धारा 377 को बहाल करने की सिफारिश
न्याय, नागरिक सुरक्षा, साक्ष्य विधेयकों पर संसदीय समिति ने दी तीन रिपोर्ट
नयी दिल्ली : संसद की एक स्थायी समिति ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को प्रस्तावित नयी न्याय संहिता में बहाल किये जाने की सिफारिश की है जबकि उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ इसे संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों के विरुद्ध करार दे चुकी है।गृह मामलों पर विभाग-संबंधित संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष एवं राज्य सभा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य बृजलाल द्वारा शुक्रवार को यहां उप राष्ट्रपति एवं राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंपी गयी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता के उद्देश्यों के मद्देनजर भारतीय दंड संहिता धारा 377 फिर से शामिल करना और बनाये रखना अनिवार्य है।
इस धारा में अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध माना गया था और उसके विरुद्ध दंड के प्रावधान किये गये थे। इसकाे चुनौती देने वालों का कहना था कि इसकी वजह से समलैंगिक जोड़ों को समाज में अपराधी के रूप में देखा जाता है और उनके साथ भेदभाव का बर्ताव होता है। इसे एक संस्था ने गैर संवैधानिक करार देने के लिये 2001 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।समिति ने भारतीय न्याय संहिता 2023 संबंधी अपने 286 वें प्रतिवेदन में कहा है कि नवजोत सिंह जौहर बनाम भारत सरकार ( 2018) मामले में उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से माना कि धारा 377 संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है, इसके बावजूद इस धारा के उपबंध वयस्कों के साथ असहमति वाले शारीरिक संभोग, नाबालिगों के साथ इस तरह के सभी कृत्यों और वहशीपनों के कृत्यों के मामले में लागू हैं।
समिति ने कहा, “ हालांकि, अब , भारतीय न्याय संहिता 2023 में पुरुष, महिला ,ट्रांसजेंडर के साथ असहमति वाले यौन अपराध और वहशिता के लिये कोई उपबन्ध नहीं किया गयाहै।प्रतिवेदन में कहा गया है, “ समिति महसूस करती है कि भारतीय न्याय संहिता के उद्देश्याें और कारणों के कथन में बताये गये उद्देश्यों के साथ तालमेल बिठाने के लिये भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को फिर से शामिल करना और बनाये रखना अनिवार्य है जो अन्य बातों के साथ समलैंगिक रूप से तटस्थ अपराधों की दिशा में परिकल्पिप कदम पर प्रकाश डालता है। यह गैर सहमति वाले कृत्यों के संबंध में है। ”प्रतिवेदन में कहा गया है,“ इसीलिये समिति सरकार से प्रस्तावित कानून में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को शामिल करने की सिफारिश करती है।
”समिति ने स्त्री-पुरुष विवाह संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को भी विवाह की प्रथा की रक्षा के लिये लैंगिक रूप से तटस्थ बनाकर बनाये रखने की सिफारिश की है जबकि उच्चतम न्यायालय की एक खंडपीठ ने जोजेफ शाईन बनाम भारत सरकार (2018) मामले में इस धारा को अनुच्छेद 14,15 और 21 का उल्लंघन बताते हुये रद्द कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि इस कानून की वजह से विवाहित महिला को पति की सम्पत्ति बना दिया गया है।प्रतिवेदन में कहा गया है कि समिति का विचार है कि भारतीय समाज में विवाद की प्रथा पवित्र और इसकी पवित्रता की रक्षा करने की आवश्यकता है।समिति ने प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता और साक्ष्य कानून संबंधी विधेयकों पर समिति की तीन रिपोर्टें प्रस्तुत कीं।इनमें इन प्रस्तावित संहिताओं और विधेयकों के मसौदों में सुधार और संशोधन के विषय में कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये गये हैं।
श्री बृजलाल ने श्री धनखड़ से संसद भवन में भेंट कर उन्हें समिति के तीनों प्रतिवेदन सौंपे।श्री धनखड़ ने सोशल नेटवर्क मंच एक्स पर इस मुलाकात की फोटों के साथ एक पोस्ट में इसकी जानकारी दी। समिति ने देश में दांडिक प्रशासन में सुधार की दृष्टि से इन विधेयकों को महत्वपूर्ण बताया है।पोस्ट में कहा गया है कि श्री बृजलाल ने उपराष्ट्रपति एवं राज्य सभा के सभापति को ‘भारतीय न्याय संहिता, 2023′ पर समिति की 246वीं रिपोर्ट, ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023’ पर 247वीं रिपोर्ट, और ‘भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023’ पर 248वीं रिपोर्ट की अंग्रेजी और हिंदी की प्रतियां सौंपीं।समिति ने इन विधेयकों को लाने की सरकार की अभूतपूर्व पहल की सराहना की है जो ‘हमारे दांडिक न्याय प्रशासन का आधार बनेंगे।’इन विधेयकों पर चार वर्ष तक गहन चर्चा कराने के गृह और विधि मंत्रालयों के कार्य की भी समिति ने सराहना की है।
समिति का कहना है कि ‘इन विधेयकों की प्रतीक्षा बहुत लम्बे समय से थी और ये अत्यावश्यक सुधार करने वाले हैं और साथ ही ये हमारी विधिक प्रणाली के सुचारु और पारदर्शी कामकाज के लिए अनिवार्य हैं।’(वार्ता)