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इंदिरा गांधी ने ‘तानाशाही’ थोपी, संविधान पर ‘प्रचंड प्रहार’ किया : बिरला
नयी दिल्ली : लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आज अपना कार्यभार संभालने के तुरंत बाद सदन में आपातकाल को याद करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का सीधा नाम लिया और कहा कि श्रीमती गांधी ने देश में ‘तानाशाही’ थोप कर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के संविधान पर ‘प्रचंड प्रहार’ किया था।श्री बिरला ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपने मंत्रियों का परिचय कराये जाने के बाद श्री बिरला ने दिनांक 26 जून 1975 में लगे आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर एक बयान दिया जिसमें कांग्रेस एवं श्रीमती इंदिरा गांधी को सीधे सीधे घेरा गया।
श्री बिरला के इस वक्तव्य का कांंग्रेस के सांसदों ने कड़ा विरोध किया और शोर शराबा किया। यह संभवत: पहला अवसर है जिसमें सदन के आसन ने आपातकाल के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी का नाम लेकर आलोचना की। सदन ने आपातकाल में आहत हुए देश के नागरिकों को स्मरण करते हुए 2 मिनट का मौन भी रखा।दरअसल में दो दिन से सदन में विपक्षी सांसदों ने लोकसभा की सदस्यता की शपथ लेने के दौरान संविधान की प्रतियां लहरायीं थीं और खुद को संविधान के रक्षक के रूप में प्रदर्शित करने की कोशिश की थी। श्री बिरला के आपातकाल के बारे में बयान को उसी के जवाब के रूप में देखा जा रहा है।
श्री बिरला ने अपने बयान में सदन की तरफ से आपातकाल लगाने के निर्णय का उल्लेख किया और उन सभी लोगों के संकल्प शक्ति की सराहना की जिन्होंने आपातकाल का पुरजोर विरोध किया, संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा की।श्री बिरला ने भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के दिन को काला अध्याय बताते हुए कहा, “इस दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया और बाबा साहेब द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया।
” उन्होंने कहा कि विश्व में भारत की पहचान लोकतंत्र की जननी के रूप में है जहां सदैव लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रोत्साहित किया गया है। ऐसे भारत पर श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोपी गई। भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को भुला दिया गया और अभिव्यक्ति की आजादी को का गला घोटा गया। आपातकाल के दौरान नागरिकों के अधिकार नष्ट किए गए और उनकी आजादी छीन ली गई। यह वह दौर था जब विपक्ष के नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया और पूरे देश को जेल खाना बना दिया गया।
उन्होंने कहा कि उस समय कि तानाशाह सरकार द्वारा मीडिया पर अनेक पाबंदियां लगा दी गईं थीं और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगा दिया था। आपातकाल का वह समय हमारे देश के इतिहास में अन्याय का कालखण्ड था। आपातकाल लगाने के बाद उसे समय की कांग्रेस सरकार ने कई ऐसे निर्णय किए जिन्होंने संविधान की भावना को कुचलने का काम किया।
उन्होंने उस समय पर लिए गए कई निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन सभी निर्णयों का लक्ष्य था कि सारी शक्तियां एक व्यक्ति के पास आ जाए। आपातकाल के दौरान तत्कालीन सरकार ने कोशिश की कि न्यायपालिका पर नियंत्रण स्थपित कर संविधान के मूल सिद्धांत खत्म किए जा सके।श्री बिरला ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री इंदिरा गांधी के प्रतिबद्ध नौकरशाही और प्रतिबद्ध न्यायपालिका की धारणा को लोकतंत्र विरोधी रवैया बताया। उन्होंने कहा कि आपातकाल के समय में तत्कालीन सरकार ने गरीबों और वंचितों को तबाह कर दिया। इमरजेंसी के दौरान लोगों पर सरकार द्वारा जबरन थोपी गई अनिवार्य नसबंदी और अतिक्रमण हटाने की क्रूर नीतियां लागू कीं।
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि आपातकाल एक काला खंड था जिसने संविधान के सिद्धांतों, संघीय ढांचे और न्यायिक स्वतंत्रता के महत्व को कम करने की कोशिश की। आपातकाल हमें यह याद दिलाता है कि संविधान और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा आवश्यक है।श्री बिरला ने विश्वास व्यक्त किया कि 18वीं लोक सभा बाबा साहेब द्वारा निर्मित संविधान को बनाए रखने और इसकी रक्षा करने और संरक्षित रखने की अपनी प्रतिबद्धता को कायम रखेगी। 18वीं लोक सभा देश में कानून का शासन और शक्तियों के विकेंद्रीकरण के लिए प्रतिबद्ध रहेगी।
उन्होंने संवैधानिक संस्थाओं में भारत के लोगों कि आस्था और अभूतपूर्व संघर्ष को याद किया और कहा कि इस के कारण आपातकाल का अंत हुआ और एक बार फिर संवैधानिक शासन की स्थापना हुई।श्री बिरला ने कहा कि आपातकाल के समय में सरकारी प्रताड़ना के चलते अनगिनत लोगों को यातनाएं सहनी पड़ी और उनके परिवारों को असीमित कष्ट उठाना पड़ा, जिसने भारत के कई नागरिकों का जीवन तबाह कर दिया। (वार्ता)
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