नौसेना और तटरक्षक बल ने चलाया 4 दशक का सबसे बढ़ा बचाव अभियान, जानिए कैसे बचाईं सैकड़ों जिंदगियां
चक्रवाती तूफान ताउते के चलते समुद्र में फंसे लोगों को निकालने के लिए तटरक्षक बल और नौसेना के जहाजों ने अब तक का सबसे मुश्किल बचाव अभियान चलाया है। उन्होंने इस तूफान में फंसे सैकड़ों लोगों की जिंदगी सफलतापूर्वक बचाई है। पांच दिन चले इस अभियान में नौसेना और तटरक्षक बल ने अपनी कार्यकुशलता का पूरी क्षमता के साथ परिचय दिया।
कैसे शुरू हुआ अभियान
समुद्र में एक बजरे के बहाव का पहला संदेश भारतीय नौसेना को 17 मई को सुबह 9 बजकर 15 मिनट पर प्राप्त हुआ। यह बजरा दक्षिण मुंबई में कोलाबा के पास प्रोंग्स लाइट हाउस से 75 समुद्री मील दूर दक्षिण पश्चिम में चला गया था। जहाजरानी मंत्रालय ने बताया कि बजरा P305 के कप्तान ने मदद के लिए फोन करने में देरी कर दी थी। इसके बाद से नौसेना और तटरक्षक बल को P305 के लिए इमरजेंसी कॉल महाराष्ट्र और गुजरात के समुद्री क्षेत्रों से दिन भर आते रहे।
17 मई को पहला जहाज निकला बचाव को
17 मई को सुबह 11बजकर 15 मिनट पर आईएनएस कोच्चि अभियान के लिए बंदरगाह से बाहर निकला। उस समय चक्रवात पूरे जोर पर था और 110 किमी प्रति घंटे से अधिक तेजी की हवाओं से आईएनएस कोच्चि को समुद्र में आगे बढ़ने में मुश्किल हो रही थी। इसके बावजूद दोपहर 3 बजे, आईएनएस कोच्चि P305 के नजदीक पहुंच गया, लेकिन नौसेना के अधिकारियों ने बताया कि युद्धपोत बजरे से टकराने के डर से और करीब नहीं जा सका। उन्होंने वहीं से बचाव अभियान शुरू कर दिया। पहले दिन शुरुआत में केवल 35 लोगों को ही बचाया जा सका, लेकिन दूसरे दिन के अंत तक 125 लोगों को आईएनएस कोच्चि की मदद से पानी से बाहर निकाला गया।
नौसेना के पहुंचने से लोगों को मिली उम्मीद
27 वर्षीय महापात्रा, जिन्हें केवल दो महीने पहले काम पर रखा गया था, ने बताया कि जब मैंने नेवी को देखा तो मुझे पता था कि मैं अब बच जाऊंगा और मैं पानी में जिंदा रहने के लिए लड़ता रहा। हमारी उम्मीदों को बनाए रखने के लिए, नौसेना हमें यह बताने के लिए लगातार हॉर्न बजाती रही कि वह समुद्र में हमें बचाने के लिए खड़ी है।
18 मई के अभियान तेज हुआ
18 मई की सुबह, जब चक्रवात गुजर गया तब तटरक्षक बल और नौसेना ने अपने खोज और बचाव कार्यों को बहुत तेज कर दिया।नौसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, पश्चिमी नौसेना कमान, डीजी शिपिंग कार्यालय, तटरक्षक बल, गृह, रक्षा और जहाजरानी मंत्रालयों के प्रमुख अधिकारी हालात की जानकारी के लिए रातभर हमसे संपर्क करते रहे। मंगलवार सुबह 6.30 बजे आईएनएस शिकारा (भारतीय नौसेना का हेलीबेस) से पहला सी किंग हेलीकॉप्टर रवाना किया गया, जिसकी मदद से हम P305 बजरा से 186 लोगों को बचाने में कामयाब रहे। शनिवार तक नौसेना और कोस्ट गार्ड का तलाशी अभियान उन 66 शवों को बरामद करने में कामयाब रहा, जो P305 दुर्घटना में नहीं बच सके थे।
बजरे होते क्या हैं ?
बजरे फ्लैट-तल वाले जहाज हैं, जो समुद्र में नौकायन के लिए नहीं हैं। उनके पास ज्यादातर अपने स्वयं के इंजन नहीं होते हैं, उन्हें एक टग बोट द्वारा ले जाना पड़ता है। नौसेना के एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि उनके डिजाइन के कारण, 20 समुद्री मील (37 किमी प्रति घंटे) से अधिक की हवा की गति बजरों के लिए खतरनाक होती है।
P305 के साथ और 2 बजरे थे संकट में
चक्रवात ताऊते के कारण संकट में सिर्फ P305 ही नहीं था, बल्कि दो अन्य बजरे, एसएस-03 और जीएएल कंस्ट्रक्टर के साथ ड्रिल शिप सागर भूषण और तुगबोट वरप्रदा भी संकट में थे। जीएएल कंस्ट्रक्टर के बोर्ड पर सवार सभी 137 लोगों को बचाने के लिए तटरक्षक के हेलीकॉप्टरों ने पालघर के लिए बार-बार उड़ान भरी। एसएस-03 पर सवार सभी 201 और सागर भूषण पर सवार 101 लोगों को भी बिना किसी हताहत के बचा लिया गया, लेकिन तुगबोट वरप्रदा जो नावों के खींचने के काम आती है, डूब चुकी थी।
कौन-कौन से जहाज और विमान लगे थे बचाव में
इस अभियान में कुल मिलाकर आठ नौसैनिक जहाज, नौसेना के आठ तत्काल सहायक जहाज, नौ नौसैनिक हेलीकॉप्टर, तीन नौसैनिक टोही विमान, पांच तटरक्षक जहाज, दो तटरक्षक हेलीकॉप्टर और दो तटरक्षक डोर्नियर विमान खोज के लिए तैनात थे। ओएनजीसी ने बचे लोगों की तलाश के लिए पांच हेलीकॉप्टर भी तैनात किए थे।
1978 के बाद से सबसे बड़ा बचाव अभियान
कई वर्षों के बाद मुंबई तट पर इतनी बड़ी आपदा आई। यह संभवत: पहली बार है, जब 1978 के बाद नौसेना और तटरक्षक बल को इतना बड़ा ऑपरेशन करना पड़ा है। उस समय मुंबई से उड़ान भरने के बाद दुबई जाने वाला एयर इंडिया का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें सवार सभी 213 लोग मारे गए थे। हालांकि, इस बार मौसम की चुनौतियों के बावजूद जहाज पर सवार अधिकांश लोगों को बचाया जा सका है। 130 साल में मुंबई के इतने करीब पहुंचने वाला ताउते पहला भीषण चक्रवाती तूफान था।
नौसेना स्टाफ के उप प्रमुख वाइस एडमिरल मुरलीधर पवार ने कहा कि यह पश्चिमी नौसेना कमान द्वारा चार दशकों में चलाए गए सबसे बड़े खोज और बचाव अभियानों में से एक था।