नवरात्र 2025: किस दिन किस देवी की पूजा करें और क्यों – जानिए पूरा दिनवार विधान
शारदीय नवरात्र 2025 केवल पूजा और उपवास का पर्व नहीं, बल्कि प्रत्येक दिन एक देवी स्वरूप की आराधना से जीवन में विशेष गुणों की प्राप्ति का अवसर है। माँ शैलपुत्री से लेकर माँ सिद्धिदात्री तक की पूजा क्रमवार करने से भक्तों को स्थिरता, संयम, साहस, ज्ञान, संतान सुख, दाम्पत्य सुख और अंततः सिद्धि की प्राप्ति होती है।
शारदीय नवरात्र 2025 इस बार 22 सितम्बर (सोमवार) से आरंभ होकर 2 अक्टूबर (गुरुवार) को विजयदशमी के साथ सम्पन्न होगा। इस वर्ष चतुर्थी तिथि दो दिन रहने से नवरात्र दस दिनों का होगा। नवरात्र केवल उपवास का पर्व नहीं, बल्कि माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की क्रमवार पूजा का अवसर है। शास्त्रों में प्रत्येक देवी स्वरूप का विशेष महत्त्व बताया गया है।
नवरात्र 2025: प्रतिपदा को माँ शैलपुत्री की पूजा — जानिए कथा, विधि, मंत्र और लाभ
प्रतिपदा तिथि को नवरात्रि की प्रथम देवी माँ शैलपुत्री की पूजा का विधान है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। नवरात्रि की साधना की शुरुआत इसी देवी स्वरूप से होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, माँ शैलपुत्री पूर्वजन्म में सती थीं। सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान सहन न कर अग्नि में प्राण त्याग दिए। अगले जन्म में वे हिमालय की पुत्री बनीं और पुनः शिव से विवाह किया। नवरात्रि की प्रतिपदा को इन्हीं की पूजा से आरंभ होता है। शैलपुत्री माता को नंदी वाहन, त्रिशूल और कमल के साथ चित्रित किया गया है। शारदीय नवरात्र 2025 की प्रतिपदा को माँ शैलपुत्री की पूजा विशेष शुभता लेकर आएगी। सही मुहूर्त, पीले वस्त्र, शुद्ध घी का भोग और मंत्र-जप से भक्तों को स्वास्थ्य, स्थिरता और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त (वाराणसी) : तिथि: प्रतिपदा, सोमवार 22 सितम्बर 2025 । मुहूर्त: प्रातः 6:09 से 8:06 बजे तक अभिजीत मुहूर्त: 11:26 से 12:15 बजे तक ।
पूजा सामग्री : कलश (ताम्र/मिट्टी/पीतल का) और गंगाजल । मिट्टी, जौ बोने के लिए परात । सुपारी, सिक्का, मौली, चावल , नारियल, लाल चुनरी, आम के पत्ते ,दीपक, धूप, कपूर ,फूल (विशेषकर चमेली और गुलाब) ,पंचामृत और शुद्ध घी ।
पूजा विधि : प्रातः स्नान कर पीले वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को स्वच्छ करें और कलश स्थापना करें। कलश के ऊपर नारियल और लाल चुनरी रखें। माँ शैलपुत्री के चित्र/प्रतिमा को स्थापित करें। दीपक जलाकर धूप और पुष्प अर्पित करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। अंत में आरती कर घी का भोग अर्पित करें।
विशेष भोग और रंग : रंग: पीला — इस दिन पीले वस्त्र धारण करना शुभ माना गया है। भोग: शुद्ध घी — घी का भोग अर्पित करने से आरोग्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
मंत्र : ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः इस मंत्र का जाप 108 बार करने से जीवन में स्थिरता और शक्ति की वृद्धि होती है।
पूजा का लाभ : शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार। जीवन में स्थिरता और दृढ़ संकल्प की प्राप्ति। घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास। माता शैलपुत्री की आराधना से भक्त की सभी बाधाएँ दूर होती हैं।
