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प्राचीन रेशम मार्ग, अब बनेगा आधुनिक फ़ौलादी पथ

गंगटोक : सदियों पहले से तिब्बत के साथ व्यापार के सिल्क रूट यानी रेशम मार्ग को 21वीं सदी में रेल लाइन बिछा कर आयरन रूट यानी फ़ौलादी पथ बनाने की योजना पर तेजी से काम चल रहा है तथा अगले साल सिक्किम के रंगपो तक और एक दशक में चीन शासित तिब्बत की सीमा पर नाथू ला तक रेल लाइन तैयार हो जाएगी।

वर्ष 2019-20 में स्वीकृत पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में चार देशों – नेपाल, बंगलादेश, भूटान एवं चीन की सीमाओं से घिरे चिकेन नेक क्षेत्र में सिलीगुड़ी के सिवोक से सिक्किम की सीमा पर स्थित औद्योगिक क्षेत्र रंगपो तक करीब 45 किलोमीटर तक रेलवे लाइन बिछाने का काम वर्ष 2024 दिसम्बर तक पूरा हो जाएगा जबकि रंगपो से गंगटोक की लाइन पर इसी वित्त वर्ष में काम शुरू होने की उम्मीद है। गंगटोक से नाथू ला तक करीब 160 किलोमीटर की लाइन का सर्वेक्षण का काम शुरू हो गया है। इस लाइन का निर्माण ऐसी डिजाइन से किया जा रहा है जिस पर ट्रेन 100 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से दौड़ सके।

इस परियोजना से जुड़े उच्चाधिकारियों का मानना है कि गंगटोक तक रेल लाइन बन जाने से गंगटोक एवं सिलीगुड़ी के बीच यात्रा का समय डेढ़ से दो घंटे में रह जाएगा जो अभी सड़क मार्ग से साढ़े तीन से चार घंटे लगते हैं।परियोजना में सिक्किम के पहले रंगपो रेलवे स्टेशन की डिजाइन भी तैयार हो गई है जो पारंपरिक सिक्किमी बौद्ध शैली की है जो दूर से एक पैगोडा की भांति नज़र आएगा।राष्ट्रीय मीडिया की एक टीम ने हाल ही में देश में सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण इस सिंगल लाइन परियोजना के प्रथम चरण में सिवोक रंगपो लाइन परियोजना से जुड़े विभिन्न स्थानों पर सुरंगों एवं पुलों के निर्माण की स्थिति का जायजा लिया।

दार्जिलिंग सिलीगुड़ी के सांसद राजू बिष्ट भी इस मौके पर उपस्थित हुए।श्री बिष्ट ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा कई रोड़े अटकाने के कारण वर्ष 2010 की परियोजना पर निर्माण कार्य 2019 में फाॅरेस्ट क्लीयरेंस मिलने के बाद शुरू हो पाया और अब यह परियोजना तेजी से पूर्णता की ओर अग्रसर है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व एवं प्रशासनिक क्षमता के कारण ऐसा हो पाया है। उन्होंने कहा कि यह रेल लाइन चीन की सीमा तक नाथू ला तक जाएगी। इससे देश की सुरक्षा और सीमा पार व्यापार को बल मिलेगा।

परियोजना को कार्यान्वित करने वाले रेल मंत्रालय के उपक्रम इरकाॅन के परियोजना निदेशक मोहिंदर सिंह ने पत्रकारों को बताया कि 44.96 किलोमीटर की इस रेल लाइन का 38.62 किलोमीटर का हिस्सा 14 सुरंगों से और लगभग 2.24 किलोमीटर का हिस्सा 13 प्रमुख एवं 9 छोटे पुलों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि 14 में से 6 सुरंगों पर ब्रेक थ्रू हो गया है और आखिरी सुरंग टी 14 तैयार हो गई है जिस पर पटरी बिछाने का काम का टेंडर होने वाला है। इस खंड में पांच स्टेशन – सिवोक, रियांग, तीस्ता (भूमिगत स्टेशन), मेली और रंगपो होंगे। इस परियोजना में 3.51 किलोमीटर का हिस्सा सिक्किम में आता है और बाकी पश्चिम बंगाल में।श्री मोहिंदर सिंह ने कहा कि हिमालय के इस नाजुक पहाड़ी क्षेत्र में करीब 38 फेज़ में रेलवे के इंजीनियरों की टीम दिन रात काम कर रही हैं।

