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उपराष्ट्रपति ने कहा, राष्ट्रवाद हमारे देश की तीव्र प्रगति के लिए एक सकारात्मक ताकत है

विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग लोगों की भलाई और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए किया जाना चाहिए: उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति  एम. वेंकैया नायडु ने आज लोगों की सामान्य भलाई के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करने और उनकी गंभीर समस्याओं को हल करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यह भी कहा कि ’विज्ञान से समाज की भलाई होनी चाहिए न कि कुछ अभिजात वर्ग की। उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास का एजेंडा तय करने के लिए लोगों की आकांक्षाओं और लक्ष्यों की आवश्यकता बताई। विजयवाड़ा के पास स्थित अतकूर स्थित स्वर्ण भारत ट्रस्ट में आज पुस्तक शीर्षक डॉ. वाई. नायुदम्मा: निबंध, भाषण, नोट्स और अन्य’ का विमोचन करने के बाद उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए श्री नायडु ने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लोगों को अपना गुलाम नहीं बनाना चाहिए। प्रसिद्ध वैज्ञानिक, डॉ. यलवर्थी नायुदम्मा की जन्म शताब्दी के अवसर पर विमोचित पुस्तक का संकलन और संपादन पूर्व आयकर आयुक्त डॉ. चंद्रहास और डॉ. के. शेषगिरी राव ने किया है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के भविष्य के बारे में डॉ. नायुदम्मा की परिकल्पना की प्रशंसा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह सामाजिक मूल्यों से प्रेरित, सामान्य भलाई के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग चाहते हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा, ’’उन्होंने लक्ष्यों व उद्देश्यों और मूल्यों के एक स्पष्ट समुच्चय की रूपरेखा तैयार की थी जिसका अनुप्रयोग लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के साधन के तौर पर और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए बदलाव के उत्प्रेरक के रूप मार्गदर्शन के लिए किया जाना चाहिए। डॉ. वाई. नायुदम्मा के दर्शन की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए, श्री नायडु ने सभी संबद्ध लोगों को सलाह दी कि वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साधनों की खोज और अनुप्रयोग के बारे में विभिन्न मुद्दों और सरोकारों की उचित समझ विकसित करने के लिए पुस्तक को पढ़ें। उन्होंने उच्च कक्षाओं के छात्रों के लिए पुस्तक को पाठ्यक्रम का एक हिस्सा बनाने का भी सुझाव दिया ताकि नवोदित वैज्ञानिकों को उनके सीखने के प्रारंभिक चरण में सही समझ और अभिविन्यास प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेष रूप से, पिछली दो शताब्दियों के दौरान तेजी से हुई प्रगति का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब मानव को ’प्रौद्योगिकी पशु’ कहा जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि बेहतर जीवन के लिए निरंतर खोज ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अंधाधुंध खोज और अनुप्रयोग के उद्देश्य, प्रासंगिकता, मूल्यों और परिणामों के बारे में कुछ गंभीर समस्याओं और चिंताओं को जन्म दिया है। उन्होंने वैश्विक स्तर पर अपनाई जा रही विकास की रणनीतियों के परिणामस्वरूप तेजी से संसाधनों की कमी, पारिस्थितिक असंतुलन और असमानताओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की और सतत और सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए वैकल्पिक विकास मॉडल की आवश्यकता बताई। डॉ. नायुदम्मा, जिन्होंने यह दर्शाया कि वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीविद इस तरह के बदलाव के प्रभावी एजेंट कैसे बन सकते हैं, को सामाजिक परिवर्तन का एक एजेंट बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि एकांत विज्ञान के अनुशीलन से स्वतः मानवता की सेवा नहीं हो सकती है।