क्यों की जाती है पूजा? : प्रतिपदा को शैलपुत्री पूजा का महत्व इसलिए है क्योंकि यह नवरात्रि की शुरुआत है और साधना का पहला चरण माना जाता है। देवी का यह स्वरूप शक्ति, संयम और आरोग्य का प्रतीक है। भक्त मानते हैं कि शैलपुत्री की पूजा से साधना का पथ सुगम हो जाता है और पूरे नवरात्रि के अनुष्ठानों का फल मिलता है।
नवरात्र 2025: द्वितीया को माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा — तपस्या और संयम का प्रतीक
शारदीय नवरात्र 2025 की द्वितीया तिथि मंगलवार 23 सितम्बर को पड़ेगी। इस दिन नवरात्रि की दूसरी देवी माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तप और साधना, और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली। इसलिए यह स्वरूप तपस्या, संयम और भक्ति का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माँ ब्रह्मचारिणी ने पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया। उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया। हजारों वर्षों तक वे केवल बेल-पत्र और फल-फूल खाती रहीं और अंततः केवल वायु और जल पर निर्भर होकर घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार किया।
यह देवी स्वरूप साधना, धैर्य और आत्मबल की शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
पूजा का शुभ मुहूर्त (वाराणसी) : तिथि: द्वितीया, मंगलवार 23 सितम्बर 2025 । मुहूर्त: प्रातः 6:10 से 8:05 बजे तक । अभिजीत मुहूर्त: 11:26 से 12:15 बजे तक
पूजा सामग्री : कलश, गंगाजल और मौली, फूल (विशेषकर कुमुदिनी और चमेली), चंदन, रोली और अक्षत, धूप, दीपक और कपूर, शक्कर और पंचामृत, दुर्गा सप्तशती ग्रंथ
पूजा विधि : प्रातः स्नान कर हरे या सफेद रंग के वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल पर दीपक जलाएँ और कलश स्थापना करें। माँ ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा/चित्र पर चंदन, पुष्प और अक्षत अर्पित करें। शक्कर का भोग चढ़ाएँ और पंचामृत अर्पित करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और मंत्र-जप करें। अंत में आरती कर प्रसाद बाँटें।
विशेष भोग और रंग : रंग: हरा — यह शांति, संतोष और संतुलन का प्रतीक है। भोग: शक्कर और पंचामृत — इससे भक्तों को दीर्घायु और सुख की प्राप्ति होती है।
मंत्र : ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः इस मंत्र का जाप करने से तपस्या और संयम की शक्ति मिलती है और जीवन में आत्मबल बढ़ता है।
पूजा का लाभ : तप और संयम की शक्ति प्राप्त होती है। मानसिक शांति और आत्मविश्वास बढ़ता है। परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। अविवाहित कन्याओं को अच्छा जीवनसाथी मिलने की मान्यता है।
क्यों की जाती है पूजा? : माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से भक्तों को कठोर तप और संयम का वरदान मिलता है। नवरात्रि की दूसरी देवी साधकों को आत्मसंयम और धैर्य सिखाती हैं। यह पूजा कठिनाइयों से जूझने की शक्ति देती है और साधक के जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है। नवरात्रि 2025 की द्वितीया तिथि को माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा तपस्या और संयम का संदेश देती है। हरे वस्त्र, शक्कर का भोग और मंत्र-जप से भक्तों को शांति, आत्मबल और जीवन में धैर्य की प्राप्ति होती है।
