
जौनपुर। उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के संस्थापक अधिकारियों में शामिल रहे दो आईपीएस अरुण कुमार और राजेश पांडेय भी आज बुधवार को सेवानिवृत्त हो गए। आज उनकी शानदार सेवाओं का आखिरी दिन रहा। यूपी पुलिस के इतिहास के स्वर्णिम भाग में हमेशा इनका नाम रहेगा। यह वो अधिकारी हैं जिन्हें, राजनीतिक संरक्षण में पले बढ़े और आम जनता ही नहीं समूचे सिस्टम को गन प्वाइंट पर दहशत में रखने वाले माफियाओं को कुत्ते की मौत मारा। पुलिस विभाग में बतौर पीपीएस अधिकारी अपने आरम्भिक कार्यकाल के दौरान राजेश पाण्डेय जौनपुर जिले में पुलिस क्षेत्राधिकारी नगर के पद पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
इस जिले में भी अपने कार्यकाल के दौरान वे एक तेज तर्रार, संवेदनशील और साहित्य अनुरागी अधिकारी के तौर पर जनप्रिय रहे। उनके अन्दर राजनीतिक संरक्षण में पलने वाली माफिया संस्कृति के खिलाफ हमेशा छटपटाहट दिखाई देती रही। वे आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं की आंख की किरकिरी बने। हालांकि जौनपुर से स्थानांतरित होकर लखनऊ पहुंचने के बाद एसटीएफ के जरिए उन्हें अपनी छटपटाहट दूर करने का मौका मिला। फिर उन्होंने पीछे नहीं देखा और एक्शन के जरिए तेजी से आगे बढ़ते गए। उन्होंने अपने सेवाकाल में जो उपलब्धियां हासिल कीं उसका हकदार बिरले ही होते हैं।मूल रूप से बिहार निवासी यूपी कैडर के आईपीएस अरुण कुमार रिटायर होते समय प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में रेलवे सुरक्षा बल के डीजी रहे। वहीं, राजेश पांडेय डीजीपी मुख्यालय में आईजी पद पर तैनात रहे।
एसटीएफ के इन जांबाजों ने पूर्वांचल के सबसे दुर्दांत माने जाने वाले अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर गाजियाबाद में किया था। श्रीप्रकाश शुक्ला के खात्मे के लिए ही सरकार ने वर्ष 1998 में एसटीएफ का गठन किया था। बाद में एसटीएफ की इसी टीम ने यूपी के माफियाओं, रेलवे, पीडब्ल्यूडी और अन्य विभागों के ठेकेदारों में चल रहे गैंगवार में शामिल अपराधियों को एक-एक करके खत्म किया। इन अफसरों ने यूपी से माफियाराज खत्म करके यूपी एसटीएफ को हर दिन नई उंचाईयों पर पहुंचाया। रिटायर होने वाले यूपी एसटीएफ के यह दोनों आखिरी संस्थापक अधिकारी हैं। दोनों ने पुलिस सेवा का स्वर्णिम काल देखा है और चुनिंदा काबिल अधिकारियों में शुमार होने का गौरव हासिल किया।
गौरतलब है कि गोरखपुर के कुख्यात बदमाश श्रीप्रकाश शुक्ल ने 1996 से अपराधिक दुनिया में आतंक मचाना शुरू किया। उसकी दहशत के आगे बाहुबली हरिशंकर तिवारी, प्रतापगढ़ के बाहुबली नेताओं से लेकर यूपी-बिहार के माफिया तक नतमस्तक थे। उसके बढ़ते वर्चस्व और भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या के बाद सरकार ने उसके सफाए का आदेश दे दिया। श्रीप्रकाश शुक्ला ने प्रदेश के एक शीर्ष नेता की हत्या करने की साजिश रच दी थी। इसके बाद सत्ता के गलियारों में खबर फैली कि श्रीप्रकाश शुक्ल ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या करने की सुपारी ली है, जिससे हड़कम्प मच गया। श्रीप्रकाश शुक्ल के खात्मे के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का मई 1998 में गठन किया गया। उसका मुखिया यूपी कैडर के आईपीएस अजयराज शर्मा को बनाया गया। वह अजयराज शर्मा बाद में दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बने थे।
अजयराज शर्मा के साथ आईपीएस अरुण कुमार, पीपीएस कैडर के राजेश पांडेय, सत्येन्द्र वीर सिंह के अलावा सब इंस्पेक्टर श्यामाकांत त्रिपाठी और अविनाश मिश्र को शामिल किया गया। एसटीएफ की इस पहली टीम की मेहनत रंग लाई और गाजियाबाद के इंदिरापुरम इलाके में श्रीप्रकाश शुक्ल को उसके तीन साथियों के साथ ढेर कर दिया गया। इसके बाद एसटीएफ को बंद करने की कोशिश हुई लेकिन इसी बीच लखनऊ और पूर्वांचल में ठेकों को लेकर चल रहे गैंगवार ने सरकार के सिर में दर्द कर दिया था। इस समस्या को खत्म करने के लिए यूपी एसटीएफ को जारी रखने का निर्णय लिया गया। एसटीएफ के इन फाउंडर सदस्यों में अजयराज शर्मा दिल्ली पुलिस कमिश्नर बन कर कई साल पहले रिटायर हो चुके हैं।
सतेन्द्रवीर सिंह अलीगढ़ और जिलों के एसएसपी व एसपी रहकर रिटायर हुए हैं। श्यामाकांत त्रिपाठी नोएडा में इंस्पेक्टर रहे। उन्होंने पदोन्नति के बाद सीओ बनकर लखनऊ में कई सर्किल में काम किया और रिटायर हो चुके हैं। अविनाश मिश्रा भी रिटायर हो चुके हैं। शेष संस्थापक सदस्यों में अरुण कुमार और राजेश पांडेय ही रह गए थे जो आज रिटायर हो गए। यह भी संयोग है कि डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी समेत यूपी कैडर के नौ आईपीएस अधिकारी बुधवार को सेवानिवृत्त हुए हैं। इनमें प्रदेश के डीजीपी हितेश चन्द्र अवस्थी, डीजी स्तर के दो, आईजी स्तर के दो, डीआईजी स्तर के तीन और एसपी स्तर के दो अधिकारी शामिल हैं। पीपीएस संवर्ग के 12 अफसर भी आज रिटायर हो गए।