Varanasi

वाराणसी का वह चिकित्सक, जिसके शब्द ही दवा बन जाते थे..

वाराणसी के सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. अश्विनी कुमार जैन सिर्फ डॉक्टर नहीं, एक संवेदनशील आत्मा थे। उनके शब्द ही मरीजों के लिए दवा बन जाते थे। “संकल्प” संस्था के संस्थापक सदस्य के रूप में उन्होंने “क्षय मुक्त काशी, निरोग काशी” अभियान चलाया। कोविड महामारी में निःस्वार्थ सेवा करते हुए उन्होंने असंख्य जीवन बचाए और अंततः उसी सेवा में अपना जीवन न्योछावर कर दिया। आज उनके पुत्र डॉ. हर्षित जैन और पुत्रवधू डॉ. आंचल जैन उसी सेवा भावना को आगे बढ़ा रहे हैं। डॉ. जैन की करुणा आज भी वाराणसी की आत्मा में बसती है।

  • डॉ. अश्विनी कुमार जैन – एक ऐसे करुणामय चिकित्सक, जिन्होंने मरीजों को केवल दवा नहीं, बल्कि विश्वास और संवेदना से जीवन दिया

वाराणसी की संकरी गलियों में जब भी कोई बीमार पड़ता था, लोग कहते थे -“डॉ. अश्विनी जैन से मिल लो, बस उनसे बात हो जाए तो आधा दर्द चला जाता है।” यह वाक्य कोई अतिशयोक्ति नहीं था, बल्कि हजारों मरीजों का साझा अनुभव था। मलदहिया स्थित उनकी क्लिनिक में रोज उमड़ने वाली भीड़ केवल इलाज के लिए नहीं आती थी, वह आती थी एक संवेदना भरे संवाद के लिए, जहाँ डॉक्टर का चेहरा दवा से अधिक उम्मीद देता था। उनके पास जो भी आता वो उनके स्वभाव का, उनके मृदभाषिता का कायल हो जाता।

कितने ही रोगियों को मैंने देखा है वे और उनके परिजन हाथ में रिपोर्ट ले कर परेशान बदवहास से आते और डा0 साहब का रोगी की नब्ज हाथ में ले कर ये कहना ‘‘ क्या हो गया बाबा, अरे कुछ नही सब ठीक हो जायेगा, हम काहे के लिए हैं’’ और परिजन रिपोर्ट हाथ में लिए परेशान सर, ये बड़ा है, ये घटा है तब डा0 साहब कहते थे ‘‘ बेटवा ये हमारा सरर्दद है तुम्हारा नही तुम बाबा की सेवा करो बाकी सब हम पे छोड़ो। ये सुन कर रोगी और परिजन के चेहरे पर असीम राहत के भाव आते।

दवा से ज्यादा डॉ. जैन के शब्दों ने ठीक किया। उनके क्लिनिक की दीवारों ने हजारों उम्मीदों की कहानियाँ सुनीं, और उनके शब्दों ने उन कहानियों को जीवन दिया। 1987 में स्थापित हुआ यह छोटा-सा क्लिनिक ,धीरे-धीरे वाराणसी के चिकित्सा संसार का एक विश्वसनीय केंद्र बन गया। और इस क्लिनिक के पीछे थे एक ऐसे डॉक्टर, जो समय के पाबंद, स्वभाव से मृदुभाषी, और मन से करुणामय थे।

डॉ. अश्विनी कुमार जैन - एक ऐसे करुणामय चिकित्सक, जिन्होंने मरीजों को केवल दवा नहीं, बल्कि विश्वास और संवेदना से जीवन दिया
डॉ. अश्विनी कुमार जैन – एक ऐसे करुणामय चिकित्सक, जिन्होंने मरीजों को केवल दवा नहीं, बल्कि विश्वास और संवेदना से जीवन दिया

अनुशासन और सादगी – उनकी पहचान

आज जहाॅं देर से क्लिनिक आना चिकित्सकों का स्वभाव बन गया है, डॉ. जैन अपने समय के अत्यंत पाबंद थे। क्लिनिक में उनका आना-जाना, मरीजों को देखने का क्रम – सब सटीक और व्यवस्थित था। वे कहते थे -“मरीज सिर्फ दवा के लिए नहीं आता, उसे भरोसा चाहिए।” उनके सहयोगी बताते हैं कि वे कई बार इतने व्यस्त होते थे कि भोजन का समय निकल जाता था, फिर भी किसी मरीज को यह महसूस नहीं होने देते थे कि डॉक्टर थके हैं। कई बार जब क्लिनिक के स्टाफ ने कहा – “सर, आज बहुत लंबी लाइन है, थोड़ा जल्दी करें,” तो वे मुस्कुराते हुए कहते -“अगर यह लाइन उम्मीद की है, तो हमें थकना नहीं चाहिए।”

क्षय (टीबी) रोगियों के लिए समर्पित अभियान

सामाजिक सरोकारों के प्रति भी डा0 अश्विनी जैन हमेंशा एक कदम आगे रहे, नगर की अग्रणी सामाजिक संस्था संकल्प के वे संस्थापक सदस्य थे जिनके मार्गदर्शन में संस्था द्वारा क्षय रोगियों के चिकित्सार्थ क्षय मुक्त काशी निरोग काशी अभियान विगत 26 वर्षों से चलाया जा रहा है। डॉ. जैन का एक बड़ा योगदान टीबी (क्षयरोग) से पीड़ित मरीजों के लिए था। उन्होंने वाराणसी और आसपास के क्षेत्रों में कई बार निःशुल्क चिकित्सा शिविर लगाए। वे कहते थे – “जिसे दवा की जरूरत है, उसे पैसों की वजह से रुकना नहीं चाहिए।” उनके ये शब्द सिर्फ आदर्श नहीं थे, बल्कि हर शिविर में वे खुद उपस्थित रहते थे – मरीजों की जांच करते, दवाएँ बाँटते, और हर बार मुस्कुराकर कहते, “अब जब आपने इलाज शुरू कर दिया है, तो बीमारी भागने में ज्यादा वक्त नहीं लेगी।”