नवरात्र 2025: तृतीया को माँ चंद्रघंटा की पूजा — शांति और वीरता का स्वरूप
शारदीय नवरात्र 2025 की तृतीया तिथि बुधवार 24 सितम्बर को है। इस दिन नवरात्रि की तीसरी देवी माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी। इनके मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार की स्वर्णिम घंटा सुशोभित है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। यह देवी स्वरूप शांति, वीरता और साहस का प्रतीक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, माँ पार्वती ने भगवान शिव से विवाह के पश्चात जब देवताओं और दैत्यों के बीच युद्ध हुआ, तब उन्होंने यह उग्र रूप धारण किया। इनके मस्तक पर अर्धचंद्र और घंटा की गूंज से दैत्यों का विनाश हुआ और देवताओं को विजय प्राप्त हुई। माँ चंद्रघंटा का यह रूप जहाँ एक ओर भक्तों को शांति प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर दुष्टों के लिए अत्यंत प्रचंड और विनाशकारी है।
पूजा का शुभ मुहूर्त (वाराणसी): तिथि: तृतीया, बुधवार 24 सितम्बर 2025 । मुहूर्त: प्रातः 6:11 से 8:07 बजे तक । अभिजीत मुहूर्त: 11:26 से 12:15 बजे तक
पूजा सामग्री : कलश, गंगाजल, मौली और सुपारी, फूल (विशेषकर लाल और गुलाबी), चंदन, रोली, अक्षत और सिंदूर, धूप, दीपक और कपूर, दूध और मिठाइयाँ, दुर्गा सप्तशती या देवी महात्म्य ग्रंथ
पूजा विधि : प्रातः स्नान कर धूसर (ग्रे) या सुनहरे रंग का वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल पर दीपक और धूप जलाएँ। माँ चंद्रघंटा की प्रतिमा/चित्र पर फूल, चंदन और अक्षत अर्पित करें। दूध और मिठाई का भोग लगाएँ। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और विशेष मंत्र का जप करें। अंत में आरती करें और भक्तों में प्रसाद बाँटें।
विशेष भोग और रंग : रंग: ग्रे (धूसर) — संतुलन और गंभीरता का प्रतीक। भोग: दूध और मिठाई — इससे भक्त को शारीरिक बल और मानसिक शांति मिलती है।
मंत्र : ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः इस मंत्र के जाप से साहस, विजय और शत्रु नाश की शक्ति प्राप्त होती है।
पूजा का लाभ : शत्रु और भय से मुक्ति। साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि। घर-परिवार में शांति और सौहार्द की स्थापना। साधकों को आध्यात्मिक उन्नति और दिव्य अनुभव की प्राप्ति।
क्यों की जाती है पूजा? : माँ चंद्रघंटा की पूजा से भक्तों के जीवन में साहस और शांति दोनों का संतुलन आता हैभक्त मानते हैं कि देवी की कृपा से कठिनाइयाँ दूर होती हैं और शत्रुओं पर विजय मिलती है। इनकी पूजा से मनोबल बढ़ता है और भक्त निडर होकर जीवन जीता है। नवरात्र 2025 की तृतीया को माँ चंद्रघंटा की पूजा विशेष महत्व रखती है। धूसर रंग के वस्त्र, दूध और मिठाई का भोग और मंत्र-जप से भक्तों को साहस, विजय और शांति का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
नवरात्र 2025: चतुर्थी को माँ कूष्मांडा की पूजा — सृष्टि की अधिष्ठात्री, आरोग्य और ऊर्जा की दात्री
