
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन तथा जम्मू कश्मीर आरक्षण विधेयक पर संसद की मुहर
नयी दिल्ली : राज्यसभा ने जम्मू -कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2023 तथा जम्मू – कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक सोमवार को विपक्ष के बहिर्गमन के बीच सर्वसम्मति से पारित कर दिया।इसके साथ ही इन विधेयकों पर संसद की मुहर लग गयी क्योंकि लोकसभा इन्हें पहले ही पारित कर चुकी है। सदन ने विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के डा. जॉन ब्रिटास के संशोधन प्रस्ताव को उनकी अनुपस्थिति में खारिज कर दिया।जम्मू – कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक में जम्मू कश्मीर की विधानसभा में कश्मीरी विस्थापितों के लिए दो और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर के एक प्रतिनिधि के लिए सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।
विधेयक में उपराज्यपाल को कश्मीरी प्रवासी समुदाय से अधिकतम दो सदस्यों (जिनमें कम से कम एक महिला होनी चाहिए) तथा पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के विस्थापितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक सदस्य को विधानसभा में नामित करने का अधिकार दिया गया है। वर्ष 2019 के विधेयक में अनुसूचित जाति के लिए छह सीटें आरक्षित की गईं थी लेकिन अनुसूचित जनजाति के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं थी। संशोधित विधेयक में सीटों की कुल संख्या बढाकर 90 की गयी है जिसमें अनुसूचित जाति के लिए सात सीटें और अनुसूचित जनजाति के लिए नौ सीटें आरक्षित हैं।जम्मू – कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के सदस्यों को व्यावसायिक संस्थानों में नौकरियों और प्रवेश में आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। यह जम्मू एवं कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 में संशोधन करता है।
विधेयक में यह भी कहा गया है कि सरकार एक आयोग के सुझाव के आधार पर कमजोर और वंचित वर्गों की श्रेणी में किसी समुदाय को शामिल कर सकती है, या उस श्रेणी से किसी समुदाय को बाहर कर सकती है। विधेयक कमजोर और वंचित वर्गों के स्थान पर अन्य पिछ़ड़ा वर्ग को रखता है, जिसे केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर द्वारा घोषित किया जाएगा। अधिनियम से कमजोर और वंचित वर्गों की परिभाषा हटा दी गई है।केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने करीब पांच घंटे तक चली चर्चा का जवाब देते हुए कहा किआज का दिन भारत और जम्मू कश्मीर के इतिहास में स्वर्णिम दिन है। उन्होने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 370 पर अपने आदेश में आज कहा कि यह अनुच्छेद अस्थायी व्यवस्था थी। उन्होंने कांग्रेस और वाम दलों का नाम लेते हुए आरोप लगाया कि ये मोदी सरकार के निर्णय को रोकने के लिए न्यायालय गये थे।
न्यायालय ने यह भी माना है कि जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन या राष्ट्रपति शासन न्यायोचित प्रक्रिया से लगाया गया है। संविधान में राष्ट्रपति को अधिकार दिया गया कि वह अनुच्छेद 373 के प्रावधानों के अनुसार अनुच्छेद 370 में बदलाव कर सकते हैं या निरस्त कर सकते हैं। श्री शाह ने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाने में जम्मू कश्मीर विधानसभा की कोई भूमिका नहीं है। इस संबंध में राष्ट्रपति एकतरफा अधिसूचना जारी कर सकते हैं जिसका संसद के दोनों सदनों का साधारण बहुमत से अनुमोदन चाहिए। अनुच्छेद 370 समाप्त होेने के बाद जम्मू कश्मीर के संविधान का कोई अस्तित्व नहीं रहा है।गृहमंत्री ने कहा कि जम्मू कश्मीर में चुनाव कराये जायेंगे और राज्य को उचित समय में पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में 42 हजार से ज्यादा लोग मारे गये थे। उन्होंने गुजरात, असम और अन्य राज्यों में मुसलमान समुदाय की संख्या ज्यादा होने का उल्लेख करते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 अलगाववाद को बढ़ावा देती थी।
