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तहव्वुर राणा को दिल्ली हवाई अड्डे पहुंचते ही हिरासत में लिया एनआईए ने

तहव्वुर राणा को प्रत्यर्पण कर भारत लाया जाना मोदी सरकार की रणनीतिक उपलब्धि : भाजपा

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 26/11 मुंबई आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड तहव्वुर हुसैन राणा को अमेरिका से यहां इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गुरुवार को पहुंचते ही औपचारिक रूप से अपने हिरासत में ले लिया।राणा को वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के अंतर्गत भारत लाने में सफलता मिली है। एनआईए ने आज शाम को जारी एक विज्ञप्ति में कहा कि उसने मुंबई में आतंकवादी हमले मुख्य साजिशकर्ता राणा को “इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर उसके पहुंचने के तत्काल बाद औपचारिक रूप से हिरासत में लिया।

” एजेंसी उसे पूछताछ के लिए रिमांड पर लेने के लिए आज ही राजधानी में एनआईए मामलों को सुनने वाली पटियाला हाउस की विशेष अदालत में पेश करने जा रही है।राणा को अमेरिका से प्रत्यर्पित कर आज शाम विशेष विमान से दिल्ली लाया गया।एनआईए ने आज शाम को एक वक्तव्य जारी कर कहा कि उसने लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार राणा को सफलतापूर्वक प्रत्यर्पित करने में सफलता हासिल कर ली है।भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के तहत शुरू की गई कार्यवाही के चलते राणा को अमेरिका में न्यायिक हिरासत में रखा गया था। राणा द्वारा प्रत्यर्पण को रोकने के लिए सभी कानूनी रास्ते आजमाने के बाद आखिरकार उसके प्रत्यर्पण की प्रक्रिया पूरी हो गयी।

वक्तव्य में कहा गया है कि कैलिफोर्निया के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने 16 मई 2023 को उसके प्रत्यर्पण का आदेश दिया था। इसके बाद राणा ने नौवीं सर्किट कोर्ट ऑफ अपील में कई मुकदमे दायर किए, जिनमें से सभी को खारिज कर दिया गया। इसके बाद उसने एक रिट , दो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं और अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक आपातकालीन आवेदन दायर किया लेकिन उसे भी खारिज कर दिया गया। भारत द्वारा अंततः अमेरिकी सरकार से वांछित आतंकवादी के लिए आत्मसमर्पण वारंट प्राप्त करने के बाद दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण कार्यवाही शुरू की गई।एनआईए ने स्काई मार्शल, यूएसडीओजे की सक्रिय सहायता से पूरी प्रत्यर्पण प्रक्रिया के दौरान अन्य भारतीय खुफिया एजेंसियों, एनएसजी के साथ मिलकर काम किया, जिसमें भारत के विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने मामले को सफल निष्कर्ष तक ले जाने के लिए अमेरिका में अन्य संबंधित अधिकारियों के साथ समन्वय किया।

राणा पर डेविड कोलमैन हेडली उर्फ ​​दाउद गिलानी और नामित आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और हरकत-उल-जिहादी इस्लामी (एचयूजेआई) के गुर्गों के साथ-साथ पाकिस्तान स्थित अन्य सह-षड्यंत्रकारियों के साथ मिलकर 2008 में मुंबई में हुए विनाशकारी आतंकवादी हमलों की साजिश रचने का आरोप है। इन हमलों में कुल 166 लोग मारे गए और 238 से अधिक घायल हुए।भारत सरकार द्वारा गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत लश्कर ए तैयबा और एचयूजेआई दोनों को आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है।

तहव्वुर राणा को प्रत्यर्पण कर भारत लाया जाना मोदी सरकार की रणनीतिक उपलब्धि : भाजपा 