शारदीय नवरात्र 2025 की चतुर्थी तिथि गुरुवार 25 सितम्बर को है। इस दिन नवरात्रि की चौथी देवी माँ कूष्मांडा की पूजा की जाती है। इन्हें “सृष्टि की अधिष्ठात्री” कहा गया है क्योंकि मान्यता है कि देवी ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। पौराणिक कथा के अनुसार, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और चारों ओर अंधकार छाया हुआ था, तब देवी ने अपनी दिव्य मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की। इसी कारण इन्हें *कूष्मांडा* (कूष्मांड — ब्रह्मांड) कहा गया। ये अष्टभुजा धारी हैं और हाथों में कमल, धनुष-बाण, अमृत कलश और जपमाला धारण करती हैं। इनका वाहन सिंह है।
पूजा का शुभ मुहूर्त (वाराणसी): तिथि: चतुर्थी, गुरुवार 25 सितम्बर 2025 । मुहूर्त: प्रातः 6:12 से 8:08 बजे तक । अभिजीत मुहूर्त: 11:26 से 12:15 बजे तक ।
पूजा सामग्री : कलश और गंगाजल, लाल और नारंगी पुष्प , चंदन, अक्षत, रोली , दीपक, धूप और कपूर, मालपुआ और दही, दुर्गा सप्तशती ग्रंथ
पूजा विधि : प्रातः स्नान कर नारंगी रंग का वस्त्र पहनें। पूजा स्थल पर दीपक जलाएँ और धूप अर्पित करें। माँ कूष्मांडा की प्रतिमा/चित्र पर पुष्प और अक्षत चढ़ाएँ। मालपुआ और दही का भोग अर्पित करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। आरती कर प्रसाद वितरित करें।
विशेष भोग और रंग : रंग: नारंगी — ऊर्जा, उत्साह और सकारात्मकता का प्रतीक। भोग: मालपुआ और दही — भोग अर्पित करने से रोग शांति और स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है।
मंत्र : ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः इस मंत्र के जाप से रोग दूर होते हैं और प्राण शक्ति में वृद्धि होती है।
पूजा का लाभ : शारीरिक रोग और मानसिक पीड़ा से मुक्ति। प्राण शक्ति और ऊर्जा की वृद्धि। आयु और आरोग्य की प्राप्ति। कार्यों में सफलता और आत्मविश्वास।
क्यों की जाती है पूजा? : माँ कूष्मांडा की पूजा का कारण यह है कि वे सृष्टि की अधिष्ठात्री और प्राण शक्ति की दात्री हैं। भक्त मानते हैं कि उनकी आराधना से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और स्वास्थ्य संबंधी कष्ट दूर होते हैं। नवरात्र 2025 की चतुर्थी तिथि को माँ कूष्मांडा की पूजा विशेष फलदायी होगी। नारंगी वस्त्र, मालपुआ और दही का भोग और मंत्र-जप से भक्तों को प्राण शक्ति, आरोग्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होगा। इस वर्ष चतुर्थी दो दिन होने के कारण माँ कूष्मांडा की पूजा दोहराई जाएगी। फल: साधना का प्रभाव दोगुना माना जाएगा।
नवरात्र 2025: पंचमी को माँ स्कंदमाता की पूजा — संतान सुख और मोक्ष की दात्री
शारदीय नवरात्र 2025 की पंचमी तिथि शनिवार 27 सितम्बर को है। इस दिन नवरात्रि की पाँचवीं देवी माँ स्कंदमाता की पूजा का विधान है। ये भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं और गोद में पुत्र को लिए सिंहासन पर विराजमान रहती हैं। इनकी आराधना से संतान सुख, ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवासुर संग्राम में देवताओं की विजय हेतु भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ, तब माता पार्वती ने स्कंदमाता का स्वरूप धारण किया। माँ स्कंदमाता अपने पुत्र को गोद में लेकर भक्तों का कल्याण करती हैं। इनका वाहन सिंह है और इन्हें पाँच भुजाओं के साथ चित्रित किया जाता है।
