National

SUPACE : अब न्यायपालिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस करेगी लंबित मामलों को सुलझाने में मदद

सुप्रीम कोर्ट की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कमेटी ने अपना आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पोर्टल ‘सुपेस’ (सुप्रीम कोर्ट पोर्टल फॉर असिस्टेंस इन कोर्ट एफिशिएंसी) हाल ही में लॉन्च किया है। इसको लॉन्च करते हुए पूर्व सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि यह ‘मानव बुद्धि और मशीन लर्निंग का उचित मिश्रण’ है। यह टेक्नोलॉजी एक मानव बुद्धि के साथ मिलकर काम करेगी।

‘SUPACE’ के माध्यम से एक आमजन की न्याय तक पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी। जरूरतमंद लोगों को न्याय दिलाने में न्यायपालिका के लिए यह मददगार साबित होगा। अनुमान है कि इससे समय की काफी बचत होगी, जिससे भारतीय न्याय प्रणाली में लंबित मामलों की संख्या को कम करने में मदद मिलेगी।

लंबित मामलों को जल्द सुलझाया जाएगा

‘सुपेस’ को लेकर प्रसार भारती ने विधि और न्याय मंत्रालय के पूर्व सचिव पी. के. मल्होत्रा से बात की। उन्होंने बताया कि इसके अंदर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर केस के डिस्पोजल के लिए जो स्पीड चाहिए होती है, वह लाई जाएगी। आज सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट में इसके लिए रिसर्च वर्क होता है, रिसर्च असिस्टेंट होते हैं। वो लोग केस से तथ्यों, उससे जो भी मामलें जुड़े होते हैं, कौन-सी जजमेंट उसमें लागू होंगी, ये सभी चीजें रिसर्चर को उपलब्ध करवाते हैं।

एक रिसर्चर अगर इस काम को करने के लिए कुछ समय लेता है तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से अब कम समय लगेगा। वह आगे कहते हैं, “सुपेस पोर्टल की मदद से जो काम घंटो में होता था, अब उसे मिनटों में किया जाएगा और जो काम कई दिनों में होता था उसे कुछ ही घंटों में किया जा सकेगा।”

एक्यूरेसी लेवल बढ़ाने में मिलेगी मदद

पीबीएनएस को पी. के. मल्होत्रा बताते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करने से एक्यूरेसी लेवल भी बढ़ जाएगा। वह कहते हैं कि बॉम्बे हाई कोर्ट में जब एक याचिका दायर होती है तो वह कम से कम 200 से 400 पन्नों की होती है। उसमें कई वॉल्यूम होती हैं। उन सबको पढ़कर, उसका एनालिसिस करना काफी मुश्किल भरा और समय लेने वाला काम है, लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक मनुष्य की तरह काम करती है, ये उन डाक्यूमेंट्स में से तथ्यों को निकालेगी और उन्हें सामने रखेगी। ये सारी जानकारी न्यायाधीश (जज) को एक जगह पर मिल जाएगी और इसकी एक्यूरेसी भी ज्यादा होगी।

नहीं आएगी नौकरियों में कोई कमी

पीबीएनएस ने जब उनसे पूछा कि क्या आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की वजह से न्यायपालिका से जुड़ी नौकरियों में कमी आएगी? इसके जवाब में उन्होंने कहा, जब कंप्यूटराइजेशन का दौर आया था तब भी ऐसे सवाल उठे थे, लेकिन क्या तब नौकरियों में कमी आई थी? जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को हेल्थ सेक्टर में लाया गया तब भी नौकरियां नहीं गई। जब बैंकिंग प्रणाली के लिए ट्रांजेक्शन के लिए टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया गया तब भी नौकरियां नहीं गई थी। आज आप घर बैठे-बैठे ट्रांजेक्शन कर सकते हैं। हमें समझना होगा कि सही तरह से उपयोग में लाया जाए तो यह हमारे जीवन को आसान बनाती है। लीगल प्रोफेशन में इसे एक टूल या माध्यम की तरह प्रयोग में लाया जाना चाहिए। वह आगे कहते हैं, “बेशक इससे वकालत का तरीका बदल जाएगा, काम करने के तरीकों में बदलाव आएगा, लेकिन यह हमारे जीवन को सरल बनाएगी।”

पी. के. मल्होत्रा कहते हैं, हाल के कुछ वर्षों में न्यायपालिका में कई बदलाव हुए हैं। ‘सुपेस’ से पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक और प्रोसेस शुरू किया। सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट अंग्रेजी भाषा में होती हैं, लेकिन जो व्यक्ति अंग्रेजी नहीं जानते हैं वो इसे समझ नहीं पाते हैं। इसी को देखते हुए साल 2020 में एक प्रोजेक्ट शुरू किया गया। उसके अंदर 9 अलग-अलग भाषा, जो हमारे संविधान के शेड्यूल 8 में दी गई हैं, उनमें जजमेंट का अनुवाद करके लिटिगेंट को और वकीलों को दिया जाता है। इससे पहले के कुछ सालों में जो फैसले 2008 में आते थे, उसका ट्रांसलेशन 2010 में जाकर मिलता था। अब यह अनुवाद जल्द ही मिल जाता है।

ए.आई. की निर्णय लेने में नहीं होगी कोई भागीदारी

दरअसल, सुपेस या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को निर्णय लेने के लिहाज से डिजाइन नहीं किया गया है। इसका काम केवल तथ्यों को संसाधित करना है और फिर उन्हें न्यायाधीशों की सहायता के लिए उपलब्ध करवाना है, जिससे समय की बचत होगी। इस पर पूर्व सी.जे.आई, एस.ए. बोबडे कहते हैं कि वह खुद मानते हैं कि ए.आई. को मानवीय समस्याओं से जुड़े मामलों पर निर्णय लेने देना खतरनाक हो सकता है। मानवों के बीच चर्चा जरूरी होती है। इसलिए, यह सुनिश्चित किया गया है कि ‘सुपेस’ के माध्यम से ए.आई. केवल तथ्य और उससे जुड़े कानून जुटाए और इसे जज को उपलब्ध कराए, न कि उन्हें निर्णय लेने में सुझाव दे।

अभी किया गया है ट्रायल मोड़ पर शुरू

पी. के. मल्होत्रा ‘सुपेस’ को लेकर कहते हैं कि यह एक नया मेथड है। इसके ऊपर जब तक लिटीगेंट को विश्वास नहीं होगा, कॉन्फिडेंस नहीं आएगा, तब तक हम इसको सफलतापूर्वक लागू नहीं कर पाएंगे। इसलिए इसे अभी ट्रायल मोड पर शुरू किया है। ‘सुपेस’ को अभी बॉम्बे और दिल्ली हाई कोर्ट में केवल क्रिमिनल केसेज को डिसाइड करने के लिए ट्रायल मोड पर शुरू किया गया है। अगर ये एक्सपेरिमेंट सफल होता है तो इसको आगे बढ़ाया जाएगा और दूसरी कोर्ट्स में भी इसे लागू किया जाएगा।

BABA GANINATH BHAKT MANDAL  BABA GANINATH BHAKT MANDAL

Related Articles

Back to top button