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 26/11 के आतंकी तहव्वुर राणा को प्रत्यर्पण कर भारत लाया जाना मोदी सरकार की बड़ी रणनीतिक एवं ऐतिहासिक उपलब्धि करार दिया है और कहा है कि कांग्रेस ने अपने शासन के दौरान वोटबैंक तुष्टिकरण के लिए आतंकियों पर कार्रवाई नहीं की जिसकी सजा आतंकवाद झेलने वाले निर्दोष लोगों को झेलनी पड़ी।भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने आज यहां पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया और 26/11 के आतंकी तहव्वुर राणा को प्रत्यर्पण कर भारत लाया जाना मोदी सरकार की बड़ी रणनीतिक एवं ऐतिहासिक उपलब्धि बताया। श्री पूनावाला ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले संप्रग के शासन के दौरान वोटबैंक तुष्टीकरण के लिए आतंकियों पर कार्रवाई नहीं करती थी जिसकी सजा आतंकवाद झेलने वाले निर्दोष लोगों को मिलती थी।

श्री पूनावाला ने कहा कि पूरे भारतवर्ष का जैन समुदाय भगवान महावीर के जन्मकल्याणक, जिसे हम महावीर जयंती कहते हैं, मना रहा है। भगवान महावीर ने हमेशा अहिंसा, सत्य, शांति और न्याय का संदेश दिया और इन्हीं सिद्धांतों को अपनाने का मार्ग दिखाया। आज उन्हीं सिद्धांतों पर चलते हुए प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में काम कर रही सुरक्षा एजेंसियों, आतंकवाद विरोधी एजेंसियों, अभियोजन और खुफिया एजेंसियों को एक बड़ी सफलता मिली है। मुंबई हमले के मुख्य साजिशकर्ता और 160 से अधिक निर्दोष लोगों की हत्या का दोषी, 26/11 का आतंकी तहव्वुर राणा, जिसे सात समंदर पार से भारत लाकर न्याय के कटघरे में खड़ा किया जा रहा है, यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

उन्होंने कहा कि तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण केवल एक सामान्य कानूनी प्रक्रिया नहीं है, यह उस नए भारत के संकल्प का प्रतीक है, जिसे 2019 में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने स्पष्ट किया था कि अगर कोई भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा या किसी भी निर्दोष नागरिक पर हमला करेगा, तो भारत उसे पाताल से भी खोजकर न्याय के दरवाजे तक लाएगा। यह नए भारत की सोच और उसके साहस का प्रतीक है जो अब आतंकी हमलों के सामने चुप और मूकदर्शक नहीं रहेगा, बल्कि आतंकियों को घर में घुसकर जवाब देगा। यह नए भारत का वह स्वरूप है जो पाकिस्तान प्रायोजित इस्लामिक आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता रखता है और वोट बैंक की राजनीति को राष्ट्रनीति के ऊपर हावी नहीं होने देता। यह संकल्प है कि देशहित का और राष्ट्रहित ही सर्वोपरि रहेगा। यह वही नया भारत है, जिसकी ध्वनि 26/11 की हर बरसी पर गूंजती है कि “इंडिया विल नेवर फॉरगिव, इंडिया विल नेवर फॉरगेट”।

भारत आतंकियों को न भूलेगा, न माफ करेगा। चाहे वह पाताल में ही क्यों न हो, भारत आतंकियों की गर्दन पकड़ कर उन्हें न्याय के मार्ग पर लाने की ताकत रखता है।भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि यह सिर्फ 138 भारतीय पीड़ितों के लिए ही नहीं, बल्कि 26/11 हमले में मारे गए अमेरिका, इजरायल, फ्रांस, जर्मनी, इटली, मलेशिया सहित 17 से 18 देशों के नागरिकों के लिए भी न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम है। आज श्री तुकाराम ओंबले से लेकर मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, हवलदार श्री गजेंद्र सिंह से लेकर मुंबई पुलिस के वीर अधिकारी विजय सालस्कर तक, हर शहीद सुरक्षाकर्मी, हर एनएसजी कमांडो के प्रति यह भारत की भावपूर्ण श्रद्धांजलि है। यह एक स्पष्ट संदेश भी है कि भारत अपने सुरक्षा कर्मियों की शहादत और बलिदान को कभी नहीं भूलेगा।

