रोंगटे खड़े कर देगी पल्लवी जोशी और विवेक अग्निहोत्री की ‘द बंगाल फाइल्स’
एक साहसिक ऐतिहासिक ड्रामा जो ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ और नोआखली दंगों की दर्दनाक छवियों को पर्दे पर ला कर इतिहास की अनसुनी आवाज़ को ज़ोरदार तरीके से उजागर करता है।A bold historical drama that brings to screen the haunting imagery of Direct Action Day and the Noakhali riots, forcefully resurrecting voices of a suppressed past.
- विभाजन से पहले का काला सच, जिसे सिनेमा परदे पर पहली बार इतनी तीव्रता से दिखाया गया
भारतीय सिनेमा ने अनेक बार इतिहास की झलकियां पेश की हैं, लेकिन अक्सर इन झलकियों में उन अध्यायों को अनदेखा किया गया, जो सबसे अधिक दर्दनाक और विवादास्पद रहे। निर्देशक विवेक अग्निहोत्री और अभिनेत्री-निर्माता पल्लवी जोशी की फिल्म ‘द बंगाल फाइल्स’ उसी खालीपन को भरने का प्रयास है। यह फिल्म सिर्फ एक सिनेमाई प्रस्तुति नहीं, बल्कि एक दस्तावेज़ है—इतिहास का वह हिस्सा, जिसे लंबे समय तक दबाया गया। करीब 204 मिनट लंबी इस फिल्म ने दर्शकों को भावनात्मक रूप से झकझोर दिया है। इसमें 1946 के डायरेक्ट एक्शन डे, ग्रेट कलकत्ता किलिंग्स और नोआखली दंगों की वीभत्स तस्वीरें उकेरी गई हैं।
कलाकार और उनकी भूमिकाएँ
‘द बंगाल फाइल्स’ में हिंदी फिल्म जगत के अनेक दिग्गज कलाकार शामिल हैं।
पल्लवी जोशी – “मां भारती” के प्रतीक के रूप में, जो भारतीय संस्कृति और पीड़ा की आत्मा को आवाज़ देती हैं।
मिथुन चक्रवर्ती – राजनीति और सत्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले सशक्त चरित्र में।
अनुपम खेर – बुज़ुर्ग पीढ़ी की चेतना और अनुभव की आवाज़।
दर्शन कुमार – सीबीआई अफसर शिवा पंडित, जो वर्तमान कहानी के सूत्रधार हैं।
सिम्मरत कौर – दमदार और भावनात्मक प्रदर्शन, जिसे आलोचकों ने फिल्म की जान कहा।
सस्वता चटर्जी, नमाशी चक्रवर्ती, पुनीत इस्सर, मोहन कपूर,प्रियांशु चटर्जी, सौरव दास सभी ने अपने किरदारों से फिल्म की प्रामाणिकता को बढ़ाया।
कहानी – अतीत और वर्तमान का टकराव
1. ऐतिहासिक परत
फिल्म की पहली परत हमें 1946 में ले जाती है। उस समय मुस्लिम लीग ने “डायरेक्ट एक्शन डे” का आह्वान किया था। इसके बाद कोलकाता और बंगाल के कई हिस्सों में जो हिंसा भड़की, उसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया।
- सड़कों पर लाशों के ढेर
- घरों में आगजनी
- महिलाओं पर अमानवीय अत्याचार
- पड़ोसी, पड़ोसी का दुश्मन बन गया
यह हिंसा महज़ दंगे नहीं, बल्कि योजनाबद्ध जनसंहार के रूप में दिखाई गई है।
2. वर्तमान की परत
समानांतर कहानी वर्तमान भारत की है, जहां सीबीआई अफसर शिवा पंडित (दर्शन कुमार) एक दलित लड़की की गुमशुदगी की जांच करता है। जांच आगे बढ़ते-बढ़ते उसे एक ऐसे जाल तक ले जाती है, जिसमें राजनीति, धर्म और सत्ता की काली सच्चाई सामने आती है। इन दोनों कहानियों का मिलन यह संदेश देता है कि इतिहास की हिंसा और नफ़रत सिर्फ अतीत तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसका असर आज भी समाज में जिंदा है।
‘फाइल्स’ ट्रिलॉजी का समापन
विवेक अग्निहोत्री की फाइल्स ट्रिलॉजी में यह तीसरी फिल्म है।
