रिपोर्ट : देश में 8 राज्य जलवायु परिवर्तन से होंगे सबसे अधिक प्रभावित
17 अप्रैल को राष्ट्रीय जलवायु संबंधी खतरों की आकलन रिपोर्ट जारी की गई। इसमें पाया गया कि झारखंड, मिजोरम, ओडिशा , छत्तीसगढ़, असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल को जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक खतरा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इन राज्यों में एवं देश के ज्यादातर पूर्वी हिस्सों में प्राथमिकता पर अनुकूलन हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
बताना चाहेंगे, जलवायु जोखिम के आधार पर राज्यों और जिलों की पहचान करने वाले एक साझा ढांचे का उपयोग कर भारत में अनुकूलन योजना के लिए जलवायु संबंधी खतरों की आकलन रिपोर्ट विज्ञान एवं प्रद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के प्रोफेसर आशुतोष शर्मा द्वारा जारी की गई है।
डीएसटी जलवायु परिवर्तन पर दो राष्ट्रीय मिशनों को कर रहा है लागू
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत डीएसटी दो राष्ट्रीय मिशनों को लागू कर रहा है। ये ‘नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग द हिमालयन इकोसिस्टम’ और ‘नेशनल मिशन फॉर स्ट्रैटेजिक नॉलेज फॉर क्लाइमेट चेंज’ हैं। इन मिशनों के ही हिस्से के रूप में डीएसटी 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में राज्य जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठों का समर्थन कर रहा है। इन राज्यों के सीसी प्रकोष्ठों को सौंपे गए अन्य कार्यों के अलावा, जिला और उप-जिला स्तरों पर जलवायु परिवर्तन के खतरों का आकलन करना उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। राष्ट्रीय स्तर पर संवेदनशीलता के आकलन का काम इसी का विस्तार है।
‘कॉमन फ्रेमवर्क’ आईआईटी मंडी, आईआईटी गुवाहाटी और भारतीय विज्ञान संस्थान द्वारा किया गया विकसित
कॉमन फ्रेमवर्क, आईआईटी मंडी, आईआईटी गुवाहाटी और भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु द्वारा विकसित किया गया था। क्षमता निर्माण प्रक्रिया के लिए भारतीय हिमालयी क्षेत्र के सभी 12 राज्यों (पूर्व-विभाजित जम्मू और कश्मीर सहित) में इसे लागू किया गया था। इसके अभ्यास के परिणाम को हिमालयी राज्यों के साथ साझा किया गया था। राज्यों से मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया और हिमालयी राज्यों से इसकी उपयोगिता के आधार पर राज्यों के क्षमता निर्माण के लिए पूरे देश में जलवायु परिवर्तन के खतरों के मूल्यांकन अभ्यास को लागू करने का निर्णय लिया गया।
अनुकूलन परियोजनाओं और कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए जलवायु परिवर्तन के खतरों का मूल्यांकन है महत्वपूर्ण
भारत जैसे विकासशील देश में उपयुक्त अनुकूलन परियोजनाओं और कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए जलवायु परिवर्तन के ख़तरों के मूल्यांकन को एक महत्वपूर्ण अभ्यास माना जाता है। विभिन्न राज्यों और जिलों के लिए यह आकलन पहले से ही मौजूद है, लेकिन राज्यों और जिलों की एक दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि दोनों के आकलन के लिए उपयोग किए जाने वाले ढांचे अलग हैं, जिससे नीति और प्रशासनिक स्तरों पर निर्णय लेने की क्षमता सीमित हो जाती है। इसलिए मूल्यांकन के लिए एक साझा ढांचे की आवश्यकता है।
यह रिपोर्ट अनुकूली निवेश, विकास और अनुकूलन कार्यक्रमों को प्राथमिकता देने में करेगा मदद
भारतीय विज्ञान संस्थान के सेवानिवृत्त जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ, प्रो एनएच रविंद्रनाथ, जिनकी इस प्रयास में अहम् भूमिका थी, ने बताया कि इस रिपोर्ट ने सबसे कमजोर राज्यों, जिलों और पंचायतों की पहचान करने में मदद की है और यह अनुकूली निवेश, विकास और अनुकूलन कार्यक्रमों को प्राथमिकता देने में सहायता करेगा। आईआईटी मंडी के निदेशक, प्रोफेसर अजीत कुमार चतुर्वेदी और आईआईटी गुवाहाटी के निदेशक टी. जी. सीतारमण ने उम्मीद जताई है कि राज्य जल्द ही जलवायु कार्रवाई शुरू करने के लिए यह रिपोर्ट मांगेंगे ।