भोले का भक्त दिल से था भोला

वे पूर्वांचल के लोकप्रीय चिकित्सक थे लेकिन उनके अन्दर अभिमान लेश मात्र भी नही था वे खाॅंटी बनारसी थे और बनारस को जीते थे। डा0 साहब ऐलोपैथी विधा के चिकित्सक थे परन्तु वे प्राकृतिक चिकित्सा को भी पूरा सम्मान देते थे किसी भी विधा में जो भी अच्छाईयाॅं होती उसे ग्रहण करने व मानने में वे जरा भी संकोच नही करते थें। अपने अति व्यस्त दिनचर्या में भी वे अपने परिवार को भरपूर समय देते थे। उनके बनारसीपन का तो ये आलम था कि क्लीनिक से रात को आने के बाद मन कर गया तो स्लीपर ही पैर में डाला मित्रों को लिया और गोदौलिया घूमते हुए लक्षमी चाय वाले के यहाॅं सड़क पर मस्त मौला चाय पी उस वक्त उनके चेहरे जो मासूमियत रहती वो देख कर कोई नही कह सकता कि ये वो शख्स है जिसकी संजी़दगी से प्रतिदिन सैकड़ों लाग सेहतमंद होते हैं।

तीन भाइयों का अटूट प्रेम, जिसने परिवार को बनाया एक आदर्श उदाहरण

डॉ. अश्विनी कुमार जैन का जन्म वाराणसी के एक प्रतिष्ठित आभूषण व्यवसायी परिवार में हुआ था। यह परिवार शहर के अग्रवाल और जैन समाज में आदर का पात्र रहा है। पिता स्व. गुलाल चंद जैन अपने समय के जाने-माने व्यापारी थे,परंतु पुत्र की शिक्षा पूरी होने से पहले ही वे इस दुनिया को छोड़ गए। तीनों भाइयों में वे सबसे छोटे थे -अनिल कुमार जैन, आलोक जैन, और अश्विनी कुमार जैन। तीनों भाइयों का रिश्ता आज भी प्रेम और सहयोग का उदाहरण है। बड़े भाई अनिल कुमार जैन ,आलोक जैन आभूषण व्यवसाय को आगे बढ़ा रहे हैं।

फाइल फोटो

कोविड का संकट – जब उन्होंने खुद को दांव पर लगा दिया

साल 2020 में जब देश कोविड महामारी से जूझ रहा था, वाराणसी भी भय और अनिश्चितता के माहौल में घिरा हुआ था। डॉक्टर अपने परिवार की सुरक्षा में जुट गए थे, लेकिन डॉ. अश्विनी जैन घर में नहीं रुके । वे कहते थे – “यह समय डरने का नहीं, डटे रहने का है।” कई मरीज जिन्हें अस्पताल में जगह नहीं मिल पाती थी, वे सीधे उनके पास पहुँचते थे। डॉ. जैन ने अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना दिन-रात मरीजों का इलाज किया। कई लोगों की जान बची, कई परिवारों ने राहत की सांस ली। परंतु नियति को कुछ और मंजूर था। असंख्य जीवन बचाने वाला यह करुणामय चिकित्सक स्वयं उस संक्रमण की चपेट में आ गया।

22 अक्टूबर 2020 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया – पर पीछे छोड़ गए एक ऐसी सेवा की परंपरा, जो आज भी उनके नाम से जीवित है। आज उनके पुत्र डॉ. हर्षित जैन और पुत्रवधू डॉ. आंचल जैन उसी क्लिनिक को उसी भावना के साथ चला रहे हैं। लोग कहते हैं – “हर्षित जैन अपने पिता की परछाईं हैं – वही करुणा, वही विनम्रता।” और “डॉ. आंचल जैन अपने ससुर की तरह ही रोगी के प्रति वात्सल्य से भरी हुई चिकित्सक हैं।” उनके परिवार ने सेवा को परंपरा बना दिया है – जो आज भी उसी समर्पण के साथ जीवित है। परिवार के वरिष्ठ सदस्य अनिल जैन और आलोक जैन हर कदम पर उनके साथ खड़े हैं। अनिल जैन कहते हैं – “अश्विनी ने हमें सिखाया था कि अपने लिए तो हर कोई जीता है, कुछ दूसरों के लिए भी जीना चाहिए।” यह वाक्य ही उनके परिवार के जीवन का सार है -मानवता से जुड़ी हुई सेवा, जिसमें स्वार्थ का कोई स्थान नहीं।

“मरीजों से पहले उनके दिल का इलाज कर देते थे” डॉ. अश्विनी कुमार जैन – जिन्होंने साबित किया कि डॉक्टर का सबसे बड़ा औजार, न स्टेथोस्कोप होता है, न दवा की शीशी, बल्कि एक संवेदनशील हृदय होता है।”

श्रद्धांजलि

यह लेख समर्पित है – उनके परिवार को, उनकी संस्था संकल्प को, और उन असंख्य क्षय रोगियों एवं निर्धन रोगियों को, जिनके जीवन में डां अश्विनी कुमार जैन ने नई उम्मीद जगाई। मनुष्य बड़ा नहीं होता अपने पद से – वह बड़ा होता है अपनी करूणा से। और डॉ अश्विनी जैन की करूणा, वाराणसी की आत्मा बन चुकी है।

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