श्री पूनावाला ने कहा कि आज जब तहव्वुर राणा को भारत लाया जा रहा है और यह दृश्य पूरी दुनिया देख रही है। यह संदेश हर उस आतंकी, साजिशकर्ता और मास्टरमाइंड के लिए है कि चाहे आप दुनिया के किसी कोने में, किसी गुप्त स्थान में क्यों न छिपे हो, मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत आपको ढूंढ निकालेगा और आपके छिपने की जगह से बाहर निकालकर न्याय के कटघरे तक लाने का कार्य करेगा। पिछले 10 वर्षों में आतंक और आतंकवाद के प्रति हमारे दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव आया है। आज का यह प्रत्यर्पण उसी बदले हुए सोच का एक प्रतीक है। आपको याद होगा कि 2004 से 2014 के बीच शायद ही कोई महीना ऐसा जाता था जब भारत के किसी बड़े शहर में आतंकी हमला नहीं होता था। 2005 में दिल्ली, 2006 में वाराणसी, 2007 में लखनऊ, और 2008 में जयपुर, बेंगलुरु, अहमदाबाद, दिल्ली, मुंबई, अगरतला, रामपुर में हमले हुए। 2010 में असम और पुणे, 2011 में दिल्ली, और 2013 में हैदराबाद, बेंगलुरु, बोधगया सहित कई जगहों पर बड़े हमले हुए।

भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि ऐसा लगता था जैसे इन बड़े हमलों का होना आम बात बन गया था और जब भी कोई आतंकी हमला होता था, भारत की सरकारें केवल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मूकदर्शक बनी रहकर अपनी दलीलें और रिपोर्टें रखती थीं। लेकिन उन आतंकी ताकतों और उन्हें समर्थन देने वाले देशों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती थी। उस समय के नेता अक्सर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गिड़गिड़ाते नजर आते थे। परिणामस्वरूप आतंकवाद के विरुद्ध भारत को कोई ठोस सफलता नहीं मिल पाती थी। लेकिन आज, जब हर साल 700 से अधिक नागरिक आतंकी हमलों में मारे जाते थे, अब ऐसे बड़े हमले लगभग बंद हो चुके हैं। पहले वोट बैंक की राजनीति के चलते आतंकवाद के प्रति नरम रुख अपनाया जाता था और यह सोचा जाता था कि अगर कड़ी कार्रवाई की गई तो कहीं वोट प्रभावित न हो जाएं।

श्री पूनावाला ने कहा कि उस दौर में आतंक को बढ़ावा देने वाले देशों को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा दिया जाता था लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है। अब अगर उरी या पुलवामा जैसे हमले होते भी हैं, तो उन्हें ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ नहीं, बल्कि ‘मुंहतोड़ जवाब’ यानि एमटीजे का दर्जा दिया जाता है। अब भारत एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकवाद के प्रति ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ की नीति पर काम करता है। 2004 से 2014 के बीच पाकिस्तान को बेनकाब करने की बजाय कई बार आतंकी हमलों का दोष भारत पर ही मढ़ने की कोशिश की गई। चाहे वह समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट हो या मुंबई हमला, यहां तक कहा गया कि ये हमले आरएसएस की साजिश हैं। जबकि कसाब को श्री तुकाराम ओंबले की शहादत के कारण जीवित पकड़ा गया और साफ साबित हुआ कि इन हमलों के पीछे पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ था। लेकिन उस समय, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का मुख्य उद्देश्य यही होता था कि भारत को ही दोषी ठहराया जाए।

भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान के इस्लामी आतंक पर लीपापोती की गई और उसे क्लीन चिट देने का प्रयास किया गया। यहाँ तक कि “हिंदू टेरर”, “संघ टेरर” और “आरएसएस टेरर” जैसे फेक नैरेटिव गढ़ने का काम उस समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने किया और आज भी उनके नेता इसी प्रकार से सक्रिय हैं, खासकर जब तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण हो रहा है। वैसे तो उन्होंने 10 वर्षों तक कुछ नहीं किया, और आज जब यह राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रनीति की इतनी बड़ी जीत है, तो उसका स्वागत करने के बजाय वोटबैंक की राजनीति की जा रही है। महाराष्ट्र में कभी नेता प्रतिपक्ष रह चुके कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार का एक बयान आया था। वह शर्मसार करने वाला बयान था कि शहीद हेमंत करकरे जी को कसाब और पाकिस्तानी आतंकियों ने नहीं, बल्कि पुलिस वालों ने मारा था। यह उनका कोर्ट में दिया गया बयान है, और यह कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष (महा विकास अघाड़ी) का अधिकृत बयान था, जिसका न तो कांग्रेस ने खंडन किया और न ही उससे किनारा किया।

भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि जब 26/11 हुआ था, तो आपको याद होगा, और आज भी कई टीवी चैनलों पर एक इंटरव्यू दिखाया जा रहा था, जिसमें उस समय के भारतीय वायु सेना के प्रमुख फली मेजर ने बताया कि किस प्रकार उन्होंने उस समय की सरकार और नेतृत्व से कहा था कि अब इस आतंकी हमले का हमें मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि आज जो हम सर्जिकल स्ट्राइक या बालाकोट एयर स्ट्राइक देखते हैं, उस तरह की क्षमता उस समय भी भारत की सेना, वायु सेना और सुरक्षा बलों के पास थी। लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण फली मेजर साहब को रोका गया और कहा गया कि इन कैंपों पर हमला करने से राजनीतिक फायदा किसी और को चला जाएगा। इसी डर से, कि कहीं वोटबैंक में सेंध न लग जाए या राजनीतिक लाभ विपक्ष को न मिल जाए, 26/11 के बाद निर्णायक कार्रवाई से सेना और सुरक्षा बलों को रोक दिया गया। यह बात खुद फली मेजर ने भी कही है और इसकी पुष्टि बराक ओबामा की किताब और कांग्रेस के एक वरिष्ठ सांसद की किताब में भी कही गई है कि एनएसी के माध्यम से सत्ता चल रहे गांधी परिवार ने कोई भी ठोस कार्रवाई नहीं होने दी।

श्री पूनावाला ने कहा कि आज भारत सरकार लगभग 17-18 अंतरराष्ट्रीय भगोड़ों को यूएई, थाईलैंड, अमेरिका और अन्य देशों से वापस ला रही है, यह भारत की कूटनीतिक जीत और बढ़ते वैश्विक प्रभाव का संकेत है। यह भारत की एजेंसियों के बीच बेहतरीन समन्वय का भी प्रतिबिंब है। लेकिन 2004 से 2014 के बीच यूपीए सरकार में इस दिशा में कोई कार्य नहीं हुआ। बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर भारत के पक्ष को मजबूत करने की बजाय शर्म-अल-शेख में एक ऐसे घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किया गया जिससे भारत पर ही अन्य देशों में आतंक फैलाने का आरोप लग गया। एक तरफ आज प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार वैश्विक मंचों पर आतंक फैलाने वाले देशों को बेनकाब करती है, वहीं संप्रग सरकार भारत का पक्ष रखने के बजाय उन देशों के समर्थन में खड़ी हो जाती थी।

