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मुर्मु का न्याय को सर्वसुलभ बनाने की आवश्यकता पर जोर

नयी दिल्ली : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने देश में सामान्य नागरिकों को न्याय मिलने में आज भी कई तरह की बाधाएं व्याप्त होने की चर्चा करते हुए रविवार को कहा कि न्याय को सर्वसुलभ बनाना ही इसके उद्येश्यों को पूरा करने का बससे अच्छा तरीका है। श्रीमती मुर्मु ने देश में योग्यता के आधार पर न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा पर विचार किए जाने का भी सुझाव दिया।वह संविधान दिवस-2023 के उपलक्ष्य में उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित समारोह को संबोधित कर रही थीं।

राष्ट्रपति ने कहा,“न्याय का उद्देश्य , इसे सभी के लिए सुलभ बनाकर सर्वोत्तम तरीके से पूरा किया जा सकता है। इससे समानता को भी बल मिलता है।”उन्होंने कहा,“हमें खुद से पूछना चाहिए कि क्या हर एक नागरिक न्याय पाने की स्थिति में है। आत्ममंथन करने पर हमें पता चलता है कि रास्ते में कई बाधाएं हैं। लागत सबसे महत्वपूर्ण कारक है. भाषा जैसी अन्य बाधाएँ भी हैं, जो अधिकांश नागरिकों की समझ से परे हैं।

”राष्ट्रपति ने न्यायाधीशों की भर्ती के लिए प्रतिस्पर्धा आधारित पारदर्शी प्रणाली का सुझाव देते हुए कहा,“न्यायालयों में पीठ और अधिवक्ताओं दोनों में भारत की अनूठी विविधता का अधिक विविध प्रतिनिधित्व निश्चित रूप से न्याय के उद्देश्य को बेहतर ढंग से पूरा करने में मदद करता है। इस विविधीकरण प्रक्रिया को तेज़ करने का एक तरीका एक ऐसी प्रणाली का निर्माण हो सकता है जिसमें योग्यता आधारित, प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न पृष्ठभूमि से न्यायाधीशों की भर्ती की जा सके।’’फिलहाल देश में उच्चतम न्यायायलय और उच्च न्यायालयों के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति शीर्ष न्यायायल के न्यायाधीशों की एक समिति (कॉलेजियम) करती है। ‘न्यायाधीश की नियुक्ति न्यायाधीश करें’ वाली इस प्रणाली की अक्सर आलोचना होती रहती है।

उन्होंने कहा इसके लिए एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा हो सकती है जो प्रतिभाशाली युवाओं का चयन कर सकती है और उनकी प्रतिभा को निचले स्तर से उच्च स्तर तक पोषित और बढ़ावा दे सकती है।राष्ट्रपति ने कहा,“जो लोग बेंच (न्यायाधीशों की पीठ) की सेवा करने की इच्छा रखते हैं, उन्हें प्रतिभा का एक बड़ा पूल तैयार करने के लिए देश भर से चुना जा सकता है। ऐसी प्रणाली कम प्रतिनिधित्व वाले सामाजिक समूहों को भी अवसर प्रदान कर सकती है।’’श्रीमती मुर्मु ने न्यायिक प्रणाली में औपनिवेशिक काल की ऐसी रचनाओं रचनाओं और व्यवस्थाओं को समाप्त करने की जरूरत को भी रेखांकित किया जो आम लोगों के लिए न्याय के रास्ते की बाधा हैं।

उन्होंने कहा कि न्याय तक पहुंच में सुधार के लिए हमें समग्र प्रणाली को नागरिक-केंद्रित बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमारी प्रणालियाँ समय की उपज हैं; अधिक सटीक रूप से कहें तो, उपनिवेशवाद की उपज है ।राष्ट्रपति ने कहा कि औपनिवेशिक काल के इसके अवशेषों को हटाने का कार्य चल रहा है और ‘विश्वास है कि हम अधिक सचेत प्रयासों से सभी क्षेत्रों में उपनिवेशीकरण के शेष हिस्से को तेज कर सकते हैं।’उन्होंने कहा कि जब हम संविधान दिवस मनाते हैं, तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि संविधान आखिरकार केवल एक लिखित दस्तावेज है। यह तभी जीवंत होता है और जीवित रहता है जब इसकी सामग्री को व्यवहार में लाया जाए। इसके लिए व्याख्या के अभ्यास की आवश्यकता है।

उन्होंने संविधान की अंतिम व्याख्याकार की भूमिका पूर्णता से निभाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की सराहना की। उन्होंने कहा,“इस न्यायालय की बार और बेंच ने न्यायशास्त्र के मानकों को लगातार बढ़ाया है। उनकी कानूनी कुशलता और विद्वता सर्वोत्कृष्ट रही है। हमारे संविधान की तरह, हमारा सर्वोच्च न्यायालय भी कई अन्य देशों के लिए एक आदर्श रहा है।’’श्रीमती मुर्मु ने विश्वास व्यक्त किया कि एक जीवंत न्यायपालिका के साथ, हमारे लोकतंत्र का स्वास्थ्य कभी भी चिंता का कारण नहीं बनेगा। (वार्ता)

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