पूजा का शुभ मुहूर्त (वाराणसी): तिथि: पंचमी, शनिवार 27 सितम्बर 2025 । मुहूर्त: प्रातः 6:13 से 8:09 बजे तक । अभिजीत मुहूर्त: 11:26 से 12:15 बजे तक
पूजा सामग्री : कलश और गंगाजल,लाल और पीले पुष्प,रोली, चंदन, अक्षत, धूप, दीपक और कपूर, केले और पंचामृत,दुर्गा सप्तशती ग्रंथ
पूजा विधि : प्रातः स्नान कर लाल वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल पर दीपक और धूप जलाएँ। माँ स्कंदमाता की प्रतिमा/चित्र पर चंदन, पुष्प और अक्षत अर्पित करें। केले और पंचामृत का भोग लगाएँ। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। अंत में आरती कर प्रसाद वितरित करें।
विशेष भोग और रंग : रंग: लाल — शक्ति, समर्पण और उत्साह का प्रतीक। भोग: केले — संतान सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए विशेष भोग।
मंत्र : ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः इस मंत्र का जाप करने से संतान की उन्नति, ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पूजा का लाभ : संतान सुख और उनकी उन्नति। परिवार में शांति और सौहार्द। साधक को आध्यात्मिक बल और मोक्ष का मार्ग मिलता है। व्यापार और कार्य में सफलता।
क्यों की जाती है पूजा? : माँ स्कंदमाता की पूजा का कारण यह है कि वे संतान सुख और ज्ञान की दात्री हैं। उनकी आराधना से भक्त को सांसारिक जीवन में सुख और आध्यात्मिक जीवन में मोक्ष का आशीर्वाद मिलता है। नवरात्र 2025 की पंचमी तिथि को माँ स्कंदमाता की पूजा विशेष महत्व रखती है। लाल वस्त्र, केले का भोग और मंत्र-जप से भक्तों को संतान सुख, समृद्धि और मोक्ष का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
नवरात्र 2025: षष्ठी को माँ कात्यायनी की पूजा — साहस और विवाह-सौभाग्य की दात्री
शारदीय नवरात्र 2025 की षष्ठी तिथि रविवार 28 सितम्बर को है। इस दिन नवरात्रि की छठी देवी माँ कात्यायनी की पूजा का विधान है। इन्हें शक्ति और वीरता की देवी कहा गया है। मान्यता है कि अविवाहित कन्याओं के लिए इनकी पूजा अत्यंत फलदायी होती है और विवाहित स्त्रियों को वैवाहिक जीवन का सुख प्रदान करती है।पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि कात्यायन ने कठोर तपस्या कर माँ भगवती को प्रसन्न किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उनके घर पुत्री रूप में जन्म लिया और कात्यायनी कहलायीं। यही देवी महिषासुर का वध कर देवताओं को विजय दिलाने वाली दुर्गा के रूप में पूजित हुईं। माँ कात्यायनी सिंह पर सवार हैं और इनके हाथों में तलवार और कमल शोभायमान हैं।
पूजा का शुभ मुहूर्त (वाराणसी) : तिथि: षष्ठी, रविवार 28 सितम्बर 2025 । मुहूर्त: प्रातः 6:14 से 8:10 बजे तक । अभिजीत मुहूर्त: 11:26 से 12:15 बजे तक ।
पूजा सामग्री : कलश और गंगाजल, लाल और नीले पुष्प, चंदन, रोली, अक्षत, धूप, दीपक और कपूर, शहद और पंचामृत, दुर्गा सप्तशती या देवी महात्म्य ग्रंथ
पूजा विधि : प्रातः स्नान कर नीले या गुलाबी रंग के वस्त्र पहनें। पूजा स्थल पर दीपक और धूप जलाएँ। माँ कात्यायनी की प्रतिमा/चित्र पर चंदन, पुष्प और अक्षत अर्पित करें। शहद का भोग लगाएँ। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। अंत में आरती कर प्रसाद वितरित करें।
विशेष भोग और रंग :रंग: नीला — साहस और दृढ़ता का प्रतीक। भोग: शहद — इससे विवाह संबंधी बाधाएँ दूर होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