उन्होंने आतंकवाद और हस्तक्षेप में भारत की भूमिका दर्शाने वाले घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। यह भारत की सुरक्षा नीति, राष्ट्रनीति और विदेश नीति के साथ कितना बड़ा समझौता था, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। पिछले 10 वर्षों में न केवल अंतरराष्ट्रीय भगोड़ों को वापस लाया गया है, बल्कि बड़े आतंकी हमलों पर भी अंकुश लगा है और यदि कोई भारत पर हमला करने की हिम्मत करता है तो उसे करारा जवाब दिया जाता है। आज भारत न्याय की भीख मांगने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नहीं जाता, बल्कि आतंक फैलाने वाले देश भारत से डरकर पीछे हटते हैं। आज भारत के पास कार्रवाई करने की पूरी क्षमता है।भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि आज भारत की ओर आंख उठाने वाले अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर गिड़गिड़ाते हैं कि ‘हम माफी मांगते हैं’ ‘भारत से हमें बचा लीजिए’। यह बदलाव पिछले दस वर्षों में तब आया है जब सरकार ने आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई है। घरेलू आतंकवाद के मामलों में, चाहे वह अहमदाबाद ब्लास्ट हो या विभिन्न राज्यों के अलग-अलग शहरों में हुए धमाके, वहां देश की एजेंसियों और अभियोजन संस्थाओं ने आरोपियों को सजा दिलवाने का कार्य किया है। यह इसलिए संभव हुआ है क्योंकि इन्हें देश के भीतर कानूनी रूप से ताकत दी गई है और इन एजेंसियों को बिना किसी वोट बैंक के विचार के स्वतंत्र रूप से काम करने की छूट दी गई है, ताकि जो भी आतंकवाद में शामिल है या जो संगठन इसके लिए ज़िम्मेदार हैं, उन्हें कानून के दायरे में लाया जाए और सजा दिलवाई जाए।

लेकिन कुछ राजनीतिक दल ऐसे हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश में सत्ता में रहते हुए कुछ आतंकियों को इसीलिए छोड़ दिया क्योंकि वे एक विशेष मजहब से थे। वे आतंकी जो रामपुर ब्लास्ट, वाराणसी ब्लास्ट और संकटमोचन धमाके में शामिल थे और बाद में दोषी भी ठहराए गए, उन्हें एक पार्टी ने इसलिए छोड़ने की कोशिश की क्योंकि उनका मजहब अलग था। जिस पर स्वयं इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि आज आपने इन आतंकियों को छोड़ दिया है, तो क्या कल आप इन्हें पद्मश्री देंगे? इस देश में राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ इस तरह की वोट बैंक की राजनीति की गई है। आतंकवाद के एक और रूप नक्सलवाद पर भी जोरदार प्रहार किया जा रहा है। जो नक्सलवाद कभी देश के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जाता था, वह 2013 में 126 जिलों में फैला हुआ था। आज उसका प्रभाव केवल 6 जिलों तक ही सीमित रह गया है और 2026 तक देश को नक्सलवाद मुक्त बना दिया जाएगा। यानी भाजपा सरकार में आतंकवाद पर एक और सटीक और प्रभावी प्रहार किया गया है।

श्री पूनावाला ने कहा कि कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और पत्थरबाजी में बड़ी गिरावट आई है। एक समय था जब सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी की अनेक घटनाएं सामने आती थीं। आज पत्थरबाजी में 99 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। ऐसी घटनाएं लगभग पूरी तरह से बंद हो चुकी हैं। पहले हर साल आतंकवाद से जुड़ी लगभग 400 घटनाएं होती थीं, लेकिन अब इनमें 50 फीसदी से अधिक की कमी आई है। चाहे सिविलियन की मृत्यु हो या सुरक्षा बलों की, दोनों में भारी गिरावट दर्ज की गई है। 370 हटने के बाद आज जम्मू-कश्मीर में पहले ‘पी’ का मतलब ‘पाकिस्तान परस्ती और पत्थरबाजी’ से लगाया जाता था, वहां आज ‘डी’ से ‘डेवलपमेंट और डेमोक्रेसी’ पहचान बन रही है। आज लाल किले से लेकर लाल चौक तक भारत का तिरंगा लहरा रहा है। कांग्रेस शासन में तत्कालीन गृहमंत्री ने कहा था कि लाल चौक जाने में उन्हें डर लगता है और आज, उसी पार्टी के सर्वोच्च नेता अपनी बहन के साथ वहां जाते हैं, जहां अब बम के गोले नहीं बल्कि बर्फ़ के गोले देखने को मिलते हैं। नवरात्र के समय माँ शारदा के मंदिर में घंटियां बज रही हैं। पहली बार श्रीनगर की सड़कों पर शियाओं के ताजिए भी निकल रहे हैं। साल 2019 के बाद यही बदलाव आया है।

आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले अनुच्छेद 370 के हटने के बाद उत्तर-पूर्व में भी आतंकवाद और उग्रवाद पर कड़ा प्रहार हुआ है। वहाँ उग्रवाद में 74 फीसदी की कमी आई है, सिविलियन की मौतों में लगभग 19 प्रतिशत और सुरक्षा बलों की मौतों में 60 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। समग्र रूप से देखें तो तहव्वुर राणा का भारत प्रत्यर्पण, भारत की आतंकवाद के प्रति 360 डिग्री की जीरो टॉलरेंस नीति को दर्शाता है। यह हमारे संकल्प का प्रतीक है कि भारत आतंकवाद पर कार्रवाई करते समय न दलहित देखता है, न वोट बैंक, केवल राष्ट्रहित और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि कुछ सवाल उन लोगों से भी बनते हैं, जो आज भी राष्ट्रनीति पर वोट बैंक की राजनीति करते हैं। 26/11 के आतंकी हमले के बाद जब भारत को एक बड़ी सफलता मिली है, तो क्या आज वे लोग माफी माँगेंगे जिन्होंने यह कहा था कि 26/11 आरएसएस या हिंदुओं की साजिश है? क्या वे लोग जो इस तरह की किताबें लिखते हैं और फैलाते हैं, आज अपनी गलती स्वीकार करेंगे? जिन लोगों ने यह कहा था कि इस आतंकी हमले के लिए पाकिस्तान नहीं, बल्कि भारत की ही एजेंसियाँ जिम्मेदार हैं, क्या वे अब माफ़ी माँगेंगे? जिन्होंने 2004 से 2014 के बीच पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद पर केवल रिपोर्ट तैयार की, पर कोई कड़ा कदम नहीं उठाया, और हमारे नागरिकों तथा शहीद सुरक्षा बलों की शहादत के प्रति कोई सम्मान नहीं दिखाया — क्या अब उस समय की सत्ताधारी पार्टी इसके लिए माफ़ी माँगेगी?

श्री पूनावाला ने कहा कि आज भी जब आतंकवाद पर कड़ा प्रहार किया जाता है, तब कुछ लोग वोट बैंक की राजनीति के तहत उसका विरोध करते हैं। चाहे बात यूएपीए कानून को सख्त करने की हो, पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की हो, या नए बीएनएस कानून में आतंकवाद की परिभाषा जोड़ने की, वे हर बार उसका विरोध करते हैं। जब पीएमएलए और एनआईए एक्ट को मज़बूत किया जाता है, तब भी विरोध होता है, जब अफजल गुरु और याकूब मेमन जैसे आतंकवादियों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी दी जाती है, तो ऐसे आतंकियों के प्रति कभी किसी विश्वविद्यालय परिसर में या मर्सी पेटिशन के माध्यम से सहानुभूति व्यक्त की जाती है। क्या अब ऐसे लोग उन सभी पीड़ितों से माफी माँगेंगे जो वर्षों से आतंकवाद का दंश झेल रहे हैं? और अंत में, क्या कांग्रेस पार्टी यह बताएगी कि क्या अब वह आतंकवाद पर वोट बैंक की राजनीति बंद करेगी? क्या वह नक्सलवाद, अनुच्छेद 370, और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के प्रति अपनाए गए सॉफ्ट रुख को अब छोड़ेगी? क्या कांग्रेस पार्टी और उसका शीर्ष नेतृत्व अब इसे रोकने का काम करेगा? आज उन्हें इसका जवाब देना चाहिए। (वार्ता)

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