देश में चर्मशोधन उद्योग के आकार और स्वरूप को बदलने में डॉ. नायुदम्मा के अग्रणी योगदान को याद करते हुए श्री नायडु ने कहा कि कुछ पारंपरिक समुदायों द्वारा अपनाए जाने वाले इस पेशे को दूसरों द्वारा बदबू और काम की प्रकृति के कारण हेय दृष्टि से देखा जाता था। डॉ. नायुदम्मा ने ऐसे मुद्दों का गहन विश्लेषण किया और बदबू को दूर करने और इसमें शामिल लोगों के कौशल में सुधार करके इस पेशे को व्यापक रूप से स्वीकार्य बनाने में सक्षम बनाया। उन्होंने बताया उनके काम से चर्मशोधन उद्योग की आर्थिक व्यवहार्यता को बढ़ाने में मदद की। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि ’विज्ञान और प्रौद्योगिकी से अधिक से अधिक रोजगार पैदा होना चाहिए।
ज्ञान को प्रत्येक व्यक्ति का सर्वोत्तम संसाधन बताते हुए, श्री नायडु ने इसके साथ सभी को सशक्त बनाने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा, ’’हमें इस तरह का ज्ञान प्रदान करने की आवश्यकता है जो हमारे राष्ट्र की समस्याओं का सामूहिक रूप से समाधान करने में सक्षम हो।’

उनका मानना है कि कोई व्यक्ति केवल सामुदायिक भागीदारी की भावना से और सामूहिक प्रयास के वातावरण में ही सबसे अधिक समृद्धि प्राप्त करता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र तब सर्वोत्तम होता है जब हम राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होते हैं। उन्होंने आगे कहा,’’ इस तरह राष्ट्रवाद प्रत्येक व्यक्ति की पूर्ण क्षमता को साकार करके हमारे राष्ट्र की तीव्र प्रगति के लिए एक सकारात्मक शक्ति है। यह एक नकारात्मक कारक नहीं है जैसा कि कुछ लोगों द्वारा प्रचारित किया जा रहा है।’’डॉ. नायुदम्मा के आत्मनिर्भरता पर जोर देने का उल्लेख करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि उन्होंने प्रौद्योगिकी और समाधानों के आयात के लिए पश्चिम की ओर देखने का समर्थन नहीं किया क्योंकि पश्चिमी उपचार से भारत की उन समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता है, जो अलग और विशेष परिस्थिति जन्य हैं। उन्होंने कहा कि यही आत्मनिर्भर भारत पहल का सार है।

डॉ. नायुदम्मा की अनेक उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए श्री नायडु ने कहा कि वे 1971 में 49 वर्ष की छोटी उम्र में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के महानिदेशक बने और उसी वर्ष उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा, ’’डॉ. वाई. नायुदम्मा जैसे दूरदर्शी वैज्ञानिकों का मिलना दुर्लभ है। अगर वह लंबे समय तक जीवित रहते, तो हमारे देश को और अधिक लाभ होता।’’उपराष्ट्रपति ने डॉ. नायुदम्मा के अग्रणी कार्यों को याद करते हुए उन्हें हमारे देश की महान वैज्ञानिक विरासत की शृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी बताया। भारत को फिर से ’विश्वगुरु’ बनाने के लिए ठोस प्रयास की अपील करते हुए उन्होंने कहा कि हर कोई हमारी शिक्षा प्रणाली, विज्ञान और अनुसंधान के तरीकों को सुव्यवस्थित करके इस प्रयास में भाग ले।

उन्होंने पुस्तक के लेखकों और प्रकाशकों और नायुदम्मा फाउंडेशन फॉर एजुकेशन एंड रूरल डेवलपमेंट को डॉ. वाई. नायुदम्मा की परिकल्पना और दर्शन को कायम रखने की दिशा में उनके प्रयासों के लिए बधाई दी। इस अवसर पर श्री नायडु ने स्वर्ण भारत ट्रस्ट के प्रशिक्षुओं से भी बातचीत की और उन्हें जीवन में सफल होने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित किया। मिजोरम के राज्यपाल, श्री के हरिबाबू, विजयवाड़ा से सांसद श्री केसिनेनी श्रीनिवास (नानी), स्वर्ण भारत ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री कामिनेनी श्रीनिवास, एनएफईआरडी के अध्यक्ष डॉ डीके मोहन, एनएफईआरडी सचिव श्री गोपालकृष्ण, पुस्तक के संपादक डॉ चंद्रहास, इस कार्यक्रम में स्वर्ण भारत ट्रस्ट के प्रशिक्षु और कर्मचारी और अन्य शामिल हुए।

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