गृहमंत्री ने कहा कि कमजोर और वंचित वर्ग के स्थान पर अन्य पिछडा वर्ग शब्दों का प्रयोग किया गया है। जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के कारण लाखों हिन्दू और सिख देश के विभिन्न हिस्सों विस्थापित हो गये। ये 40 हजार 600 परिवार हैं। अब तक एक लाख से ज्यादा लोगों का पंजीकरण किया गया है। ऑनलाइन प्रक्रिया चल रही है।उन्होेंने कहा कि मोदी सरकार जम्मू कश्मीर के विस्थापित लोगों काे न्याय देने के लिए प्रतिबद्ध है। पाकिस्तान के साथ युद्धों में लाखों लोग विस्थापित होकर भारत आयें हैं। ऐसे परिवारों की संख्या 48 हजार से अधिक हैं। इन लोगों समेत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लिए भी जम्मू कश्मीर विधानसभा में सीटें हैंं और दो नामित सीटें भी रखी गयी है। श्री शाह ने आरोप लगाया कि कश्मीर में अनुसूचित जाति और जन जाति के अधिकारों को 70 साल से तीन परिवारों ने राेके रखा। उन्हाेंने कहा कि विधेयक के कारण गुर्जर समुदाय के अधिकारों में कोई बदलाव नहीं होगा। बकरवाल समुदाय को भी अलग से आरक्षण मिलेगा।
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला मोदी सरकार का है। उन्होंने अमरनाथ यात्री, पर्यटकों और अन्य लोगों का उल्लेख करते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर में परिस्थितियों में सकारात्मक बदलाव हुआ है। राज्य के युवाओं का भविष्य अंधेरे में नहीं है। पत्थर उठाने वाले युवाओं के हाथों में लैपटाप हैं। उन्होंने कहा कि अलगाव समाप्त होने से आतंकवाद समाप्त हो जाएगा।गृहमंत्री ने कहा कि राज्य में आतंकवादी घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी आयी है। सुरक्षा बलों और नागरिकों की मौत की घटनाओं में भी गिरावट आयी है। उन्होेंने कहा कि किसी का भी आतंकवाद की घटनाओं से संबंध होने पर सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी और जो सरकारी सेवा में है, उन्हें हटाया जा रहा है। सरकार आतंकवाद छोडने वालों का स्वागत करती हैं लेकिन कानून के समक्ष समर्पण करना हाेगा।
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 देश के सम्मान से जुड़ा था। यह केवल जम्मू कश्मीर का मामला नहीं था बल्कि 130 करोड़ लोगों से जुड़ा था। उन्होंने कहा कि देश में एक प्रधानमंत्री, एक संविधान और एक निशान है। डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सपना पूरा हो चुका है। पूरे देश में एक ही कानून लागू होता है और सभी को सभी योजनाओं का लाभ मिल रहा है।
कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की जांच के लिए आयोग गठित करे सरकार: तन्खा
कांग्रेस के विवेक तन्खा ने जम्मू कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को एक त्रासदी करार देते हुए सोमवार को राज्यसभा में इसकी जांच के लिए एक आयोग के गठन की मांग की।श्री तन्खा ने सदन में जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2023 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2023 पर एकसाथ चर्चा की शुरूआत करते हुए यह बात कही।इससे पहले केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ये दोनों विधेयक चर्चा और पारित किये जाने के लिए सदन में रखे। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के डा. जॉन ब्रिटास ने विधेयक का विरोध करते हुए इसे विचार विमर्श के लिए प्रवर समिति में भेजने के लिए संशोधन प्रस्ताव पेश किया।