उन्होंने बताया कि 14 सुरंगों में सबसे बड़ी सुरंग संख्या 8 करीब 5.30 किलोमीटर लंबी है जिसमें आधे से अधिक खुदाई हो चुकी है। 13 प्रमुख पुलों में से सबसे लंबा पुल सुरंग 13 और सुरंग 14 को जोड़ने वाला रंगपो चू नदी पर निर्माणाधीन पुल है जो 424 मीटर का है। इसके स्तंभ भी 86 मीटर ऊंचे बनाए गए हैं।सुरंगों के निर्माण एवं उसमें आने वाली कठिनाइयों के बारे में श्री मोहिंदर सिंह ने विस्तार से हर पहलू की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सुरंग बनाने के लिए न्यू आस्ट्रियन टनलिंग मेथड (एनएटीएम) का इस्तेमाल किया गया है और सुरंग घोड़े के खुर के आकार में बनायी जा रही है। इसमें टनल खोदते समय भूगर्भ विशेषज्ञ रहते हैं जो निरंतर भौगोलिक परिस्थितियों का आकलन करने के साथ राॅक बोल्टिंग के बारे में सलाह देते हैं।

उन्होंने कहा कि करीब एक या डेढ़ मीटर खोदने के बाद भूस्खलन रोकने एवं सुरंग में स्थायित्व लाने के लिए ऊपर एवं इर्द-गिर्द राॅक बोल्टिंग के लिए करीब 9 मीटर लंबे पाइप अंदर गाड़े जाते हैं और उनके भीतर एवं इर्द-गिर्द मशीन से प्रैशर देकर कंक्रीट भरी जाती है। इसके बाद सतह पर एक प्लेट को फिक्स कर दिया जाता है। इसके उपरांत सतह पर मशीन से कंक्रीट का प्लास्टर किया जाता है।उन्होंने कहा कि सुरंग में एक बड़ी कठिनाई अंदर से पानी के रिसाव की आती है। इसके लिए प्लास्टर के बाद जहां जहां पानी आ रहा होता है, वहां पीवीसी की शीट लगाई जाती है और फिर चारों ओर सरिये के ढांचे वाली रिब फिट की जाती है। पीवीसी की शीट के नीचे पानी की बाहर निकासी के लिए पाइप लगाने के पश्चात रिंग में करीब एक फुट मोटी कंक्रीट की भराई करके सुंरग का ढांचा तैयार किया जाता है।मीडिया टीम के सदस्यों ने देखा कि रंगपो में आखिरी सुरंग टी 14 में पहाड़ का जल जगह-जगह पाइपों के जरिए बाहर आ कर सुरंग में बीचोंबीच बह रहा था।

श्री सिंह ने कहा कि पटरी बिछाते समय एक ड्रेनेज प्रणाली से पानी को बाहर निकालने का इंतजाम किया जाएगा।उन्होंने बताया कि सिवोक की समुद्र तल से ऊंचाई करीब 153 मीटर और रंगपो की ऊंचाई 421 मीटर है। इस कारण पटरी 80 मीटर की दूरी पर एक मीटर का एलीवेशन दिया गया है। लेकिन रंगपो से गंगटोक के बीच करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर 421 मीटर से लगभग 1650 मीटर की ऊंचाई हो जाती है। इस कारण से इस खंड पर 40 मीटर से कम दूरी पर एक मीटर का एलीवेशन देना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि सिवोक रंगपो लाइन की तुलना में रंगपो गंगटोक लाइन का काम अपेक्षाकृत आसान होगा और जल्दी पूरा होगा।

