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संसद भवन निर्माण के लिए आज भी याद की जाती है देश की ये धरती, अब बनेगी फर्नीचर हब

काल के गर्भ में कई गहरे राज समाए हैं। ऐसा ही एक राज देश की संसद भवन को लेकर भी है। दरअसल, जिस संसद भवन को लेकर अंग्रेज यह दावा करते रहे हैं कि यह उनकी देन है, असल में वह भारत से ही चुराए गए आइडिए पर ही निर्मित है। जी हां, संसद भवन के डिजाइन का आइडिया अंग्रेजों ने भारत से लिया है। इसके बारे में आपको तब ज्ञात होगा जब आप मुरैना के ‘चौसठ योगिनी मंदिर’ के बारे में जानकारी जुटाएंगे। बताना चाहेंगे, मध्य प्रदेश का यह हिस्सा जिसने कभी भारत की संसद भवन को आकार दिया और अपने आप में एक विलक्षण सौंदर्य बोध से दुनिया को परिचित कराया था और स्वाद में गजक के लिए जिसकी पहचान पूरी दुनिया में है, वही मुरैना अब नए रूप में फर्नीचर के नए आयामों को गढ़ने के लिए तैयार हो रहा है। जहां हजारों लोगों के लिए रोजगार ने अवसरों के साथ लकड़ी पर कलाकारी का एक नया भविष्य योजनाबद्ध तरीके से शुरू होगा।

दरअसल, मुरैना का नाम लेते ही जहन में सबसे पहले जो छवि उभरती है, वह चंबल के बीहड़ क्षेत्र और डाकुओं की है, लेकिन यह तो उसका एक छोटा सा भाग है, इतिहास के झरोखे में देखें तो यही वह स्‍थान है, जिसने कि भारत के संसद भवन को आकार प्रदान करने के लिए एक आधार प्रदान किया था। कहने को भले ही 144 मजबूत स्तंभों पर टिका वर्तमान संसद भवन 93 साल पहले अंग्रेजों ने बनवाया था, लेकिन अंग्रेजों को भी संसद भवन कैसा होना चाहिए यह सोच डिजाइन के स्‍तर पर मुरैना से ही मिली थी। यहां के गांव में बने मितावली-पड़ावली का चौसठ योगिनी मंदिर ही वह आधार है, जिसकी कॉपी बनाने का निर्णय इस संसद भवन को निर्मित करने वाले ब्रिटिश वास्तुविद एडविन के लुटियन और सर हर्बर्ट बेकर ने लिया था।

मुरैना के चौसठ योगिनी मंदिर की प्रतिमूर्ति है भारत का संसद भवन
भवन का शिलान्यास 12 फरवरी 1921 को ‘ड्यूक ऑफ कनॉट’ ने किया और छह वर्षों के बाद उद्घाटन तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने 18 जनवरी 1927 को किया था, पर इसके ऐतिहासिक संदर्भ को देखें तो मुरैना के बने चौसठ योगिनी मंदिर और संसद भवन में पूर्ण समानताएं हैं। हालांकि यह बात अलग है कि तत्कालीन समय में अंग्रेजों को यह कहने में संकोच हो रहा था कि हमने इस भवन का डिजाइन एक हिन्दू मंदिर से लिया है, इसलिए उनके द्वारा स्थापित किया गया कि पुर्तगाली स्थापत्य कला का अदभुत नमूना है, लेकिन आज यह बात दुनिया को पता चल चुकी है कि भारतीय संसद भवन मुरैना में बने एक हिन्दू मंदिर की ही प्रतिमूर्ति है।

मध्य प्रदेश का मुरैना बनेगा फर्नीचर हब, बड़ी संख्या में मिलेगा रोजगार
अब यही मुरैना आधुनिक भारत में अपने नए विकास के मॉडल पर चलने को तैयार हो उठा है। यहां शीघ्र ही लकड़ी के कार्य के लिए विश्‍वस्‍तरीय सुविधाएं एवं कार्य योजना मूर्त रूप लेती हुई दिखाई देगी क्योंकि अपने संसदीय क्षेत्र होने के परिणामस्वरूप केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर इस क्षेत्र के विकास के लिए जिस तरह से रुचि ले रहे हैं, उसे देखकर लग रहा है कि आने वाले दिनों में यह पूरा क्षेत्र देश में अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए जुट गया है।

मुरैना में होगा विश्‍व स्‍तरीय फर्नीचर उद्योग विकसित
केंद्रीय मंत्री तोमर ने इसी क्रम में अधिकारियों से चर्चा कर प्रस्ताव दिया है कि मुरैना में फर्नीचर उद्योग विकसित करने की संभावनाएं तलाशी जाएं। तोमर की पहल पर मुरैना के जिलाधिकारियों तथा राज्य सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग के अधिकारियों ने एक प्रेजेंटेशन दिया है। प्रेजेंटेशन के दौरान फर्नीचर उद्योग से जुड़े निवेशकों ने संतोष जताया और वे यहां पर बड़ी संख्या में निवेश के लिए उत्साहित दिख रहे हैं।

