रखती है।
  • अन्य विकल्प जैसे BiPAP, ऑरल एप्लायंसेस (मुँह / गले के उपकरण) और कुछ मामलों में शल्य-चिकित्सा।
  • स्ट्रोक-प्रबंधन के संदर्भ में: OSA का निदान यदि स्ट्रोक के बाद हुआ हो, तो यह पुनरावृत्ति-रोकथाम की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बन जाता है।

नीति-दृष्टिकोण

  • राष्ट्रीय कार्यक्रमों (जैसे NP-NCD) में “नींद-स्वास्थ्य” को शामिल करना ज़रूरी है, विशेष रूप से स्ट्रोक-ढुलाई और हृदय-रोग-प्रिवेंशन योजनाओं में।
  • अस्पतालों व न्यूरोलॉजी/कार्डियोलॉजी शाखाओं में नियमित तौर पर “खर्राटा-स्क्रिनिंग” को प्रोटोकॉल बनाना चाहिए — उदाहरण के लिए स्ट्रोक / TIA (Transient Ischemic Attack) वाले मरीजों को OSA-स्क्रिनिंग देना।
  • सार्वजनिक जागरूकता-कैम्पेन: खर्राटा सिर्फ मनोरंजक किस्सा न बने बल्कि “नींद में साँस रुकना = स्वास्थ्य-झंझट” का संदेश लोक-स्तर पर पहुँचाया जाना चाहिए।
  • प्रशिक्षण व मानव-संसाधन: नींद-मेडिसिन व स्लिप-लैब्स की संख्या बढ़ाना, प्राथमिक स्वास्थ्य-केंद्रों में नींद-स्क्रिनिंग का संचालन करना।
  • स्वास्थ्य-व्यवस्था में साझेदारी: निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में नींद-स्वास्थ्य सेवा प्रसार-व सुधार।

केस-स्टडी (संक्षिप्त)

एक महानगर के निजी अस्पताल में 58 वर्षीय पुरुष मरीज को बार-बार खर्राटों की शिकायत एवं दिन में अत्यधिक नींद आना था। निदान किया गया तो मॉडरेट-टू-सीवियर OSA निकला। उसे CPAP उपचार व वजन-घटाने पर रखा गया। छह महीनों बाद मरीज ने अपनी सुबह-थकान खत्म reported की, रक्तचाप नियंत्रित हुआ, और 1 साल बाद स्ट्रोक-रिस्क में कमी होने का संकेत मिला। इस तरह आधार-सेवा आधुनिक नींद-चिकित्सा स्ट्रोक-रोध में योगदान दे सकती है।

जागरूकता-संदेश

इस विस्तृत रिपोर्ट के माध्यम से एक बात बहुत स्पष्ट हो जाती है: खर्राटा सिर्फ रात-की हल्की आवाज नहीं, बल्कि एक चेतावनी-संदेश हो सकता है। यदि सोते समय खर्राटों के साथ साँस रुकने, नींद का टूट-फूट, दिन में अत्यधिक नींद जैसे लक्षण हों — तो समय रहते निदान व इलाज न करना वजनदार गलती हो सकती है।भारत में स्ट्रोक एवं हृदयाघात का बोझ पहले से बहुत भारी है। नींद-विषयक विकार जैसे OSA को उपेक्षित करना आगे जाकर उस बोझ को और बढ़ा सकता है। इसलिए यह ज़रूरी है कि individuals, परिवार, स्वास्थ्य-प्रदाता व नीति-निर्माता मिलकर इस विषय को प्रथम-पंक्ति पर लाएं।

  • यदि आप खर्राटे लेते हैं और अन्य जोखिम-कारक मौजूद हैं (उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा, धूम्रपान) – तो नींद-स्क्रिनिंग अवश्य करवाएं।
  • नींद की गुणवत्ता का ध्यान रखें – नियमित नींद-घंटे, शराब-नियंत्रण, धूम्रपान-बंद।
  • स्वास्थ्य-प्रदाताओं को सुझाव दें कि स्ट्रोक-रोगियों में नींद-विषयक समीक्षा को नियमित हिस्सा बनाया जाए।

इस World Stroke Day के अवसर पर यह संदेश हम सब के लिए है कि “नींद से जुड़ी लापरवाही, स्ट्रोक की पूर्व चेतावनी हो सकती है”।

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Disclaimer:यह सामग्री जन-जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित की गई है। किसी भी स्वास्थ्य-समस्या पर अपने चिकित्सक या विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। स्वयं-निदान एवं स्वयं-उपचार से बचें।

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