युद्ध के लिये तैयार रहना ही है शांति का मार्ग :धनखड़
नयी दिल्ली : उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने देश की सुरक्षा के लिए कृत्रिम मेधा (एआई), रोबोटिक्स , बायोटेक जैसे प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में महारत हासिल करने की आवश्कता को शुक्रवार को रेखांकित करते हुये ‘शांति को वैकल्पिक नहीं , बल्कि एक मात्र रास्ता’ बताया और कहा कि युद्ध के लिये पूरी तरह तैयार रहना ही शांति का मार्ग है।उन्होंने कहा कि एआई , रोबोटिक्स, बायो-टेक्नोलॉजी और ड्रोन जैसे उभरते क्षेत्र आज युद्ध की तस्वीर बदल रहे हैं और इन क्षेत्रों में महारत का स्तर देशों की योग्यता या अयोग्यता को तय करने वाला हो सकता है। वह यहां मानेकशॉ सेंटर में चाणक्य रक्षा संवाद (सीडीडी)-2023 को संबोधित कर रहे थे।
श्री धनखड़ ने शांति बनाये रखने के महत्व को सर्वोपरि बताया और कहा कि इसके लिये विचार, प्रचार, संवाद-सम्पर्क और अनुनय-विनय आदि के मिश्रण जैसे बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ साथ सतर्क और तैयार रहते हुए शांति प्राप्त करने और बनाये रखने के प्रयास की आवश्यकता होती है। उन्होंने यह भी कहा कि ‘युद्ध के लिए तैयार रहना शांति का मार्ग है’ और एक राष्ट्र अपनी ताकत से ही उसकी अपनी शांति की सबसे प्रभावशाली रूप से रक्षा और बचाव कर सकता है।श्री धनखड़ ने वैश्विक सुरक्षा और शांति के लिए समकालीन चुनौतियों का विश्लेषण करने के लिए इस विचार मंच की अवधारणा के लिए भारत की सेना को बधाई दी।
उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि सीडीडी दक्षिण एशिया और इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा जटिलताओं के गहन विश्लेषण के लिए एक उपयुक्त मंच बन जाएगा, जो अंततः क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगा।उपराष्ट्रपति ने अपने संबोधन में सुरक्षा वातावरण को सशक्त करने में देश की देश की सॉफ्ट पावर (सांस्कृतिक शक्ति) और आर्थिक शक्ति को भी अभिन्न घटक बताया और कहा कि इनका उपयोग भी महत्वपूर्ण है।उन्होंने कहा कि एआई, रोबोटिक्स, क्वांटम, सेमी-कंडक्टर, बायो-टेक, ड्रोन और हाइपरसोनिक्स जैसी नयी नयी प्रौद्योगिकियों के उद्भव से युद्ध का नयी प्रकृति और नए आयाम उभरे है।
उन्होंने कहा कि ‘इन इन क्षेत्रों में किसी देश की शक्ति और महारत यह तय करेगी कि वह भविष्य के रणनीतिक रूप से कितने समृद्ध या अयोग्य है।’श्री धनखड़ ने कहा कि आचार्य चाणक्य ने राष्ट्र की रक्षा और हथियारों और शास्त्रों के माध्यम से अपनी संस्कृति का पोषण करने के महत्व पर जोर दिया था। उपराष्ट्रपति ने कहा कि आधुनिक संदर्भ में भी भारत के लिये आचार्य चाणक्यके शब्दों में शक्ति है और ये स्थायी रूप से प्रासंगिकता रखते हैं। और ‘प्रासंगिक होने की ताकत’ पर प्रकाश डाला।यूक्रेन और पश्चिम एशिया में चल रहे संकटों को उल्लेख करते हुए उन्होंने झगड़ों के प्रभावी समाधान के लिये प्रतिरोधको मजबूत करने और कूटनीति को पुनर्जीवित करने के लिये नवीन दृष्टिकोण तलाशने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया।
कार्यक्रम में थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे, नौसेना स्टाफ के प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार, वायु सेना के उप-प्रमुख, एयर मार्शल ए पी सिंह, लेफ्टिनेंट जनरल पी.एस. राजेश्वर (सेवानिवृत्त) महानिदेशक, सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज (सीएलएडब्लूएस), थल सेना के उप-प्रमुख, लेफ्टिनेंट जनरल एमवी सुचिन्द्र कुमार, राजदूत, उच्चायुक्त, महानुभाव, जनरल वी.एन. शर्मा, पूर्व थल सेनाध्यक्ष, एडमिरल इस अवसर पर नौसेना स्टाफ के पूर्व प्रमुख एस लांबा, भारत और विदेश के प्रतिष्ठित प्रतिनिधि और अतिथि, रक्षा सेवाओं के अधिकारी, प्रबुद्ध मंडल और अन्य गणमान्यव्यक्ति उपस्थित थे।(वार्ता)