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रेमडेसिविर : सरकार अस्पताल भेज रही इंजेक्शन, फिर भी पर्ची लेकर दर-दर भटक रहे परिजन…

कालाबाजार से खरीदना हुई मजबूरी, इसका जिम्मेदार कौन...

रायपुर । छत्तीसगढ़ में इन दिनों कोरोना ने कोहराम मचा रखा है। सरकार के तमाम दावे कागजी नजर आ रहे हैं। राज्य सरकार ने रेमडेसिविर इंजेक्शन की खुले बाजार में बिक्री पर रोक लगा दी है। इंजेक्शन की निगरानी की जिम्मेदारी कलेक्टर और औषधि विभाग के अफसरों को दे दी गई है, लेकिन सरकारी दावे और कागजी फरमानों के बावजूद कोरोना संक्रमित मरीजों के परिजन पर्ची लेकर दर-दर की ठोंकरें खाने का मजबूर हैं। सरकार ने मदद के लिए औषधि निरीक्षकों को जिम्मेदारी तो दी है, लेकिन सिवाय मदद के औषधि निरीक्षक अपनी तनख्वाह पकाने में मस्त हैं।

कुछ दिनों पुराने सरकारी फरमान की यदि बात करें तो सरकार ने रेमडेसिविर इंजेक्शन की सप्लाई सीधे अस्पतालों में मरीजों के लिए सुनाई है, लेकिन अस्पताल भी मरीजों के मुताबिक इंजेक्शन नहीं मिलने का कारण बताकर परिजनों को पर्ची थमाकर दर-दर भटका रहे हैं। अब परिजनों को सरकारी फरमान के बाद आखिर खुले बाजार में इंजेक्शन मिले कैसे? इसके लिए सरकार ने परिजनों की असुविधा को रोकने औषधि विभाग के अफसरों को जिम्मेदारी दी है, लेकिन येे वही औषधि विभाग के अफसर हैं, जिन्हें अस्पतालों में भेजे गए इंजेक्शन की मात्रा और मरीजों की संख्या की पूरी जानकारी है। फिर भी कम संख्या में इंजेक्शन भेजे जाने और उसके बाद परिजनों की तरफ से ठोंकरें खाने के बाद मदद की गुहार लगाने पर अनभिज्ञता जाहिर करते हैं।

इतने सब के बाद इंजेक्शन की कालाबाजारी थमने का नाम नहीं ले रही है। 899 रुपए के सरकारी दाम वाले इंजेक्शन की कालाबाजार में कीमत 8 से 9 हजार रुपए प्रति वाइल है। सरकार ने प्रमाण सहित कालाबाजारियों को पकड़ा भी है फिर भी ठोस कार्रवाई करने से बच रही है, और ऐसा हो भी क्यों न आखिर ये सब चल भी जिम्मेदारों के संरक्षण पर ही रहा है।

गौर करने वाली बात यह है कि आज रायपुर के एक अस्पताल में भर्ती मरीज को रेमडेसिविर इंजेक्शन की जरूरत पड़ी। सरकारी दावे के अनुसार मरीज के परिजन ने अस्पताल को इंजेक्शन लगाए जाने की अनुमति भी दे दी और अंत में अस्पताल प्रबंधन ने इंंजेक्शन नहीं होने की बात कहते हुए परिजन को ही पर्ची थमा दी। अब परिजन दिनभर इंजेशन की तलाश में पूरा शहर भटकते रहे, लेकिन इंजेक्शन कहीं नहीं मिली। अंत में उन्हें कालाबाजार से इंजेक्शन मनमाने दाम पर खरीदना पड़ा। इंजेक्शन नहीं मिलने पर मदद के लिए परिजन ने औषधि विभाग के अधिकारी हिरेन पटेल से सम्पर्क किया तो पटेल ने इंजेक्शन अस्पताल में मिलने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया।

अब सरकार के सारे दावे जमीनी हकीकत पर तो निराधार सयााबित हो रहे हैं। वहीं प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री को प्रदेश की विवशताएं तो गिना ही दी है। अब अंत में सरकार फिर अपनी सारी नाकामियां केन्द्र के मत्थे मढऩे का तैयार है। सरकार के मुखिया भूपेश बघेल वैसे तो कोरोना से लडऩे मुस्तैद हैं, लेकिन उनके सह-कर इसमें उनका सहयोग क्यों नहीं कर रहे ये समझ से परे है। एक समय में जब प्रदेश ने कोरोना की जंग जीती थी तब जीत का शहरा सभी ने साथ मिलकर पहना था, अब वही साथ और एकता दिखाई नहीं पड़ रही।

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