सहज भाषा में ‘सहज गीता’
नयी दिल्ली : कर्म- अकर्म दोनों के द्वारा, मिलता पुण्य अपार । किंतु तजने से उत्तम है, कर्म करना स्वीकार।।महाबाहो, न द्वेष धरो, न इच्छा उर में धार। द्वंद रहित मानस ही खोले, अपने मुक्ति द्वार।।श्रीमदभगवत् गीता को सहज भाषा में लिखने, समझने और समझाने का प्रयास “सहज गीता” है। गीता के सभी अठारह अध्यायों को अवधी, ब्रज और भोजपुरी तथा हिन्दी की खड़ी बोली में रचने का प्रयास किया गया है। पूरी पुस्तक गेय रुप में है और दोहावली है। पुस्तक की शुरुआत धृतराष्ट्र के वाक्य से हाेती है जिसका लेखक ने अनुवाद- “धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में, युद्ध करने को आएं। क्या करते हैं पांडव कौरव, संजय मुझे बताएं”- किया है। अध्याय के अंत में प्रमुख विशिष्ट श्लोक मूल संस्कृत में दिये गये हैं। इससे पुस्तक की प्रमाणिकता बनती है।
पुस्तक का प्रारंभ उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के संदेश से होता है जिसमें कहा गया है कि आधुनिक काल में विभिन्न भाषाओं में गीता के कई अनुवाद उपलब्ध हैं लेकिन संपूर्ण गीता का सरल हिन्दी कविता में अनुवाद दुर्लभ है। सरल भाषा और कविता का रुप होने के कारण “सहज गीता” इस दिव्य ग्रंथ का एक बहुत ही रोचक रुप प्रस्तुत करती है।परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के स्वामी चिदानंद सरस्वती इस पुस्तक का अनुमोदन करते हुए कहा है कि “सहज गीता” के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य संदेश एवं गीताजी में समाहित अथाह ज्ञान, दिव्य, गूढ़ और सर्वथा प्रासंगिक संदेशों को सरल एवं सहज भाषा में जनमानस तक पहुंचाने का अद्भुत प्रयास अत्यंत सराहनीय है।
आईआईटी कानपुर और आईआईएम बेंगलुरु से शिक्षित और कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में सलाहकार रहे अविनाश कुमार ने श्रीमदभगवत् गीता को आम जनमानस की बाेली में अनुवाद किया है जिसे “सहज गीता” का नाम दिया गया है। अविनाश कुमार का कहना है कि गीता के संदेश जनमानस तक पहुंचाने के लिए इसके 700 श्लाेकों को सरल हिन्दी में कविताबद्ध किया है। गीता का ज्ञान सभी तक पहुंचे, यह पुस्तक इस दिशा में छोटा सा प्रयास है।लेखक ने पुस्तक काे रोचक बनाने के लिए प्रत्येक अध्याय के अंत में संबंधित अध्याय से जुड़े श्लोकों की सूची एवं टिप्पणी भी संलग्न की है। इससे पाठक लगातार पुस्तक से जुड़ा रहता है। इसके अलावा गीता गूढ़ है और इसे रोचक और रुचिपरक बनायें रखने के लिए “सहज गीता” साज सज्जा पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है।
पुस्तक रेखाचित्रों का प्रयोग किया गया है जो अध्यायों के अनुरुप है। रेखाचित्रों के लिए योगमुद्रा में कृष्ण, मोरपंखी और बांसुरी आदि का प्रयोग किया गया है।अध्याय सूची में लेखक ने अध्याय के नाम के साथ विषय वस्तु का भी उल्लेख किया है जिससे पाठक को अध्याय को समझने और आगे बढ़ने में मदद मिलती है। लेखक ने मूल गीता की भांति ही सहज गीता में भी प्रत्येक अध्याय का नामकरण किया है। पुस्तक के अंत में परिशिष्ट में लेखक ने श्रीकृष्ण के प्रचलित नाम, गीता के प्रमुख 10 सूत्र और वर्णित गुणों का उल्लेख किया है। पुस्तक का प्रकाशन 150 पृष्ठों में प्रभात प्रकाशन ने किया है। (वार्ता)
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