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पूरे साल उपेक्षित रहने वाले कौवों को पितृ पक्ष में मिलता है खास आदर,कौवों को निवाला देना शुभ

सनातन धर्म में मान्यता,कौए को भोजन कराना अपने पितरों तक भोजन पहुंचाने के समान

वाराणसी । सनातन धर्म में हर जीव का खास स्थान है। पूरे साल उपेक्षित रहने वाले कौवों को पितृ पक्ष में खास आदर मिलता है। पितृ पक्ष में कौवे को निवाला देने के बाद पितर भी संतुष्ट होते हैं। पितृ पक्ष के 15 दिनों तक माना जाता है कि पूर्वजों की आत्मा पृथ्वी लोक में अपने वंशजों के घर के आसपास कौवों के रूप में ही आती है। अनादि विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड के कर्मकांडी प्रदीप पांडेय बताते हैं कि पितृ पक्ष के दौरान अगर घर के आंगन में कौवा आकर बैठ जाए तो यह शुभ संकेत माना जाता है।

कौवा अगर आपका दिया हुआ भोजन कर ले तो यह बहुत शुभ होता है। यह इस बात का प्रतीक है कि आपके पूर्वज प्रसन्न हैं। पितृ पक्ष में कौवे को 15 दिन तक भोजन करवाना बहुत पुण्यकारी माना जाता है। कौवों के भोजन कराए बिना श्राद्ध और तर्पण अधूरा ही रह जाता है। प्रदीप पांडेय बताते हैं कि यदि कौआ उस भोजन के अंश को ग्रहण कर लेता है तो आपके पितर तृप्त हो जाते हैं। कहा जाता है कि कौआ के द्वारा खाया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त होता है।

एक पौराणिक कथा है कि त्रेतायुग में इंद्र देव के पुत्र जयंत ने कौआ का भगवान राम देख रहे थे। उहोंने एक तिनका चलाया तो वह जयंत रूपी कौआ की एक आंख में जाकर लग गया। इससे उसकी एक आंख खराब हो गई। इसके बाद कौआ ने भगवान राम से अपनी गलती के लिए माफी मांगी और क्षमा याचना करने लगा। इस पर भगवान प्रसन्न हुए और उसे आशीर्वाद दिया कि पितृ पक्ष में कौआ को दिया गया भोजन का अंश पितृ लोक में निवास करने वाले पितर देवों को प्राप्त हो। इस वजह से कौआ को भोजन दिया जाता है।

गरुड़ पुराण में लिखा है कौवा यमराज का संदेश वाहक है। पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं। पूजन अनुष्ठान करते हैं और अन्न जल का भोग कौए के माध्यम से लगाते हैं। कौआ यम का यानी यमराज का प्रतीक होता है। कौए को भोजन कराना अपने पितरों तक भोजन पहुंचाने के समान है। कौवे का आना घर के आंगन में आना और भोजन ग्रहण करना शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार यमराज ने कौए को वरदान दिया था कि तुम्हें दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा।

तब से ही यह प्रथा चली आ रही है। श्राद्ध पक्ष में कौवे को खाना खिलाने से यमलोक में पितर देवताओं को शांति का अनुभव होता है। श्राद्ध के बाद जितना जरूरी ब्राह्मण भोज होता है उतना ही जरूरी कौए को भोजन कराना भी होता है। शास्त्रों में कौए एवं पीपल को पितृ प्रतीक माना जाता है।(हि.स.)

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