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मंदिरों में ‘वीआईपी दर्शन’ के खिलाफ दायर याचिका खारिज

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने देशभर के मंदिरों में ‘वीआईपी’ यानी अति विशिष्ट लोगों को विशेष दर्शन की अनुमति देने की बढ़ती प्रथा के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया।मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने विजय किशोर गोस्वामी की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा कि यह अदालत इस मुद्दे पर निर्देश जारी नहीं कर सकती।पीठ ने हालांकि कहा कि उसका यह भी मानना ​​है कि इस तरह का विशेष व्यवहार (वीआईपी के लिए विशेष दर्शन की सुविधा) नहीं किया जाना चाहिए।

पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, “माफ करें। हम इस पर विचार नहीं करेंगे। हमारी राय हो सकती है कि कोई विशेष वरीयता नहीं दी जानी चाहिए, लेकिन यह अदालत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत निर्देश जारी नहीं कर सकती।”शीर्ष अदालत ने 27 अक्टूबर, 2024 को कहा था कि वह देशभर के प्रमुख मंदिरों में ‘वीआईपी प्रवेश शुल्क’ लगाने को चुनौती देने वाली रिट याचिका की जांच करेगी। उस याचिका में कहा गया है कि देवताओं के शीघ्र दर्शन करने के एवज में लोगों से शुल्क लेने का चलन आर्थिक रूप से वंचित भक्तों के वर्ग के साथ भेदभाव करती है। साथ ही ये प्रथा संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (सम्मान का अधिकार) का उल्लंघन करती है।

इस याचिका में कहा गया है कि देश भर के अनेक मंदिरों में शुल्क लेने की प्रथा तेजी से बढ़ रही हैं। ये शुल्क 400 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक है। ऐसे में जो लोग ये शुल्क वहन कर सकते हैं, उन्हें जल्दी दर्शन की सुविधा मिल जाती है।दूसरी ओर,आम भक्तों (जो अक्सर गरीब होते हैं और लंबी दूरी की यात्रा कर मंदिर आते हैं) को दर्शन करने में काफी देरी का सामना करना पड़ता है।याचिका में यह भी कहा गया है कि इस तरह के शुल्क समानता, सम्मान और धार्मिक स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं।(वार्ता)

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