श्री तन्खा ने कहा कि कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की जांच के लिए अब तक न तो कोई जांच बैठाई गयी और न ही कोई समिति या आयोग बनाया गया है। उन्होंने कहा कि इस नरसंहार की जांच के लिए एक आयोग बनाया जाना चाहिए।उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में हिम्मत और साहस के साथ रहने वाले कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षण विधेयक में कोई फायदे का प्रावधान नहीं किया गया है। उनके उत्तराधिकारियों के लिए भी विधेयक में प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि केन्द्र शासित प्रदेश के लोग बिजली की कमी, बेरोजगारी और अन्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं और इनका समाधान किया जाना जरूरी है।
भाजपा के सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि 2019 से पहले तक जम्मू कश्मीर की समस्या का समाधान नहीं हो सका था लेकिन मोदी सरकार ने वहां के लोगों को समस्याआें से मुक्ति दिलाई है। उन्होंने कहा कि विधेयक में वंचित वर्गों को आरक्षण की सुविधा दी गयी। वाल्मिकी समाज को भी उसका स्थान मिला है।उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद आतंकवाद की घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी आयी है। पत्थरबाजी की घटनाएं बंद हो गयी हैं। सशस्त्र बलों के हताहत होने की घटनाओं में भी कमी आयी है।
उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में अब सकारात्मक बदलाव आया है और वह विकास के मार्ग पर अग्रसर है। भर्ती अभियान चलाये जा रहे हैं और नयी रिक्तियां सर्जित की जा रही हैं। केन्द्र शासित प्रदेश में करोडों रूपये का निवेश आया है। स्थानीय उत्पादों को भी बढावा दिया जा रहा है। सरकार की नीतियों के कारण जम्मू कश्मीर में रिकार्ड तोड़ दो करोड़ पर्यटक आये हैं। केन्द्र सरकार ने अनेक केन्द्रीय परियोजनाएं शुरू की हैं। दुनिया का सबसे ऊंचा पुल भी चेनाब नदी पर बनाया जा रहा है।जम्मू कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र में भेजे जाने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जब उस समय भारत और पाकिस्तान दोनों तरफ के सेना प्रमुख अंग्रेज अधिकारी थे तो यह मामला संयुक्त राष्ट्र में क्यों ले जाना पड़ा ।
तृणमूल कांग्रेस के मोहम्मद नदीमुल हक ने कहा कि सरकार की नीतियों से ऐसा लगता है कि उसका केन्द्र शासित प्रदेश में चुनाव कराने की मंशा नहीं है। कश्मीर के लोगों को 12 से 16 घंटे तक बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है। इस परश्री शाह ने कहा कि यह गलत बयान दिया जा रहा है केन्द्र शासित प्रदेश में लोगों को निरंतर बिजली मिल रही है।द्रमुक के एम मोहम्मद अब्दुल्ला ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह सरकार देश की संस्कृति और पंरपराओं तथा मूल्यों की धज्जी उडा रही है। यह विधेयक उप राज्यपाल को विधानसभा के लिए प्रतिनिधि चुनने का अधिकार देता है जो संविधान का उल्लंघन है। विस्थापितों के लिए विधानसभा में आरक्षण देना अन्य लोगों के साथ भेदभाव है।श्री अब्दुल्ला के जम्मू कश्मीर में मानवाधिकारों तथा आत्मनिर्णय के अधिकार के संबंध में की गयी टिप्पणी को सभापति जगदीप धनखड़ ने गंभीरता से लेते हुए सदन की कार्यवाही से निकाल दिया।
उन्होंने कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरूपयोग है। उन्होंने कहा कि सदस्य इस मंच का दुरूपयोग कर रहे हैं। यह गंभीर मामला है । उच्च सदन में इस तरह की बात करना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि सदस्य किसी भी बयान का हवाला अपनी बात को बल देने के लिए नहीं दे सकते।नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि यदि संसद सदस्य अपनी बात रखने की कोशिश करता है, अपने विचार रखता है और अगर वह कानून के तहत ठीक नहीं है तो आप उसको कार्यवाही से निकाल सकते हैं।श्री शाह और नेता सदन पीयूष गोयल ने कहा कि श्री खड़गे को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वह श्री हक की बातों का समर्थन करते हैं या नहीं।(वार्ता)