हजारों लोगों को मिलेगा रोजगार
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कहते हैं ”मुरैना की लकड़ियों से जिले में ही फर्नीचर बनाया जाएगा तो यहां उद्योग विकसित होने के साथ बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा, साथ ही जिले की अर्थव्यवस्था भी बेहतर हो सकेगी। मुरैना में फर्नीचर बनने से मध्य प्रदेश सहित आसपास के जिलों में इसका विक्रय हो सकेगा, जिससे सभी स्थानों के लोगों को काफी सहूलियत व फायदा होगा।”

इसलिए चुना गया मुरैना को फर्नीचर उद्योग के लिए
तोमर इस क्षेत्र को फर्नीचर उद्योग के लिए सबसे मुफीद इसलिए भी मानते हैं क्योंकि मुरैना जिले में आरक्षित वन क्षेत्र 50,669 हेक्टेयर तथा संरक्षित वन 26,847 हेक्टेयर है, जो ज्यादातर सबलगढ़ एवं जौरा ब्लॉक में है। जिले में मुख्यतः सागौन, शीशम, नीम, पीपल, बांस, साल, बबूल, हर्रा, पलाश, तेंदू के वृक्ष के वन हैं। इनमें से मुख्यतः शीशम, सागौन, साल की लकड़ियां भी फर्नीचर में उपयोग होती हैं, वहीं फर्नीचर में इस्तेमाल होने वाली लकड़ियों में देवदार व कठल भी हैं, जो मध्य प्रदेश में बहुतायत में पाई जाती हैं और फर्नीचर उद्योग के विकास में बहुत उपयोगी है। वर्तमान में मुरैना जिले में उत्पादित लकड़ियों का अधिकांश हिस्सा उत्तर प्रदेश व राजस्थान के फर्नीचर निर्माताओं द्वारा उपयोग में लाया जाता है। यहां की लकड़ी और बने हुए फर्नीचर की मांग मध्य प्रदेश की सीमा से लगे राज्यों के अलावा भी देश के अन्‍य राज्‍यों में बनी रहती है, लेकिन ध्यान में आया है कि इसे बनाने वाले उद्योग व कारीगरों की बहुत कमी है। तोमर इसलिए मुरैना को एक फर्नीचर निर्माण के रूप में विकसित कर इसी कमी को दूर करने के साथ हजारों युवाओं को रोजगार मुहैया कराना चाहते हैं।

केंद्र के साथ राज्‍य शासन करेगा हर संभव मदद
इस नवाचार को लेकर प्रदेश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा का कहना है कि राज्य शासन की ओर से इस पहल पर पूरा सहयोग किया जाएगा। हमारा प्रयास रहेगा कि मुरैना जिले में फर्नीचर निर्माण को बहुत ही योजनाबद्ध तरह से विकसित किया जाए। इसके लिए शासन स्‍तर पर जो भी आवश्यकता होगी, उसकी पूर्ति की जाएगी। बता दें कि मध्यप्रदेश शासन के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग ने इसी महीने के प्रारंभ में नए नियम जारी किए हैं, जिसके अंतर्गत क्लस्टर्स के लिए राज्य शासन द्वारा रियायती दर पर जमीन आवंटित की जाएगी।

निवेशकों में दिखा भारी उत्साह
दूसरी तरफ फर्नीचर उद्योग से जुड़े निवेशकों ने भी अपना उत्साह दिखाते हुए कहा है कि कोरोना महामारी के बावजूद केंद्रीय मंत्री तोमर ने तत्परतापूर्वक इस दिशा में पहल की है। राज्य सरकार की नीतियां भी निवेश को प्रोत्साहित करने वाली हैं। ऐसे में निवेशकों द्वारा इस संबंध में शीघ्र ही मुरैना का दौरा कर आगे की रूपरेखा तय की जाएगी। निवेशकों ने इस अभिनव पहल के लिए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ ही प्रदेश में मंत्री ओम प्रकाश सखलेचा का आभार माना है।

उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास, पंचायती राज तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री और मुरैना के क्षेत्रीय सांसद नरेंद्र सिंह तोमर और प्रदेश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा की पहल पर मुरैना में फर्नीचर क्लस्टर की स्थापना के सिलसिले में बीते दिन की शाम ही कृषि भवन, नई दिल्ली में संबंधित अधिकारियों और निवेशकों के साथ वृहद बैठक सम्पन्न हुई है, जिसमें कि सभी की सहमति शीघ्र मुरैना को अब फर्नीचर निर्माण के क्षेत्र में विश्‍वस्‍तरीय पहचान बनाने के लिए बनी है।

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