मंत्र : ॐ देवी कात्यायन्यै नमः इस मंत्र के जाप से वैवाहिक जीवन में सुख और साधक को आत्मबल प्राप्त होता है। मंत्र का 108 बार जप करें।
पूजा का लाभ : अविवाहित कन्याओं के विवाह संबंधी योग प्रबल होते हैं। विवाहित स्त्रियों को वैवाहिक जीवन में सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साधक को साहस और आत्मबल मिलता है। शत्रु और बाधाएँ दूर होती हैं।
क्यों की जाती है पूजा? : माँ कात्यायनी की पूजा का कारण यह है कि वे महिषासुर का वध कर धर्म की रक्षा करने वाली शक्ति हैं। इनकी आराधना से विवाह संबंधी समस्याएँ दूर होती हैं और जीवन में शांति व सौभाग्य आता है।नवरात्र 2025 की षष्ठी तिथि को माँ कात्यायनी की पूजा का विशेष महत्व है। नीले वस्त्र धारण कर शहद का भोग और मंत्र-जप करने से भक्तों को साहस, आत्मबल और विवाह-सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
नवरात्र 2025: सप्तमी को माँ कालरात्रि की पूजा — दुष्टों का नाश और भय से मुक्ति का प्रतीक
शारदीय नवरात्र 2025 की सप्तमी तिथि सोमवार 29 सितम्बर को है। इस दिन नवरात्रि की सातवीं देवी माँ कालरात्रि की पूजा की जाएगी। माँ कालरात्रि का स्वरूप उग्र है, किंतु वे भक्तों को तुरंत फल देने वाली और भय से मुक्ति प्रदान करने वाली हैं। इनकी आराधना से साधक को अदम्य साहस और शत्रुओं पर विजय मिलती है।पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब असुरों का अत्याचार चरम पर था, तब माँ दुर्गा ने दैत्यों के संहार के लिए कालरात्रि का रूप धारण किया। इनका वर्ण कृष्ण है, बाल बिखरे हुए हैं और गले में मुण्डमाला है। ये सिंह पर सवार होकर दुष्टों का नाश करती हैं। यद्यपि स्वरूप उग्र है, परंतु ये भक्तों के लिए अत्यंत शुभ और मंगलकारी हैं।
पूजा का शुभ मुहूर्त (वाराणसी): तिथि: सप्तमी, सोमवार 29 सितम्बर 2025 । मुहूर्त: प्रातः 6:15 से 8:11 बजे तक अभिजीत मुहूर्त: 11:26 से 12:15 बजे तक ।
पूजा सामग्री : कलश और गंगाजल , गुलाब और रात्रि-खिलने वाले पुष्प, चंदन, रोली, अक्षत, धूप, दीपक और कपूर, गुड़ और हलवा, दुर्गा सप्तशती या देवी महात्म्य ग्रंथ ।
पूजा विधि : प्रातः स्नान कर गुलाबी या गहरे नीले रंग का वस्त्र पहनें। पूजा स्थल पर दीपक और धूप जलाएँ। माँ कालरात्रि की प्रतिमा/चित्र पर चंदन, पुष्प और अक्षत चढ़ाएँ। गुड़ और हलवे का भोग लगाएँ। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। आरती करें और प्रसाद बाँटें।
विशेष भोग और रंग : रंग: गुलाबी या नीला — सकारात्मकता और शक्ति का प्रतीक। भोग: गुड़ और हलवा — इससे जीवन में समृद्धि और शक्ति मिलती है।
मंत्र : ॐ देवी कालरात्र्यै नमः इस मंत्र के जाप से भय और शत्रु से मुक्ति मिलती है तथा साहस की वृद्धि होती है। मंत्र का 108 बार जप करें।
पूजा का लाभ : भय, रोग और शत्रु से मुक्ति। साहस और आत्मबल में वृद्धि। साधक को तंत्र-मंत्र बाधाओं से मुक्ति। जीवन में शुभता और शक्ति का संचार।
क्यों की जाती है पूजा? :माँ कालरात्रि की पूजा का कारण यह है कि वे दुष्टों का नाश करने वाली और भक्तों की रक्षक हैं। इनकी आराधना से साधक निर्भय होकर जीवन जी सकता है और सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त होता है।नवरात्र 2025 की सप्तमी तिथि को माँ कालरात्रि की पूजा विशेष फलदायी है। गुलाबी या नीले वस्त्र पहनकर गुड़-हलवे का भोग और मंत्र-जप करने से भक्तों को भय से मुक्ति, साहस और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
