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लाखों चढ़ाते हैं साल भर में लाखों पाते हैं बाबा का प्रसाद

गोरखनाथ को चढ़ने वाली खिचड़ी के दाने-दाने का होता है सदुपयोग. मंदिर के भंडारे, वनवासी आश्रम, अंध विद्यालय और धर्मार्थ संस्थाओं में जाता है चावल-दाल. जरूरतमंदों को शादी-ब्याह में भी दी जाती है.

गिरीश पांडेय

मकर संक्रांति के महापर्व पर गोरखनाथ बाबा को प्रसाद के रूप में लाखों लोग खिचड़ी (दाल-चावल)चढ़ाते हैं। इसे प्रसाद के रूप में साल भर लाखों लोग पाते भी हैं। बाबा गोरखनाथ की धरती पर आस्था और समरसता के महापर्व मकर संक्रांति का महा उत्सव शुरू हो गया है। बाबा गोरखनाथ के दरबार में वैश्विक माहामारी कोरोना के नए वेरिएंट के बीच पड़ रहे पर्व पर भी लोगों की अस्‍था में कोई कमी नहीं आई है। करीब माह भर तक गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मंदिर के विस्तृत परिसर में खिचड़ी मेले का आयोजन होता है। इस दौरान वहां आने वाले लाखों श्रद्धालु गुरु गोरखनाथ (बाबा) को खिचड़ी दाल-चावल चढ़ाते हैं।

मकर संक्रांति, रविवार, मंगलवार और अन्य सार्वजिक छुट्टियों के दिन खिचड़ी चढ़ाने वालों की भारी भीड़ उमड़ती है। तब ऐसा लगता है, मानों चावल-दाल की बारिश हो रही हो। सवाल उठता है इतनी मात्रा में चढ़ने वाले चावल-दाल का क्या होता है! दरअसल बाबा गोरखनाथ को चढ़ने वाले चावल-दाल को पूरे साल लाखों लोग प्रसाद के रूप में पाते हैं। मंदिर में चढ़ने वाली सब्जियां और अन्न मंदिर के भंडारे, गरीबों के यहां शादी-ब्याह में, अंध विद्यालय और ऐसी ही अन्य संस्थाओं को गोरखनाथ मंदिर से जाता है।

मंदिर के भंडारे में रोज करीब 600 लोग पाते हैं प्रसाद

मंदिर से करीब चार दशक से जुड़े द्वारिका तिवारी के मुताबिक परिसर में स्थित संस्कृत विद्यालय, साधुओं और अन्य स्टॉफ के लिए भंडारे में रोज करीब 600 लोगों का भोजन बनता है। नियमित अंतराल पर समय-समय पर मंदिर में होने वाले आयोजनों में भी इसी का प्रयोग होता है। इन आयोजनों में हजारों की संख्या में लोग प्रसाद पाते हैं। इस सबको जोड़ दें तो यह संख्या लाखों में पहुंच जाती है। मंदिर के भंडारे से अगर कुछ बच जाता है वह गोशाला के गायों के हिस्से में चला जाता है। इस तरह मंदिर प्रशासन अन्न के एक-एक दाने का उपयोग करता है।

तीन बार में होती है ग्रेडिंग

भक्तगण बाबा गोरखनाथ को चावल-दाल के साथ आलू और हल्दी आदि भी चढ़ाते हैं। सबको एकत्र कर पहले बड़े छेद वाले छनने से चाला जाता है। इससे आलू और हल्दी जैसी बड़ी चीजें अलग हो जाती हैं। फिर इसे महीन छनने से गुजारा जाता है। इस दौरान आम तौर पर चावल-दाल भी अलग हो जाता है। थोड़ा-बहुत जो बचा रहता है उसे सूप से अलग कर दिया जाता है। ये सारा काम मंदिर परिसर में रहने वाले कर्मचारी और उनके घर की महिलाएं करती हैं।

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