- द कश्मीर फाइल्स (2022): घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन और नरसंहार की त्रासदी।
- द केरल स्टोरी (2023): धर्मांतरण और आतंकवादी संगठनों में शामिल होने के दावों पर आधारित।
- द बंगाल फाइल्स (2025): विभाजन से पहले का बंगाल और वहां का जनसंहार।
निर्देशक का कहना है, “अगर कश्मीर ने आपको दुख दिया, तो बंगाल आपको भूत की तरह सताएगा।”
तकनीकी पक्ष
छायांकन
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी दर्शकों को सीधे 1946 की गलियों में ले जाती है। अंधेरे गलियारों, जलते घरों और खून से सनी सड़कों को बेहद यथार्थ रूप में दिखाया गया है।
संवाद और पटकथा
संवाद गहरे असर डालते हैं। कई जगह यह फिल्म नारेबाज़ी या भाषण जैसी लग सकती है, लेकिन यही इसकी ताकत भी है, क्योंकि यह सीधे दर्शकों की अंतरात्मा को संबोधित करती है।
संगीत और पृष्ठभूमि
बैकग्राउंड म्यूज़िक में ढोल-नगाड़ों और शोकगीत जैसी ध्वनियां मिलती हैं। यह हर दृश्य की तीव्रता को और बढ़ा देती हैं।
संपादन
लंबाई (204 मिनट) सबसे बड़ी चुनौती है। कुछ दृश्यों को कसने से फिल्म और प्रभावी हो सकती थी।
दर्शकों की प्रतिक्रिया
सकारात्मक: कई दर्शक इसे “आंखें खोल देने वाला अनुभव” और “इतिहास का आईना” बता रहे हैं।
नकारात्मक: कुछ दर्शकों का कहना है कि फिल्म बहुत लंबी और भारी है। साथ ही, हिंसक दृश्यों को देखकर कई लोग असहज हुए। सोशल मीडिया पर समीक्षाएं ध्रुवीकृत दिखीं—कुछ लोगों ने इसे मास्टरपीस बताया, वहीं कुछ ने इसे प्रोपेगेंडा कहा।
विवाद और राजनीतिक बहस
फिल्म के साथ विवाद भी कम नहीं रहे। पश्चिम बंगाल में प्रदर्शन रोका गया: कई सिनेमाघरों ने इसे दिखाने से इंकार किया। निर्माताओं का आरोप: विवेक अग्निहोत्री ने कहा कि थिएटर मालिकों पर राजनीतिक दबाव डाला गया। पल्लवी जोशी का पत्र: अभिनेत्री ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर “अनौपचारिक बैन” का मुद्दा उठाया। कोर्ट केस: कोलकाता हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई कि फिल्म में स्वतंत्रता सेनानी गोपाल पाठा को गलत ढंग से पेश किया गया है।
समीक्षात्मक दृष्टि
औसतन फिल्म को 3.5/5 रेटिंग दी जा रही है।
समाज और इतिहास पर प्रभाव
‘द बंगाल फाइल्स’ सिर्फ एक फिल्म नहीं है, बल्कि यह समाज में छुपे सवालों को फिर से उठाती है—
- क्या इतिहास को दबाकर हम भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं?
- क्या जनसंहार की कहानियां सिर्फ किताबों तक सीमित रहनी चाहिए?
- क्या आज का समाज वाकई अतीत से सबक ले पाया है?
‘द बंगाल फाइल्स’ हर उस व्यक्ति के लिए है, जो सिनेमा को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज और इतिहास का दर्पण मानता है। यह फिल्म हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आजाद भारत में भी क्या हम इतिहास की सच्चाई का सामना करने की हिम्मत रखते हैं? फिल्म की लंबाई और ग्राफिक हिंसा कुछ दर्शकों को भारी लग सकती है, लेकिन इसके बावजूद यह एक महत्वपूर्ण सिनेमाई प्रयास है, जो आने वाली पीढ़ियों को यह याद दिलाएगा कि आज़ादी और लोकतंत्र का रास्ता सिर्फ त्याग और बलिदान से बना है।
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