
पतन का मार्ग है हिंसा : आचार्य महाश्रमण
आचार्य प्रवर ने दी विचारों में उच्चता रखने की प्रेरणा । बहिर्विहार से गुरु सन्निधि में पहुंचे कई साधु-साध्वीवृंद।
भीलवाड़ा । अपने पावन वचनों से जन-जन का अज्ञान रूपी अंधकार हरने वाले युवामनीषी शांतिदूत आचार्य महाश्रमण का आज भीलवाड़ा शहर सीमा में पावन पदार्पण हुआ। हमीरगढ़ से प्रभात काल में आचार्य ने मंगल प्रस्थान किया। विहार के दौरान सरपंच रेखा परिहार सहित अनेक ग्रामीणों ने आचार्य प्रवर के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किए। स्थान-स्थान पर दर्शन करते श्रद्धालुओं में आचार्य के प्रथम भीलवाड़ा पदार्पण पर एक नई उमंग देखी जा सकती थी। स्थानीय विधायक विट्ठल शंकर अवस्थी, एसडीएम. ओम प्रभा आदि कई विशिष्ट जन इस अवसर पर स्वागत में उपस्थित हुए। लगभग 14 किमी. का विहार कर गुरुदेव चित्तौड़गढ़ रोड स्थित लोटस डिफेंस एकेडमी में प्रवास के लिए पधारे।
बहिर्विहार से भी आज कई साधु-साध्वीवृंद गुरु सान्निधि में पहुंचे। ऑनलाइन रूप से प्रसारित मंगल प्रवचन में आचार्य ने कहा- हम अहिंसा यात्रा कर रहे हैं। अहिंसा को व्यक्ति गहराई से समझें यह जरूरी है। हिंसा-अहिंसा दो विरोधी तत्व है। अहिंसा को परम धर्म कहा गया है। इस संसार में सभी प्राणियों को अपना जीवन प्रिय है फिर क्यों व्यक्ति किसी अन्य को हानि-कष्ट पहुंचाने का प्रयास करता है। ज्ञानी के ज्ञान का सार अहिंसा है। जिसने अहिंसा को समझ लिया, जीवन में उतार लिया उसने मानों फिर आध्यात्म को पा लिया। हिंसा से एक ओर जहां दूसरों को कष्ट पहुंचता है वही व्यक्ति की स्वयं की आत्मा पतन की ओर जाती है। राग-द्वेष के साथ हिंसा जुड़ी हुई है।
पूज्य प्रवर ने आगे कहा कि- जीव का मरना हिंसा नहीं है और कोई अपने आयुष्य से जी रहा है वह दया नहीं है। सलक्ष्य किसी को मारना हिंसा है व हिंसा से बचने का प्रयास दया है। हिंसा-अहिंसा हमारे भावों से जुड़ी हुई है। दिमाग में हिंसा है तो फिर प्रवृत्ति में भी आएगी। हमारे विचारों में उच्चता और जीवन में सादगी रहनी चाहिए। जो कार्य स्वयं के लिए नहीं चाहते वह दूसरे के लिए भी मत करो। आत्मतुला के सिद्धांत से व्यक्ति सभी को स्वयं के तुल्य समझे। जहां हिंसा होती है वहां विकास नहीं हो सकता। हिंसा विनाश का और अहिंसा विकास का के लिए है। व्यवहार व आचरण में अहिंसा की नीति रहे, यह अपेक्षित है।कार्यक्रम में मुनि जितेन्द्र कुमार ने अपने विचार रखे। इस अवसर पर बहिर्विहार से समागत साध्वीवृन्द में साध्वी साधना, साध्वी मधुबाला, साध्वी ललितकला, साध्वी योगप्रभा, साध्वी प्रसन्नयशा, साध्वी मधुर्यप्रभा ने अभिव्यक्ति दी।