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7 सितंबर को चंद्रग्रहण: सूतक काल में अयोध्या राम मंदिर से खाटूश्यामजी तक रहेंगे कपाट बंद

जानें पौराणिक कारण और घर के मंदिर में क्या करें

वाराणसी। 7 सितंबर की रात को लगने वाले पूर्ण चंद्रग्रहण का असर पूरे देश के धार्मिक स्थलों पर पड़ेगा। ग्रहण का सूतक काल दोपहर 12:57 बजे से शुरू होकर 8 सितंबर रात 1:26 बजे तक चलेगा। परंपरानुसार इस दौरान देश के सभी प्रमुख मंदिरों में कपाट बंद कर दिए जाते हैं और ग्रहण समाप्ति के बाद विशेष शुद्धिकरण अनुष्ठानों के बाद ही दर्शन की अनुमति होती है। काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी), मथुरा, अयोध्या के साथ उत्तर भारत के अन्य प्रमुख मंदिर दोपहर से ही बंद कर दिए जाएंगे और 8 सितंबर की सुबह स्नान-पूजन व शुद्धि के बाद कपाट खोले जाएंगे।

7 सितंबर को दोपहर से ही श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के पट बंद कर दिए जाएंगे। ग्रहण के दौरान किसी भी तरह का पूजन या दर्शन नहीं होगा। ग्रहण समाप्ति के बाद सुबह विशेष स्नान, हवन और शुद्धिकरण के उपरांत ही पुनः कपाट खोले जाएंगे। मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर में भी ग्रहण के आरंभ से पूर्व ही कपाट बंद हो जाएंगे। परंपरा है कि ग्रहण खत्म होने के बाद ठाकुरजी का स्नान-अभिषेक, वस्त्र परिवर्तन और विशेष भोग अर्पित कर ही दर्शन प्रारंभ होते हैं। राजस्थान का प्रसिद्ध खाटूश्यामजी मंदिर भी इस दौरान बंद रहेगा। ग्रहण समाप्ति के बाद श्याम बाबा का शुद्धिकरण और विशेष आरती के उपरांत कपाट भक्तों के लिए पुनः खोले जाएंगे।

बागेश्वर धाम (गढ़ा, मध्यप्रदेश):बागेश्वर बाला जी धाम में भी चंद्रग्रहण के कारण सूतक काल में दर्शन बंद रहेंगे। धाम प्रशासन के अनुसार ग्रहण उपरांत शुद्धिकरण और विशेष अनुष्ठान के बाद भक्तों को दर्शन की अनुमति दी जाएगी।

क्यों बंद रहते हैं मंदिर? (पौराणिक कारण)

हिंदू धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि ग्रहण काल में राहु और केतु द्वारा सूर्य या चंद्रमा को ग्रसित करने की घटना होती है। इसे अशुभ प्रभाव वाला समय माना गया है। मान्यता है कि इस दौरान वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। देवता अपने अलंकरणों और भोग को ग्रहण काल में नहीं रखते, इसलिए मंदिरों के कपाट बंद किए जाते हैं। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान, अभिषेक, हवन और शुद्धिकरण द्वारा पुनः मंदिर की पवित्रता बहाल की जाती है।

घर के मंदिर में क्या करें?

सूतक काल शुरू होते ही (7 सितंबर, दोपहर 12:57 बजे) घर के पूजा स्थान के कपाट भी बंद कर देना चाहिए। इस दौरान दीपक या धूप न जलाएँ और मूर्तियों को न छुएँ। तुलसी दल या कुशा को भोजन पर रख दें, ताकि भोजन दूषित न हो। ग्रहण समाप्ति (8 सितंबर, रात 1:26 बजे) के बाद स्नान कर घर के मंदिर की मूर्तियों का जल से शुद्धिकरण करें, फिर दीपक जलाकर आरती करें।

विशेष मंदिर: श्रीकालाहस्तीश्वर (तमिलनाडु)

संपूर्ण भारत में केवल श्रीकालाहस्तीश्वर मंदिर ऐसा है, जो ग्रहण के समय भी बंद नहीं होता। मान्यता है कि यह राहु-केतु पूजा का विशेष स्थल है, इसलिए यहाँ ग्रहण काल में भी पूजा-दर्शन जारी रहता है।

भक्तों को क्या करना चाहिए

  • सूतक काल में पूजा-पाठ, भोजन और शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
  • गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
  • ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान, घर और मंदिर में शुद्धिकरण, और दान-पुण्य करना शुभ माना गया है।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, किसी भी **मेडिकल इमरजेंसी** को ग्रहण के कारण टालना उचित नहीं है।

इस तरह 7 सितंबर को चंद्रग्रहण के समय देश के बड़े मंदिर—**अयोध्या राम मंदिर, मथुरा जन्मभूमि, खाटूश्यामजी, बागेश्वर धाम और काशी विश्वनाथ सहित अधिकांश धार्मिक स्थल**—बंद रहेंगे। ग्रहण समाप्ति के बाद शुद्धिकरण अनुष्ठानों के बाद ही कपाट भक्तों के लिए खोले जाएंगे। यह परंपरा न केवल धार्मिक अनुशासन है, बल्कि पौराणिक मान्यता के अनुसार देवताओं की पवित्रता और शक्ति की रक्षा का उपाय भी है।

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7 सितंबर का ग्रहण : धार्मिक मान्यता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्योतिषीय प्रभावों के साथ सम्पूर्ण जानकारी

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