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नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली बेंच ने नोटबंदी के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से नोटबंदी के फैसले की आलोचना की गई, तो केंद्र सरकार ने इस फैसले का बचाव किया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा कि नोटबंदी के नतीजों के बारे में न तो आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड को पता था और न ही केंद्रीय कैबिनेट को कोई जानकारी थी। चिदंबरम ने कहा कि सरकार ने ये फैसला लेने से पहले पुराने और नये नोटों के बारे में कुछ नहीं सोचा। कोई आंकड़ा नहीं जुटाया गया। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या नोटबंदी का फैसला 24 घंटे के अंदर लिया जा सकता है। चिदंबरम ने कहा था कि नोटबंदी के बाद ज्यादातर नोट वापस आ गए। नोटबंदी के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई वह कानूनी तौर पर उल्लंघन है।

चिदंबरम ने कहा कि सरकार कहती है कि नोटबंदी जैसा कदम कालेधन को बाहर निकालने के लिए उठाया गया, लेकिन दो हजार रुपये का नोट शुरू करने के बाद कालेधन की जमाखोरी करना और ज्यादा आसान हो गया है। चिदंबरम ने वरिष्ठ वकील स्वर्गीय रामजेठमलानी से जुड़े एक केस का उदाहरण दिया था जिसमें उन्होंने अपने दावे को सही साबित करने के लिए कहा था कि एक सूटकेस में एक करोड़ रुपये आ सकते हैं।

चिदंबरम ने कहा कि दो हजार का नोट आने के बाद जेठमलानी को एक करोड़ रखने के लिए आधा सूटकेस ही बहुत होता। चिदंबरम ने कहा था कि नोटबंदी के समय 86.4 फीसदी नोट ले लिए गए। अगर कल वे 99.9 फीसदी नोट ले लें तब क्या होगा। क्या ये कोर्ट शक्तिविहीन है। ये सही या गलत आर्थिक नीति की तरह लगती है लेकिन इस पर हमारी दलील सुनी जाए तब फैसला किया जाए।

केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि 2016 के पहले भी देश में दो बार नोटबंदी की गई। पहली नोटबंदी 1946 में और दूसरी नोटबंदी 1978 में हुई थी। नोटिफिकेशन की धारा 4 के मुताबिक ग्रेस पीरियड दिया जा सकता है। अटार्नी जनरल ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का ये कहना बेबुनियाद है कि नोटबंदी से आप्रवासी भारतीयों का अपमान हुआ। नोटबंदी का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद इस पर संसद ने चर्चा की। संसद ने पूरी चर्चा कर इसे मंजूरी भी दी।

जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली बेंच ने 12 अक्टूबर को इस मामले में दायर सभी 59 याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था। सुनवाई के दौरान चिदंबरम ने कहा था कि ये मामला अकादमिक नहीं है। उनकी इस दलील पर अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि ये बिल्कुल अकादमिक प्रक्रिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की बेंच को आठ सवाल तय किये थे। कोर्ट ने संविधान बेंच के समक्ष जो सवाल रखे थे उनमें पहला ये कि क्या नोटबंदी का फैसला आरबीआई एक्ट की धारा 26 का उल्लंघन है। दूसरा क्या नोटबंदी के 8 नवंबर 2016 और उसके बाद के नोटिफिकेशन असंवैधानिक हैं। तीसरा कि क्या नोटबंदी संविधान के दिए समानता के अधिकार और व्यापार करने की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। चौथा कि क्या नोटबंदी के फैसले को बिना तैयारी के साथ लागू किया गया जबकि ना तो नई करेंसी का सही इंतजाम था और ना ही देश भर में कैश पहुंचाने का। पांचवां सवाल कि क्या बैंकों और एटीएम से पैसा निकालने की सीमा तय करना अधिकारों का हनन है।

छठा सवाल कि क्या जिला सहकारी बैंको में पुराने नोट जमा करने और नए रुपये निकालने पर रोक सही नहीं है। सातवां प्रश्न कि क्या कोई भी राजनीतिक पार्टी जनहित के लिए याचिका डाल सकती है या नहीं। आठवां और अंतिम सवाल ये कि क्या सरकार की आर्थिक नीतियों में सुप्रीम कोर्ट दखल दे सकता है। संविधान बेंच में जस्टिस एस अब्दुल नजीर के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना शामिल हैं।(हि.स.)

 

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