नए युग के सैनिटाइज़र दे सकते हैं साइड इफेक्ट वाले रासायनिक कीटाणुनाशक और सैनिटाइज़र से राहत
"इन असाधारण उपलब्धियों को संभव बनाने वाली संरचनाओं और प्रक्रियाओं को आगामी विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति 2020 में शामिल किया जा रहा है": प्रो. आशुतोष शर्मा
कोविड-19 के संक्रमण से सुरक्षा के लिए रासायनिक कीटाणुनाशक और साबुन से बार-बार हाथ धोने से हाथ रूखे हो जाते हैं और कई बार उनमें खुजली भी होती है। इस समस्या से बचाने के लिए कई नये उपाय किए जा रहे हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित कई स्टार्ट-अप अब पारंपरिक रासायनिक-आधारित डेकोटेमिनेंट्स के लिए बहुत सारे व्यावहारिक विकल्प लेकर आए हैं जो सतहों और यहां तक कि माइक्रोकैविटी को भी कीटाणु रहित कर सकते हैं। उनके पास उपलब्ध तकनीकों में अस्पतालों में जमा होने वाले बायोमेडिकल कचरे के कीटाणुशोधन और आवर्तक उपयोग सतहों के स्थायी और सुरक्षित रोगाणुनाशन के लिए नोवल नैनोमैटेरियल और रासायनिक प्रक्रिया नवाचारों के इस्तेमाल से जुड़ी तकनीकें भी शामिल हैं। ये तकनीकें कुल 10 कंपनियों ने मुहैया करायी हैं जिन्हें सेंटर फोर ऑगेमेंटिंग वॉर विद कोविड-19 हेल्थ क्राइसिस (सीएडब्ल्यूएसीएच) के तहत कीटाणुशोधन और सैनिटाइजेशन के लिए मदद दी गयी थी। यह राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी उद्यमिता विकास बोर्ड (NSTEDB), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक पहल है जिसका सोसाइटी फॉर इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप (एसआईएनई), आईआईटी-मुंबई ने कार्यान्वयन किया है।
मुंबई आधारित स्टार्ट-अप इनफ्लोक्स वाटर सिस्टम्स ने कोविड-19 संदूषण से लड़ने की खातिर सतह और उपकरण कीटाणुशोधन के लिए एक प्रणाली का डिजाइन और विकसित करने के उद्देश्य से अपनी तकनीक में बदलाव किया। इस तकनीक को उन्होंने ‘वज्र’ नाम दिया है। यह स्टार्ट-अप जटिल प्रदूषित पानी और अपशिष्ट जल के शोधन की विशेषज्ञता रखता है। ‘वज्र केई’ सीरीज ओजोनपैदा करने वाले एक इलेक्ट्रोस्टैटिक डिस्चार्ज, और यूवीसीलाइट स्पेक्ट्रम के शक्तिशाली रोगाणुनाशन प्रभावों को शामिल करके कई चरणों वाली एक कीटाणुशोधन प्रक्रिया से युक्त कीटाणुशोधन प्रणाली का इस्तेमाल करता है। वज्र कवच-ई (केई) पीपीई पर मौजूद वायरस, बैक्टीरिया और अन्य माइक्रोबियल उपभेदों को निष्क्रिय करने के लिए उन्नत ऑक्सीकरण, इलेक्ट्रोस्टैटिक निर्वहन और यूवीसी प्रकाश स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करता है। यह पीपीई, मेडिकल और नॉनमेडिकल गियर को पुन: इस्तेमाल लायक बनाकर लागत बचाता है। जल क्षेत्र में नवाचारों के लिए डीएसटी (आईआईटी बॉम्बे के माध्यम से) निधि प्रयास अनुदान की मदद से शुरू किए गए इनफ्लोक्स वाटर सिस्टम्स ने कोविड-19 संक्रमण से निपटने की खातिर अपनी तकनीक को उपयुक्त बनाने के उद्देश्य सेउसमें बदलाव करने के लिए डीएसटी से मिले सीएडब्ल्यूएच (कवच) अनुदान का इस्तेमाल किया है। उन्होंने प्रति माह 25 सतह कीटाणुशोधन प्रणालियों के निर्माण के लिए खुद को तैयार किया, हर गुजरते महीने के साथ उत्पादन क्षमता को 25% तक बढ़ाने के लिए उत्पादन, आपूर्ति श्रृंखला और रसद को सुव्यवस्थित किया।
इस समयवे इन प्रणालियों के और परीक्षण के लिए आईआईटी बंबई और सीसीएमबी (हैदराबाद) के वायरोलॉजी लैब के साथ समन्वय कर रहे हैं। स्टार्टअप वाणिज्यिक उत्पाद संस्करणों के साथ तैयार है और उत्पाद प्रमाणन में सुधार पर काम कर रहा है ताकि विशेषीकृत प्रयोगशालाएं भी उनकी तकनीकों का इस्तेमाल कर सकें। कोयंबटूर आधारित एटा प्यूरिफिकेशन उन्नत रोगाणुनाशन तकनीकें प्रदान करता है। यह पर्यावरण की दृष्टि से उन्नतमाइक्रो-कैविटी प्लाज्मा प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहा है। यह नयी तकनीक, जहां कीटाणुनाशक सीधे हवा या ऑक्सीजन से उत्पन्न होता है, पारंपरिक रासायनिक-आधारित परिशोधन के लिए एक व्यावहारिक विकल्प प्रदान करता है। सीओएसएमओ (माइक्रोप्लाज्मा ऑक्सिडेशन द्वारा पूर्ण रोगाणुनाशन) प्रणाली क्वारेंटाइन सुविधाओं, एंबुलेटरी केयर और उपकरण सतहों सहित कोविड-19 संक्रमित क्षेत्रों को तेजी से कीटाणुरहित कर सकती है। यह अभिनव माइक्रो-प्लाज्मा रोगाणुनाशन प्रणाली कॉम्पैक्ट और स्केलेबल मॉड्यूलर इकाइयां प्रदान करती है जो मजबूत, लचीली और ऊर्जा बचाने वाली हैं।