नवरात्र 2025: अष्टमी को माँ महागौरी की पूजा — सौम्यता और पवित्रता का प्रतीक
शारदीय नवरात्र 2025 की महाअष्टमी तिथि मंगलवार 30 सितम्बर को है। इस दिन नवरात्रि की आठवीं देवी माँ महागौरी की पूजा की जाएगी। इनका स्वरूप अति सौम्य, उज्ज्वल और गौर वर्ण का है। माना जाता है कि कठोर तपस्या से इनका शरीर काला पड़ गया था और बाद में गंगाजल से स्नान करने पर ये उज्ज्वल और गौरवर्णा हो गईं, इसलिए इन्हें महागौरी कहा गया।पौराणिक कथा के अनुसार, माँ पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कई वर्षों तक घोर तपस्या की। इस तपस्या से उनका शरीर अस्थि समान शुष्क और काला पड़ गया। तपस्या पूरी होने के बाद जब भगवान शिव ने गंगाजल से स्नान कराया, तो वे पूर्णतया गौरवर्णा और सुंदर हो गईं और *महागौरी* के नाम से प्रसिद्ध हुईं। इनका वाहन वृषभ (बैल) है और इनके हाथों में त्रिशूल और डमरू शोभित होते हैं।
पूजा का शुभ मुहूर्त (वाराणसी) : तिथि: महाअष्टमी, मंगलवार 30 सितम्बर 2025 । मुहूर्त: प्रातः 6:16 से 8:12 बजे तक । अभिजीत मुहूर्त: 11:26 से 12:15 बजे तक ।
पूजा सामग्री : कलश और गंगाजल , सफेद फूल (विशेषकर चंपा और चमेली), चंदन, रोली, अक्षत और सिंदूर , धूप, दीपक और कपूर, नारियल और मीठा प्रसाद, दुर्गा सप्तशती या देवी महात्म्य ग्रंथ ।
पूजा विधि : प्रातः स्नान कर सफेद या गुलाबी रंग का वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल पर दीपक और धूप जलाएँ। माँ महागौरी की प्रतिमा/चित्र पर पुष्प, चंदन और अक्षत अर्पित करें। नारियल और मिठाइयों का भोग लगाएँ। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। अंत में आरती करें और कन्या पूजन कर प्रसाद बाँटें।
विशेष भोग और रंग ; रंग: सफेद — पवित्रता और शांति का प्रतीक। भोग: नारियल और मिठाइयाँ — इससे भक्तों को शांति, सौभाग्य और दाम्पत्य सुख प्राप्त होता है।
मंत्र :ॐ देवी महागौर्यै नमः इस मंत्र का जाप करने से शुद्धता, क्षमा और दाम्पत्य सुख प्राप्त होता है। मंत्र का 108 बार जप करें।
पूजा का लाभ : दाम्पत्य जीवन में सुख और सामंजस्य। मानसिक शांति और पवित्रता। कठिन तप और कष्टों से मुक्ति। जीवन में क्षमा और सौम्यता का संचार।
क्यों की जाती है पूजा? : माँ महागौरी की पूजा से साधक के जीवन में सौम्यता, क्षमा और पवित्रता का वास होता है। मान्यता है कि उनकी आराधना से दाम्पत्य जीवन में सुख-शांति आती है और सभी बाधाएँ दूर होती हैं।नवरात्र 2025 की अष्टमी तिथि को माँ महागौरी की पूजा का विशेष महत्व है। सफेद वस्त्र धारण कर नारियल का भोग और मंत्र-जप करने से भक्तों को पवित्रता, सौभाग्य और दाम्पत्य सुख का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
नवरात्र 2025: नवमी को माँ सिद्धिदात्री की पूजा — सिद्धियों और शक्तियों की दात्री
