Varanasi

दो दिवसीय जगदगुरु विश्वाराध्य जयन्ती का शुभारम्भ

वाराणसी। दो दिवसीय जगदगुरु विश्वाराध्य जयन्ती का शुभारम्भ जंगमवाडी स्थित जंगमवाडी मठ मे आदय संस्थापक जगद्गुरु विश्वाराध्य जी का जयन्ती महोत्सव प्रातः ९ बजे १००८ चन्द्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी जी एवं १००८ डॉ. मल्लिकार्जुन विश्वाराध्य महारानी से पंचाचार्य ध्वजारोहण के साथ हुआ।

कार्यक्रम के दूसरी श्रृंखला में प्रतिवर्ष दिया जाने वाला विश्वाराध्य विश्वभारती पुरस्कार इस वर्ष सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य कृष्णकान्त शर्मा को प्रदान किया गया। इसी प्रकार दुसरा कोडीन संस्कृत साहित्य पुरस्कार नेपाल के सुप्रसिद्ध विद्वान श्री भरतमणि जंगम को तथा इस वर्ष का प्राचार्य प्रजवलगद्विवेदी शेष भारती पुरस्कार आचार्य प को तथा तीसरा वसन्तकन्या महाविद्यालय की संस्कृत विभाग की विदुषी आवार्या डॉ. मंजूकुमारी को लि. सौ. सिन्धु सुभाष रहमाने मातृशक्ति पुरस्कार प्रदान किया गया। इस वर्ष आशा के महनीय राज्य सूक्ष्मागम का काव्यानुवाद करने वाले अन्ताराष्ट्रिय ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रो. ‘दिनकर’ हापुड को शैवभारतीशोध प्रतिष्ठान का नामित पुरस्कार प्रदान किया गया।

हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में महनीय योगदान करने वाले डॉ. उमाशंकर चतुर्वेदी कंचन को जयदेवश्री हिन्दी साहित्य पुरस्कार प्रदान किया गया। शिवार्पण की श्रृंखला में जगद्गुरु १००८ डॉ. चन्द्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी के द्वारा रचित पंपाचार्य पं सूत्राणि काशिवार्पण १००८ डॉ. मल्लिकार्जुन विश्वाराध्य शिवाचार्य महास्वामी के करकमलों से सम्पन्न हुआ। सूक्ष्मागम सप्तशति का शिवार्पण परमपूज्य जगद्गुरु १००८ डॉ. चन्द्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी ने किया। जन्म हा अखेरचा तथा भारतीय नवीन शिक्षा प्रणाली के बहुआयामी अवसर गुजरात यूनिवसिटी के प्रोफेसर डॉ. तरूपकुमार द्विवेदी द्वारा सम्पादित पुस्तक का शिवार्पण प्रो. कृष्णकान्त शर्मा के करकमलो हुआ।

प्रो. शर्मा ने अपने सम्मान के प्रतियुत्तर में कहा कि मठ की प्रचीनता और ज्ञान सिंहासन पीठ की परम्परा अदनीय है। इसी मठ में प्राचीन जगद्गुरु की जीवन्त समाधिया भी है। यह स्थान आलौकिक है तथा दुर्लभ गव्यों का अजाना भी है। आपने आगे कहा कि जनेको बार न्यायालयों ने वहां के प्रामाणिक बच्चों ने य पालिका को न्याय करने में सहायता की है। कोडिमठ सम्मान से सम्मानित श्रीभरतमणि जंगम कहा कि यह स्थान जगद्गुरुओं के प्राकाट्य का प्रमुख केन्द्र है जहां कि हजारों वर्षो की परम्परा रही है।

जहां के साहित्य में गुरुकोटि के विद्वानों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यह सम्मान नही मेरे लिए परमपूज्य जगद्गुरु जी एवं पीठ का अमोघ आशीर्वाद है । उमाशंकर चतुर्वेदी कंचन ने अपने सम्मान के प्रत्युत्तर में कहा कि मै यहां की परम्परा से अभिभूत हूँ, शैवागनों के उन्नयन में यह मठ सदैव अग्रणी रहा है। मैं आज धन्य हू कि मुझे पीठ ने सम्मान प्रदान किया है। विदुषी आचार्या डॉ. मंजु कुमारी में कहा कि मैं यहां की परम्परा को सुनती आ रही थी परन्तु आज मठ के सम्मान से ने आयोजन की अध्यक्षता करते हुए डॉ. चन्द्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी जी ने कहा कि काशी के विद्वानों का हमें बराबर सहयोग प्राप्त हो रहा है। उसी के फलस्वरूप शैवभारती शोध प्रतिष्ठान से प्राय पचहत्तर आगमशास्त्र के महत्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन सम्भव हो सका।

सभी प्रकार के सद्भक्तों का आगमशास्त्र एवं मठ के विकास पर योगदान करने के लिए प्रेरित किय नूतन जगद्गुरु डॉ. मल्लिकार्जुन विश्वाराध्य शिवाचार्य महा स्वामी ने अपने उदबोदध में मठ ज्ञान-विज्ञान की प्राचीन परम्परा के सर्वधन में काशी के विद्वानों का निरन्तर सहयोग प्राप्त होता ये ऐसी आशा व्यक्त की। प्रगति कर रही है।

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