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व्यापम घोटाला में तय अदालती भाषा में आरोप पत्र की प्रति उपलब्ध कराने प्रावधान नहीं: सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि अदालत के कामकाज के लिए राज्य सरकार की ओर से तय की गई भाषा में आरोपी को आरोप पत्र की एक प्रति प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है।न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने मध्य प्रदेश के व्यापम भर्ती घोटाले से जुड़े मामले मेंउच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की याचिका पर सुनवाई के बाद अपने फैसले में ये तथ्य स्पष्ट किया।पीठ कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरसी) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो जांच एजेंसियों को निजली अदालत के कामकाज के लिए राज्य सरकार की ओर से तय की गई भाषा में आरोपी को आरोप पत्र की एक प्रति प्रदान करने के लिए बाध्य करे।

न्यायमूर्ति ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा कि अदालत की भाषा के अलावा किसी अन्य भाषा में आरोप पत्र दाखिल करना अवैध नहीं है। कोई भी आरोपी इस आधार पर डिफ़ॉल्ट जमानत नहीं मांग सकता है कि आरोप पत्र तो समय के भीतर दायर किया गया था, लेकिन वह उस भाषा को नहीं समझ पाया था।शीर्ष अदालत का यह फैसला व्यापम घोटाले के दो आरोपियों को हिंदी में आरोप पत्र की एक प्रति उपलब्ध कराने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सीबीआई की अपील पर आय है। उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई की अपील स्वीकार कर ली।शीर्ष अदालत के समक्ष सीबीआई ने दलील देते हुए कहा कि आरोपी उच्च शिक्षित थे और अच्छी अंग्रेजी जानते थे। आगे कहा गया कि व्यापम घोटालों के मामलों में आरोप पत्र पृष्ठों की संख्या के हिसाब बहुत बड़ा है और उनका हिंदी में अनुवाद करने में बहुत समय लगने के साथ ही महंगी प्रक्रिया है।

पीठ ने हालांकि कहा कि यदि कोई आरोपी भाषा समझने में असमर्थ है तो वह आरोप पत्र का अनुवादित संस्करण उपलब्ध कराने के लिए कह सकता है। साथ ही यह भी कहा यदि अभियुक्त पक्ष ऐसे वकील द्वारा अदालत में रखा जा रहा है जो आरोप पत्र की भाषा से परिचित है तो अनुवाद प्रस्तुत करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी।पीठ ने कहा, “आरोपी को अपना बचाव करने का उचित अवसर मिलना चाहिए। उसे आरोप पत्र में उसके खिलाफ सामग्री को जानना और समझनने का अवसर मिलना चाहिए। यह संविधान के अनुच्छेद 21 का सार है। अनुवाद करने के लिए विभिन्न सॉफ्टवेयर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल की उपलब्धता के साथ , अनुवाद उपलब्ध कराना अब उतना मुश्किल नहीं होगा।”शीर्ष अदालत ने कहा कि निर्धारित अवधि के भीतर अदालत की भाषा या जिस भाषा को अभियुक्त नहीं समझता है, उसके अलावा किसी अन्य भाषा में दायर आरोप पत्र अवैध नहीं है। कोई भी उस आधार पर डिफ़ॉल्ट जमानत का दावा नहीं कर सकता है।

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी, केंद्रीय जांच ब्यूरो जैसी केंद्रीय एजेंसियां ​​हैं जो गंभीर अपराधों या व्यापक प्रभाव वाले अपराधों की जांच करती हैं। जाहिर है, ऐसी केंद्रीय एजेंसियां ​​हर मामले में सीआरपीसी की धारा 272 द्वारा निर्धारित संबंधित अदालत की भाषा में अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने की स्थिति में नहीं होंगी। पीठ ने यह भी कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 272 के अनुसार संबंधित राज्य सरकार यह निर्धारित कर सकती है कि उच्च न्यायालय के अलावा राज्य के भीतर प्रत्येक अदालत की भाषा क्या होगी।पीठ ने स्पष्ट किया, “सीआरपीसी की धारा 272 के तहत शक्ति यह तय करने की शक्ति नहीं है कि जांच एजेंसियों या पुलिस द्वारा जांच के रिकॉर्ड को बनाए रखने के प्रयोजनों के लिए किस भाषा का उपयोग किया जाएगा।”(वार्ता)

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