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ब्लड कैंसर के इलाज में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की सफलता 80 फीसद तक

नयी दिल्ली : भारत में ब्लड कैंसर से पीड़ित लोगों को इलाज के रूप में कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है और स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन कराने वाले ज़्यादातर मरीज़ों को आसानी से मैचिंग डोनर नहीं मिल पाते हैं। उल्लेखनीय है कि 10 लाख में से एक ही शख़्स ऐसा निकलता है, जो मैचिंग डोनर‌ के तौर पर सामने आकर मरीज़ की मदद कर पाता है। इस ट्रीटमेंट से मरीज़ की हालत में आमूलचूल बदलाव आ सकता है, मगर एक मैचिंग डोनर का मिलना सबसे कठिन काम होता है। अक्सर इसके अभाव में ब्लड कैंसर का मरीज़ दम तोड़ देते हैं।

ऐसे में मेडिकल समुदाय से जुड़े लोगों द्वारा भारत में स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन को लेकर आम जनता में और अधिक जागरुकता फ़ैलाने की आवश्यकता है।ब्लड कैंसर के ख़िलाफ़ संघर्षरत एक ग़ैर-सरकारी संगठन डीकेएमएस बीएमएसटी फाउंडेशन इंडिया की ओर‌ से वर्लड ब्लड कैंसर डे’ के पहले आयोजित एक ख़ास कार्यक्रम में जानकारों ने इस मुद्दे को रेखांकित किया। उन्होंने‌ भारत में ब्लड स्टेम‌ सेल डोनेशन को लेकर बढ़ती खाई की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए स्वेच्छा से स्टेम स्टेल‌ डोनेशन की‌ संस्‍कृति को बढ़ावा देने पर ज़ोर‌ दिया।

इस‌ ख़ास मौके पर 23 से 33 साल के 6 स्टेम‌ सेल डोनरों ने अपने निजी अनुभवों को साझा किया। इन सभी डोनरों ने लोगों से भावनात्मक रूप‌ से अपील करते हुए कहा कि वे सभी उनकी तरह डोनर बनकर‌ डोनरों की संख्या में इज़ाफ़ा करने में अपना अहम योगदान दें और लोगों का जीवन बचाने में सहयोग करें।ब्लड कैंसर एक ऐसी जानलेवा बीमारी है, जिसका पूरे भारत में हज़ारों की संख्या में लोग शिकार हो रहे हैं। आमतौर पर ऐसे मरीज़ों की जान बचाने के लिए स्टेम सेल ट्रांसप्लांट बेहद आवश्यक हो जाता है, जो ब्लड कैंसर से पीड़ित मरीज़ों को बचाने की आख़िरी उम्मीद के तौर पर काम आता है।

एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि इन मरीज़ों में से महज़ 30 प्रतिशत मरीज़ ही ऐसे होते हैं, जिन्हें ट्रांसप्लांट के लिए अपने परिवारों के भीतर ही डोनर मिल जाते हैं। बाक़ी 70 प्रतिशत मरीज़ों को बाहरी व मैचिंग प्रोफ़ाइल वाले लोगों पर डोनेशन के लिए निर्भर रहना पड़ता है, जो उन मरीज़ों और उनके परिवार के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप‌ में सामने आता है. एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में हर साल तकरीबन 70,000 लोग ब्लड कैंसर के चलते अपनी जान गंवा देते हैं, जबकि स्टेम सेल डोनरों की संख्या लगभग 0.04 प्रतिशत ही है।

नई दिल्ली में राजीव गांधी कैंसर अस्पताल एवं शोध संस्थान में हेमाटोऑन्कोलॉजी एवं बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. नरेंद्र अग्रवाल कहते हैं, “भारत में ब्लड कैंसर एक बड़े ख़तरे के रूप में सामने आया है, जिससे बड़ी तादाद में लोगों की ज़िंदगियां प्रभावित हो रहीं हैं. देश भर में हर साल इससे जुड़े लगभग एक लाख मामले सामने आते हैं। ऐसे में इस घातक बीमारी का प्रभावी ढंग से इलाज करना बेहद ज़रूरी है। डोनरों का अभाव एक बड़ी चिंता का विषय है और पूरी तरह से मैच होने वाले डोनरों का अनुपात भी 1/10 लाख है। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ब्लड कैंसर के इलाज में एक बेहद प्रभावी किस्म का उपाचर के रूप है।”

उन्होंने कहा कि स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को प्रभावी ढंग से उपयोग में लाने से स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के ज़रिए ब्लड कैंसर का प्रभावी रूप से इलाज किया जा सकता है। इससे काफ़ी सकारात्मक नतीजे देखने को मिले हैं और कई लोगों की ज़िंदगियों को बचाने में भी‌ मदद मिली है। हालांकि उपचार के नतीजे मरीज़ की निजी चारित्रिक विशेषताओं पर‌ निर्भर करते हैं, लेकिन 60-70 प्रतिशत मामलों में ऐसा देखा गया है कि समय रहते मरीज़ों का उपचार करने से उनकी जान बचाने में डॉक्टरों को सफलता मिली है। स्टेम‌ सेल ट्रांसप्लांट उपचार की‌ अत्याधुनिक तकनीक के चलते सफलता का प्रतिशत बढ़कर अब लगभग 80 प्रतिशत तक हो गया है।

ल्यूकिमिया,‌ लिमफ़ोमा अथवा मल्टिपल मायेलोमा इन सभी सूरत में स्टेम‌ सेल ट्रांसप्लांटेशन मरीज़ों की हालत में सकरात्मक बदलाव लाता है और स्वस्थ ढंग से रक्त संचार व प्रतिरक्षा प्रणाली के पुनर्निर्माण में सहयोग करता है। लोगों में इस संबंध में जागरुकता फ़ैलाने, डोनर की संख्या में इज़ाफ़ा करने और दूसरों की मदद करने‌ के प्रचलन को और बढ़ाने से हम भारत में बड़ी संख्या में ब्लड कैंसर का शिकार होने वाले लोगों की जान को बचा सकते हैं।”(वार्ता)

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