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लोकतंत्र में व्यवधान की रणनीति को समर्थन नहीं मिलता: धनखड़

नयी दिल्ली : राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने संसद में स्वस्थ बहस को फलते-फूलते लोकतंत्र की पहचान करार देते हुए आज कहा कि सदस्यों को टकराव से बचना चाहिए क्योंकि व्यवधान की रणनीति को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का लोग कभी समर्थन नहीं करेंगे।श्री धनखड़ ने सोमवार को यहां संसद के विशेष सत्र के पहले दिन “ संविधान सभा से लेकर 75 वर्षों की संसदीय यात्रा – उपलब्धियां, अनुभव, यादें और सीख” विषय पर चर्चा से पहले अपनी आरंभिक टिप्पणी में कहा कि यह सदस्यों को चिंतन और आत्मनिरीक्षण करने का उपयुक्त अवसर उपलब्ध कराता है।

उन्होंने कहा , “ स्वस्थ बहस एक फलते-फूलते लोकतंत्र की पहचान है। हमें टकराव से बचना चाहिए। एक रणनीति के रूप में व्यवधान को हथियार के रूप में प्रयोग करने का लोग कभी भी समर्थन नहीं करेगें। हम सभी को संवैधानिक रूप से लोकतांत्रिक मूल्यों का पोषण करने के लिए नियुक्त किया गया है और इसलिए हमें लोगों के विश्वास पर खरा उतरना चाहिए और उसकी पुष्टि करनी चाहिए।”उन्होंने कहा कि हम सभी पर लोगों के हितों की रक्षा का दायित्व है और यह इसके लिए उचित अवसर है। यह इस बात को भी याद करने का अवसर है , “ हमारे महान स्वतंत्रता सेनानी सच्चे अर्थों में लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले योद्धा थे, हमारे विद्वान संविधान निर्माता बहुत दूरदर्शी थे, जिन्होंने बहुत विचार-विमर्श के बाद हमें एक ऐसा संविधान प्रदान किया जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है।

”सभापति ने कहा कि संविधान सभा से लेकर आज अमृत काल तक, सात दशक से अधिक की यात्रा करते हुए संसद ने कई मील के पत्थर देखे हैं। इस दौरान इस यात्रा में 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि में ‘नियति के साथ मिलन’ से लेकर 30 जून, 2017 की मध्यरात्रि में सेवा एवं वस्तु कर , जीएसटी व्यवस्था के अनावरण तक कई ऐतिहासिक क्षण आए।उन्होंन कहा कि संविधान सभा में तीन वर्षों तक चले विभिन्न सत्रों में हुए विचार-विमर्श ने मर्यादा और स्वस्थ बहस का उदाहरण पेश किया। विवादास्पद और अत्यधिक विभाजनकारी मुद्दों पर सर्वसम्मति की भावना से बातचीत की गई। हम सभी के लिए इससे काफी कुछ सीखने को मिलता है। उन्होंने कहा , “ हमारे राजनेताओं ने हमेशा संवैधानिक आदर्शों का सम्मान किया है तथा उनका पालन किया है और इसके सार को जनता तक पहुंचाकर संविधान का लोकतंत्रीकरण किया है।

उन्होंने कहा कि सिविल सेवा में नौकरशाह दिन-रात यह सुनिश्चित करने में लगे हुए हैं कि राज्य की मशीनरी स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से काम करे। उन्होंने कहा कि जनता की संसदीय लोकतंत्र में गहरी आस्था और अटूट विश्वास है। इस विश्वास ने ही लोकतांत्रिक मूल्यों को नकारने वाले प्रायसों को हर संभव विफल किया है। इस प्रकार, हमारे लोकतंत्र की सफलता, ‘हम भारत के लोग’ का एक सामूहिक प्रयास है।सभापति ने उम्मीद जतायी कि सदस्य अपने विचारों से सदन को समृद्ध करेंगे और बड़े पैमाने पर लोगों को संसद की 75 साल की यात्रा के बारे में बताएंगे तथा आने वाले वर्षों के लिए दृष्टिकोण प्रकट करेंगे। उन्होंने कहा कि सदस्यों द्वारा संसद के अंदर विवेक, हास्य, व्यंग्य और यहां तक कि तीखी टिप्पणियों का उपयोग एक सशक्त लोकतंत्र का महत्वपूर्ण अभिन्न पहलू है।

उम्मीद है कि हम विवेक, हास्य और विद्वतापूर्ण बहसों का पुनरुद्धार देखेंगे।उन्होंने कहा कि संसद के पवित्र परिसर ने वर्षों से उतार-चढ़ाव देखे हैं, जिन पर हमें विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है ताकि 2047 में जब देश स्वतंत्रता की शताब्दी मनाए, तो भारत को उसके सही स्थान पर स्थापित किया जा सके। (वार्ता)

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