श्री सिंह ने बताया कि गंगटोक तक लाइन का अंतिम लोकेशन सर्वेक्षण 80 प्रतिशत से अधिक पूरा हो चुका है और कुछ क्षेत्र सेना के अधीन होने के कारण रक्षा मंत्रालय से मदद मांगी गई है और उम्मीद है कि यह मसला जल्दी हल हो जाएगा और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को मंजूरी मिलने के साथ ही टेंडर की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी।गंगटोक से नाथू ला तक की परियोजना के बारे में उन्होंने कहा कि इस लाइन पर आरंभिक सर्वेक्षण की प्रक्रिया शुरू हो गई है। एक अन्य अधिकारी के अनुसार गंगटोक से नाथू ला की लाइन करीब 160 किलोमीटर की होने की संभावना है।उन्होंने कहा कि परियोजना के दूसरे चरण में रंगपो से गंगटोक के बीच करीब 35 किलोमीटर लंबी लाइन बिछाने के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार कर ली गयी है। गंगटोक से नाथू ला तक रेल लाइन का प्रारंभिक सर्वेक्षण होना है।

प्राचीन काल से ही नाथू ला तिब्बत से व्यापार का एक प्रमुख केंद्र रहा है और यह रास्ता तभी से रेशम मार्ग कहलाता है। नाथू ला के समीप शेरथांग में सीमापार व्यापार का केंद्र है। कुछ समय पहले तक तिब्बती व्यापारी सप्ताह के कुछ निश्चित दिनों में सुबह अपने ट्रकों से सामान ले कर नाथू ला में सीमा पार करके शेरथांग आते थे और दोपहर बाद वापस लौट जाते थे। पर दोनों देशों के बीच मौजूदा तनावपूर्ण स्थिति के कारण फिलहाल यह कारोबार बंद है।विशेषज्ञों के अनुसार नाथू ला रेल लिंक परियोजना भारत की तीन महत्वाकांक्षी एवं सामरिक रेल परियोजनाओं में से एक है जो चीन शासित तिब्बत की सीमा तक बनेंगी। अन्य दो परियोजनाएं लद्दाख में और अरुणाचल प्रदेश में तवांग तक पटरी बिछाने की योजनाएं हैं।नाथू ला एवं इसके पास ही विवादित डोकलाम का ट्राई जंक्शन सामरिक दृष्टि से बहुत संवेदनशील है और इसलिए अधिकांशतः सुरंगों में बनने वाली यह लाइन सेना के लिए तेज रफ्तार एवं सुरक्षित रसद आपूर्ति का बहुत ही अहम माध्यम होगी।

जबकि शांति काल में यह रेल लाइन न केवल भारत के साथ सीमापार व्यापार में बल्कि नेपाल, बंगलादेश और भूटान के लिए चीन के साथ व्यापार के लिए पारगमन सुविधा प्रदान कर अच्छी-खासी आय अर्जित करने में सक्षम होगी।स्थानीय नागरिकों को भी इस रेल लाइन का बेसब्री से इंतजार है। उनका कहना है कि बारिश के मौसम में भूस्खलन के कारण सिक्किम का शेष भारत से संपर्क टूट जाता है। कभी मार्ग पूर्णत: अवरुद्ध हो जाता है तो कभी दार्जिलिंग होकर लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। चूंकि निर्माणाधीन रेल लाइन का अधिकांश भाग सुरंग में होने से भूस्खलन के कारण मार्ग बाधित नहीं होगा और उन्हें हर मौसम में सुविधा जनक परिवहन सुलभ हो सकेगा।कुछ नागरिकों को यह भी लगता है कि पहाड़ी क्षेत्र में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति आसान होगी और उनकी परिवहन लागत घटने से उन्हें सामान कुछ सस्ती दर पर मिल सकेगा।(वार्ता)

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