इस कीटाणुनाशक का उत्पादन ऑन-साइट किया जाता है, जिससे खतरनाक रसायनों के परिवहन, भंडारण और हैंडलिंग से जुड़ी दिक्कतें नहीं आतीं। ये परिशोधन प्रणालियां समान क्षमता वाली पारंपरिक प्रणाली से 10 गुना कम हैं, जिससे यह संसाधन की कमी के वातावरण के लिए उपयुक्त हैं। उनकी उन्नत रोगाणुनाशन प्रणालियां बहु-दवा प्रतिरोधी रोगजनकों को बेअसर करने की क्षमता में हाइपोक्लोराइट और अन्य पारंपरिक कीटाणुनाशकों से बेहतर हैं। कंपनी ने पहले ही चुनिंदा क्रिटिकल केयर क्षेत्रों में रोगाणुनाशन के लिए अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा व्यवस्थाओं को खासतौर पर तैयार की गयी तकनीकें प्रदान की है। उन्होंने यह नवाचार कमजोर समुदायों को भी उपलब्ध कराया है। इस समय तेजी से रोगाणुनाशन के लिए उनके उन्नत एकीकृत माइक्रो-प्लाज्मा ऑक्सीकरण प्रणाली के व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए उनका पूर्ण विकास और गहन परीक्षण किया गया है। चेन्नई आधारित स्टार्टअप माइक्रोगो ने एक मैकेनिकल हैंड सैनिटाइजिंग डिस्पेंसर मशीन तैयार किया है। यह मशीन टचलेस, रियल-टाइम मॉनिटरिंग के जरिए डैशबोर्ड के माध्यम से हैंड सैनिटाइजेशन के चरणों को निर्धारित करती है।
पुणे आधारित वीनोवेट बायोसोल्यूशन ने गैर-अल्कोहल तरल सैनिटाइजर के आधार पर सिल्वर नैनोपार्टिकिल्स का विकास किया है। पेटेंट के दायर की गयी उनकी यह तकनीक आरएनए प्रतिकृति गतिविधि को रोकती है – वायरस के प्रसार को रोकती है और सतह ग्लाइकोप्रोटीन को अवरुद्ध करती है –जिससे विषाणु अप्रभावी हो जाता है। लखनऊ आधारित मेसर टेक्नोलॉजी ने खतरनाक बायोमेडिकल अपशिष्ट कीटाणुशोधन के लिए और लिनन एवं पीपीई को दोबारा इस्तेमाल के लायक बनाने के लिए एक इंस्टेंट माइक्रोवेव-आधारित हैंडहेल्ड स्टेरलाइजर ‘अतुल्य’और एक माइक्रोवेव-असिस्टेड कोल्ड स्टेरलाइजेशन उपकरण ‘ऑपटिमेसर’ पेश किया है। ‘ऑपटिमेसर’ पारंपरिक आटोक्लेव की तुलना में माइक्रोवेव की मदद से ठंड में रोगाणुनाशन करने वाली एक बेहतर तकनीक है। यह 100 बार दोबारा इस्तेमाल की क्षमतासुनिश्चित करने के लिए पीपीई किट और मास्क के कीटाणुशोधन और रोगाणुनाशन में मदद करता है, साथ ही इसमें कम लागत भी सुनिश्चित करता है। वहीं ‘अतुल्य’ हाथ से चलने वाला इंस्टेंट माइक्रोवेव आधारित रोगाणुनाशक है, जो यूवी ट्यूब-आधारित स्टरलाइज़र, सेनिटाइज़िंग स्प्रे और रोगाणुनाशनएवं सुरक्षा के सभी संभव तरीकों से बेहतर है।
एसआईएनई, आईआईटी बंबई, एफआईआईटी, आईआईटी दिल्ली, एसआईआईसी, आईआईटी कानपुर, आईआईटी मद्रास, वेंचर सेंटर पुणे, आईकेपी नॉलेज पार्क हैदराबाद, केआईआईटी-टीबीआई भुवनेश्वर जैसे प्रौद्योगिकी पौधशालाओं ने तकनीकी प्रगति को लेकर समय के हिसाब से प्रभावशाली सलाह दी है, सभी जरूरी दिशानिर्देशों का पालन करने, सहमति ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करने आदि करने में स्टार्ट-अप का मार्गदर्शन किया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रो. आशुतोष शर्मा ने कहा, “COVID-19 के लिहाज से महत्वपूर्ण उत्पादों और प्रौद्योगिकियों के इस तरह के और अन्य महत्वपूर्ण उदाहरणों के माध्यम से, ज्ञान सृजन और इसके उपभोग के सहज मेल से भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की गहरी नींव तेजी से सामने आई है। इन असाधारण उपलब्धियों को संभव बनाने वाली संरचनाओं और प्रक्रियाओं को आगामी विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति 2020 में शामिल किया जा रहा है।”