शारदीय नवरात्र 2025 की महानवमी तिथि बुधवार 1 अक्टूबर को है। इस दिन नवरात्रि की नौवीं देवी माँ सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। शास्त्रों के अनुसार माँ सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियाँ और शक्तियाँ प्रदान करने वाली देवी हैं। उनकी कृपा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने जब अर्धनारीश्वर रूप धारण किया तो उनकी सिद्धियों की प्राप्ति माँ सिद्धिदात्री की कृपा से ही हुई। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं, कमल पर विराजमान रहती हैं और गदा, चक्र, शंख तथा कमल धारण करती हैं। वे सिंह या सिंहासन पर विराजमान मानी जाती हैं। इनकी उपासना से भक्त को आठ प्रमुख सिद्धियाँ (अनिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व) प्राप्त होती हैं।
पूजा का शुभ मुहूर्त (वाराणसी) : तिथि: महानवमी, बुधवार 1 अक्टूबर 2025 । मुहूर्त: प्रातः 6:17 से 8:13 बजे तक । अभिजीत मुहूर्त: 11:26 से 12:15 बजे तक ।
पूजा सामग्री ; कलश और गंगाजल , हल्के नीले या सफेद पुष्प, चंदन, रोली, अक्षत, धूप, दीपक और कपूर, खीर और फल, दुर्गा सप्तशती या देवी भागवत ग्रंथ ।
पूजा विधि ; प्रातः स्नान कर हल्के नीले या सफेद वस्त्र पहनें। पूजा स्थल पर दीपक और धूप जलाएँ। माँ सिद्धिदात्री की प्रतिमा/चित्र पर पुष्प, चंदन और अक्षत अर्पित करें। खीर और फल का भोग लगाएँ। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। अंत में आरती करें और कन्या पूजन कर प्रसाद बाँटें।
विशेष भोग और रंग : रंग: हल्का नीला — शांति और दिव्यता का प्रतीक। भोग: खीर और मौसमी फल — इससे भक्तों को सिद्धियाँ और समृद्धि प्राप्त होती है।
मंत्र ;ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः इस मंत्र के जाप से भक्त को सभी सिद्धियाँ और आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। मंत्र का 108 बार जप करें।
पूजा का लाभ :सभी प्रकार की सिद्धियाँ और शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति। जीवन में संतुलन और पूर्णता आती है। साधक को आध्यात्मिक बल और आत्मज्ञान मिलता है।
क्यों की जाती है पूजा? ; माँ सिद्धिदात्री की पूजा का कारण यह है कि वे नौ रूपों की साधना का समापन करती हैं और भक्त को संपूर्ण सिद्धि का आशीर्वाद देती हैं। उनकी कृपा से साधक को सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की सफलता प्राप्त होती है। नवरात्र 2025 की नवमी तिथि को माँ सिद्धिदात्री की पूजा का विशेष महत्व है। हल्के नीले वस्त्र पहनकर खीर और फल का भोग और मंत्र-जप करने से भक्तों को सभी सिद्धियों, आध्यात्मिक शक्ति और मोक्ष का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
शारदीय नवरात्र 2025 केवल पूजा और उपवास का पर्व नहीं, बल्कि प्रत्येक दिन एक देवी स्वरूप की आराधना से जीवन में विशेष गुणों की प्राप्ति का अवसर है। माँ शैलपुत्री से लेकर माँ सिद्धिदात्री तक की पूजा क्रमवार करने से भक्तों को स्थिरता, संयम, साहस, ज्ञान, संतान सुख, दाम्पत्य सुख और अंततः सिद्धि की प्राप्ति होती है।
डिस्क्लेमर (Disclaimer) ;इस लेख/समाचार में दी गई जानकारी धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक मान्यताओं, ज्योतिषीय आचार्यों की राय और परंपराओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल पाठकों तक सामान्य जानकारी पहुँचाना है। किसी भी अनुष्ठान या व्रत-विधि को करने से पहले योग्य आचार्य या पंडित से परामर्श करना उचित है।
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